बहुमुखी प्रतिभा के साहित्यकार श्री सियारामशरण गुप्त का जन्म भाद्र पूर्णिमा सम्वत् 1952 वि. तद्नुसार 4 सितम्बर 1895 ई. को सेठ रामचरण कनकने के परिवार में श्री मैथिलीशरण गुप्त के अनुज रूप में चिरगांव, झांसी में हुआ था। Siyaram Sharn Gupta नें प्राइमरी शिक्षा पूर्ण कर घर में ही गुजराती, अंग्रेजी और उर्दू भाषा सीखी।
सन् 1929 ई. में राष्ट्रपिता गांधी जी और कस्तूरबा के सम्पर्क में आये। कुछ समय वर्धा आश्रम में भी रहे। सन् 1940 ई. में चिरगांव में ही नेता जी सुभाषचन्द्र बोस का स्वागत किया। वे सन्त बिनोवा जी के सम्पर्क में भी आये। उनकी पत्नी तथा पुत्रों का निधन असमय ही हो गया। मूलत- आप दु:ख वेदना और करुणा के कवि बन गये। साहित्य के आप मौन साधक बने रहे।
‘मौर्य विजय’ प्रथम रचना सन् 1914 में लिखी। अनाथ, आर्द्रा, विषाद, दूर्वा दल, बापू, सुनन्दा, गोपिका आपके खण्ड काव्य हैं।
मानुषी – कहानी संग्रह।
पुण्य पर्व – नाटक ।
गीता सम्वाद – अनुवाद ।
उन्मुक्त गीत – नाट्य ।
अनुरुपा तथा अमृत पुत्र – कविता संग्रह ।
दैनिकी नकुल, नोआखली में, जय हिन्द, पाथेय, मृण्मयी, आत्मोसर्ग – काव्यग्रन्थ । “अन्तिम आकांक्षा’, “नारी’ और गोद – उपन्यास ।
“झूठ-सच’ – निबन्ध संग्रह ।
ईषोपनिषद, धम्मपद – भगवत गीता का पद्यानुवाद ।
दीर्घकालीन हिन्दी सेवाओं के लिए सन् 1962 ई. में “सरस्वती’ हीरक जयन्ती में सम्मानित किये गये। आपको सन् 1941 ई. में “सुधाकर पदक‘ नागरी प्रचारिणी सभा वाराणसी द्वारा प्रदान किया गया। आपकी समस्त रचनाएं पांच खण्डों में संकलित कर प्रकाशित है। असमय ही 29 मार्च 1963 ई. को लम्बी बीमारी के बाद मां सरस्वती के धाम में प्रस्थान कर गये।