श्री केदारनाथ अग्रवाल का जन्म 1 अप्रैल 1911 ई. में बाँदा जनपद के कमासिन ग्राम में हुआ। व्यवसाय से आप कुशल अधिवक्ता तथा सरकारी वकील के रूप में भी पदस्थ थे। Kedar Nath Agarwal सरल, सहज एवं भावपूर्ण एक व्यवहारिक व्यक्ति थे। श्री केदारनाथ अग्रवाल का निधन 22 मई सन 2000 को हो गया।
श्री केदारनाथ अग्रवाल माक्र्सवादी विचारधारा से प्रभावित होकर रचना करते थे , किन्तु इनका व्यक्तित्व स्वछन्द व प्रगतिशील है। वे केवल कवि ही नहीं सूक्ष्म विचारक भी हैं जैसा उनके साहित्यिक लेखों से प्रगट होता है। वे नये मूल्यों की स्थापना करने वाले विद्रोही कवि हैं। समाज में नये जीवन की नयी किरण का स्वागत करते हैं। संघर्ष और विद्रोह के प्रति उनका दृष्टिकोण स्वस्थ है। उनके बिम्ब नवीन तथा सारगर्भित होते हैं। उनकी भाषा सरल व चुभती हुई है।
काव्य संग्रह
“देश देश की कविता’ प्रथम काव्यानुवाद प्रकाशित हुआ।
युग की गंगा, नींद के बादल, गुलमेंहदी, आग का आइना, हे मेरी तुम, कहे किदार खरी-खरी, जमुन जल, जो शिलाएं तोड़े हैं, अनहारी हरियाली, कूकी कोयल खड़ी पेड़ की देह, बसन्त में प्रसन्न हुयी धरती।
उपन्यास
पतिया
संस्मरण
खिली बस्ती गुलाबों की
साहित्य अकादमी द्वारा “अपूर्वा’ पुरस्कृत है। आप “मैथिलीशरण गुप्त’ पुरस्कार से सम्मानित हुए तथा हिन्दी साहित्य सम्मेलन प्रयाग द्वारा “विद्यावाचस्पति’ के उपाधि से अलंकृत किये गये।
आपको जनवादी कवि के नाते सन् 1973 ई. में सोवियत लैण्ड पुरस्कार प्रदान किया गया तथा रुस का यात्रा भी की। इनकी काव्यप्रेरणा स्वयं का जीवन दर्शन है। उन्होंने किसान एवं मजदूरों की पीड़ा तथा ग्रामीण जीवन के दु:ख-दर्दों को ईमानदारी से व्यक्त किया है।