बुंदेलखंड के महान उपन्यासकार श्री वृन्दावनलाल वर्मा का जन्म मऊरानीपुर , झांसी में 9 जनवरी सन् 1889 ई. में हुआ। Dr Vrindavanlal Verma के पिता श्री अयोध्या प्रसाद श्रीवास्तव कानूनगो थे। विद्यार्थी जीवन में ही आपने शेक्सपीयर के चार नाटकों का हिन्दी अनुवाद किया। सन् 1913 में वकालत शुरु की।
ऐतिहासिक उपन्यास
डॉ वृन्दावनलाल वर्मा नें सन् 1909 में राजपूत की तलवार कहानी संग्रह प्रकाशित हुई। “गढ़-कुण्डार‘, “विराटा की पद्मिनी’, “झांसी की रानी’, “हंस मयूर’, “माधवराय सिन्धिया’, “मृगनयनी’, पूर्व की ओर, ललित विक्रम, भुवन विक्रम, अहिल्याबाई “कीचड़’ और “कमल’ “देवगढ़ की मुस्कान’, “रामगढ़ की रानी’, “महारानी दुर्गावती’, “अब क्या हो’, “सोती आग’ आदि ।
सामाजिक उपन्यास
“लगन, “संगम’, “प्रत्यागत’, कुण्डली चक्र, प्रेम की भेंट, मंगलसूत्र, राखी की लाज, अचल मेरा कोई, बाँस का फांस, खिलौनी की खोज, कनेर, पीले हाथ, नीलकंठ, केवट, देखा-देखी, उदय, किरण, आहत, आदि ।
कहानियां
अंगूठी का दान, कलाकार का दण्ड, रश्मि समूह, शरणागत, मेढ़क का ब्याह, ऐतिहासिक कहानियां, गौरव गाथाएं, सरदार राने खां, राष्ट्रीय ध्वज की आन, एक दूसरे के लिए हम, आदि ।
नाटक -एकांकी
झांसी की रानी, बीरबल, चले चलो, नाटक तथा तीन एकांकी लिखे।
गद्य काव्य
हृदय की हिलोर
आंचलिक कहानी
दबे पांव –शिकार अनुभव, सोना
वीरगाथा जीवनी
युद्ध के मोर्चे से
जीवनी
१८५७ के अमर वीर, स्केच, अपनी कहानी
राजनैतिक नाटक
बुन्देलखण्ड के लोकगती, काश्मीर का कांटा
रिपोर्ताज़
भारत यह है
ललितादित्य डूबता शंखनाद, अमर ज्योति, आदि प्रकाश्य है। आपकी विभिन्न पुस्तकों का अनुवाद देशी और विदेशी भाषाओं में सम्पन्न हुआ।
भारत सरकार द्वारा सन् 1965 ई. में “पदम् भूषण’ द्वारा सम्मानित हुए।
आगरा विश्वविद्यालय द्वारा सन् 1968 में डी.लिट. उपाधि प्रदत्त हुयी।
हिन्दी साहित्य सम्मेलन प्रयाग द्वारा सन् 1965 में “साहित्य वाचस्पति उपाधि प्रदान की गयी।
“सोवियत भूमि नेहरु पुरस्कार’, “साहित्य अकादमी पुरस्कारद्ध, “हिन्दुस्तानी अकादमी पुरस्कारद्ध तथा “बटुक प्रसाद पुरस्कार’ –काशी नागरी प्रचारिणी सभा वाराणसी– प्राप्त हुए।
23 फ़रवरी सन् 1969 ई. को 81 वर्ष की आयु में स्वर्गवासी हुए।
श्री वर्मा जी की कहानियां, उपन्यास, नाटक आदि आंचलिकता का गुण लिये हुए हैं। उनकी तुलना या प्रेरणा स्रोत सर वाल्टर स्काट को माना जाता है, यह भ्रामक है। उनकी घटनाचक्रों की पृष्ठभूमि, पात्रों की मानसिकता तथा वातावरण शुद्धतम भारतीय तथा बुन्देलखण्डी है।
बुदेलखण्ड का चप्पा-चप्पा उनका जाना और छाना हुआ था। यहाँ के निवसी उनकी रचनाओं में अनुप्राणित हैं। बुन्देलाण्ड का समस्त जीवन उनमें प्रतिफलित है। उनका जीवन एक महाकाव्य था। जिसमें विविध सर्ग उनकी रचनाएं थीं। उनके जीवन में बुन्देलखण्ड की मिट्टी की सुगन्ध बसी हुयी थी और वही उनकी रचनाओं में भी मुखरित थी। हिन्दी में एक वही लेखक थे जिसमें एक व्यापक भूखण्ड का अतीत, वर्तमान और भविष्य बोलता है।
कतकारियों का रहस