Tyag Ka Fal त्याग का फल

बड़े बुजुर्ग कहते हैं कि Tyag Ka Fal त्याग का फल बहुत अच्छा होता है ? रेल का बड़ा भयानक एक्सीडेंट हुआ था उस दिन ग्वालियर में, मेडीकल कालेज के अस्पताल में रोड के किनारों पर टैक्सी, मोटर साइकिल, स्कूटर्स, आटो रिक्शों की अपार भीड़ में चलना असम्भव लग रहा था ।

स्त्री, पुरुष, बूढ़े एवं बच्चे जिसे भी देखिये बड़ी तीब्र गति से अस्पताल की ही ओर बढ़ते दिख रहे थे। लोगों की आँखों से थमते-थमते आँसू छलक पड़ते थे सोचनीय गुम चेहरों से अनेकानेक शंकायें उभरती दिखती थी कुछ लोग जो वहाँ पहले ही से उपस्थित थे आँखों में आँसू भरे हए सिसक रहे थे। अस्पताल में चारों ओर उदासी का वातावरण छाया हुआ था।

रचना अपने मम्मी पापा के साथ रिक्से से उतर कर अस्पताल की ओर बढ़ रही थी। सहमी सी तथा मम्मी की भी आँखों में आँसू भरे हुए ईश्वर से विनय कर रही थीं पापाजी भी बहुत उदास और चितित से दिख रहे थे। बेटी रचना ने अस्पताल की उभरती हुई भीड़ को देखा सभी के चेहरे घबड़ाये हुए थे । आने वाले लोग अपने लोगों को तलाशते हुए सूचना पट पर अकित लोगों की सूची पढ़ते हुये  अपने संबंधी जन को तलाश रहे थे।

अपने मम्मी पापा के साथ साथ रचना भी आगे बढ़ी। भयानक दुर्घटना के बाद का चित्र सामने था । रचना के पापा ने कहा कि घायल लोगों की इस सूची में तो कहीं गगन का नाम नहीं है । तब कुछ लोगों ने कहा कि आप घबड़ाये नहीं । जितने भी मरीज आये हैं इन्हीं आठों वार्डो में हैं आप तो एक तरफ से सभी को देख लोजिये तब आपको संतोष मिलेगा।

रिजर्वेशन के नाम ही सूची में दिये गये हैं । बाहर चीख पुकार मची हुई थी। घायलों को लाने वाली एम्बुलेन्स की लाईन लगी हुई थी। एक औरत जोर-जोर से रो रही थी लग रहा था कोई उसके घर का समाप्त हो गया हो रचना की आँखे भर आई।

रचना की नजर दुर्घटना ग्रस्त लोगों पर पड़ती तो वो बहुत दुखी हो जाती । रचना के मन में बड़ा आश्चर्य हुआ उसकी । समझ में यह नहीं आ रहा था कि सभी अपने ही लोगों के बारे में क्यों चितित हैं । मम्मी जी बार-बार यही कह रहीं थीं कि आज ही दुर्घटना होनी थी। आज की बजाय कल होती इस गाडी से न होकर और भी किसी गाड़ी से होती।  रचना को मम्मी की बात पर गुस्सा आ रहा था कि विपत्ति क्या तुम्हें अपने आने की सूचना देती कि मैं आ रही हैं।

अभी अभी तो शादियों की छुटिटयों में भाई साहब नाना जी के साथ आगरा गये हैं। कल ही तो उनका पत्र आया है कि मैं आ रहा  हूँ लेकिन भैया ने भी इसी पैसिजर से आने को लिखा था ईश्वर जाने उनकी हालत कैसी होगी। तब तक उसे एक बाबा की टाँग कटी हुई दिखी उसने तुरन्त अपने पापा का कोट पकड़कर खींचा और कहा अरे राम, ये तो वही बाबा है जो मंगलवार को आटा माँगने आता था।

पापा ने डांटते हुए कहा कि चुप रहो आगे बड़ो भईया को देखती हुई चलो । बहत ही उदास हई रचना घायलो की पीड़ा से पीड़ित अपने मम्मी पापा के साथ चली जा रही थी। उन्हें तभी एक बेसहारा औरत दिखी वह विक्षिप्त सी शरीर के वस्त्र भी इधर उधर और जोर-जोर से चिल्ला कर सभी लोगों से हाथ जोड़ प्रार्थना करते हुए कह रही थी हाय में लुट गई कोई तो भाई बहिन मेरे सुहाग की रक्षा करे। मेरे स्वामी को खून की आवश्यकता है । लेकिन ग्रुप का खून यहां के ब्लड बैंक में उपलब्ध ही नहीं है।

हे दानी मेरे भाई बहनों व मुझ अबला पर दया करो और मेरे स्वामी को बचालो । भगवान आपकी मुरादें पूर्ण करेगा। मेरा कोई भी भाई मुझे  इस विपत्ति से उभार ले । रचना ने कहा माँ मेरा खून तो “ए” ग्रुप का है । मम्मी ने कहा-तुझे क्या करना है। और वे रचना को पकड़कर उसे दूर ले गयीं।

उधर इतनी बड़ी भीड़ में किसी ने भी उस औरत की पुकार नहीं सुनी हर व्यक्ति अपनी ही चिंता में अपने आप को “खोये हुए था। रचना ने कहा-मम्मी सुना नहीं उस गरीब को खून चाहिए उसका पति मरने की स्थिति में है। मम्मी ने बड़े गुस्से में कहा उसका तो पति है तेरा कौन है ? पापा ने कहा बिना मतलब की बात करती हो चपचाप रहो। न जाने कहाँ तेरा बड़ा भाई पड़ा कराह रहा होगा तुझे दूसरों की चिन्ता खा रही है। रचना बोली अगर मम्मी कहीं ये आपकी बहू-बेटा होते तो भी क्या आप यही कहतीं।

मम्मी कुछ देर तक रचना की ओर आश्चर्य चकित होकर देखती रहीं। किन्तु रचना से अब रूका नहीं गया। मौका पाकर वह खिसक गई और उस औरत के पास जाकर उसने जोर से पुकारा मां तू परेशान मत हो मेरा खून “ए” ग्रुप का है मुझे जल्दी से वहाँ ले चल जहाँ तुम्हारा पति है। किसी ने सच ही कहा है कि परहित सरित धरम नहिं भाई उस लड़की को उस महिला ने सीने से चिपका लिया और उसे लेकर डाक्टर के पास पहुंची । डाक्टर ने तुरन्त रचना का खून लिया और कुछ ही समय में उस औरत का आदमी होश में आ गया।

इधर मम्मी पापा देखते ही रह गये। यकायक पीछे से आवाज बाबू जी, बाबू जी पीछे मुड़कर देखा कि नौकर भागता हुआ आ रहा था बोला ये टेलीग्राम आया है । पापा ने टेलीग्राम पढा उसमें लिखा था मैं आज न आकर दो दिन बाद आऊंगा, आपका पुत्र-गगन।

मम्मी पापा के मन में खुशी की लहर दौड़ गई और ये दोनों ही खुशी से रचना के आने की प्रतोक्षा करने लगे वह औरत अन्दर से दौड़ती हुई आई और रचना के मम्मी पापा के पैरों पर गिर गई और कहा कि बहिन तुम्हारी ही बेटी ने मेरा सौभाग्य लौटाया है मेरे पति को पुनः जिन्दगी दी है । मैं आप लोगों का यह उपकार जीवन भर नहीं भूलूगी।

मुस्कराते हुए रचना की मम्मी ने कहा-इसके लिए तो बहिन आप अपनी बेटी रचना को ही धन्यवाद दीजिये वही इसकी पात्र है। हम लोग तो स्वार्थ में इतने अंधे हो चुके थे कि अपने कर्तव्य को भुला दिये थे । वास्तव में सही रुप में मानवता से रचना ने ही परिचित कराया।

इतने में डाक्टर शर्मा कु० रचना को लिए हुए आ पहुंचे तब रचना ने अपने पापा और मम्मी से परिचय कराया। पापा का मस्तक गर्व से ऊंचा उठ गया। मम्मी बड़े ही स्नेह पूर्वक बच्ची की पीठ सहलाने लगी और प्रेम से आँखे डबडबा आई। कु. रचना के साथ मम्मी पापा खशी खशी घर आये। उसे लग रहा था कि मानवता और सहृदयता ने ही उन्हें उनका बेटा लौटाया है दोनों उस दिन के बाद परोपकारी बातें सोचने और ज्यादा से ज्यादा समय दूसरों के लिए देने लगे।

बुन्देली झलक (बुन्देलखण्ड की लोक कला, संस्कृति और साहित्य)

डॉ. राज  गोस्वामी

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Bundeli Jhalak: The Cultural Archive of Bundelkhand. Bundeli Jhalak Tries to Preserve and Promote the Folk Art and Culture of Bundelkhand and to reach out to all the masses so that the basic, Cultural and Aesthetic values and concepts related to Art and Culture can be kept alive in the public mind.
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