Achchha Gussa अच्छा गुस्सा

सतना जिले के नागौद गाँव में साठ साल की बुढिया रहती थी । पड़ोसी उसे गंगा मौसी के नाम से पुकारा करते  थे गंगा का शरीर बुढ़ापे के कारण जर्जर हो गया था। अब काम काज करते नहीं बनता था, लेकिन पेट के लिए कुछ न तो करना ही पड़ता ।

उसकी थोड़ी बहुत खेती थीं जिसमें काफी मेहनत होती थी इसी बात को लेकर वह रात-दिन चिंता में रहने लगी। आखिर एक रात सोते समय उसे एक बात सूझी। बस फिर क्या था मौसी ने सुबह मोहल्ले के लोगों से कह दिया कि मुझे एक नौकर चाहिए जो मेरे बाग की होदी में पानी भरा करेगा, अगर कोई ऐसा आदमी हो तो मेरे पास भेज देना।

अभी कुछ ही दिन बीते थे, कि एक नौजवान जिसका नाम चन्द्रभान था मौसी के पास आया और बोला मौसी में आजकल बेरोजगार हूँ, आप जो भी काम करने की कहोगी मैं उसे करूंगा। मौसी ने जब अपने सामने ऐसे जरुरत मन्द चन्द्रभान को देखा तो वह मन ही मन मुस्कराने लगी, परन्तु ऊपरी गुस्सा दिखाते हुये  बोली देखो बेटे । तुम्हें काम की जरुरत है, उसी प्रकार मुझे भी  काम करने वाले की जरुरत है, मगर मेरी एक शर्त पहले सुन लो अगर पसन्द आ जाए तो काम करने लगना और अगर पसन्द न आए तो लौट जाना ।

चन्द्रभान ने कहा-मौसी मुझे आपकी एक नहीं, सभी शर्तें  मंज़ूर हैं- आप उन्हें बताऐ तो सही, मैं गरीब आदमी है मेरा काम ही मेहनत करना है। मौसी बोली-सुनो बेटा, मेरी पहली और आखिरी शर्त यही है कि मैं जिस काम से तुम्हें लगाऊंगी, वह पूरा होना चाहिए । अगर तुमने पूरा नहीं किया तो तुम्हें मजदूरी भी पूरी नहीं मिलेगी। मतलब यह कि काम पूरा तो दाम पूरा। ‘मैं समझ गया मौसी” वह बोला मैं आपका काम पूरा करुंगा, तभी पूरी मजदूरी लूगा । बस, आप तो काम बताएं कि मुझे करना क्या है।

मौसी बोली-चल मेरे साथ सामने वाले बाग में, वहीं चलकर तुझ काम बताऊगी। चन्द्रभान मौसी के साथ-साथ चलने लगा। मौसी आगे चन्द्रभान पीछे-पीछे । थोड़ी दूर पर मौसी की झोपड़ी को देखा उसका एक छोटा सा बाग था। जिसमें फूलों के कुछ पौधे भी थे तथा कुछ तरकारियाँ भी लगी हुई थीं। मौसी ने कहा देख रे यह मेरा बाग है इसी से मेरा जीवन चलता है।

इसे फूलने फलने के लिए मुझे  सबसे पहले पानी की जरुरत है । मैं तो बूढ़ी हो गई हूं मेरे पति भी नहीं है, न ही कोई औलाद है । बगल में जो कुआ बना है। बस इसी कुए से पानी भरकर खींचना है । मेरे पास न कोई बैल है और न ही कोई सिंचाई का साधन अगर हर रोज कुए की बगल वाली हौदी, कुंए से पानी खींचकर भर दे तो शेष काम मैं स्वयं कर लिया करुंगी।

अभी तो मात्र हौदी, हर रोज भरनी होगी । हौदी देखना चाहो तो देख लो ज्यादा बड़ी नहीं है । अधिक से अधिक तीन-चार घण्टे में भर जाया करेगी। राम चन्द्रभान बोला-मौसी आप चिन्ता न करें, हौदी जितने घण्टे में भी भरेगी, मैं उसे पूरा भरूंगा और आपसे मजदूरी भी पूरी लूंगा । मौसी बोली बेटा । एक बार फिर सोच ले, नहीं तो लोगों से कहता फिरे मुझे मौसी ने परेशान किया। इसलिए मैंने सब कुछ बतलाना ठीक समझा।

मौसी की बात सुनकर चन्द्रभान बीच में ही बोल पड़ा मौसी मैंने आपकी सब बात सुन ली समझ लो अब आप आराम से बैठे, चाहे कुछ करें, मैं हौदी भरने का काम प्रारम्भ करता हूँ । मौसी ने कहा अच्छा बेटे ! मैं तो रोटी बनाने जा रही हूं। तू अपना काम कर, अपने पेट के लिए चार रोटियाँ सेक लू यह कहकर मौसी धीरे-धीरे चलती हुई, झोपड़ी की ओर चल पड़ी, और चन्द्रभान रस्सी बाल्टी की सहायता से हौदी भरने में लग गया ।

कई घण्टे की मेहनत के बाद भी जब वह हौदी पानी से नहीं भरी तो चन्द्रभान परेशान होने लगा । बार-बार उसमें पानी डालने पर भी वह उसे भर नहीं सका। उसे अनुमान था कि हौदी कुछ घण्टों में भर जाएगी, परन्तु ऐसा नहीं हो सका। खैर, आज पहला दिन है जो खाली बीत गया। आज तो बुढ़िया से चलकर कह दूंगा मौसी आज तो तुम्हारी हौदी नहीं भर सकी, इसलिए आज अधूरी मजदूरी ही दे दें। उसने ऐसा सोचा।

मौसी के पास जाकर जब उसने कहा-मौसी आज तो की हौदी  नहीं भर सका । कल जरूर ही, अधिक देर काम करके हौदी भरुंगा और पूरी मजदूरी लूंगा, आज तो अधूरी मजदूरो ही दे दें। मौसी ने हंसते हुए कहा-बेटे कोई बात नहीं कल, भर देना लो यह अपनी, आज के अधूरे काम की, अधूरी मजदूरी।

दूसरे दिन वही नौजवान रोज से भी जल्दी आ गया और हौदी भरना शुरु कर दी और अधिक देर तक भरता रहा, परन्त होदी फिर भी नहीं भरी। वह बहुत परेशान था, निराश होकर सोचने लगा कल से जल्दी भी आया और देर तक मेहनत भी की। समझ में नहीं आता कि मौसी का क्या राज है ? आखिर दूसरे दिन भी अपनी अधूरी मजदूरी लेकर चला गया।

मौसी यह देखकर बहुत प्रसन्न थी, कि एक ऐसा आदमी तो मिला जो दिन भर मेहनत करके भी मेरी हौदी नहीं भर पाता और उसे आधी मजदूरी से ही सन्तुष्ट रह जाना पड़ता है। भला उसे क्या मालूम था  कि हौदी में एक ओर बड़ा सा छेद है, जो उसे पूरी नहीं भरने देता। पानी भरने के बाद भी वह खाली रह जाती है।

मौसी के बाग में थोड़ी मजदूरी में ही तरकारियाँ आदि को खूब पानी हौदी में बने हुए छेद द्वारा मिलता रहा। बुढ़िया अपनी चालाकी से मन ही मन प्रसन्न थी। तीसरे दिन भी जब चन्द्रभान ने जी तोड़कर मेहनत की परन्तु हौदी नहीं भर सकी । चौथे दिन उसे खूब गस्सा आया । वह समझ गया कि सारे झगड़े की जड़ यह हौदी है आज इसे ही गंदा करता हूँ।

चन्द्रभान ने मौसी की नजर बचाकर पाँच छह बाल्टियों में पानी के साथ खूब सारी मिट्टी घोलकर कीचढ़ बनाया और हौदी में डाल दिया। फिर पानी भी भरता रहा। उसने देखा कि अब हौदी भरती जा रही है। उसे लगा कि लातों के देव बातों से नहीं मानते । दर असल हौदी के छेद में जब वह कीचड़ पहुंचा तो वह छेद भर गया और उसमें से पानी निकलना बंद  हो गया और हौदी में पानी भरने लगा। मजबूर होकर मौसी को उस दिन चन्द्रभान को पूरी मजदूरी देना पड़ी बाद में भी जब तक चन्द्रभान ने काम किया पूरी मजदूरी पाता रहा। सच है कि कभी कभी गुस्से में आदमी अपने बिगड़े काम भी सुधार लेता है।

बुंदेलखंड की भँड़ैती 

आलेख – डॉ. राज  गोस्वामी

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