रमता जोगी बहता पानी… कहते हैं कला और कलाकार रमता जोगी बहता पानी, इसे कोई किसी प्रकार के बंधन से बांध नहीं सकता। ऐसे ही जोगी Chunni Lal Raikwar हैं। यह तो हवा का झोंका है जो खुशबू उड़ाता हुआ आज यहां तो कल वहां। इनका जुनून ही इन की रवानी है , खुद राह बना लेगा बहता हुआ पानी है।
श्री चुन्नीलाल रैकवार जी का जन्म 1 जनवरी 1940 को कर्रापुर, जिला सागर, मध्य प्रदेश में हुआ था। इनके पिता का नाम स्व. मोती लाल रैकवार है। आपकी शिक्षा ज़्यादा नही तीन तक ही पढाई कर पाये। जैसा कि जानते हैं कि बुंदेलखंड में अनेकों जातिगत लोकगीत और लोकनृत्य की परम्परायें आदि काल से प्रचलित रही है और इसी कड़ी में चुन्नीलाल जी ने ढिमरयाई लोक गीत –लोक नृत्य परंपरा को आगे बढ़ाया।
उस समय गांव में मनोरंजन का एकमात्र साधन लोकगीत और लोकनृत्य हुआ करते थे, चुन्नीलाल जी ने शौकिया इस लोक गीत – लोक नृत्य को सीख लिया। जो कि गांव के लोगों के मनोरंजन के लिए था। चुन्नीलाल जी ने ढिमरयाई लोकगीत और लोकनृत्य की शुरुआत 1982 में ग्राम पंचायत स्तर पर हुई एक प्रतियोगिता से की जहां पर चुन्नीलाल जी अपने चार मित्रों के साथ इस प्रतियोगिता मे विजयी रहे और प्रथम स्थान मिला।
इस परंपरागत लोकगीत लोकनृत्य की शुरुआत गांव में शौकिया तौर पर शुरू की थी लेकिन लोगों ने काफी प्रोत्साहित किया और इसके बाद चुन्नीलाल जी को ज़िला स्तर में एक प्रतियोगिता में भाग लेने के लिए सागर भेजा गया और वहां भी प्रथम स्थान पर रहे।
यह देखकर चुन्नीलाल जी को जिला स्तर की प्रतिस्पर्धा में प्रथम स्थान प्राप्त करने के बाद संभाग स्तर की प्रतियोगिता में भाग लेने के लिए जबलपुर भेजा गया। चुन्नीलाल जी संभाग प्रतियोगिता में प्रथम स्थान प्राप्त करने के बाद सरकार ने उन्हें प्रदेश स्तर पर प्रदर्शन करने हेतु भोपाल बुलाय।
गांव के एक सीधे साधे युवक ने अपने चार साथियों के साथ कर्रापुर से भोपाल की यात्रा की भोपाल पहुंच कर उन्होंने देखा कि यहां 3 -4 सौ कलाकार आए हुए हैं और हर ग्रुप में 8 से 10 कलाकार और चुन्नीलाल जी के ग्रुप में चुन्नीलाल जी के साथ 3 और लोग थे।
चुन्नीलाल जी को हौसला बहुत था। अपने दुबले पतले शरीर के साथ जब चुन्नीलाल जी मंच पर पहुंचे तो उनके 3 साथी बैठकर साज़ बजाने लगे, किसी के हाथ में लोटा था, किसी के हाथ में ढोलक थी और किसी के हाथ में झींका और चुन्नीलाल जी खड़े होकर केंकडी ( केकडिया) बजाते हुये उन्होंने गाना शुरू किया और गाने के साथ जो नृत्य किया जिसे देख कर सारे लोग झूम उठे।
उस समय के तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह जी इस पूरे प्रोग्राम को देख रहे थे जब आखरी प्रोग्राम चुन्नीलाल रैकवार जी का हुआ तो वह बहुत खुश हुए और उन्होंने चुन्नीलाल जी को सम्मान पत्र के साथ-साथ कुछ पैसे भेंट किये…. बस यहां से चुन्नीलाल जी की यात्रा उड़ान भरने लगी इसके बाद चुन्नीलाल जी ने बुंदेली लोक संस्कृति और बुंदेली लोकगीत और लोकनृत्य ढिमरयाई को आसमान की ऊंचाइयों तक पहुंचा दिया।
बुंदेलखंड का बच्चा, बूढ़ा, जवान, सभी चुन्नीलाल जी का मुरीद है उनके गायन, उनके वादन, और उनके नृत्य तीनों का सामंजस्य अद्भुत लगता है। तब से लेकर आज तक चुन्नीलाल जी ने अपनी लोक गीत, लोक नृत्य ढिमरयाई परंपरा की जो साधना की है वह काबिले तारीफ है। चुन्नीलाल जी की उम्र 86 वर्ष हो चुकी है लेकिन मंच पर उनका जोश 1982 वाला ही रहता है।
लोग यहां तक कहते हैं कि चुन्नीलाल जी मंच पर आते ही 16 साल के हो जाते हैं। श्री चुन्नीलाल जी ने हिंदुस्तान के अनेक शहरों मे,अनेक महोत्सव में अपनी लोक कला का प्रदर्शन किया और वाहवाही लूटी। अपनी बुंदेलखंड की लोक परंपरा लोक विरासत ढिमरयाई लोकगीत- लोकनृत्य को जो सम्मान दिलाया है वह बुंदेलखंड ही नहीं बल्कि संपूर्ण देश के लिए गौरव की बात है। श्री चुन्नीलाल जी ने 5 मार्च 2024 को शरीर त्याग दिया ।
सम्मान और उपलब्धियां
लोकोत्सव भोपाल 1982
लोकरंग रायगढ़ 1983
आकाशवाणी छतरपुर 1984
लोकोत्सव उज्जैन 1985
राज्य स्तरीय रायपुर 1986
लोक नृत्य सागर 1987
लोकोत्सव सागर 1987
लोकोत्सव 1988
लोकोत्सव बिलासपुर 1989
मेला महोत्सव उदयपुर राजस्थान 1990
लोकोत्सव भोपाल 1992
बुंदेली मेला सागर 1992
राजकीय स्तरीय लोकोत्सव 1994
न्यू कल्चर ग्रुप सागर 1996
राज्य स्तरीय लोकोत्सव भोपाल 1996 -97
पंचायत एवं समाज सेवा ग्वालियर 1997 98
राज्य स्तरीय लोकोत्सव मंडला 1998
राज्य स्तरीय लोकोत्सव बालाघाट 1996 से 1999 तक
झांसी महोत्सव 1999
गढ़ाकोटा रहस्य एवं किसान मेला गढ़ाकोटा 2005
नोहटा उत्सव नोहटा 2002
भारत भवन भोपाल 2002
राज्य स्तरीय लोकोत्सव ओमकालेश्वर 2002
कोंडला उत्सव कुंडल दमोह 2003
लोकरंग भोपाल 2003
लोक उत्सव भोपाल 2003
शिल्पग्राम खजुराहो 2006
नर्मदा महोत्सव जबलपुर भेड़ाघाट 2006
ओरछा महोत्सव ओरछा 2006
राज्य स्तरीय लोकोत्सव बेगमगंज रायसेन 2007
बुंदेली उत्सव बसारी छतरपुर 2008
राज्य स्तरीय लोकोत्सव गढ़ाकोटा सागर 2009
बुंदेली मेला दमोह 2009
बुंदेलखंड महोत्सव छतरपुर 2011
फिल्म महोत्सव खजुराहो 2012
रहस लोकोत्सव गढ़ाकोटा 2013
भागलपुर मेला बिहार 2014
अंतर्राष्ट्रीय फिल्म समारोह इंदौर 2015
दूरदर्शन भोपाल 2016
कृषि मेला चित्रकूट 2017
भारत पर्व राजगढ़ 2018
कुंभ मेला इलाहाबाद 2019
Song – Chunni Lal Raikwar
[ 1 ]
टेक – चलो चलिए नर्मब्दा के पार जहां जहां पे मेला भरे अरे
अमरकंटक से चली नर्मब्दा, बेरई है उल्टी धार जहां पे मेला भरे
चलो चलिए नर्मब्दा के पार जहां जहां पे मेला भरे
जिला जबलपुर पहुंची नर्मब्दा, आंगे हैं भेड़ाघाट जहां पे मेला भरे
चलो चलिए नर्मब्दा के पार जहां जहां पे मेला भरे
काट करें और पथरा काटे ,अरे आंगे हैं बरमान घाट जहां पर मेला भरी
चलो चलिए नर्मब्दा के पार जहां जहां पे मेला भरे
कईयक का गांव किनारे पे बसे गए ,आगे होशंगाबाद जहां पे मेला भरे
चलो चलिए नर्मब्दा के पार जहां जहां पे मेला भरे
गेरे घाट ओमकारेश्वर के जहां लम्बे डरे हैं पाट जहां पे मेला भरे
चलो चलिए नर्मब्दा के पार जहां जहां पे मेला भरे
कईयक नदियां संग्गे मिल गई,और पहुंची है गुजरात जहां पर मेला भरे
देखो पहुंची हैं गुजरात जहां पे मेला भरे
चलो चलिए नर्मब्दा के पार जहां जहां पे मेला भरे
[ 2 ]
टेक- बड़ो प्यारो बनो संभाग सागर प्यारो बनो ..
ये संभागके पांच जिला है ,अरे पांचई जिला महान सागर प्यारो बनो…..
बढ़ो प्यारो बनो संभाग सागर प्यारो बनो
सागर जिला छतरपुर पन्ना,टीकमगढ़ और दमोह सागर प्यारो बनो
बड़ो प्यारो बनो संभाग सागर प्यारो बनो
टीकमगढ़ में शीश महल थे, अरे ओरछा के मंदिर महान सागर प्यारो बनो
बड़ो प्यारो बनो संभाग सागर प्यारो बनो
छत्रसाल राजा छतरपुर के राजा, देखो पन्ना में हीरा खदान सागर प्यारो बनो
बड़ो प्यारो बनो संभाग सागर प्यारो बनो
खजुराहो के मंदिर निराले, अरे पन्ना के जुगल किशोर सागर प्यारो बनो
बड़ो प्यारो बनो संभाग सागर प्यारो बनो
जिला दमोह में सीमट फैक्ट्री है, बांदकपुर के भोला नाथ सागर प्यारो बनो
बड़ो प्यारो बनो संभाग सागर प्यारो बनो
सागर शहर की ऊंची पहाड़ी, जहां यूनिवर्सिटी को नाम सागर प्यारो बनो
जहां हरि सिंह गौर को नाम सागर प्यारो बनो
बड़ो प्यारो बनो संभाग सागर प्यारो बनो
बीना खुरई और खिमलासा, जहां गेहूं के भंडार सागर प्यारो बनो
बड़ो प्यारो बनो संभाग सागर प्यारो बनो
बड़ा अच्छा बना संभाग सागर प्यारो गाना हा हा हा हा, हां हां हां हां ,हां हां हां हां
[ 3 ]
टेक – मोरे मन के चलन लगे बलम खिलौना से लगन लगे
जब से तुमने जुआ छोड़ दव, पैईसा धेला वचन लगे बलम खिलौनों से लगन लगी
मोरे मन के चलन लगे बलम खिलौना से लगन लगे
जब से तुम ने दारू छोड़ दई, मोड़ी मोड़ा पापा के न लगे
बलम खिलौना से लगन लगे मोरे मन के चलन लगे बलम खिलौना से लगन लगे
जब से तुमने करी किसानी, सौ सौ बोरा पजन लगे
बलम खिलौना से लगन लगी
मोरे मन के चलन लगे बलम खिलौना से लगन लगे
[ 4 ]
टेक- धन्य है अपने भाग जनम लय भारत में येई भारत में
राम जनम लय, येई में कृष्ण अवतार जनम लय भारत में
धन्य है अपने भाग जनम लय भारत में येई भारत में
सीता मैया ,येई में राधिका माय जनम लय भारत में
धन्य है अपने भाग जनम लय भारत में येई भारत में
गंगा मैया, क्षिपरा नर्मदा माय जनम लय भारत में
धन्य है अपने भाग जनम लय भारत में येई भारत में
झांसी की रानी,गांधी जवाहरलाल जनम लय भारत मे
धन्य है अपने भाग जनम लय भारत में
[ 5 ]
टेक – महिमा तुम्हारी को जाने जगदंबा भवानी
रामा जाने के लक्ष्मण जाने, और सीता महारानी जगदंबा भवानी
महिमा तुम्हारी को जाने जगदंबा भवानी
ब्रह्मा जाने के विष्णु जाने, और गौरा महारानी जगदंबा भवानी
महिमा तुम्हारी को जाने जगदंबा भवानी
पवन देव आकाश न जाने, और धरती महारानी जगदंबा भवानी
महिमा तुम्हारी को जाने जगदंबा भवानी
हम तो चढ़ावे माई ध्वजा नारियल,अनपढ़ हैं अज्ञानी जगदंबा भवानी
महिमा तुम्हारी को जाने जगदंबा भवानी
[ 6 ]
दोहा – नारी नारी जिन कहो नारी हसी ना खेल नारी से नर उपजे है नारी घर की बेल
टेक- घर में नार लगे प्यारी जे से चले दुनिया सारी
सबसे पहले उठे सवेरे, झारा बटोरी कर डारी जैसे चले दुनिया सारी
घर में नार लगे प्यारी जे से चले दुनिया सारी
हो गई दुफर सों रोटी बना वे, सबको परसत है थारी जैसे चले दुनिया सारी
घर में नार लगे प्यारी जे से चले दुनिया सारी
दिन और रात फिकर में रेवे, ऐई से कहा वे घर बारी जैसे चले दुनिया सारी
घर में नार लगे प्यारी जे से चले दुनिया सारी
कईयक नारी जिन्हे समझ नई, सारी गिरस्ती खा डारी जैसे चले रे दुनिया सारी
घर में नार लगे प्यारी जे से चले दुनिया सारी
हा रे हा हा हा ,रे हा हा हा, रे हा हा..
बुन्देली झलक (बुन्देलखण्ड की लोक कला, संस्कृति और साहित्य)