Homeबुन्देलखण्ड का इतिहास -गोरेलाल तिवारीBundelkhand Me Gosaiyo Ka Akraman बुन्देलखण्ड मे गोसाईयों का आक्रमण  

Bundelkhand Me Gosaiyo Ka Akraman बुन्देलखण्ड मे गोसाईयों का आक्रमण  

अवध के नवाब शुजाउद्दौला के यहाँ अपने गुरु के मरने पर अनूप गिरि गोसाईं सैनिक सरदार हो गया था। अनूप गिरि बड़ा वीर सैनिक था, इसलिये नवाब ने इसे हिम्मतबहादुर की उपाधि दी थी । एक हजार सवार इसके अधिकार में रहते थे। जब बक्सर मे संवत्‌ 1820  में कंपनी की सरकार और अवध के नवाब के बीच में  युद्ध हुआ तब हिम्मतबहादुर ने बड़ी बीरता दिखलाई थी। फिर इसके बाद Bundelkhand Me Gosaiyo Ka Akraman शरू हुआ ।

जैतपुर के राजा पहाड़सिंह ने अपने वंशजों का भावी झगड़ा मिटाने के लिये अपने राज्य के तीन भाग कर दिए जिसमें एक गुमानसिंह को, दूसरा खुमानसिंह को और तीसरा गजसिंह को मिला।  इसी प्रबंध के अनुसार गुमानसिंह का राज्य बॉदा और अजयगढ़ में, खुमानसिह को चरखारी में और गजसिंह का जैतपुर मे हुआ। इनके समकालीन पन्ना के राजा हिंदूपत थे।

एक घाव अपनी जॉघ में खाकर हिम्मतबहादुर ने शुजाउद्दौला की जान बचाई थी। जब नवाब हारकर भागा तब भी  हिम्मतबहादुर ने नवाब को बड़ी सहायता दी थी। इस पर नवाब ने प्रसन्न होकर हिम्मत बहादुर को सिकंदरा और बिंदकी के परगने दिए थे। बुंदेलखंड पर आक्रमण करने का विचार हिम्मतबहादुर का पहले से ही था। शुजाउद्दौला ने हिम्मतबहादुर को इस कार्य में पूरी सहायता दी और अपने सरदार करामतखाँ  को हिम्मत बहादुर के साथ कर दिया।

इस सेना को साथ लेकर हिम्मतबहादुर ने बॉदा पर आक्रमण किया। बाँदा मे इस समय गुमानसिंह  के यहाँ नोने अर्जुन सिंह  नाम के एक बड़े वीर सैनिक थे। अपनी सेना तैयार करके नोने अर्जुन सिंह  ने तेंदवारी नामक ग्राम के समीप हिम्मतबहादुर से युद्ध किया। हिम्मतबहादुर को अच्छी तरह हराके उसकी सेना को  भगा दिया और फिर उस भागती हुई सेना का पीछा किया। हिम्मतबहादुर तथा करामत खाँ  को यमुना तैर कर अपनी जान बचानी पड़ी। इस थुद्ध में राजा गुमानसिंह  को हिंदूपत ने भी सहायता दी थी।

हिम्मतबहादुर की हार के पश्चात्‌ वीर बुंदेले फिर अपनी आपसी कलह मे लग गए। जिन कलह से इनका सर्वनाश हो रहा था उन्हें मिटाने  के लिये इन्होंने कभी प्रयत्न भी नहीं किया चरखारी के राजा खुमानसिंह और उनके भाई गुमाँ सिंह  में भी वि० सं० 1838  में युद्ध हो गया । नोने अर्जुन सिंह की सहायता से खुमानसिंह  मार डाले गए और गुमान सिंह  की जीt हुई ।  यह युद्ध पंडवारी नामक ग्राम के निकट हुआ ।

हिम्मतबहादुर ने फिर नवाब से सहायता लेकर बुंदेलखंड पर आक्रमण किया। बुंदेल खंड मे पहले हिम्मतबहादुर ने दतिया पर चढ़ाई की । दतिया के राजा रामचंद्र को हराकर हिम्मत बहादुर ने चौथ वसूल की और फिर मोठ, गुरसराय आदि परगनों  पर अपना अधिकार कर लिया। ये परगने मराठों के अधिकार में थे। मराठों ने यह देखते ही पूना दरबार से सहायता माँगी।

पूना दरबार में भी  इस समय बड़े बड़े झगड़े हो रहे थे। पेशवा बनने के  लिये राधोबा नामक एक सरदार ने अपने भतीजे नारायणराव को वि० सं० 1827  में मरवा डाला था। मराठे सरदार राघोबा से असंतुष्ट थे और वे चाहते थे कि राघोबा पेशवा न बन पाये। नाना फड़नवीस नामक एक सरदार राधेबा के बहुत विरुद्ध थे।

परंतु जब बुंदेलखंड से सहायता माँगी गई तब नाना फड्नवीस ने सहायता भेजी । नाना फड़नवीस बुंदेलखंड के सूबेदार बालाजी गोविंद से प्रसन्न थे । बालाजी गोविंद भी राघोबा के विरुद्ध थे। इस लिए  बालाजी गोविंद और नाना फड़नवीस में मित्रता थी। नाना फड़नवीस के हुक्म के अनुसार सिंधिया और होल्कर  ने भी बालाजी गोविंद की सहायता की।

हिम्मतबहादुर की ओर  से गुरसराय के किले  पर सिंगार गिर और प्राणसिंह नाम के दो सरदार नियुक्त  थे। इनके पास सेना भी बहुत थी। इनसे लड़ने के लिये मराठों की ओर  से दिनकर राव अन्ना तैयार हुए। दिनकर राव अन्ना ने गोसाईं लोगों से युद्ध करना बड़ा कठिन कार्य समझ बालाजी गोविंद से और भी सहायता माँगी।

झांसी के सूबेदार रघुनाथराव हरी नेवालकर दिवकरराव अन्ना की सहायता के लिये भेजे गए। इस दोनों ने गोसाई लोगों को हरा दिया और उन्हें हारकर किला छोड़कर चला जाना पड़ा। बालाजी गोविंद ने दिनकरराव से प्रसन्न होकर गुरसराय का सब प्रबंध उनके अधिकार में कर दिया।  

मराठों के पास होल्कर  और सिंधिया की सहायता भी पहुँची । इस सेना को लेकर रघुनाथराव हरी नेवालकर  ने फिर गोसाई लोगों पर आक्रमण किया। इस समय अवध के नवाब और हिम्मत बहादुर में अनवन हो गई थी। जब नवाब ने देखा कि हिम्मतबहादुर अवध के राज्य की परवाह  न करके अपना स्वतंत्र राज्य जमाने के प्रयत्न में लगा है तब वह बहुत क्रोधित हुआ और  उसने हिम्मतबहादुर के भाई उमराव गिर को कैद कर लिया। मराठों को यह झगड़ा सालूम हो गया था और उन्होंने ऐसे समय में हिम्मतबहादुर को हरा देने का अच्छा अवसर सोचा ।

कालपी के निकट गोसाइयों और मराठों में गहरी लड़ाई हुई। अनूप गिर उर्फ हिम्मतवहादुर हार गया और वह अवध की ओर भागा। उसके सब सैनिक सिंघिया की सेना में भरती हो गए। इनके साथ  से अनूप गिर भी सिंधिया की सेना में भरती हो गया।  मराठों ने गोस।ई लोगों को संवत्‌ 1832 के लगभग हराया ।

बुन्देली झलक (बुन्देलखण्ड की लोक कला, संस्कृति और साहित्य)

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