जैतपुर के राजा जगतराज ने अपने तीसरे कुमार कीरतसिंह को अपना उत्तराधिकारी बनाया था, पर यह राजा जगतराज की मृत्यु के पूर्व ही मर गया। इससे राजा जगतराज के मरने पर वि० सं० 1814 मे कीरतसिह के पुत्र गुमानसिह ने गद्दी लेनी चाही। पर इनके चाचा पहाडसिंह ने विरोध किया। अंत मे गुमानसिंह और खुमानसिंह दोनें भाई चरखारी भाग आए और यहाँ के किले मे रहने लगे ।
विक्रम्न-संवत् 1821 में पहाड़सिंह ने गुमानसिह को बॉदा और खुमानसिंह को चरखारी दे दी। इस समय चरखारी की आमदनी 9 लाख रुपए थी। खुमानसिंह वि० सं० 1839 में मरा। राजा खुसानसिह के मरने पर विक्रमाजीत उर्फ विजय बहादुर राजा हुआ। इनसे और इनके चचेरे भाई बॉदा के राजा अर्जुन सिंह से हमेशा झगड़े होते रहे। अंत मे अर्जुन सिंह ने इन्हें चरखारी से मार भगाया।
जब अलीबहाहुर ने हिम्मतबहादुर के साथ वि० सं० 1846 मे बुंदेलखंड पर चढ़ाई की तब ये उससे मिल गए और चरखारी की चढ़ाई में उसके साथ गए। अंत में इन्होंने वि० सं० 1855 में एक इकरारनामा अलीबहादुर को लिख दिया और इसने इन्हें चरखारी की सनद दे दी। इस समय इसकी आमदनी चार लाख रुपए थी। विक्रम-संवत् 1860 में राजा विजयबहादुर ने कंपनी की सरकार से संधि कर ली । परंतु इस समय राजा विजयबहादुर और अजयगढ़ तथा छतरपुर राज्य के बीच सरहदी झगड़े मचे हुए थे।
इसलिये कंपनी की सरकार ने वि० सं० 1861 में एक चंद रोजा सनद दी। परंतु इन सब झगड़ों का निपटारा होते ही वि० सं० 1868 में दूसरी सनद दे दी। यह वि० सं० 1886 ( नवंबर सन् 1829 ) में सरा।
इसके इंश्वरीसिंह, पूरनमल,गोविंददास, रनजीतसिंह इत्यादि 8 लड़के थे। पर राजा विक्रमाजीत (विजयबहादुर ) के मरने पर रनजीतसिंह का लड़का रतनसिंह राजा हुआ। दीवान गोविंद दास और रनजीतसिंह भी वि० सं० 1879 में मर चुके थे। रतनसिंह को राजगद्दी मिल गई थी पर राज्यारोाहण के समय कई झगड़े खड़े हुए। इससे रतनसिंह को इन सबके भरण-पोषण का प्रबंध करना पड़ा।
विक्रम-संवत् 1914 में यह प्रश्न उठा कि राजा रतनसिंह की मृत्यु के पश्चात् चरखारी की रियासत क्यों न जब्त कर ली जाय । परंतु सनदों और राज्यारोहण के झगड़ों की काररवाइयों से यह निश्वय हुआ कि राज्य वंशपरंपरागत दिया गया था। |इससे जब्त न किया गया वरन् यह निश्चय किया गया कि राजकुसार उत्तराधिकारी होगा।