Homeबुन्देलखण्ड का सहित्यBundelkhand ke Sthan-Nam बुन्देलखंड के स्थान-नाम

Bundelkhand ke Sthan-Nam बुन्देलखंड के स्थान-नाम

पाणिनी ने अपनी अष्टाध्यायी में मध्य एशिया से लेकर कलिंग और सिंधु लेकर आसाम तक के स्थान नामों को सम्मिलित किया है। उनकी स्थान संबंधी शब्द-संपदा में देश, पर्वत, समुद्र, वन, नदी, प्रदेश, जनपद, नगर-ग्राम के नाम हैं। जिस शब्द संपदा से स्थानों के नामकरण किया जाता है उस शब्द को डॉ. कैलाशचन्द्र भाटिया भाषा की जीवंत शब्दावली मानते हैं। Bundelkhand ke Sthan-Nam  की अपनी सार्थकता है।

डॉ. सरयू प्रसाद अग्रवाल ने अवध के स्थान-नाम डॉ. लक्ष्मीनारायण शर्मा ने ‘ब्रज के स्थान –नाम पर और डॉ. विनय कुमार पाठक ने ‘छत्तीसगढ़ के स्थान-नामों के महत्व को विश्लेषित किया है। विदेशों में स्थान-नाम विश्लेषण की समृद्ध परंपरा है. इसी परंपरा को भारत में बंगाल, असम, गुजरात के स्थान-नामों का विश्लेषण करके गति दी गई और हिन्दी भाषी क्षेत्र में अवध, व्रज, छत्तीसगढ़ के साथ बुंदेलखंड के स्थान-नामों की रूप-रचना, ध्वनि संघटन, अर्थ विचार, नामकरण के आधार व्यवहृत शब्दावली के साथ बोली-भूगोल के आधार पर विवरण पर विचार किया गया।

बुंदेलखंड अपनी भूमि दशा में विशिष्ट हैं यहाँ का सामाजिक गठन विविधतापूर्ण है। इतिहास संघर्षों से जूझता रहा है और इन सब स्थितियों ने इस भू-भाग की संस्कृति को बहुवर्णी बनाया है। रूप रचना की दृष्टि से ‘छतरपुर’ द्विपदीय स्थान-नाम है, जिसका पूर्वपद ‘छतर’ उस भू-भाग वाले लोकप्रिय शासक छत्रसाल का स्मरण कराता है। उस तरह बुंदेलखंड के स्थान-नाम अपनी रूप रचना में इतिहास, भूगोल, समाज, धर्म के साथ संस्कृति को समेटे हुये हैं। पूर्व पाषाण काल से लेकर वर्तमान तक के इतिहास संबंधी संदर्भो को उद्घाटित करने वाले स्थान-नाम बुंदेलखंड में है।

भीम-बैठका, पवायाँ, लिखीछाज, चित्रकूट, गुजर्रा, एरन, मछण्ड, साँची, त्रिपुरी, खजुराहो, अहीरवाड़ा, खेरान, दुधई, गुढ़ासती जैसे स्थान-नामों में रामायण, महाभारत, मौर्य, शंगु, शक-हूण, सातवाहन, नाग, गुप्त, वर्धन, हैहय-कलचुरि, गौड़, चंदेल, कच्छपघात, परमार कालों के सन्दर्भ समावेशित हैं। अफगानों के आक्रमण ने स्थान-नामों को प्रभावित किया। तोमर, मुगल, खंगार, बुंदेला, मराठा, ब्रिटिश सत्ताओं ने भी स्थानों के नामों में परिवर्तन किये और भारत के स्वतंत्र होने के बाद स्थान-नाम प्रभावित हुए।

सत्ता परिवर्तन से स्थानों के नाम में भी परिवर्तन होता है और ऐसे परिर्वतन इतिहास संबंधी सूचनाओं से सदियों तक अपने साथ समेटे रहते हैं। बुंदेलीखंड के स्थान-नाम धर्म, इतिहास, समाज, भौगोलिक दशा और संस्कृति पर आधारित हैं। समाज पर धर्म का प्रभाव सदियों पुराना है। परमात्मा, अवतार, देवता, देवियों, परिकर, मत-मतन्तर, सम्प्रदाय पंथ, धार्मिक व्यक्तित्व, ग्राम्यदेवता, स्थानों के नामकरण का आधार प्राचीन काल से रहे हैं। धर्म संबंधी ये समस्त आधार आस्था को बल प्रदान करते हैं।

ईसुरकुंड और खुदागंज में यही आस्था है। मोटे गनेस की गली, छटयाई दाई, ईसानगर, पैगम्बरपुर, रसूलिया, सदनशाह की मजार, पिपारिया बन्दी छोर, जोगनी टीला, कमाल, खेडा, सिद्ध की रैयौं, जुगयाना, हरदौली, पठान बाबा, जिंदपीर, घटौरिया, दानेवावा, जौहरपुर, बेदमऊ स्थान-नामों के साथ धार्मिक आस्थायें लिपटी हैं।

ईसा, पैगम्बर, रसूल, सदन साह, सिद्ध, पीर, गनेस, सब बिना किसी विभेद के स्थान नामों के साथ समोवेशित है। स्थान-नामों में विभेद के स्थान-नामों के साथ समावेशित हैं। स्थान-नामों में विभेद पैदा करके उनकी शब्दावली में जातियाँ ढूँढ-ढूँढकर वर्तमान में भेदभाव किया जा रहा है, जो सामाजिक समरसता के लिए ‘जहर का काम कर रहा है। शब्द तो ब्रह्म का रूप था, अक्षर का सम्मिलन था। उसी शब्द को अव हिन्दू और मुसलमान में वर्गीकृत करने का जाना-बूझा प्रयास किया जा रहा है।

“तेन निर्वतम” के अनुसार पाणिनि स्थान, ग्राम अथवा नगर को बसाने वाले को भी नामकरण का सबल आधार मानते हैं। इस स्थिति में विजेता का सुयश, वीर-पूजा और महापुरुषों के प्रति श्रद्धा-भाव सम्मिलित रहता है। बुंदेलखंड के स्थान-नाम इतिहास की टूटी कड़ियों को जोड़ने के लिए भी सामग्री देते हैं। इस भू-भाग का संबंध कुरू से मय, कठ, जर, मर, भर यक्ष, मग, मेव और गौंडो से रहा है।

इसी से मैथाना (ग्वालियर), जखौरा (ललितपुर) कुरथरा (दतिया) मगरौन (दमोह) मुरावली (भिंड), जरोद (जबलपुर), कठेली (सागर) भरखेड़ी (विदिशा), मवई (बाँदा), गौंडी (सिवनी) स्थान-नाम इस तथ्य को सत्यापित करते हैं। तेंवरघार, भदावर, कछवायघार, जटवारौ, मरेठी, बुंदेला कोट, तुर्की खापा के आधार क्रमशः तोमर, भदौरिया, कछवाहा, जाट, मराठा, बुंदेली और तुर्की हैं। इमिलिया भोज, सिंकदर, बेलाताल, बाबरखेड़ा, अकबरपुर, बृसंगपुरा, हरदौल तिगड्डु, जहाँगीर कटरा, चंपतपुर, छत्रसाल टौरिया, शाहजहाँनावाद, माधौनगर, काशीनरेश की बगिया से शासकों के नामों को अलग नहीं किया जा सकता।

राजनैतिक आधार प्राचीन काल से स्थान-नामों के साथ जुड़े हैं। रानीपुरा, शहजाहपुरा, बसीठ, दीवान कौ बाग, तात्याटोपेनगर, मंगलपांडे पार्क, अंबेडकर नगर ,गांधी नगर ,तिलकवाड, विनोवानगर ने राजनेतिक चेतना क्रमशा आगे  बढती रही । यह चेतना आरंभ में राजा के साथ रानी ,राजकुमार, दीवान,फौजदार, किलेदार को आधार बनाती थी, बाद में इसी चेतना का विस्तार राष्ट्र प्रेम के रूप में हुआ। स्थान-नामों के नामकरण में जहाँ गाँधी ,नेहरू को आधार बनाया गया वहीं तिलक चन्द्रशेखर और भगत सिंह को भी अजर अमर बनाने की कामना  रही है।

तीन लोक, सात द्वीप, नौखंड की कल्पना बुंदेलखण्ड के लोक जीवन मे व्याप्त है। यह कल्पना भूगोल के प्रति लालसा उत्पन्न करने वाली है छतरपुर जिले का स्थान-नाम वसुधा, नरसिंहपुर जिले का संसारखेडा, हमीरपुर का जहाज, जबलपुर का सिंगलदीप और होशंगाबाद का जम्बूदीप इसी  भूगोलिक चेतना के परिणाम हैं।

बुंदेलखण्ड में 180 से अधिक वनस्पतियाँ स्थानों के नामकरण में सम्मिलित हैं। अंडौली, अरूसी, अकोला, आमखो, इमिलिया,उमरी,आंवरी, चिरौल, छरैंटा, पिपरिया, बिजौरा, सेंगरी स्थान नाम वस्पतियाँ से सम्बंधित हैं . करहिया, गधाई, बकाई, भैंसा-देही चितगुवाँ, नाहर खेड़ा, हतनापुर और हिन्नाई में स्थानों के नाम पशुओं की ओर संकेत करते हैं। मटामर, घुगवासी, कौमा, चीलखेड़ा, सुआडोंगरी, तीतरा, खलीलपुर में आधार पक्षी हैं। बसमा, सुधासागर, उमरतला, झिलमिली, जामनी, पारीछा, बिघनयाऊ नरिया पर कुआ, भदइयाँ कुंड, कुम्हरगढ़ा में जलाशय स्थान-नामों के साथ जुडे है। टौरिया, टेकरी, घंटिया, करार, टेकरी, कछार स्थान-नाम भूमि की दशाओं को दर्शाने वाले हैं।

समाज में जातियों, गोत्र, पद, परिवार, घर-गृहस्थी, व्यक्ति, व्यवसाय सम्मिलित हैं। बुंदेलखंड के स्थान-नामों में इन सभी को आधार बनाया गया है और सदियों से ये सभी आधार इस भू-भाग के सामाजिक संदर्भो को सुरक्षित रखे हुए हैं। मुडिया, गुसांई, गड़रिया खेड़ा, कछयाना, कायस्थपुरा, धोबीपुरा, लिधौरा जैसे हजारों स्थान-नाम बुंदेलखंड में जातियों की ओर संकेत करने वाले है। खजांचीपुरा, महाजनी टोला, हाजीपुरा, पटैलढाना, सूबा पायगा, परधान ढाना मे  पद और उपाधियाँ समावेशित हैं।

मामा का बाजार, नानीखेडा में परिवार बोध की  ओर संकेत है। हुलुआपुरा, महेरी, कुरकुटा जैसे स्थान-नाम खान-पान को दर्शाते है। व्यक्ति को आधार बनाकर स्थानों के नाम रखने की परंपरा अत्यंत प्राचीन है मदारी कौ ताल (दतिया) खूबीदादा कौ मंदिर (शिवपुरी) जमीन प्रताप सिंह (पन्ना) शकीला बानो का मुहल्ला (भोपाल) मस्मराम की टेकरी (भिण्ड) में व्यक्तियों को  समावेशित किया गया है। व्यक्तियों को आधार बनाकर स्थानो के  नाम  रखने की परंपरा अत्यंत प्राचीन है तथा यह पंरपरा सर्वाधिकटीकमगढ और  भिंड जिलों में है।

बंदेलखंड के लोकजीवन पर सास्कृतिक-समता का प्रभाव सबसे अधिक है। इस भू-भाग की संस्कृति समन्वय पर आधारित रही है। उसी से उस भू-भाग में धार्मिक उन्माद कभी भी शिखर तक नहीं पहुँचा। स्थान नामों में सांस्कृतिक समता की यह भावना सर्वत्र देखी जा सकती है। साहूरपुर (बाँदा) और बिनती (दमोह) जैसे स्थान-नाम, शिष्टाचार को बल देते हैं। दानी पुरा, धनाश्री, ईदगाह, कराना, खेजरा इज्जत, दातागंज में जिन भावनाओं को बल प्रदान किया गया है, वे भावनायें संस्कृति को उजागर करती हैं।

बुंदेलखंड को स्थान वाची नाम एक पदीय, द्विपदीय, बहुपदीय और वाक्यांशमूलक है। गुढ़ा (ललितपुर) ककरुआ बरामद गढ़ी और राजाराम रंगवालों की गली उसके उदाहरण हैं। उदगुवाँ और कुदौना जैसे स्थान-नामों में उपसर्गों का योग है। पिपरिया और कुम्हरौल जैसे स्थान-नामों में प्रत्ययों को योग हैं। बाँदा जिले में प्रत्ययों का व्यवहार सर्वाधिक हुआ है। द्विपदीय स्थान-नामों में परपदों का महत्व निर्विवाद है। उस भू-भाग में सर्वाधिक व्यवहृत परपद ‘पुर और उसके रूपान्तर उपलब्ध हैं। गली, मुहल्ला, दरिया, टोला, ढाना, पुरवा, टपरा अन्य परपद हैं। समान अथवा एक जैसे नामों वाले स्थानों में विभेद करने वाले पद भी स्थान नामों में महत्वपूर्ण हैं।

 

बुन्देली झलक (बुन्देलखण्ड की लोक कला, संस्कृति और साहित्य)

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Bundeli Jhalak: The Cultural Archive of Bundelkhand. Bundeli Jhalak Tries to Preserve and Promote the Folk Art and Culture of Bundelkhand and to reach out to all the masses so that the basic, Cultural and Aesthetic values and concepts related to Art and Culture can be kept alive in the public mind.
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