बुन्देलखण्ड के लोक देवता-वर्गीकरण

भारत में प्राय: हर प्रान्त या क्षेत्र में लोक देवताओं /ग्राम देवताओं की पूजा होती है। बुन्देलखण्ड में अनेक देवी देवताओं की पूजा प्रचलित है। बुन्देली लोक मानस में इनकी प्रतिष्ठा वैसी ही है जैसे शिष्ट संस्कृति के मानस में श्रीराम, श्रीकृष्ण, श्री शिव, मां दुर्गा, मां काली या श्री हनुमान जी आदि देवताओं की प्रतिष्ठा है। ये देवता लोक की किसी भावना विशेष के प्रतीक है। Bundelkhand Ke Lok Devta-Vargikaran निम्न वर्गों में जाना जाता है

प्रकृति देवता – भूमि, पर्वत, नदी, वृक्ष आदि ।

स्थल विशेष के देवता- गांव की देवी , खेरमाई , घटोइया , पौरिया बाबा ।

जाति विशेष के देवता- कारसदेव , ग्वालबाबा , गुरैयादेव, मसान बाबा, गौड़बाबा।  

शरीर रक्षक देवता- शीतला माता, मरई माता , गंगामाई ।

विवाह संस्कार पर पृज्य देवता- दूलादेव , हरदौल, गौरा, श्री गणेश ।

संतान रक्षक देवता- रवकारू बाबा, बीजासेन , बेइयायात ।

कुलदेवता- गोसाई बाबू, सप्त मातृकाऐं ।

विध्नहरण देवता – श्री गणेश, पितृदेव, संकटा देवी आदि ।

ग्राम देवताओं की उत्पत्ति कैसे हुई वह एक शोध का विषय हो सकता है। फिर भी यह सर्व मान्य मत है कि अनेक प्रकार की देवियों वृक्ष और सर्प आदि को पूजने का सिलसिला, भारत की उन आदिम जातियों से प्राप्त हुई जो आर्यों के आगमन से पूर्व यहां निवास करती थी। ग्राम देवताओं देवियों की संख्या अधिक हैं। ग्राम देवताओं के बहुत विशाल मंदिर नहीं होते हैं। एक छोटी सी मड़िया में या वृक्ष के नीचे किसी चबूतरे पर ही प्रतिष्ठित कर दिय जाते हैं।

कुछ प्रसिद्ध देवियों की भूतियाँ देखने को मिल जाती हैं जैसे दुर्गा – या भावनी। प्राय: अनगढ़ पत्थरों द्वारा ही इनको व्यक्त मान लिया जाता हैं। देवता स्थल की पहचान के लिए ऐसे स्थानों पर एक दो त्रिशूल गड़े होते हैं। वहीं पास के वृक्ष पर एक ध्वजा बंधी रहती है।

1 – दुल्हादेव
वास्तव में गोड़ों के देवता माने जाते हैं पर बुन्देलखण्ड के अहीर जाति के देवता माने जाते हैं। कहा जाता है कि कोई अहीर अपनी नव परिणीता वधु के साथ घर जा रहा था । किसी पुरूष ने मार्ग में उस स्त्रीको कंकड़ मार दिया इस कारण दोनों को आत्मग्लानि हुई। दोनों ने अपने प्राण त्याग दिये। दूल्हादेव की कई कथाएं मिलती ।

2 – गुरैया दाई (देवी)
 यह ‘रहूनी’ की देवी है। रहूनी उस स्थान को कहते हैं जहां घर से बाहर निकलकर मवेशी इकट्ठे होते हैं। इस स्थान के बाद चारागाह के लिए चरने जाते हैं। पुशओं की कल्याण कामना के हेतु ‘रहूनी’ के पास गरैया अर्थात गो रक्षक गोरा देवी की स्थापना की जाती है।

3 -घाटोरिया बाबा या घटोई बाबा
नदी के किनारे वाले गांव में घाटोरिया बाबा बाबा के चबूतरे होते हैं नदी के घाट के देवता होने के कारण इन्हें घटाई बाबा कहते हैं नदी के प्रकोप से तथा आवागमन में  यह देवता रक्षा करते हैं । बुंदेलखंड नववधू के नदी पार करने पर इस लोक देवता पर नारियल पूरी आदि अवश्य चढ़ाया जाता है इसकी पूजा से यात्रा शुभ हो जाती है

4 – खेरापति
खेरापति या खेरादेव की प्रतिष्ठा भी ग्राम देवता के रूप में है। ऐसी मान्यता है कि खेरापति  ग्रामवासियों को अनेक प्रकार की आपत्तियों-विपत्तियों  से रक्षा करते हैं। बूढ़े, बाबा खाकी बाबा, मैरोंबाबा, सिद्धबाबा, नामों से भी खेरापति के चबूतरे बने होते हैं। ऐसा प्रतीत होता है ये देवता आदिम संस्कारों के रूप में मान्य हैं।

5 – कारसदेव
कारसदेव बुन्देलखण्ड की पशु पालक जाति के एक वीर देवता हैं। यही कारण है आम जन इन्हें अहीरों और गूजरों का देवता मानते हैं। बुन्देलखण्ड में सभी जगह कारसदेव के गोल मटोल पत्थर चबूतरे पाये जाते हैं। कारसदेव और उनके भाई सूराजपाल  की मूर्ति प्रतीक दो गोल मोल पत्थर की बटइयाँ इन चबूतरों पर प्रतिष्ठित होती हैं।

चबूतरे के पास मिट्टी के बने दो चार घोड़े खड़े कर दिए जाते हैं चबूतरे के पास ही सफेद कपड़े के ध्वज बांसों में लगे होते हैं कृष्ण चतुर्थी और शुक्ल चतुर्थी को रात में लोग  चबूतरो पर एकत्र होते हैं।  पूजा की जाती है । इस पूजा में एक घुल्ला होता है घुल्ला के सिर पर ही कारस देव आते हैं।  

कारस देव की सवारी जब घुल्ला के सर पर आती है तब वह रस्सी उठा उठा कर रही हूं हूं कि हुंकार भरता है रस्सी को इधर-उधर मारता जाता है।  सवारी के आह्वान के लिए डमरु और घुंगरू लगी ढोलक जिसे ढाँक कहते हैं उस पर गीत गाए जाते हैं।  यह गीत गोटे कहलाते हैं इसमें कारस देव एवं अन्य वीर पुरुषों के अलौकिक साहित्यिक कार्यों का यशोगान होता है

6 – लाला हरदौल जू
लोक जीवन में लाला हरदौली का चरित्र बहुत ही सम्मान और उज्जवलता का प्रतीक है। लाला हरदौल के चरित्र पर सुन्दर काव्यकृतियां भी रची गयी हैं। बुन्देली स्त्रियां लाला हरदौल के चरित्र गान के गीत विभिन्‍न अवसरों पर गाती हैं। बुन्देली वीर हरदौल विष पीकर भी अमर हो गये। इस अमरत्व के कारण मंगल कार्यों पर गृह देवियां हरदौल पूजन करती हैं। विवाह संस्कारों के अवसर पर लाल हरदौल देव को विशेष रूप से आमंत्रित किया जाता है।

हरदौल जू के चबूतरे पर मनोतिया मानी जाती हैं। पूजा की जाती है। लाला हरदौल जू की प्रशस्ति में यह लोकोक्ति प्रचलित हैं –

“महाराजा बुन्देला नगर ओरछा म्यान
जियत किये बहु पुण्य, मरे पै थपे जगत में आन”

हमारे हरदौल लाला ऐसे गजत( गर्जत)  हैं,
जैसे इन्द्र अखाड़े |

पवन के हनुमत हैं रखवारे ।
काना सो दल ऊनये हो

लाला काना करे मिलाप
बुंदेला देस के हो

रैया राव के हों
बेटा साव के हो

तुमरी जोय रही तर वार
बिजली चमके चम्बल माँय   

7 – शीतला देवी
नेम  के वृक्ष पर इन देवी का वास माना जाता हैं। शीतला देवी का प्रकोप न हो इसी लिये इनकी पूजा की जाती है। ऐसी मान्यता है शीतला देव शांति और शीतलता प्रदान करती हैं। बुन्देलखण्ड में स्माल पोक्स रोग को “माता” कह कर पुकारते हैं। बच्चों को जब स्माल पोक्स निकल आती हैं तो कहते हैं कि ”माता’ निकल आयी है । इस रोग की शांति के लिये शीतला देवी की पूजा विशेष रूप से की जाती है।

8 – भैंरव बाबा
ग्राम देवताओं में भैंरव बाबा का भी बहुत महत्व है। प्रत्येक गांव में किसी न किसी भैंरव बाबा की पूजा अवश्य होती है। स्थान और जाति भेद से भैंरव बाबा के कई नाम प्रचलित है। काल भैंरव, गौड़ भैंरव, खेर के भैंरव, सेजवार के भैंरव, सूती के भैंरव आदि।

भैंरव की पूजा वाल्मीकि समाज और दरजी समाज में विशेष रूप से होती है। सामान्य रूप से सभी समाजों में  भैरव देवता  को पूजने की परम्परा है। इन देवता को रोट, देवल, नारियल आदि चढ़ाते हैं। निश्चित पर्वो पर इनकी पूजा होती है। बीमारियों के फैलने पर इनकी पूजा खासतौर पर की जाती है। कई जातियाँ बकरे का बलि देकर भैंरव देव को प्रसन्‍न करतीं हैं।

9 – भुईयां बाबा
यह सर्प देवता है। आषाढ शुक्ल 14  तथा अगहन शुक्ल 14  को इनकी पूजा होती है। पूजा में भात, बेलन की बेली हुई सात रोटियां और उर्द के बने मगौरा चढ़ाये जाते हैं। इनकी चौतरिया या चौरी बनी होती है । कुछ स्थानों में ये खेत या धरती के देवता माने जाते है और कहीं कहीं खेतपाल या क्षेत्रपाल कहलाते हैं।

10- बरमदेव 
हिन्दुओं में वट वृक्ष पवित्र माने जाते हैं। इनमें वरमदेव अर्थात, ब्रहमदेव का वास समझा जाता है। इन पर लोग प्रतिदिन जलढार करते हैं (जल चढ़ाना)। जनेऊ, खिचड़ी , चरण पादुकाएं इन्हें अर्पित की जाती हैं।

11 – कुलदेवता बाबू
प्रत्येक घर में कुलदेवता की पूजा वर्ष में दो बार होती है। कल देवता को बाबू पूजा कहते हैं। इसमें एक परिवार के समी सदस्य उपस्थित होते हैं। मिट्टी की एक चौतरिया निर्मित कर ली जाती है। यह चौतरिया पूजा में प्रयोग होती है। इसपर सूता का या हाथ का कता बुना फरका रखा जाता है। इस पर कुल  देवता की छाप अंकित की जाती है। गेहूं चावल की आखत डालकर “बाबू” की पूजा की जाती है। बाबू की पूजा में पांच या सात कोरा रखे जाते है। नारियल चढ़ाया जाता है। इन कोरों को परिवार के सभी सदस्यों में वितरित किया जाता है।

बुन्देली लोक संस्कृति 

admin
adminhttps://bundeliijhalak.com
Bundeli Jhalak: The Cultural Archive of Bundelkhand. Bundeli Jhalak Tries to Preserve and Promote the Folk Art and Culture of Bundelkhand and to reach out to all the masses so that the basic, Cultural and Aesthetic values and concepts related to Art and Culture can be kept alive in the public mind.
RELATED ARTICLES

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Most Popular

error: Content is protected !!