माय पूजा May Pooja साल में तीन बार होती है । चैत्र और क्वार माह की नवरात्रि पर नौमी के दिन एवं दीपावली पर, इसे माय भरना कहते हैं। स्त्रियाँ किसी भीत (दीवार ) पर या कोरे कपड़े पर पुतरियों के मुँह बनाकर इनकी पूजा करती हैं । शास्त्रों में गौर्यादि षोडशमात्रिका और सप्तघृत मातृका का उल्लेख आता है ।
माय पूजा मातृका पूजन ही है। इनमें कुलदेवी का आवाहन किया जाता है। सभी मांगलिक अवसर पर कुल – परिवार के कल्याण प्राप्ति और कार्य की निर्विघ्न सम्पन्नता बनाकर उसकी प्रतिष्ठा की जाती है । पूजा -अर्चना की जाती है ।
विवाह के अवसर पर यह पूजा अनिवार्य होती है। विवाह कार्य सम्पन्न हो जाने पर गौरइयाँ विसर्जन किया जाता है। इसका प्रसाद स्वरूप कोरा सगे-सम्बन्धियों होती हैं, जिसमें सुहागिनों की पूजा के साथ गौरी या मातृकाओं का व कुटुम्बियों को ही दिया जाता है ।
कुटुम्ब के सदस्य वे कहीं भी रहते हों, आकर इस पूजा को एक साथ करते हैं। इस प्रकार इस पूजा के बहाने परिवार में सामंजस्य व जुड़ाव बना रहता है। वर्तमान समय में जब संयुक्त परिवारों का विघटन हो रहा है, इन पूजाओं का महत्त्व और बढ़ जाता है।