वैशाख की अष्टमी या नौमी को शीतला माता के पूजन का विधान है। प्रातः मन्दिर में जाकर शीतला माई Shitala Mai को हलुवा, अठवाई, कौरी, फरा का भोग लगाते हैं । इसे बासेरा चढ़ाना कहते हैं । इस दिन बासी भोजन करने की परम्परा है । घर में अग्नि नहीं जलती । भोजन एवं देवी को चढ़ाने वाला प्रसाद एक दिन पूर्व रात्रि से बना लिया जाता है ।
प्राचीनकाल में चेचक आदि रोगों की शान्ति के लिए Shitala Mai शीतला माता की उपासना – अर्चना की जाती थी यह परम्परा ग्रामीण समाज में आज भी प्रचलित है। चेचक की देवी के रूप में शीतला देवी की मान्यता देश के अन्य भागों में भी है । लोक जनमानस मे यह धारणा है कि इनकी पूजा -अर्चना करने से रोगों से निदान मिलता है ।
शीतला माता की कथा -1
एक गांव में एक बुढ़िया रहती थी। उसका एक बेटा था, वो बहुत गरीब थी, कई बार उसके घर में खाने को कुछ नहीं होता था, उसकी झोपड़ी भी गांव से दूर बनी थी, वो शीतला माता की भक्त थी, और शीतला माता का व्रत रखती थी। उसके गांव में और कोई शीतला माता की पूजा नहीं करता था, लेकिन उस गांव में शीतला माता का एक मंदिर था।
एक दिन किसी कारणवश उस गांव में आग लग गई। पूरे गांव में आग लगने से सभी लोग आग से जल जाते हैं, शीतला माता भी आग के कारण जल जाती है, वो जलन और गर्मी से परेशान होकर सबके घर जाती है, लेकिन उसे कहीं भी राहत नहीं मिलती। पूरा गांव जलने के कारण मां कुम्हार के खेत में जाती है, ताकि वहां उसे ठंडी मिट्टी मिल जाए, लेकिन कुम्हार ने बर्तन पकाने के लिए मिट्टी में आग लगा दी थी, इसलिए उसे वहां भी काफी जलन होती है।
इस तरह हर जगह भटकने के बाद उसे कहीं भी राहत नहीं मिलती, तो वो गांव से दूर बुढ़िया के घर पहुंचती है। वहां वह अपने शरीर की जलन को शांत करने के लिए कीचड़ में लोटती है। उसके बाद थोड़ी देर आराम करने के बाद जब जलन शांत हो जाती है तो वह महिला से भोजन मांगती है तो महिला कहती है कि मैं बहुत गरीब हूं, मैंने कुछ भी ताजा नहीं पकाया है।
इस पर वह कहती है कि अगर आपके पास कोई ठंडा या बासी खाना हो तो मुझे दे दीजिए। इस पर महिला को लगता है कि माता जी उसका मजाक उड़ा रही हैं तो महिला कहती है कि माता जी मैं गरीब हूं मेरे पास कुछ भी नहीं है। कल की बासी ज्वार की रोटी रखी है। इस पर माता जी कहती हैं कि जो कुछ भी तुम्हारे पास है वह मुझे दे दीजिए।
खाने के बाद माता ने दही मांगा इस पर महिला ने कहा कि मेरे पास छाछ है आप कहें तो मैं लाकर देती हूं। छाछ पीकर उसे राहत मिली। जाते समय शीतला माता ने उसे आशीर्वाद दिया कि जिस तरह तुमने मुझे शांति और आराम दिया है वैसे ही तुम्हें भी शांति मिले।
यह कहकर उन्होंने झोपड़ी को लात मारकर गिरा दिया और उसे आलीशान महल में बदल दिया। एक ग्रामीण ने राजा से शिकायत की कि पूरा गांव जल गया लेकिन महिला की झोपड़ी एक सुंदर महल में बदल गई। उसने सोचा कि महिला ने कोई काला जादू करके ऐसा किया होगा। यह सुनकर राजा ने महिला को अपने दरबार में बुलाया और पूछा कि जब पूरा गांव जल गया तो तुम्हारी झोपड़ी कैसे बची और महल कैसे बन गई, बताओ तुमने क्या किया?
तब बुढ़िया ने हाथ जोड़कर कहा कि महाराज मैंने कुछ नहीं किया। कल जब पूरा गांव आग की चपेट में आया तो शीतला माता भी जल गई और मेरी झोपड़ी गांव के बाहर होने के कारण नहीं जल सकी। इसलिए ठंडी जगह की तलाश करते हुए शीतला माता विश्राम करने के लिए मेरी झोपड़ी में आईं। फिर उन्होंने भोजन मांगा लेकिन मेरे घर में कुछ नहीं था। मेरे पास बासी बाजरे की रोटी और मिठाई पड़ी थी। मैंने उन्हें परोस दिया। इससे उनकी भूख शांत हुई और उन्होंने मुझे आशीर्वाद दिया कि जो सुख और शांति तुमने मुझे दी है, वही तुम्हें भी मिले। और अंत में जाने से पहले उन्होंने मेरी झोपड़ी को महल में बदल दिया।
इसलिए मुझे शीतला माता की कृपा से ये सभी चीजें मिली हैं। उस दिन से राजा ने पूरे गांव में घोषणा करवा दी कि होली के बाद के सातवें दिन को शीतलाष्टमी का बासोड़ा कहा जाएगा और एक दिन पहले बनाया गया ठंडा बासी भोजन खाया जाएगा और उस दिन से सभी लोग शीतला माता की पूजा करते हैं ।
शीतला माता की कथा -2
यह कथा बहुत पुरानी है। एक बार शीतला माता ने सोचा कि क्यों न देखा जाए कि धरती पर कौन मेरी पूजा करता है, कौन मुझ पर विश्वास करता है। यह सोचकर शीतला माता धरती पर राजस्थान के डूंगरी गांव में आईं और उन्होंने देखा कि इस गांव में मेरा कोई मंदिर नहीं है और न ही मेरी पूजा होती है।
माता शीतला गांव की गलियों में घूम रही थीं, तभी किसी ने एक घर की छत से उबले हुए चावल का पानी (मांड) फेंका और वह उबलता पानी शीतला माता पर गिर गया जिससे शीतला माता के शरीर पर छाले पड़ गए। शीतला माता का पूरा शरीर जलने लगा।
शीतला माता जलने के कारण गांव में इधर-उधर भाग रही थीं, मदद के लिए चिल्ला भी रही थीं, लेकिन उस गांव में किसी ने शीतला माता की मदद नहीं की। उनके घर के बाहर एक कुम्हार (महिला) बैठी थी। उस कुम्हार ने देखा कि यह बूढ़ी माता बहुत जल गई है। उसके पूरे शरीर में जलन हो रही है और पूरे शरीर पर छाले पड़ गए हैं। वह इस गर्मी को सहन नहीं कर पा रही है।
तब कुम्हारन बोली माता जी आप यहां आकर बैठिए मैं आपके शरीर पर ठंडा पानी डालती हूं। कुम्हारन ने बुढ़िया पर खूब सारा ठंडा पानी डाला तो शीतला माता की जलन कम हो गई। महिला बोली माता जी मैंने अपने घर में कल रात की बनाई हुई रबड़ी रखी है और थोड़ा दही भी है। आप दही और रबड़ी खा लीजिए। बुढ़िया ने जब ठंडी (ज्वार) के आटे की रबड़ी और दही खाई तो उसके शरीर में ठंडक महसूस हुई।
तब कुम्हारन बोली माता जी आओ बैठिए मैं आपके बाल काट देती हूं और कुम्हारन माता के बाल काटने लगी। अचानक कुम्हारन की नजर बुढ़िया के सिर के पीछे पड़ी तो उसने देखा कि बालों के अंदर एक आंख छिपी हुई है। यह देखकर कुम्हारन डर गई और भागने लगी तो बुढ़िया बोली रुको बेटी डरो मत। मैं कोई भूत-प्रेत नहीं हूं। मैं शीतला देवी हूं। मैं यह देखने के लिए इस धरती पर आई थी कि कौन मुझ पर विश्वास करता है। कौन मेरी पूजा करता है? ऐसा कहकर माता चतुर्भुजा वाली हीरे-जवाहरातों के आभूषण पहने, सिर पर सोने का मुकुट पहने अपने असली रूप में प्रकट हो गईं।
माता के दर्शन कर कुम्हार की पत्नी सोचने लगी कि अब तो मैं दरिद्र हो गई हूं, इन माता को कहां बैठाऊं, तब माता ने कहा बेटी तुम क्या सोच रही हो। तब कुम्हार की पत्नी ने हाथ जोड़कर आंखों में आंसू भरकर कहा- माता मेरे घर में चारों ओर दरिद्रता फैली हुई है, मैं आपको कहां बैठाऊं। मेरे घर में न तो चौकी है, न बैठने के लिए आसन।
तब शीतला माता प्रसन्न हो गईं और कुम्हार के घर पर खड़े गधे पर बैठ गईं, एक हाथ में झाड़ू और दूसरे हाथ में टोकरी ली और कुम्हार के घर की दरिद्रता को दूर कर टोकरी में भरकर फेंक दिया और कुम्हार से कहा कि बेटी मैं तुम्हारी सच्ची भक्ति से प्रसन्न हूं, अब तुम मुझसे जो चाहो वरदान मांग लो।
तब कुम्हार ने हाथ जोड़कर कहा, माता मेरी इच्छा है कि आप अब इस (डुंगरी) गांव में बस जाएं और यहीं रहें तथा जिस प्रकार आपने मेरे घर की दरिद्रता को अपनी झाड़ू से दूर किया, उसी प्रकार जो भी व्यक्ति होली के बाद सातवें दिन भक्ति भाव से आपकी पूजा करे तथा आपको ठंडा जल, दही और बासी ठंडा भोजन अर्पित करे, आप उस घर की दरिद्रता दूर करें तथा आपकी पूजा करने वाली स्त्री का अखंड सुहाग बनाए रखें। उसकी गोद हमेशा भरी रखें।
साथ ही जो पुरुष शीतलाष्टमी के दिन नाई के यहां बाल नहीं कटवाता, धोबी से कपड़े नहीं धुलवाता तथा वह पुरुष भी आपको ठंडा जल, नारियल, फूल अर्पित करता है तथा अपने परिवार के साथ ठंडा बासी भोजन करता है, उसके व्यापार में कभी दरिद्रता न आए। तब माता ने कहा, तथास्तु!
पुत्री तू जो वरदान मांगती है, वह मैं तुझे देती हूं। उस दिन से डूंगरी गांव में शीतला माता की स्थापना हुई और उस गांव का नाम शील की डूंगरी पड़ गया। शीतला माता का मुख्य मंदिर शील की डूंगरी में है। शीतलाष्टमी बासौड़ा पर वहां बहुत बड़ा मेला लगता है। इस कथा को पढ़ने से घर की दरिद्रता नष्ट होती है और सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। इस कथा का सार भी बहुत गहरा है। भारत की जलवायु गर्म है। गर्मी से अनेक बीमारियां होती हैं। शीतला माई शीतलता की देवी हैं।
लोगों की मानें तो कथा यह संदेश देती है कि शीतला माई की पूजा करने से शरीर, मन और जीवन में शीतलता आती है, मनुष्य गर्मी, द्वेष, विकार और तनाव से मुक्त हो जाता है। शीतला माता के हाथ में झाड़ू भी स्वच्छता और सफाई का संदेश देती है। गर्मी के मौसम के अनुसार अपनी दिनचर्या और खान-पान में बदलाव करके ही जीवन स्वस्थ रह सकता है। इस तरह शीतला माई ठंडे व्यंजनों के माध्यम से बुद्धि, स्वास्थ्य, सतर्कता, स्वच्छता और पर्यावरण का संदेश देने वाली देवी भी हैं।
शीतला माता की पूजा के उद्देश्य से श्रद्धालु फाल्गुन मास की पूर्णिमा और फाल्गुन मास की संक्रांति से प्रतिदिन सुबह शीतला माता को लस्सी का भोग लगाना शुरू करते हैं और पूरे महीने शीतला माता की पूजा करते हैं। लेकिन कई जगहों पर होली के बाद आने वाली अष्टमी को एक दिन पहले ही भोजन तैयार कर लिया जाता है और अगले दिन (शीतलाष्टमी) माता शीतला की पूजा की जाती है।
मान्यताएं
स्कंद पुराण में शीतला देवी का वाहन गधा बताया गया है। ये हाथों में कलश, सूप, मार्जन (झाड़ू) तथा नीम के पत्ते धारण करती हैं। शीतला माता को संक्रामक रोगों से बचाने वाली देवी भी कहा जाता है। देहात के इलाकों में तो स्मालपोक्स (चेचक) को माता, शीतला माता आदि नामों से जाना जाता है। मान्यता है कि शीतला माता के कोप से ही यह रोग पनपता है इसलिये इस रोग से मुक्ति के लिये आटा, चावल, नारियल, गुड़, घी इत्यादि माता के नाम पर रोगी श्रद्धालुओं से रखवाया जाता है।
इन्हें चेचक आदि कई रोगों की देवी बताया गया है। चेचक का रोगी गर्मी से वस्त्र उतार देता है। सूप से रोगी को हवा की जाती है, झाडू से चेचक के फोड़े फट जाते हैं। नीम के पत्ते फोडों को सड़ने नहीं देते। रोगी को ठंडा जल प्रिय होता है गधे की लीद लगाने से चेचक के दाग मिट जाते हैं। ऐसा करने से रोगी को आराम पहुँचता है।