बुन्देलखण्ड विश्वकोश Bundelkhand Vishwakosh योजना हमारे पितृपुरुषों की स्मृति में एक यज्ञ है। हर एक बुन्देलखण्डवासी को इसमें आहुतियां देकर पूर्णाहुति प्रदान करना है। यह मेरे जीवन का अन्तिम सपना है।अतः जन-जन का आप सबका सहयोग अपेक्षित है। बुन्देलखण्ड की वैभवशाली विरासत को संजोने के उद्देश्य से बुन्देलखण्ड विश्वकोश : योजना तैयार की जा रही है।बुन्देलखण्ड का प्रत्येक व्यक्ति जो जहां है वहां की माटी की महक को अनुभव करते हुए कदम से कदम मिलाकर सहयोग करे। विश्वकोश योजना एक दायित्व पूर्ण मूलमंत्र है जो बुन्देलखण्ड के पृथ्वीपुत्रों ,जनपदीय बंधु-बांधवों को मातृभूमि से जोड़ने हेतु आवाहन करती है ।
बुन्देलखण्ड क्षेत्र वृहद और विशिष्ट है इससे सम्बन्धित सामग्री जुटाने और सहेजने का कार्य हमारे पितृपुरुषों ने खूब किया है।अधिकांश सामग्री पत्र पत्रिकाओं में , पुस्तकों में विद्यमान है। बुंदेलखंड के गांव गांव, नगर नगर, की बिखरी सामग्री को संरक्षित करने का यह गुरुतर कार्य बुन्देलखंड विश्वकोश योजना समिति के सदस्यों व सहयोगियों वालंटियर्स के माध्यम से किया जायेगा।
बुन्देलखण्ड विश्वकोश का कार्य राष्ट्रीय अस्तित्व और विकास की आध्यात्मिक पृष्ठभूमि के साथ बुन्देलखण्ड मातृभूमि के ऋण से उऋण होने का एक उपक्रम है। यह कार्य लोकोत्तर एवं लोकोन्मुख होने का गुरुतर कार्य है । “माताभूमि पुत्रोहम पृथिव्या” के भाव से ओतप्रोत होकर हर बुन्देलखंडवासी जीवन की आवश्यकताओं को पूरा करने के साथ, पृथ्वीपुत्र बनने की उदात्त भावना को जीवन्तता प्रदान करे।
बुन्देलखण्ड क्षेत्र अति प्राचीन है। इसकी महिमा वेदों, पुराणों, उपनिषदों, धर्मग्रंथों में अभूतपूर्व रुप से वर्णित है। हम अपने बुंदेलखंड पर गर्व करते हुए उसकी विशेषताओं को जानें। जो जहां है वहीं से अपना कार्य प्रारंभ करे। बुन्देलखण्ड के विभिन्न क्षेत्रों से सम्बंधित समितियां बनाई गई हैं। जिसके माध्यम से बुन्देलखण्ड की कोने कोने की जानकारी का संकलन,अभिलेखीकरण व प्रकाशन किया जायेगा।
भारत के मानचित्र पर अंकित बुन्देलखण्ड क्षेत्र अपनी अलग पहचान एवं अस्तित्व रखता है। इसका अतीत गौरवशाली है। ऐतिहासिक दृष्टि से जब हम बुन्देलखण्ड क्षेत्र का निरूपण करते हैं, तब अतीत के खण्डहरों में प्रसुप्त वीरों की कीर्ति गाथायें, साहित्यिक, सांस्कृतिक, सामाजिक धरोहर, धरती के गर्भ में दबी अतुल सम्पदायें, त्याग-बलिदान की स्मृतियाँ पृष्ठों पर जगमगाती दिखाई देती हैं।
बुन्देली धरती हमारे पितृपुरूषों की कर्मभूमि एवं चेतना भूमि रही है। उन्नीसवीं शती के उत्तरार्ध में बुन्देलियों के पुरखों ने बुन्देलखण्ड क्षेत्र विशेष की संस्कृति को विस्तार देने के उद्देश्य से बहुत कार्य किया है। उनके सामने अनेक चुनौतियाँ थी। मुगलों की बादशाहत का सामना करना आसान नहीं था फिर भी वह डटे रहे। कहा जाता है ‘सौ दण्डी एक बुन्देलखण्डी’, पेशावर, लाहौर, मालवा और असीरगढ़ बुन्देलखण्डियों के नाम से काँपते थे। बीसवीं सदी की देहरी पर इसी तरह हमारे पूर्वजों ने पैर रखे। फिर अँग्रेजों की अँग्रेजियत, समाज की बुरी दशा, मुश्किल समय होने के बावजूद भी वह सतत् सक्रिय रहे।
आज बुन्देलखण्ड की भूमि आह्नान कर रही है कि हम उसके कोने-कोने से परिचित हों, हम उसकी नदियों का अध्ययन करें, वृक्षों को मित्र बनायें, शैल-शिखरों पर गोष्ठियाँ करें। साथ ही इतिहास-पुरातत्व के महत्वपूर्ण स्थलों का अन्वेषण करें, प्राकृतिक सौंदर्य से ओतप्रोत पर्यटन स्थलों को बढ़ावा देते हुए लुप्त साहित्य को प्रकाश में लायें।