विवाह के अवसर पर जब वर के यहाँ वधू को विदा कराके बारात लौटने वाली होती है। उस समय घर में प्रसन्नता का वातावरण होता है ऐसे में घर की मुख्य द्वार के दोनों ओर लोक चित्रकारी की जाती है। घर की कोई सुहागिन महिला गेरू, हल्दी या ऐपन से (उपलब्धि या परम्परा के आधार पर) Aarte- Maurte Aur Hathe “आरते-मौरते” बनाती हैं।
यह वर-वधू के स्वागत चिन्ह होते हैं। वे गृह रक्षक तथा स्वागतोत्सुक गृह देवता प्रतीत होते हैं। वर-वधू के आने पर मुख्य द्वार की पारम्परिक रस्मों के बाद वर-वधू हल्दी व पानी के घोल में हाथ भिगोकर भित्ति पर ‘हाथे या थापे’ लगाते हैं।
यह आरते मौरते तथा ‘हाथे’ यह प्रदर्शित करते हैं कि घर में वर-वधू का आगमन हो चुका है। ‘आरते-मौरते’ बुन्देली शब्द ही है इसके आधार पर यह लगता है कि ‘मौर’ धारण करने वालों की आरती करने हेतु हम प्रतीक्षारत हैं।
यह प्रतीक चिन्ह के समान हैं। वर-वधू, कुल देवी, देवता तथा देव-स्थानों पर भी हल्दी से हाथे लगाते हैं। आरते-मौरते’ अधिकांशतया गेरू से ही चित्रित किये जाते हैं। इसके लिये गेरू को पानी में घोलते हैं। सींक में रूई लगाकर ब्रश तैयार किया जाता है। उसके बाद चूने से पुती घर के मुख्य द्वार के दोनों ओर की भित्तियों पर चित्रण किया जाता है।
आरते-मौरतें की मानवाकृति बनाने के उद्देश्य से उनका मुख, हाथ, पैर बनाये जाते हैं। धड़ चौकोर होता है। जिसको चित्रित करने वाली महिला अपनी कला योग्यता के अनुसार सजाती है। यह चित्रण पूर्णतः पारम्परिक होता है।
संदर्भ-
बुंदेलखंड दर्शन- मोतीलाल त्रिपाठी ‘अशांत’
बुंदेली लोक काव्य – डॉ. बलभद्र तिवारी
बुंदेलखंड की संस्कृति और साहित्य- रामचरण हरण ‘मित्र’
बुंदेली लोक साहित्य परंपरा और इतिहास- नर्मदा प्रसाद गुप्त
बुंदेली संस्कृति और साहित्य- नर्मदा प्रसाद गुप्त
सांस्कृतिक बुन्देलखण्ड – अयोध्या प्रसाद गुप्त “कुमुद”