वर्षा के सम्बन्ध में किसानों का अनुभव बड़े ही काम का है। उनका प्रकृति-निरीक्षण अद्भुत है यही ज्ञान Varsha Vigyan लोक विज्ञान है । गिरगिट, बनमुर्गी, साँप, गोरैया, मेढक, चींटी, बकरी आदि जीवों की गति-विधि तथा हवा का रुख और आकाश का रंग देखकर वे वर्षा का अनुमान करते हैं और वह सत्य होता है। सबसे बिलक्षण बात उनके इस सिद्धान्त में है, जो वे पौष और माघ का वातावरण देखकर सावन और भादों की बारिश का अनुमान करते हैं ।
उनके मत से पौष ओर माघ वर्षा के गर्भाधान का समय है। इन दो महीनों में हवा का रुख और बादल और बिजली देखकर वे बता सकते हैं कि सावन और भादों में कब और कितनी वर्षा होगो। जेठ वर्षा के गर्भस्राव का समय है। वह महीना यदि बिना बरसे बीत गया तो सावन भादों में अच्छी वर्षा की आशा की जाती है।
किसानों के मत से वर्षा का गर्भ 196 दिन में पकता है । क्या ये अच्छा होता कि किसानों के इस वर्षा-ज्ञान की जाँच बड़ी तत्परता से की जाती ओर भारत-सरकार इसके लिये अलग एक विभाग खोलती और पौष ओर माघ महीनों के वातावरण का लेखा लिख रक्खा जाता।
नक्षत्रों, राशियों ओर दिनों के सम्बन्ध में भी किसानों में बहुत- सी कहावतें प्रचलित हैं । इनमें से कितनी -ही सच ठहरतो हैं। जैसे-
सूकरवारी बादरी,
रहे सनीचर छाय।
डंक कहे सुनु भड्टरी,
बिन बरसे ना जाय ॥
पृथ्वी के वायुमण्डल पर सूर्य-चन्द्रमा की तरह नक्षत्रों और राशियों का भी प्रभाव पड़ता है। इस बात की जानकारी किसानों को भी है । उनकी कहावतों में इसका उल्लेख स्पष्ट मिलता है। पौष और माघ में जो वृष्टि का गर्भाधान होता है, उसके लक्षण कहावतों के अनुसार ये हैं वायु, वृष्टि, बिजली, गजेन और बादल। गर्भा-धान के दिन ये लक्षण दिखाई पढ़ें, तो वर्षा विस्तार के साथ होगी ।
देहात में कहावतों का बड़ा प्रचार है। ऐसा मालूम होता है कि किसानों के जीवन का महल कहावतों ही की इंटों पर बना हुआ है। घाघ और भड्डरी ही की नहीं, बीसों अन्य अनुभवियों की कहावतें गाँव-गाँव में प्रचलित हैं। इनका संग्रह होना अत्यन्त आवश्यक है।
वर्तमान हिन्दू-जाति का सच्चा रूप देखना हो तो गाँवों में प्रचलित कहावतें पढ़नी चाहिये । ऐसा मालूम होता है कि ग्रामीण जनता ने अपना जीवन ही कहावतों के आस-पास रक्खा है।
संदर्भ-
बुंदेली लोक साहित्य परंपरा और इतिहास – डॉ. नर्मदा प्रसाद गुप्त
बुंदेली लोक संस्कृति और साहित्य – डॉ. नर्मदा प्रसाद गुप्त
बुन्देलखंड की संस्कृति और साहित्य – श्री राम चरण हयारण “मित्र”
बुन्देलखंड दर्शन – मोतीलाल त्रिपाठी “अशांत”
बुंदेली लोक काव्य – डॉ. बलभद्र तिवारी
बुंदेली काव्य परंपरा – डॉ. बलभद्र तिवारी
बुन्देली का भाषाशास्त्रीय अध्ययन -रामेश्वर प्रसाद अग्रवाल