महाभारत के आदि पर्व में छंद 17 से 27 तक के 11 छंदों में चेदिनरेश उपरिचर वसु द्वारा इन्द्र की पूजा और इन्द्रमह लोकोत्सव के आयोजन का उल्लेख है । इन्द्र ने प्रकट होकर उन्हें एक विमान, एक वरमाला और एक वैणवी यष्टि प्रदान की थी । वैणवी का अर्थ है बाँस की बनी हुई । बाँस की लाट का पूजन इन्द्र-पूजा का प्रतीक था । उसी के साथ शिव और यक्ष देवों की पूजा भी लोकप्रचलित थी ।इससे पता चलता है की Mahabharat Kal Men Lok Devta का अस्तित्व था , इस प्रकार वैदिक देवता इन्द्र को इस युग में अधिक महत्त्व मिला ।
इस समय यादवों द्वारा विकसित लोक संस्कृति का बिस्तार हुआ । चेदिनरेश शिशुपाल बहुत ही दबंग राजा था, उसमें वासुदेव कृष्ण को चुनौती देने का अदम्य साहस था । इधर कृष्ण ने इन्द्र के स्थान पर गिरि की पूजा प्रारम्भ करा दी थी । इन्द्र आँधी, तूफान, बिजली, वर्षा के देव होकर लोकस्वीकृत हुए थे, लेकिन जब लोक ने उन्हें अमान्य कर दिया, तब वे शक्ति के प्रतीक रूप में प्रभावशाली बने थे ।
संदर्भ-
बुंदेलखंड दर्शन- मोतीलाल त्रिपाठी ‘अशांत’
बुंदेलखंड की संस्कृति और साहित्य- रामचरण हरण ‘मित्र’
बुंदेली लोक साहित्य परंपरा और इतिहास- नर्मदा प्रसाद गुप्त
बुंदेली संस्कृति और साहित्य- नर्मदा प्रसाद गुप्त
[…] महाभारत काल में लोक देवता […]