सभी हिन्दू जाति की सुहागिन स्त्रियों के लिये यह सुहाग रक्षा का महत्वपूर्ण व्रत है। यह प्रत्येक कार्तिक मास मे कृष्णपक्ष की चतुर्थी को मनाया जाता है। अहोई अष्टमी Ahoee Ashtami के पूजन मे सभी प्रकार के मिष्ठान और कच्चे पक्के पकवान बनाकर पात्रों मे रख दिये जाते हैं। चित्र के समक्ष चौक पूर कर पूजन किया जाता है। कहानी कही जाती है। चन्द्रमा को अर्ध्य देकर स्थ्रियाँ व्रत का पारायण करतीं हैं। अहोई माता का विधिवत पूजन करने से और चन्द्रमा को अर्ध्य देने से पुत्रों की दीर्घायु होती है तथा प्रत्येक दुःखो से रक्षा होती है, ऐसा लोक विश्वास है।
अहोई अष्टमी से सम्बन्धित अनेक कथायें है किन्तु प्रचलित कहानी यह है– किसी नगर मे एक साहूकार रहता था। उसकी पत्नी रूपवती एवं गुणवती थी। उसके छः पुत्र हुये वे जन्म लेते ही मर गये। इस कारण साहूकार दम्पत्ति अत्यन्त दुःखी थे। एक बार वे जीवन से निराश होकर आत्म हत्या करने गये किन्तु तभी आकाशवाणी हुई कि तुम इस प्रकार निराश न हो। यह तुम्हारे पूर्व जन्मो के पाप है। उन पापों को दूर करने के लिये और दीर्घायु पुत्र प्राप्त करने हेतु तुम कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी का व्रत रखो और श्रद्धापूर्वक अहोई माता का व्रत करो। वे दोनो प्रसन्नता पूर्वक घर लौट आये।
साहूकार की पत्नी ने व्रत रख कर विधि विधान से पूजा की | अहोई माता की कृपा से उसे सुन्दर और स्वस्थ बालक प्राप्त हुआ। अहोई माता जब बच्चे का भाग्य लिखने हेतु प्रगट हुई तब साहूकार ने उनके स्वागत के लिये मेवा, मिष्ठान, दूध, दही इत्यादि पकवानों के कंडे भर कर रखवा दिये। अहोई माता भोजन कर तृप्त हुई तथा बच्चे को दीर्घायु होने का वरदान दिया। तब साहूकार की पत्नी ने बच्चे को रूला दिया।
अहोई माता ने पूछा कि- बच्चा क्यों रो रहा है? तो उसने जवाब दिया कि, अपने मृत भाइयों को जीवित चाहता है। अहोई माता साहूकार की पत्नी की होशियारी समझ गई किन्तु वचन देने के कारण उन्होने मृत पुत्रों को जीवन दान दिया। इस प्रकार वह सात पुत्रों की माँ बनीं ।
सभी हिन्दू जाति की सुहागिन स्त्रियों के लिये यह सुहाग रक्षा का महत्वपूर्ण व्रत है। यह प्रत्येक कार्तिक मास मे कृष्णपक्ष की चतुर्थी को मनाया जाता है। अहोई अष्टमी के पूजन मे सभी प्रकार के मिष्ठान और कच्चे पक्के पकवान बनाकर पात्रों मे रख दिये जाते हैं। चित्र के समक्ष चौक पूर कर पूजन किया जाता है। कहानी कही जाती है। चन्द्रमा को अर्ध्य देकर स्थ्रियाँ व्रत का पारायण करतीं हैं। अहोई माता का विधिवत पूजन करने से और चन्द्रमा को अर्ध्य देने से पुत्रों की दीर्घायु होती है तथा प्रत्येक दुःखो से रक्षा होती है, ऐसा लोक विश्वास है।
महाभारत मे वर्णित एक कथा के अनुसार द्रोपदी ने श्री कृष्ण से पूछा कि, अर्जुन एक अनुष्ठान करना चाहते है वह निर्विध्न सम्पन्न हो इसके लिये मै क्या करूँ?’ श्री कृष्ण ने बताया कि, भगवान शिव और पार्वती एक बार पृथ्वी लोक का विचरण कर रहे थे, तब उन्होने देखा कि, तालाब व नदी सूखे हैं, वृक्ष पर सड़े फल लगे हैं। गाय व बछड़ा अलग-अलग हो गये हैं। सृष्टि की यह दुर्गति देखकर पार्वती जी दुःखी हो गईं उन्होने भगवान शिव से प्रकृति को ठीक करने की प्रार्थना की तब शिव जी ने कहा यह सब कार्तिक चौथ का व्रत न रखने के कारण हुआ है। पार्वती ने वचन दिया कि वे व्रत रहेंगी। प्रकृति ठीक हो गई, किन्तु पार्वती जी व्रत रखना भूल गईं।
इस प्रकार कई साल बीत गये। शिव जी के पूछने पर वे झूठ बोली कि उनका व्रत हैं। शिव जी अर्न्तदयामी थे सब समझ गये। तब पार्वती ने क्षमा माँगी और व्रत रखना प्रारम्भ किया। तब भगवान शंकर ने कहा तुम यह व्रत संसार मे बाँट दो जिससे सुहागिन स्त्रियों के सौभाग्य मे वृद्धि होगी। इस प्रकार संसार मे करवा चौथ जैसा उत्तम फलदायी व्रत रखा जाने लगा। द्रोपदी ने श्री कृष्ण के बताये अनुसार यह व्रत रखा जिससे अर्जुन का अनुष्ठान निर्विध्न सम्पन्न हुआ।
संदर्भ-
बुंदेलखंड दर्शन- मोतीलाल त्रिपाठी ‘अशांत’
बुंदेली लोक काव्य – डॉ. बलभद्र तिवारी
बुंदेलखंड की संस्कृति और साहित्य- रामचरण हरण ‘मित्र’
बुंदेली लोक साहित्य परंपरा और इतिहास- नर्मदा प्रसाद गुप्त
बुंदेली संस्कृति और साहित्य- नर्मदा प्रसाद गुप्त
सांस्कृतिक बुन्देलखण्ड – अयोध्या प्रसाद गुप्त “कुमुद”