Chandel Kal Men Lok Devta चंदेल काल में लोक देवता

आल्हाखंड या आल्हा गाथाओं, कारसदेव की गोटों, कजरियन के राछरों, गहनई आदि में Chandel Kal Men Lok Devta – लोकदेवों के उल्लेख किये गए हैं । आल्हा की हर गाथा का प्रारम्भ स्थानीय देवियों और देवताओं से होता है और आज उनकी सूची कुछ बड़ी हो गयी है । अल्हैत जहाँ आल्हा गाता है, वहाँ के लोकदेवों को भी सम्मिलित कर लेता है । तत्कालीन देवों में मनियाँदेव, चण्डिका देवी, भैरवबाबा, मैहर की शारदा देवी आदि प्रमुख रहे हैं ।

कारसदेव की गोटों में कारसदेव को शंकर का अवतार माना गया है, जिससे महादेव शंकर की महत्ता सिद्ध होती है । गहनई नामक लोकगाथा में कन्हैया तो ग्वाल मात्र हैं, लेकिन पिपरी के भैरमा (पीपल या पिपली ग्राम के भैरव) प्रमुख लोकदेव हैं । इन सबसे स्पष्ट है किइ स युग में महादेव शिव ही थे और उनका भैरव एवं चण्डिका आदि का संहारकारी रूप ही तत्कालीन परिस्थितियों के अनुरूप होने के कारण अधिक लोकप्रिय हुआ ।

 महोबा के मनियाँदेव मणिभद्र यक्ष थे, जैसा कि पहले ही स्पष्ट किया जा चुका है । यक्ष और शिव का देवयुग्म दीर्घकाल तक चलता रहा एक तरफ शिव के साथ गौरा (पार्वती), कार्तिकेय, गणेश, गंगा, चन्द्र, नाग, भूत, पिशाच आदि का पूरा परिवार था तो दूसरी तरफ विष्णु, लक्ष्मी, सूर्य, भुवदेवी आदि देव थे । खजुराहो के मंदिरों में अनेक लोकदेव उत्कीर्ण किये गये थे ।

शाक्त मतों के प्रसार से जहाँ शिव के साथ शक्ति और अर्धनारीश्वर का विकास हुआ, वहाँ अनेक प्रकार की देवियाँ, योगनियाँ और यक्षणियाँ प्रकट हुईं । अघोरी, औघड़ बाबा, कनफटा, नाथ बाबा जैसे स्थानीय देवता मान्य हो गये । देवियों के स्थानीय विग्रह इसी युग में बने । आसमाता, शीतलामाता, नवमी माता, लक्ष्मी, दुर्गा आदि आवश्यकतानुसार उदित हो गयीं । चंदेलों की समृद्धि का आधार कृषि था, इसीलिए उन्होंने इस ऊबड़-खाबड़ अंचल को सरोवरों से पूरित कर दिया था ।

कृषिकेन्द्रित पूजा इसी समय महत्त्वपूर्ण बनी । उदाहरण के लिए, चंदेल – चौहानों के युद्ध वर्णन में कजरियाँ या भुजरियाँ खोंटने की घटना लोकप्रसिद्ध है । कहा जाता है कि रक्षाबंधन के पहले चौहान सेना ने महोबा के दुर्ग को घेर लिया था और चंदेलनरेश परमर्दिदेव (परमाल) की पुत्री चंद्रावलि को कजरियाँ खोंटना (तोड़ना) मुश्किल हो गया था । तभी ऊदल ने आकर कजरियाँ खुटवायी थीं ।

आल्हा गाथा में इस युद्ध को कजरियों या भुजरियों की लड़ाई कहा गया है। इस ऐतिहासिक घटना से स्पष्ट है कि सावन शुक्ल की तीज (हरयाली तीज), कजरी नवमी, गाजबीज आदि ( भादों के माह में ) में फसल के हरे-भरे होने का आनन्द और फसल की समृद्धि की देवी तथा फसल को नष्ट करने वाले ओले, गाज आदि पूजे जाते हैं ।

पहले में फसल अच्छी होने का उत्साह है, दूसरे में नवें बाई के नौ कोठा फसल से भरने की पूजा और तीसरे में अनिष्टकारी तत्त्वों से बचने के लिए उनकी पूजा की भावना है । गाय-बछड़े और हल की पूजा भादों और कार्तिक की द्वादशी तथा गंगा दशहरा भी उसी परिधि में आती है । बट और सूर्य की पूजा पहले से प्रचलित थी । वायु और जल तो आदिवासियों के समय से ही चले आए हैं ।

संदर्भ-
बुंदेलखंड दर्शन- मोतीलाल त्रिपाठी ‘अशांत’
बुंदेलखंड की संस्कृति और साहित्य- रामचरण हरण ‘मित्र’
बुंदेली लोक साहित्य परंपरा और इतिहास- नर्मदा प्रसाद गुप्त
बुंदेली संस्कृति और साहित्य- नर्मदा प्रसाद गुप्त

शिव काल में लोक देवता 

admin
adminhttps://bundeliijhalak.com
Bundeli Jhalak: The Cultural Archive of Bundelkhand. Bundeli Jhalak Tries to Preserve and Promote the Folk Art and Culture of Bundelkhand and to reach out to all the masses so that the basic, Cultural and Aesthetic values and concepts related to Art and Culture can be kept alive in the public mind.
RELATED ARTICLES

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Most Popular

error: Content is protected !!