बुंदेलखंड क्षेत्र के चित्रकूट जिले में लालापुर गाँव के जंगलों में बुद्धिस्ट अवशेष बिखरे पड़े हैं। वहीं से एक वोटिव स्तूप Votive Stupa की झलक है। तथागत की अनेक आकृतियाँ उकेरे ऐसे वोटिव स्तूप न सिर्फ भारत में बल्कि एशिया के कई देशों में मिलते हैं। भगवान बुद्ध के महापरिननिर्वाण के बाद उनके अस्थि अवशेष पर स्तूप बनाए गए थे। बाद में अशोक ने 84 हजार स्तूप बनवाए थे।
आइए हम गर्व करें अपनी धरोहर पर क्योंकि हमारे चित्रकूट जिले के लालापुर गाँव में लगभग 2200 साल पुराने बौद्ध विरासत के अवशेष बिखरे पड़े हैं जो एक बहुत बड़े प्राचीन बौद्ध तीर्थ स्थल होने की ओर इंगित करते हैं जिनकी खोज हाल ही में की है।
बिहार के प्रसिद्ध इतिहासकार व प्रोफेसर डॉ राजेंद्र प्रसाद सिंह जी के अनुसार यहाँ खोजे गए भगवान गौतम बुद्ध के प्राचीन मंदिर के अवशेष अतिमहत्वपूर्ण हैं क्योंकि यह एक अंतरराष्ट्रीय खोज है ऐसे ही बौद्ध वोटिव स्तूप Votive Stupa ,जर्मनी देश के बर्लिन शहर के इथ्नोलोजिकल म्यूजियम में रखे हुए है अत: प्रोफेसर डॉ राजेंद्र प्रसाद सिंह जी ने मेरी इस खोज की तुलना विदेशों में मौजूद बौद्ध विरासत के अवशेषों की हैं जिससे इस विरासत की महत्वता का पता चलता है ।
क्या होता है वोटिव स्तूप ?
वोटिव स्तूप मन्नत का चढ़ावा होता है। इसे संकल्पित स्तूप भी कहते हैं। इसमें किसी प्रकार की वस्तु या धातु अवशेष नहीं रखा जाता। किसी की मन्नत पूरी होने पर या इच्छित वस्तु मिलने पर उपासक बड़े स्तूप के चारों ओर इसे बनवाते थे।
पवित्र बोधी वृक्ष की भांति पूजनीय हैं यह वोटिव स्तूप जिस प्लेटफार्म पर स्तूप बना रहता है, उसे संसार का प्रतीक माना जाता है। स्तूप के अंदर भगवान बुद्ध ज्योर्तिमय ब्रह्म के रूप में विराजमान होते हैं।
चीनी यात्री ह्वेनसांग ने अपने यात्रा में वोटिव स्तूप की जानकारी दी थी। स्तूप पूजा का आरंभ सम्राट अशोक के काल में शुरू हो चुका था। अशोक के बाद शुंग काल में भी स्तूप बनने लगे। उस समय की शिल्पकला में भी इसका चित्रांकन मिलता है।
इसकी पवित्रता व आध्यात्मिक महत्व को देखते हुए बाद में बौद्ध उपासक अपनी मन्नत पूरी होने पर स्तूप बनवाकर मुख्य स्तूप के चारों ओर रखने लगे। इन्हें ही वोटिव स्तूप कहते हैं। मूर्तिकला के विकास से पहले प्रतीक चिह्नों की पूजा की परंपरा थी।
हमारे चित्रकूट के लालापुर गांव में इस वोटिव बौद्ध स्तूप का निर्माण मौर्य वंश का सबसे प्रतापी शासक अशोक सम्राट ने ही करवाया था ऐसी संभावना जताई जा रही है!
प्रथम खोजकर्ता एवं लेखक:- नीरज मिश्रा, लालापुर (चित्रकूट)