तोरो मन पापी तन नौनों, एक भांत में दोनों।
मन से रात अन्देश सबई कोउ, तन को मचो दिखोनों
मत माटी की मोल कदर कर,तन की कीमत सोनों।
ईसुर एक नोन बिन सबरे, लगत व्यंजन रौनों।
दीपक दया धरन को जारौ, सदा रात उजियारौ।
धरम करे बिन करम खुलै ना, जों कुंजी बिन तारौ।
समझा चुके करें न रैयो, दिया तरे अंधियारौ ।
कात ईसुरी सुनलो प्यारी, लग जै पार निवारौ।
महाकवि ईसुरी ने हमेशा सतकर्म की बात कही है। वे कहते हैं कि कभी किसी से धोखेबाजी नहीं करनी चाहिए।