Subah Ka Bhula सुबह का भूला

सुबह का भूला Subah Ka Bhula  हुआ यदि शाम तक घर लौट आये तो उसे भूला नहीं कहतेगोपाल नगर में आलोक तथा विवेक दो मित्र रहते थे । दोनों एक ही कक्षा में पढ़ते थे । आलोक का मन पढ़ने में नहीं लगता था। उसके माता पिता जब भी पढ़ने को कहते दो घड़ी के लिए पुस्तकें खोलकर बैठ जाता। उनके ओझल होते ही शैतानियाँ शुरू कर देता । घर में छोटे बच्चों को तथा बाहर सहपाठियों को तंग करना उसे अच्छा लगता था। वह कई बार बहाने बाजी कर स्कूल से बाहर चला जाता ।

अपने ऐसे ही दोस्तों के साथ प्रायः दिन गवाँ कर शाम को घर लौटना । उसे कौन समझाये कि अपनी इन आदतों से आलोक परीक्षा में सफल नहीं हो सकता । उसका साथी विवेक एक समझदार तथा पढ़ने लिखने में होशियार बालक था। वह माँ बाप की आशाओं का तारा था वह अपने गुरुजी का सम्मान और आज्ञा पालन करता था।

उसे आलोक की आदतें बिलकुल पसन्द नहीं थीं । वह हमेशा आलोक को समझाता रहता था “भैया” शैतानियाँ बन्द करके पढने की आदत डालो। इस तरह माता पिता को कब तक धोखा देते रहोगे? जब परीक्षा में फेल हो जाओगे तो अपनी करनी याद आयेगी।  परन्तु आलोक के कानों पर तनिक भी जूं नहीं रेंगती ।

विवेक की बातें सुनकर आलोक कहता ‘जा-जा अपना उपदेश अपने पास रख । मुझसे पढ़ना बढ़ना नहीं होता फिर भी मुझे’ कोन फैल करेगा? एक दिन आलोक स्कूल से घर की ओर चला। पीछे पीछे विवेक भी बगल में कापी किताबे दबाये चल पडा। विवेक ने देखा कि आलोक की अल्हड़ चाल से मार्ग में एक बुढ़िया गिर गयी और आलोक ने उस ओर तनिक ध्यान भी नहीं दिया । विवेक ने दौड़कर बुढ़िया को उठाया । उसे चोट लग गयी थी और उसका सामान भी बिखर गया था । बुढ़िया ने विवेक को ढर सारे आशीर्वाद दिये । उसे क्या पता कि किसी लड़के ने जानबूझकर धक्का मारा था।

विवेक ने आलोक से कहा-आलोक ! तुमने बिना बात उस असहाय बुढ़िया को धक्का दे दिया । ऐसी शरारतों से भला तुम्हें क्या मिल जाता है। आलोक ने जवाब दिया मुझे कुछ मिले या न मिले तुम मेरी राह में हर जगह टांग अड़ाने क्यों पहुँच जाते हो? विवेक को आलोक का यह उत्तर अच्छा नहीं लगा। बेचारा चुप रह गया । आलोक के डर से वह उसके माता पिता से भी कहने की हिम्मत न कर सका। विवेक कभी नहीं चाहता था कि उसका एक मित्र सबकी निन्दा का पात्र बने।

परीक्षा के दिन सिर पर मंडरा रहे थे। आलोक पास होने की तरकीबें सोच रहा था। परीक्षा में फेल होने पर वह अपने पिताजी को क्या मुह दिखायेगा? उसकी समझ में कुछ नहीं आ रहा था। आये भी कैसे, पूरे साल जो मौजमस्ती में बिताये थे अब पछताये होत क्या जब चिड़िया चुग गयी खेत।

आलोक के पास परीक्षा पास करने के लिए नकल के अलावा कोई चारा नहीं रह गया । रात भर नकल के कई पूर्जे बनाये और प्रातः काल परीक्षा में जा बैठा। गुरूजी ने कई बार चेतावनी दी परन्तु आलोक ने उनकी बातों पर कोई कान नहीं दिया। अन्ततः उसे परीक्षा से निकाल दिया गया। गुरूजी की ओर गुर्राते हुए वह कमरे से बाहर चला गया।

कहा गया है खाली दिमाग शैतान का घर । आलोक ने उसी दिन से गुरुजी को सबक सिखाने की ठान ली थी। वह मौके की तलाश में था। परीक्षाफल जो होना था वही हुआ विवेक प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण हो गया । आलोक और उसके संगी फेल हो गये जब विवेक उसे सान्त्वना देने पहुंचा तो आलोक ने उसे बहुत जली भुनी सुनाई।

उस दिन आलोक स्कूल के फाटक के पास ही छिपकर बैठ गया । गुरुजी निकले तो उसने बिना सोचे विचारे उन्हें एक पत्थर दे मारा । उन्हें सिर में चोट लग गयी। खून बहने लगा आलोक भाग गया। परन्तु इस घटना की सूचना गुरुजी ने न तो प्रधानाचार्य को दी, न थाने में रिपोर्ट लिखायी न ही इसके बारे में कोई शिकायत आलोक के माता पिता से की।

वह पटटी बंधवा कर चुपचाप घर चले गये । परन्तु इस काण्ड की खबर मिलते आलोक के माता पिता को देर न लगी । आलोक के माता पिता एक ओर उसके फेल होने से तो दुखी थे ही इस घटना से वे शर्मिन्दा भी हुए। वे आलोक को लेकर गुरू जी के घर पहुंचे। उन्होंने देखा कि विवेक वहां पहले से ही उनकी सेवा में लगा हुआ है। उन्होने सोचा काश  आलोक भी विवेक जैसा ही  पुत्र हुआ होता । उन्होने गुरू जी से कहा हम लोग अपने पुत्र की करनी पर बहुत शर्मिंदा हैं , हम  आलोक को आपके पास लाये है। आप चाहें इसे जो सजा दीजिये इसने तो हम लोगों की नाक कटा दी।

गुरुजी ने भाव विह्वल होकर कहा नहीं नहीं आप लोग उसे  बेकार यहाँ लाये हैं। उसने कुछ भी नहीं किया है। किसी की नादानी का दोष है । आलोक एक अच्छा और होनहार लडका है । गुरुजी की ये बात सुनकर आलोक का मन पश्चाताप से भर गया। वह सोचने लगा गुरुजी कितने महान हैं और मैं कितना नीच हूँ । मेरे द्वारा चोट खाकर भी वह मुझे निर्दोष ही बता रहे हैं।

वह फूट फूट कर रोने लगा- गुरुजी मुझे क्षमा करें, मैने ही आपको पत्थर मारा है। उस समय मुझे जाने क्या हो गया था? मेरे हाथ कटकर क्यों नहीं गिर गये। उसकी आँखों से आंसू बह रहे थे। उसके माता पिता सिर झुकाये बैठे थे। गुरुजी ने उठकर आलोक को सीने से लगा लिया उसकी पीठ पर सहलाते हुए उन्होंने कहा, आलोक बेटे ! तू तो बहुत अच्छा लड़का है। आज तूने अपनी गलती स्वीकार कर पश्चाताप कर लिया है। मैंने तुम्हे सचमुच क्षमा कर दिया।

हिचकियाँ भरते हुए हाथ जोड़कर आलोक ने कहा, “गुरुजी’! यह मेरे जीवन की आखरी शरारत थी अब मैं  कभी शैतानी नहीं करूंगा। विवेक की भांति अब मैं भी जी जान से पढूंगा ग ‘काश पहले ही मैंने विवेक की बातों पर ध्यान दिया होता। गुरुजी की बांहों से छूटकर आलोक जाकर विवेक के गले लग गया। विवेक की आंखों में भी आंसू छलछला आये।

गुरुजी ने कहा हाँ बेटे ! अब तुम पढ़ना और होनहार बालक बनकर सबको दिखा देना । अच्छे लड़कों की संगति का फल अच्छा होता है। विवेक भी तो तुम्हारा दोस्त ही है प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण हुआ है। देखो, Subah Ka Bhula  हुआ यदि शाम तक घर लौट आये तो उसे भूला नहीं कहते, क्या समझे ?” आलोक के माता पिता को इस बात से बेहद खुशी हुई कि उनका बिगड़ा बेटा सुधर गया। वे गुरुजी से क्षमा मांग कर विवेक के गुणों व गुरुजी की चर्चा करते हुए घर लौट आये।

लेखक- डॉ. राज गोस्वामी (दतिया) म.प्र.

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