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Sagar Par Ki Ladai – Kathanak  सागर पार की लड़ाई-कथानक

सागर  द्वीप  राजा मदन महिपाल ने अपनी पुत्री चंपाकली के विवाह के समय Sagar Par Ki Ladai बनाफर ऊदल-आल्हा के साथ हुई । सागर के एक द्वीप में राजा मदन महिपाल ने अपनी पुत्री के विवाह का टीका भेजा, जिसे किसी राजा ने स्वीकार नहीं किया। नेगी टीका लेकर महोबे पहुँचा। ऊदल ने आल्हा से कहा कि अपने छोटे पुत्र भयंकर राय के लिए टीका ले लो। टीका स्वीकार करके बरात के लिए न्योते भेज दिए। समय पर सब राजा तैयार होकर आ गए, परंतु जब पता चला कि समुद्र पार जाना है तो सब के सब वापस चले गए।

ऊदल-आल्हा ने अपने परिवार के अतिरिक्त साठ वीर साथ ले लिये और महिपाल के राज्य को चल पड़े। अपने उड़नेवाले घोड़ों की सवारी करके पहुँच गए, फिर रूपन वारी को भेजकर सूचना भिजवाई। जादू की नगरी होने के कारण गुरु अमरा को भी साथ ले गए। रूपन ने नेग में तलवारबाजी माँगी तो राजा ने जादू से उसे बंदर बना दिया।

लौटकर अपने खेमे में गया तो रूपन सबको बंदर दिखाई पड़ा। गुरु अमरा ने उसे फिर मनुष्य बना लिया। अब उधर से फौज लड़ने को आ गई। महोबे के वीरों ने सागर की फौज को मारकर भगा दिया। फिर राजा ने ऊदल को बुलवाया और कहा, “विवाह से पहले वीरता दिखा दो।” मदन राजा ने जादू से सबको मुर्गा बना दिया।

गुरु अमरा ने उस जादू की भी काट कर दी। गुरु अमरा को लगा कि माता विंध्यवासिनी की सहायता लेनी जरूरी है। अतः उड़ने घोड़े पर सवार होकर माता के मंदिर पहुंचा। वहाँ उनके गुरु औढ़रनाथ मिले। सारी बात समझकर उन्होंने भस्म की दो पुडिया दीं। गुरु अमरा ने पुडिया की भस्म उन पर डाली तो सब ठीक हो अपने रूप में आकर खड़े हो गए। दूसरी चुटकी मदन राजा पर फेंकी तो वह सीधा हो गया।

आल्हा ने कहा कि हमने ऐसा जाना होता तो हम जादूगरों का टीका कभी स्वीकार न करते। मदन महिपाल ने कहा, “बुरा मत मानो। आप वीर हैं। हमने सिर्फ अपनी विद्या दिखाई है। आपके पुत्र के साथ भाँवर डालने में हमें खुशी होगी। आप गहनों का डिब्बा भेजो, हम बेटी को तैयार करवाते हैं।”

ऊदल ने फिर रूपन को भेजकर गहनों का डिब्बा वहाँ भिजवा दिया। दुलहन चंपाकली सज-सँवरकर तैयार हो गई। दूल्हा और दुलहन की विधिवत् भाँवर डाल दी गई। मदन महीपति ने बरात विदा करते हुए एक विमान भी दिया, जिसे महोबे पहुँचकर वापस भेजना था। विमान सबको लेकर महोबे के लिए उड़ चला।

शरारत के बिना कोई कार्य सरलता से हो जाए, यह माहिल को सहन नहीं। माहिल सागर राजा हीरासिंह के पास पहुँचा। उसने हीरा सिंह को समझाया। आल्हा-ऊदल के साथ केवल साठ जवान हैं। इनको घेरकर मार गिराओ। दुलहन और विमान छीन लो। सब राजाओं पर तुम्हारा रोब जम जाएगा। इतनी सुंदर बहू और कहीं नहीं मिलेगी।

राजा हीरा सिंह ने माहिल की सलाह से एक हरकारा ऊदल के पास भेजा और संदेश दिया, “आराम से चंपाकली को हमें दे दो, नहीं तो कोई जिंदा नहीं जाएगा।” फिर तो युद्ध होना ही था। भारी युद्ध हुआ। डोला भी घेर लिया, तब डोले में से चंपाकली ने कहा, “आप लोग डरें नहीं। अब मैं अपनी विद्या प्रयोग करती हूँ।”

चंपाकली ने जादृ मारा तो सारी फौज अचेत हो गई। हीरा सिंह भाग गया। जादू का प्रभाव तीन दिन तक रहा, फिर सब ठीक हो गए। आल्हा-ऊदल अपने परिवार तथा डोले के साथ महोबा पहुँच गए। रानी मल्हना ने सबको बुलाकर स्वागत किया और मंगलगीत करवाए। इस प्रकार भयंकर राय का विवाह संपन्न हुआ।

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