जो सच्चे गुरू होते हैं वही सच्चे तपस्वी होते हैं ऐसे गुरू ढोंगी नहीं होते वे हमेशा परिश्रम में विश्वास करते हैं । स्वामी सत्य मित्रानन्द जी जैसे Sachche Guru Ka Updesh हमेशा फलदाई होता है, प्रेरणादाई होता है। समाज के उथ्थान मे ऐसे गुरूओं की अहम भूमिका होती है।
संजय एक बड़ा ही बुद्धिमान एवं पढ़ने वाला विद्यार्थी था । परीक्षा में उसकी प्रथम श्रेणी आती थी। वह खूब मेहनत करके पढ़ाई करता था। उसका एक मित्र राजू भी था । जो ज्योतिषीयों के चक्कर में पड़ा रहता था। राजू ने एक दिन संजय से कहा-शहर में एक बड़े ही विद्वान ज्योतिषी आये हुए हैं। वे हस्त रेखा देखकर लोगों के बारे में सत्य भविष्य वाणियाँ करते हैं। चलो तुम्हें उनके दर्शन करावा देता हूं ।
संजय हाई स्कूल की परीक्षा दे चुका था उसने सोचा दर्शन करने में क्या हर्ज है वह तुरन्त ही चल दिया। शहर के बीचों बीच सीताराम हलवाई की दुकान पड़ती थी। संजय ने राजू के कहने पर हलवाई की दुकान से एक किलो मिष्ठान खरीद लिया और ज्योतिषी जी के पास पहुच गया । राजू ने संजय का परिचय ज्योतिषी जी से कराते हुए कहा-महाराज यह मेरा दोस्त संजय है अच्छा लड़का है, ज्योतिषी जी बोले यह किस कक्षा में पढ़ता है?
इसने इसी वर्ष हाई स्कूल की परीक्षा दी है यह अपना परिणाम जानने को उत्सुक है । ज्योतिषी जी गम्भीर मुद्रा में बोले संजय हम जो भी कहेंगे सच सच कहेंगे तुम घबराओगे तो नहीं संजय ने कहा बताईये मैं सुनने को तैयार हूं। ज्योतिषी ने कहा संजय ! तुम्हारे दिन आजकल बहुत ही खराब चल रहे हैं । शनि ग्रह परेशान कर रहा है । तुम्हारे उपर भयँकर संकट आने वाला है। संजय घबराकर बोला-तब क्या होगा महाराज।
ज्योतिषी ने कहा कुछ नहीं होगा शनि ग्रह को शान्त करना पड़ेगा । उसके लिए तुम्हें खर्च करना पड़ेगा । शनि व्यय कारक है । प्रसाद की व्यवस्था भी करना पड़ेगी। संजय ने कहा-महाराज मैं एक किलो मिष्ठान लाया हू क्या इससे शनि ग्रह की शान्ति हो सकेगी? ज्योतिषी ने कहा हां शान्ति हो सकती है परन्तु पूर्णरूपेण नहीं ।
तुम्हें शनि ग्रह की शान्ति के लिए ५ किलो जलेबी १० किलो मखाने, १०० नारियल और कुछ कलदारों की व्यवस्था करनी होगी। अगरबत्ती की व्यवस्था मैं स्वयं कर लूगा। लेकिन हां यह ध्यान रखना कि यह बात किसी से न कहना । राजू ने भी ऐसी ही शाँति कराई है अब देखना यह अपने प्रदेश में सबसे ज्यादा नम्बर लाकर उत्तीर्ण होगा खूब नाम होगा इसका चारों ओर ।
तुमने शनि की शांति नहीं कराई तो तुम्हारी खूब बदनामी होगी। सब मजाक उड़ायेगे और विद्यालय से भी जाओगे।संजय ज्योतिषी की बाते सुनकर चिन्ता में सोचने लगा घर वालों से छुपकर ग्रह शान्ति के लिए अधिक व्यवस्था कैसे हो पाएगी । उसने अपने परिवार के गुरु स्वामी सत्या मित्रानन्द जी को सारी बात सुनाई। गुरू जी एक सच्चे तपस्वी थे वे ढोंगी नहीं थे और परिश्रम में विश्वास करते थे ।
गुरुजी ने कहा तुमने तो मेहनत लगन और ईमानदारी से पढ़कर परीक्षा दी है तुम निश्चित ही परीक्षा में सफल होग तुम्हें शनि ग्रह की शान्ति की कोई आवश्यकता नहीं कुछ दिनों पश्चात परीक्षा परिणाम घोषित होने पर संजय प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण हुआ। जबकि राजू को दो विषयों में पूरक परीक्षा देना थी। राजू ने तब उसी दिन से संजय से सीख ली और ज्योतिषियों की भविष्यवाणी पर निर्भर न रहकर स्वयं की मेहनत,लगन, ईमानदारी से किये गये कर्म को ही श्रेयस्कर माना।
बुन्देली झलक (बुन्देलखण्ड की लोक कला, संस्कृति और साहित्य)
लेखक – डॉ. राज गोस्वामी