बुंदेली चौकड़िया (पानी बरसत नइँयां)
जाने का हैं राम करइँयां , पानी बरसत नइँयां।
आईं नइँ जमड़ार जामनें , ससकन लगीं तलइँयां।
सूने लगें खेत फसलन बिन,डरीं न सगुन हरइँयां।
ई रित में नीके नइँ लगबें, चंदा और तरइँयां ।
भजन कीर्तन करत करत कइ,फूटे ढोल नगइँयां।
मना मना हारे प्रभु, माने , नईं सची के सइँयां ।
कब तक सुना परें घनघोरें, धरनीं धन के दोरें ।
बदरा नइँ बरसत सो बरसत, हैं पलकन कीं कोरें।
पीव पीव कीं करुन पुकारें , तन मन खों झकझोरें।
पानी बिन पानी सौ उतरो , का बांदें का छोरें ।
अब तौ बरस जाओ प्रभु रिमझिम,नचन लगें मन मोरें।
एक बुंदेली चौकड़िया
रिमझिम रिमझिम बुँदियां बरसें, हिया हमारे हरसें।
झूम झूम कें बदरा बिजुरी , बुँदी रसीली परसें।
आहत हते तपन के मारें , राहत मिली झकर सें।
मोद मगन मन सजनी साजन,निकर न पा रय घर सें।
लौट न पाए कमउआ जिनके, बेइ बिचारीं तरसें ।
चुनाव कौ तनाव
जब सें बने चुनाव में, प्रीतम पीठासीन।
छै छै रोटीं खात ते , खान लगे अब तीन।।
चौलें करत परौसनें, तौउ न बे मुसकात।
चिंता लगी चुनाव की, सोसन सूकत जात।।
थारी परसी खीर की , दव बूरौ बिरराय ।
आबै खबर चुनाव की, कौर न गुटको जाय।।
ऊसइ तन के दूबरे , मन में भौत तनाव।
जाने कैसें निपटने , अब की बेर चुनाव।।
घर घरनी तज लाम पै, जैसें जात जबान।
एइ भाव सें कड़ चले, करवाबे मतदान।।
जाव प्रेम सें नइँ करौ, मन में सोच विचार।
प्रभु खों चिंता सबइ की, बेइ लगाहें पार।।
बन गए इक दिन के अधिकारी, हुकुम मिलो सरकारी।
पोथी पढ़ पढ़ कें कर रय हैं , वोटन की तैयारी।
उनकी स्याम सलोंनी सूरत , पर गइ इकदम कारी ।
कभउँ कभउँ हँस बोल लेत ते, चिड़चिड़ात अब भारी।
आयँ उपद्री कैसें निपटें , जे भोला भंडारी ।
छत्रसाल जयंती के पावन अवसर पर
हे बुंदेला बीर बर सौ सौ बेर प्रनाम
राव साब भगवंत जू, कौ बिरधापन आव ।
उनने चंपतराय खों , गादी पै बैठाव ।।
राव महेबा नगर के , चंपतराय सुजान ।
चार चार रानी हतीं , रूप सील गुन खांन।।
जेठीं तीं भगवत कुँवर, हीरा कुँवर द्वितीय।
लाल कुँवर तीं तीसरी , लघु झलकन कमनीय।।
अपनन सें बड़ कें कभउँ , बैरी होत न और।
अपनन के मारें उनें , रैबे मिलो न ठौर।।
राजा रानी पै परी , कठिन मुसीबत आंन।
राव दुकत रय राए में , बन परबत रय छांन।।
लाल कुँवर हर हाल में , संगै रईं हमेस ।
हँसी खुसी के दिनन में , काटें कठिन कलेस।।
नुना महेबा के लिगां , बन इक मोर पहार।
जां जनमे जे बुँदेला , छत्रसाल सुकुमार ।।
उतरत मइँना जेठ कौ , तिथी तीज भृगुवार ।
सत्रा सौ छै विक्रमी , भुंसारे के पार ।।
ना साके ना सोहरे , मन में भौत मलाल।
लाल कुँवर लख लाल खों, होन लगीं बेहाल ।।
बने बने के होत हैं , नाते रिश्तेदार ।
दुरदिन में दव बैंन ने , दोरे सें दुतकार।।
बेटी एक कुम्हार की , पारबती तौ नाव।
छत्रसाल खों धरम कौ ,भइया तुरत बनाव।।
बचपन में झेलत रये ,संकट और अभाव ।
खेल सके ना खा सके , और न पढ़ लिख पाव।।
बे खुद दुखयारीं हतीं , सुत दुख देख न पाव।
सो कर्री छाती करी , मामा कें पोंचाव।।
आए दैलवारा जितै , की माटी है खास ।
छत्रसाल से बीर भए , खरे नराइन दास ।।
पलपुस कें स्यांने भए , छोड़ दई ननिहाल।
मात पिता के अंत सें , हो गय ते बेहाल ।।
करो आखरी काज बौ, लइ बदले की ठांन।
पै सुजान सिंह ककाजू, बात रये ना मान ।।
तेली मामा महाबली , बने दांयनों हाथ ।
तन मन धन सें दै रये , बुरये दिनन में साथ।।
अच्छे घोड़ा पांच लै , उर पच्चीस सिपाइ ।
दलन लगे अरि दलन खों, मारा मार मचाइ ।।
भले भाइ के रूप में , मिलो महान तुरंग।
जी के बल जीतन लगे , कम सैनिक सँग जंग।।
जां जां घोड़ा पग धरै , जीत लेय मैदान।
बैरी दल थर थर कँपै , भगत बचाकें जांन।।
ऐसीं टापें मारबै , जैसें झपटै बाज ।
को कैसें कां तक बचै , बिन बादर की गाज।।
छत्रसाल के नाव की , मचरइ भारी धूम ।
छुड़ा लई औरंग सें , अपनी प्यारी भूम।।
रन खेतन में मुगल के , कर दय खट्टे दांत।
जो मंदिर टोरत हते , टोर दये बे हांत।।
अपनन खों रय छत्र से, बैरी खों रय साल।
छत्रसाल के सामने , नबे सबइ के भाल।।
उनके उर उद्यान में , रस की परी फुहार।
बन गइँ जीवन संगिनी, देव कुँवर परमार।।
भारी सेना जोर कें , करो राज विस्तार।
ढाई दर्जन ब्याव भये , बावन राजकुमार।।
भऔ बुंदेली भूम पै , बुंदेलन कौ राज।
पन्ना रजधानी बनीं , छत्रसाल महाराज।।
पुत्र कामनी कामिनी , आई उनके पास।
आपइ सौ सुत चाउत हों, पूरी कर दो आस।।
हम सौ सुत कैसें मिलै ,मन में करौ विचार।
हमइँ तुम्हारे पुत्र हैं , मात करौ स्वीकार।।
प्राणनाथ प्रभु सें मिले, जां जे पहली बार।
देत गबाही शान सें , देखौ तिंदनी द्वार।।
मऊ सानियां टौरिया , मध्य भाग की भूम।
छत्रसाल के महल में , रई जग्ग की धूम।।
उतइ अकोंना ताल में , उठत उमंग हिलोर।
धरम धुजा फहरात रइ , पावन जोगन खोर।।
कवियन सँग कविता कही, करो सुधा रस पान।
कीरत के बिरवान खों , कभउँ न दव कुमलान।।
तन मन धन सें नित करो , कवियन कौ सनमान।
कवि भूषण की पालकी , धरी कँदा पै आंन ।।
चंबल जमना टोंस लों , उर रेबा के पार ।
छत्रसाल जू ने लऔ , अपनों राज पसार।।
दुरगा लछमी सरसुती , ने कृपा बरसाइ।
ज्ञान शक्ति धनधान्य में , तनकउ कमी न आइ।।
जैसौ सबकौ आत है , सो बिरधापन आव ।
बड़े कुटुम परिवार में , दिखन लगो बिखराव।।
छनक रई ना देह में , उठत न अब तलवार ।
भले भाइ सँग छोड़ कें , गय हैं सुरग सिधार।।
जगत राज के राज पै , बंगस करी चड़ाइ ।
ह्रदैसाह भइया बड़े , आए न सैन पठाइ ।।
छत्रसाल ई बात सें , भए भौत नाराज।
बंगस की ई फौज सें , कैसें बचहै लाज।।
उड़त चिरइया परख कें , देखो आव न ताव ।
तुरत पेसवा के इतै , जौ संदेश पठाव।।
जैसें हरि ने मगर सें , हाथी आंन छुड़ाव।
बाजी जात बुँदेल की , राखौ बाजी राव।।
आए पेसवा मदद खों , सैन मराठी संग ।
भारी दल बल देख कें , बंगस रै गव दंग।।
बुंदेलन की आंन पै , आंच दई ना आंन।
बंगस उल्टे पांव अब , छोड़ चलो मैदान ।।
छत्रसाल ने पेसवा , बेटा सौ लऔ मान।
दै कें हिस्सा तीसरौ , करो मान सनमान।।
ऐसी करनी कर चले , रैय जुगन तक नाम ।
नर नाहर वर बीर खों, सौ सौ बेर प्रनाम।।
छत्रसाल जयंती पर
लाल कुंवर के लाल, महाबली छत्रसाल
जेठ मास तिथि तीज ती, शुक्ल पक्ष भृगुवार।
सत्रह सौ छै विक्रमी ,भुंसारे के पार ।।
नुना महेबा के लिगां , मोर पहाड़ी ठौर ।
जां जनमे जे बुंदेला , छत्रसाल सिरमौर ।।
लाल कुंवर माता पिता , चंपतराय महान।
बीर बुंदेली भूम की , आन बान उर सान।।
बालापन में झेलरए , संकट और अभाव ।
सुख साके जाने नईं, और न पड़ लिख पाव।।
भले भले के होत हैं , नाते रिस्तेदार ।
दुरदिन में दऔ बैंन ने , दोरे सें दुतकार।।
बेटी एक कुम्हार की , पारबती तौ नाव।
छत्रसाल खों धरम कौ , भैया तुरत बनाव।।
तेली मामा महाबली ,बने दांयनों हाथ ।
तन मन धन सें देत रये, बर हमेस बे साथ।।
अच्छे घोड़ा पांच लये ,करी कुमुक तैयार।
दलन लगे अरि दलन खों , दइ मुगलन में मार।।
अपनन खों रये छत्र से , बैरी खों रये साल।
छत्रसाल के सामने ,नबे सबइ के भाल।।
उनके उर उद्यान में , रस की परी फुहार ।
बन गइं जीवन संगनीं , देव कुंवर परमार।।
फिर बुंदेली भूम पै , भऔ बुंदेला राज।
पन्ना रजधानीं बनीं , छत्रसाल महाराज ।।
पुत्र कामनी कामनी , आई उनके पास ।
सुत चाहत हों आप सौ, पूरी कर दो आस।।
हम सौ सुत कैसें मिलै, मन में करौ बिचार।
हमइं तुमारे पूत हैं , मात करौ स्वीकार।।
स्वयं हते कवि करत ते, कवियन कौ सतकार।
कवि भूषण की पालकी , लई कंधा पै धार ।।
जब तक सूरज चांद हैं , गंग धरनि आकास।
लाल कुंवर के लाल कौ, अमर रैय इतिहास ।।
नमामि देवी नर्मदे
नील कंठ व्याकुल हुए ,जग जगती रए छान।
शिखर अमरकंटक मिला,उनको शुभ स्थान।।
बूंद पसीना की गिरी , धारा कन्या रूप।
धन्य हुए पा शिव सुता, मैकल पर्वत भूप।।
माघ शुक्ल तिथि सप्तमी, सुखद सुहावन भोर।
हुई अवतरित नर्मदा , लेती हरस हिलोर ।।
पाकर मैकल तात की , वह मन भावन गोद।
उछल उछल रेवा करें , नित प्रति मनो विनोद।।
शोण भद्र को देख के , उर में उठी उमंग।
साथ साथ बहने लगी , तन में तरल तरंग।।
शोणभद्र सँग ब्याह की , पक्की कर दी बात।
मैकल पर्वत राज घर , सज के आइ बरात।।
पता हुआ हैं सेविका , जुहिला सँग संबंध ।
छोड़ा मंडप शोण से , तोड़ दिया अनुबंध।।
दिशा बदल कर नर्मदा , गइँ पश्चिम की ओर।
लुटा रहीं सुख संपदा , लेतीं हरस हिलोर ।।
पश्चिम वाहिनि नर्मदे , लहरें ललित ललाम।
मैकल तनया शिव सुता, शत शत बार प्रणाम।।
जिनकी पावन धार की, महिमा अमित अनंत।
रेवा की सेवा करौ , मेवा मिलै तुरंत।।
जो जन करें परिक्रमा , चुनरी चटक चढ़ायं।
कृपा नर्मदा जी करें , श्री वैभव यश पायं।।
जीवन रेखा नर्मदे , मन मोहक तट घाट।
ओंकारेश्वर महेश्वर , में दिखलातीं ठाट।।
गंगा में डुबकी लगा , होते भव से पार ।
करतीं दर्शन मात्र से , मां रेवा उद्धार।।
कहीं शांत चुपचाप सीं , कहीं मचातीं धूम ।
उछल उछल कर लहरियां, लेतीं तट को चूम।।
हर लेतीं हैं नर्मदा , सकल शोक संताप ।
मात्र नदी मत मानना , तात मात सब आप।।
विश्व पर्यावरण दिवस पर एक लोक शैली बद्ध रचना
पर्यावरण नसा नइं जाबै,जां तां बिरछ लगा लइयौ
जेइ बात सब सें कइयौ
बिरछन की है अदभुत माया, पर हित खों धारें हैं काया
देत मधुर फल सीतल छाया
ऐसे बिरछ काल जो काटत,उनें काट जिन पछतइयौ,जेइ बात
जे माटी खों कटन न देबें ,उर बादर खों फटन न देबें
पानी कौ तल घटन न देबें
जल बरसाबें मन हरसाबें,इनें रखा सुख सें रइयौ ,जेइ बात
जब सांउन कीं परत फुआरें,झूलन कीं रत अजब बहारें
झूमत बिरछ लचकतीं डारें
ऐसे नोंने दृश्य देख कें , अपने हियरा हरसइयौ ,जेइ बात
तुलसी पीर मिटाबे बारी ,बर कौ दूद बड़ौ बलधारी
करऔ नीम सबसें गुनकारी
हर्र बहेरे और आंवरे ,की महिमा खों समझइयौ ,जेइ बात
प्रांन बायु के सिरजन हारे,बिरछा जीवन मूर हमारे
हम सब खों प्रानन सें प्यारे
जे प्रदूसन दूर करत प्रभु , इनके प्रांन बचन दइयौ,जेइ बात
विश्व तम्बाकू निषेध दिवस पर कुछ दोहे
रासभ भी मुख फेर ले , करता नहीं पसंद।
खाते पीते शौक से, तंबाकू मति मंद ।।
प्रकृति ने हमको दिए , हैं अनंत उपहार ।
फिर फैलाता हाथ क्यों, तंबाकू को यार।।
तंबाकू से पनपते, दमा यक्ष्मा रोग।
जान बूझ कर भी इसे , क्यों करते उपयोग।।
अभी समय है चेत लो , तंबाकू दो छोड़ ।
जीवन भर पछतायँगे , आयेगा वह मोड़।।
जीवन का सुख चाहते , यदि लेना भरपूर।
इस तंबाकू से रहें, प्रियवर कोसों दूर।।
जेठ मास के जे दिन तौ
पानी में आग लगा रए
कुंअन बावरिन और तलन के,तल दिन पै दिन घट रए
दूर दूर तक फैले ते बे, बंदा सोउ सिमट रए
जितै न पोंचें भांन आज बे,तलघर हमें पुसा रए
जेठ मास के जे दिन तौ , पानी में आग लगा रए
खिसयाने खग की किरनें, खूबइ खरयाट मचारइं
पैंने बांनन सीं गड़रइं सो, तन पै नइं सइं जारइं
झूम झकोर झकर चल रइ है, बगड़ूरे उबरारए
जेठ मास के जे दिन तौ , पानी में आग लगा रए
झर्रा उठी प्यास सो बन में, तलफत हिरनी हिरना
मृग मरीचिका से दिखात हैं, दूर झील उर झिरना
कल नइं परै उमस के मारें , सांसें लेत हंपारए
जेठ मास के जे दिन तौ, पानी में आग लगा रए
बरसत आग तबा सी तपरइ, धरनीं धन की छाती
बैर बिसर सब संग बिचररए, गउ नाहर मृग हाती
फैले मोर पंख के नैचें , नाग दुपर बिलमारए
जेठ मास के जे दिन तौ , पानी में आग लगा रए
जितनी अबै अगन जा बरसै , फिर उतनउं जल बरसै
तप रए तपा तपन तुम सै लो, पाछें हियरा हरसै
प्यारी प्यारी बातन में पिय , प्यारी खों भरमारए
जेठ मास के जे दिन तौ, पानी में आग लगा रए
बुंदेली पर्व अकती,एक चौकड़िया
अतीत की झलक
हिलमिल अकती खेलन जारइं, कैसी धूम मचारइं।
जे बांकीं बुंदेली बिटियां ,पग पग रस बरसारइं।
बचपन कीं सखियन सें मिल कें,फूलीं नईं समारइं।
छेवले के नए नए पत्तन सें ,रुच रुच सोंन बनारइं ।
टोंटीदार डबुलिया सें जल , फूले देउल चड़ारइं ।
बर खों पूज लगा परकम्मा,भेंटत मिलत दिखारइं।
जिनके मेले डरे लिबउआ ,बे प्रभु खेल न पारइं ।
वर्तमान स्थिति
कठिन करोंना काल में,जा आफत गइ बीद।
ना अकती अकती लगै, ईद लगै ना ईद ।।
अब सब रोज मुसीबत झेलें ,कैसें अकती खेलें।
कपटी कुटिल कसाइ करोना,दयं खरयाट अकेलें।
ई के मांयं पनप नइं पारइं ,खोंट खाइं नइं बेलें।
नजर कैद सौ करो सबइ खों,बखरीं बन गइं जेलें।
आउंन लगीं तीं जो पटरी पै , फिर रुकवा दइं रेलें।
कृपा करें लच्छमी मइया ,बेइ बिपत जा ठेलें ।
महिसासुर मरदिनी मैया कौ प्राकट्य
वीर छंद
रिसि बोले कै देव दइतन में,जुद्ध भऔ पूरे सौ साल।
इंद्र हते देवतन के स्वामी ,महिसासुर दानों रछपाल ।
बड़े लड़इया उन दइतन सें,देवतन की सेना गइ हार।
सुरग लोक पै महिसासुर ने,कर लऔ तौ अपनों अधकार।
सबइ देवता जुर ब्रह्मा संग,हरि हर चरन सरन में आंन।
अपनी हार और बैरी के ,छल बल कौ कररए बखान।
महिसासुर ने पवन अगन जम,सूरज चंदा दए निकार।
सुरग लोक के स्वामी इंदर, इंद्रासन सें दए उतार ।
मारे मारे फिरत धरन पै ,हम सब जन मानस की नांइं।
कुटिल कुचाली राकछसन कीं,सब करतूतें आन सुनाइं।
जुर मिल कें हम सबइ देवता,चरन सरन में आगए आज।
उयै मार कें हमें बचालो , फिर सें मिलै सुरग कौ राज ।
सुन कें दीन बचन देवतन के,श्री हरि बिस्नु और त्रिपुरार।
भरे रोस में भोंहें तन गइं ,आंखन सें बरसें अंगार ।
ब्रह्मा बिस्नु और सिब मुख सें,छूटी तेज क्रोध की ज्वाल।
ओइ समय देवतन के तन सें,निकरन लगो तेज ततकाल।
बे सब तेज मिले आपस में ,होन लगे हैं एकाकार ।
जी की दमक सही ना जाबै, तेज पुंज कौ खड़ो पहार।
लपटें उठरइं दसउ दिसन में,दूर दूर तक लगीं दिखान।
तेज पुंज के झक्काटे ने , नारी रूप धरो है आन ।
सिब कौ तेज बनो देबी मुख,जम कौ तेज बने हैं बाल।
बिस्नु तेज सें बनीं भुजाएं , चंद्र तेज सें उरज बिसाल।
इन्द्र तेज सें छीन कमरिया ,कौ कैसे कें करें बखान ।
बरुन देव कौ तेज समानो ,जांगन उर अड़ियन में आंन।
नासा बनी कुबेर तेज सें ,पिरजापती तेज सें दांत ।
अगन तेज सें तींनउं नैंनां , जिनकी सोभा कही न जात।
संजा तेज बनीं दोउ भोंहें,पवन तेज सें बन गए कान ।
सब देवतन कौ तेज समानो,देबी ठांड़ीं लगीं दिखान ।
देखो दिब्ब रूप देबी कौ ,देवता फूले नईं समाएं ।
सिब संकर तिरसूल देत हैं,श्री हरि बिस्नु चक्र गहाएं।
शंख बरुन ने सक्ति अगन ने,दै रए पवन धनुस उर बांन।
ऐराबत हाती कौ घंटा ,बज्र इन्द्र ने करे प्रदान ।
सूरज देव ने तेज भरो है, अंग अंग में अपरम्पार ।
महाकाल ने दई ढाल के ,संगै चमचमात तलवार।
छीर समुन्दर अर्ध चंद्रमा,दिब्ब बसन हीरन के हार।
हंसुली चूड़ामणि बाजूबंद ,पेंतीं बिछिया सब सिंगार।
रतन अमोलक दये हिमंचल,सिंघा दऔ होबे असवार।
मधुरस कलस कुबेर देत हैं,सेसनाग मनियन कौ हार ।
सब देवतन ने गाने गुरियन, के संग भेंट करे हथयार ।
मान पान पा कें देबी ने ,ऊंचे सुर में भरी हुंकार ।
धरनीं सें लै कें अकास तक,गेरउं गूंज गई गुंजार ।
कपरइ धरन डोल रए परबत,उठन लगे सागर में ज्वार।
रिसि मुनियन के मन सें उनने,सबरे डर दए दूर निकार।
महिसासुर मरदनि मैया की,होन लगी है जै जै कार।
होन लगी है जै जै कार ,देवता कर रए जै जै कार ।
जग जीतन रितुराज आए हैं
लैकें धनुस पलास पुष्प कौ,बांन आम मौरन के
जग जीतन रितुराज आए हैं,संगै मीत मदन के
फूल उठी कचनार कुरइया ,खिले कुंद किरवारे
हरदीली सरसों ने हरदी , के छींटा से डारे
अंग अंग गदरान लगे हैं,धानीं धरनीं धन के,जग जीतन,,,,
अमुआ की डारी पै कारी,कोइल कूकन लागी
फगवानो फागुन भए जारए, बैरागी अनुरागी
गांव नगर मनहीन लगत हैं ,ठाठ देख खेतन के,जग जीतन,,,,
बेलें बिरछ लदे फूलन सें ,जल में कमल सुहारए
महक उठी है पवन कामिनी , के तन काम समारए
कलीं खिलीं सो टूट परे हैं, दल के दल भोंरन के,जग जीतन,,,,
हरी हरी दूबा पै हिरनी ,करत किलोर दिखा रइ
हिरना के पैंने सींगन सें, अपनी आंख खुजारइ
रस रंग की गागर छलकारए,जे दिन मधुर मिलन के,जग जीतन,,,,
गोरी कछु पियरीं सीं परगइं ,कनक कमल सीं पांखें
नित देखीं अनदेखीं लगरइं, इकटक निरखत आंखें
छम-छम पग पायलिया छमकत,ककना खन खन खन के,जग जीतन,,
विदाई की बेला
आ गइआज बिदा की बेरा,
करुना डारें डेरा ।
उड़ी जात है सोंन चिरइया,
कर कें रैंन बसेरा।
सइ नइं जाय पीर बिछुरन की,
ऐसी आइ अबेरा ।
रइयौ बड़े प्रेम सें खइयौ,
पुरीं पपरियां पेरा ।
औसर काज आत रइयौ प्रभु,
कर जइयौ पग फेरा।
जातन हिलक हिलक कें रो रइं,
सबके नैंन भिंगोरइं ।
छलकत हैं पलकन सें जलकन,
असुअन सें मों धो रइं।
मइया की ममता बाबुल कौ ,
लाड़ अमोलक खो रइं।
ई देरी कीं हतीं अबै नों ,
आज पराईं हो रइं ।
दल बल सहित सजन आगये हैं,
ल्वा जेंयं संग भोरइं।
अब तौ आंयं पांवनीं सीं प्रभु,
करता धरता जो रइं।
शरद पूर्णिमा
चन्द्र किरन सें झरत है,इमरत भरी फुहार।
पूंनें आ गइ सरद की ,कर सोरउ सिंगार।।
चंदा औरइ आज दिखारय,
बांकी सोभा पारय।
प्राची के गोरे गालन पै ,
लाल गुलाल लगारय।
धरनीं के कन कन के ऊपर,
इमरत सौ बरसारय।
जमना कीं चंचल लहरन पै,
झूम झूम लहरारय।
सियरीं सीं सुखकर किरनन सें,
प्रभु तन तपन मिटारय।
पूंनें आइ सरद रजनी की ,
मन भावन सजनी की।
चीर हरन के दिन सें गोपीं,
बाट हेर रइं जी की।
रस बुंदियन के परतन हिय की,
लगन लता फिर पी की।
नेह समुन्दर सें मिलबे भइ ,
धार अधीर नदी की।
जैसीं कीं तैसीं पोंचीं प्रभु,
तान सुनीं मुरली की।
कवि कुल चूड़ामणि तुलसी दास
धन्न धन्न बांदा जिला ,कौ राजा पुर ग्राम।
माता हुलसी धन्न तुम,धन्न आत्माराम।।
राम बोला से सुत भए।
संवत पंद्रह सौ चउअन में, हुलसी हुलसीं मन में।
सातें सोमवार खों तुलसी ,भए उतरत सांउन में।
मूल अभुक्त नखत में जनमे, दुख देखे बचपन में।
मात पिता ने तजदऔ पोंचे,नर हरि दास सरन में।
पड़ लिख कें प्रभु लौट आए बे, अपने घर आंगन में।
बचपन बदल चलो यौवन में, उठें उमंगें मन में ।
चटक गईं चंपा सीं कलियां , उनके उर उपवन में।
अपनों मन अपने बस में नइं,भऔ पराऔ छन में।
दीनबंधु की कन्या रतना ,आन बसीं अखियन में।
पानि ग्रहन होतन रंग भर गए, सतरंगी जीवन में।
सोने सौ हर दिन लगै ,रूपा सी हर रात।
मन मधुवन में होत रत,मधु रस की बरसात।
कथा कहें संगीत मय ,राम नाम गुन गांयं।
बानीं के प्रभाव सें ,इमरत सौ बरसांयं।
कछअइ दिन में फैल गऔ, दूर दूर तक नाव।
जब जी ने सुन पाइ सो ,करबे कथा बुलाव।
कथा करन तुलसी गए ,घरै लौट ना पाए।
रतना खों लुआबे तबइ ,वीर लिबउआ आए।
रतना राखी बांदबे ,गइं वीरन के संग।
तुलसी खों जौ कां पतौ,होत रंग में भंग।
तुलसी जब लौटे घरै,रतना खों नइं पाव।
पतौ परो गइं मायकें,अब का करें उपाव।
सूनों सूनों घर लगै ,सूनों सब संसार ।
आइ नदी खों पार कर,जा पोंचे ससुरार।
कारी अंदयारी झुकी,रए झींगुर झंकार।
बजा बजा बे हार गए,खुले न बजर किबार।
घन घमंड घुमड़न लगे, पवन मचा रइ सोर।
बिजुरी चमकत में दिखी,लटकत कारी डोर।।
डोर पकर कैसें चड़े ,सुमरत श्री भगवान।
रंग महल में पोंचतन,आइ जान में जान।।
रतना देखी पिय दसा ,उर अतिशय आसक्ति।
मन में भई ग्लानि सी ,ऐसी हुई विरक्ति।।
तन कंपित फरकें अधर, नैन हुए अंगार।
रौद्र रूप रतनावली ,देन लगीं फटकार।।
काया काचे कांच सी ,जी सें प्रेम अपार।
जो होतौ श्री राम सें ,हो जातौ उद्धार।।
पतनीं की गुरु सीख से,मिटा मोह अज्ञान।
घर घरनीं तज अनवरत, किया राम गुन गान।।
दोहावली कवितावली ,औ बरवै रामांन।
विनय पत्रिका के रचे,पद अति मधुर महान।।
जब तक सूरज चन्द्र हैं,गंग धरनि आकाश।
राम चरित मानस सहित,तब तक तुलसी दास।।
हमारौ प्यारौ मध्यप्रदेश
हमारौ प्यारौ मध्यप्रदेश,सबइ सें न्यारौ मध्यप्रदेश
भारत माता की आंखन कौ,तारौ हृदय प्रदेश,हमारौ
बिंध्य सतपुड़ा के पर्वत ,हम सब के हिय हरसाबें ,
सोन केन बेतवा नर्मदा , इमरत सौ छलकाबें ,
क्षिप्रा में अस्नान करे सें ,कट हैं कठिन कलेश ,हमारौ
चित्र कूट मैहर कुंडेसुर ,तीरथ धाम हमारे ,
अबध पुरी सें नगर ओरछा ,में श्री राम पधारे,
महाकाल उज्जैन बिराजे ,ऊं कार ममलेश,हमारौ
आताताई करें बायरें ,जा वीरन ने ठानी ,
दुरगाबती अबंती बाई ,बन गइं तीं मरदानी,
छत्रसाल के सांमें तौ नइं, पाइ काउ ने पेश,हमारौ
लोहा तांबा अभ्रक कोयला ,फसलें उगलत माटी
उच्च कोटि के हीरा,उपजाबै पन्ना की घाटी
खजुराहो के मंदिर देखन,जुर रव देश विदेश,हमारौ
तित त्योहार मनत हैं दसरव ,होरी ईद दिवारी,
ईसुरि गंगाधर पदमाकर,होगये इतइं बिहारी,
कालिदास केशव कविवर भये, दिव्य सुमन सर्वेश,हमारौ
एक नवम्बर सन् छप्पन की,भोर सुहाउंन आई,
ई के जनम दिवस पै गेरउं , खुशी अनौखी छाई,
ऐसौ बड़ो प्रगति पथ पै प्रभु,बन गव राज्य विशेष,हमारौ