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Pathrigadh Ki Ladai- Kathanak पथरीगढ़ की लड़ाई- कथानक

Pathrigadh Ki Ladai राजा गजराज सिंह की पुत्री गजमोतिन के विवाह  को लेकर हुई राजपूत राजा अपनी बेटी का रिश्ता बनाफरों के यहां नहीं करना चाहते थे। वह बनाफरों का निम्न स्तर का मानते थे पथरीगढ़ की लड़ाई में श्यामा भक्तिन और सुनवा के जादू काअनोखा और आकर्षक वृतांत दिखता है

पथरीगढ़ के तीन नामों का प्रयोग है–बिसहिन और कसौंदी भी इसी के नाम हैं। यहाँ के राजा गजराज सिंह थे और उनका पुत्र था सूरजमल। पुत्री गजमोतिन नवयुवा थी। सखियों ने उसे ताना दिया कि राजा तेरी कहीं सगाई क्यों नहीं करते, क्या वे बलहीन और धनहीन हो गए हैं? पुत्री ने अपनी माँ को यह बात बताई। माता ने राजा से बेटी की सगाई करने का आग्रह किया है। राजा पंडितों से तिलक हेतु पत्र लिखवाकर बेटे सूरजमल को राजाओं के पास भेजता है।

तिलक का निमंत्रण स्वीकार करने का अर्थ था युद्ध का निमंत्रण स्वीकार करना। सूरजमल दिल्ली, कन्नौज, उरई आदि के राजाओं से मिला। उन्होंने निमंत्रण स्वीकार नहीं किया। पिता ने कह दिया था, महोबा मत जाना। बनाफर गोत्र राजपूतों से अलग है। उरई के राजा माहिल यों तो राजा परिमाल के साले थे। आल्हा-ऊदल भी उन्हें मामा का सम्मान देते थे, परंतु आल्हा-ऊदल और मलखान के विरुद्ध माहिल सदा षड्यंत्र करते रहे।

माहिल ने भी सूरजमल से कह दिया कि महोबावालों के यहाँ जाने से तो अच्छा है कि टीका वापस ले जाना, क्योंकि बनाफर निम्न स्तर के ठाकुर हैं। सूरजमल वापस जा ही रहा था तो ऊदल से भेंट हो गई। थोड़ी आना-कानी करके सूरज ने बता ही दिया कि वह बहन का टीका लेकर आया था। ऊदल ने पूछा, फिर खाली क्यों जा रहे हो? महोबा चलो। मेरा भाई मलखान है, वह विवाह-योग्य है। सूरजमल ने सोचा, खाली लौटने से अच्छा तो यही है कि रिश्ता यहीं कर चलें।

सूरजमल ऊदल के साथ महोबा चला गया और विधिपूर्वक मलखान का टीका चढ़ा दिया। माहिल चुगली करने में माहिर था ही। सीधा पथरीगढ़ पहुँचा और राजा गजराज के पास जाकर चुगली कर दी  कि बनाफरों के यहाँ बेटी ब्याहने से आपकी हेटी हो जाएगी। अतः जैसे भी हो, इन्हें खाली हाथ लौटाओ। हो सके तो सबको मौत के घाट उतार दो।

इधर राजा परिमाल ने मलखान की बरात में सम्मिलित होने के लिए कई राजाओं को निमंत्रित किया और अपने यहाँ से लश्कर तैयार किया। पंडित से शुभ मुहूर्त निकलवाकर बरात पथरीगढ़ को चल पड़ी। नगर से तीन कोस पहले ही बरात ने अपने तंबू गाड़ दिए। बरात के आने की सूचना देने को रूपन नाम के वारी को पथरीगढ़ फलों का टोकरा और संदेश लेकर भेजा।

द्वारपाल को सारा हाल बताकर संदेश अंदर भेजा। राजा गजराज ने वारी का सिर काट लेने का आदेश दिया। रूपन भी तैयार था। उसका तो नेग ही युद्ध करना था। जितने भी लोग उसे मारने को भेजे गए थे, वे खुद ही पिटकर लौट गए। थोड़ी ही देर में माहिल वहाँ पहुँच गया और सलाह दी कि सारी बरात को शरबत भिजवा दो। उसमें विष मिला दो, आराम से ही सब किस्सा निपट जाएगा।

राजा ने ऐसा ही किया। शरबत टब में भिजवा दिया। शरबत में जहर घोल दिया। आल्हा के डेरे में जैसे ही शरबत को गिलास में डाला, तो सामने से छींक हई। ऊदल ने कहा, “ठहरो! आप शरबत मत पिओ।” और फिर गिलास का शरबत कुत्ते को पिलवा दिया। कुत्ता तुरत मर गया। तब सारा शरबत फिंकवा दिया गया।

ऊदल ने युद्ध करने के लिए सेना को आदेश दिया। सेना में तोपची, हाथी सवार, घुड़सवार और पैदल सब सज गए। किले की ओर बढ़े। राजा गजराज को सूचना मिली। उसने भी सूरजमल और कांतामल को युद्ध करने भेज दिया। भयानक युद्ध शुरू हो गया। तभी चुगलखार माहिल वहाँ भी आ पहुँचा। राजा ने पूछा, अब क्या करूँ? शरबत की तरकीब तो आल्हा ने असफल कर दी।

अब तो बरात दरवाजे पर पहुँचनेवाली है।” तब माहिल ने नई चाल बताई। विनती करके लड़के को अकेले महल के अंदर बुलवा लो और हाथ-पाँव बाँधकर खाई में फेंक दो। जब दूल्हा ही नहीं रहेगा तो बरात अपने आप लौट जाएगी।” राजा स्वयं आल्हा के डेरे पर गया और कहा, “हमारे यहाँ ऐसी प्रथा है लड़के को अकेले भेज दो। हम भाँवर डालकर सही-सलामत वापस भेज देंगे।

ऊदल ने कहा, जहरवाले शरबत के बाद तुम पर विश्वास नहीं हो सकता। अगर छल किया तो हम बिसहिन के किले को धूल में मिला देंगे। मलखान ने जब अपनी सिरोही उठाई तो राजा ने कहा कि भाँवर पर खाली हाथ ही जाना पड़ेगा। तब आल्हा ने गंगाजल भरके कलश मँगाया और कसम खाने को कहा। गजराज सिंह ने गंगाजली उठाई और छल न करने का भरोसा दिया।

आल्हा ने पालकी में बिठाकर मलखान को राजा के साथ भेज दिया। राजा ने भीतर से नगर के सब दरवाजे बंद करवा दिए और कहा कि मलखान का सिर काट लो, बचकर वापस न जा पाए। मलखान सुनते ही सावधान हो गया। उसने पालकी का बाँस निकाल लिया और किसी को अपने पास तक नहीं आने दिया। सबको बाँस से मारकर भगा दिया।

राजा ने हाथ जोड़कर कहा कि तुम समर्थ हो, अब हम भाँवर डाल देते हैं। मलखान जैसे ही एक ओर बैठा। राजा ने फिर छल करके उसके हाथ-पाँव बँधवाकर खंदक (खाई) में डलवा दिया। एक बाँदी ने जाकर गजमोतिन (कन्या) से कहा कि तुम्हारे दूल्हे को राजा ने खंदक में फिंकवा दिया है।

अब क्या होगा? सारा दिन बीत गया। रात हो गई, तब गजमोतिन खाना लेकर खंदक के पास पहुँची। रस्सी लटकाकर कहा कि रस्सी के सहारे ऊपर आ जाओ। खाना खाओ और अपने लश्कर में चले जाओ। मलखान ने कहा, वीर संकट में भी अपनी मर्यादा नहीं त्यागते। तुम्हारे हाथ का खाना तो मैं विवाह हुए बिना खा नहीं सकता। इधर यहाँ से चोरों की तरह भागकर जा नहीं सकता। यदि मेरी सहायता कर सकती हो तो बड़े भाई आल्हा तक यह सूचना भिजवा दो। वे अपने आप सारा प्रबंध कर लेंगे।

गजमोतिन सोचने लगी कि क्या करे? उसने मालिन को बुलवाया और आल्हा के नाम पत्र लिखकर मलखान को छुड़वाने की विनती की। मालिन चली तो द्वार पर सूरज और रखवालों ने बाहर नहीं जाने दिया। मालिन ने कहा, “मैं गजमोतिन के फूल लेने बाग में जा रही हूँ। जाने दो, नहीं तो लौटकर राजकुमारी से शिकायत करती हूँ।”

तब सूरज ने उसे बाहर जाने दिया। मालिन महोबे के शिविर में पहुँची। वहाँ आल्हा का तंबू खोजने लगी। सामने ही माहिल मिल गया। मालिन ने आल्हा का तंबू पूछा तो माहिल बोला, “मैं ही आल्हा हूँ, क्या बात है?” मालिन ने आल्हा मानकर उसे पत्र पकड़ा दिया और लौट पड़ी। माहिल ने उसे डरा-धमका भी दिया। वह रोती हुई लौटी तो सामने से ऊदल आता मिला। उसने प्रेम से पूछा तो मालिन बोली, “मुझे गजमोतिन ने आल्हा के पास पत्र लेकर भेजा था, पर आल्हा ने मुझे धन्यवाद देने की बजाय खूब डाँटा।”

ऊदल ने मालिन को साथ लिया और बताया कि दिखाओ आल्हा कहाँ है? उसने माहिल को इंगित करके आल्हा को बताया। ऊदल ने कहा, “मामा, आल्हा का पत्र आपने क्यों लिया? लाओ मुझे दो।” पत्र लेकर वह मालिन सहित आल्हा के पास गया। मालिन ने विस्तार से सब हाल बताया। फिर ऊदल ने मालिन को ससम्मान विदा किया। आल्हा ने आदेश किया कि अभी आक्रमण करके मलखे को छुड़वाना है। लश्कर तैयार करो।

लश्कर तैयार हुआ तो विसहिन में भी गुप्तचर ने राजा को सूचना दे दी कि महोबे की फौज आक्रमण करने आ रही है। राजा ने सूरज, कांतामल और मानसिंह को बुलाकर युद्ध करने भेजा। तीनों अपनी सेना लेकर उदयसिंह के सामने जा पहुँचे। दोनों ओर के योद्धा आपस में भिड़ गए। कई हाथियों के सूंड़ कट गए। हौदे गिर गए, घोड़ों की गरदन कट गई।

पैदल से पैदल सेना में तलवारों की कटाकट बजने लगी। इधर राजा ने तोपें चलवा दीं। तीन घंटे तक तोपें गोले बरसाती रहीं। शाम तक विसहिन की सेना आधी रह गई। सूरज और ऊदल आमने-सामने डट गए। सूरज ने तलवार के तीन वार किए, जो ऊदल ने बचा दिए। जब ऊदल वार करने लगा तो सूरज घोड़ा भगाकर ले गया।

फिर कांतामल आगे आया तो ऊदल ने कांतामल पर वार किया। वह भी अपना घोड़ा लेकर भाग गया। मानसिंह आगे बढ़ा तो देवा ने भी अपना घोड़ा उसके सामने ला खड़ा किया। मानसिंह घायल होकर गिर गया। सूरज ने राजा से कहा कि महोबे वालों से मुकाबला करते समय हमारी आधी से ज्यादा सेना खप चुकी है।

राजा तुरंत श्यामा भगतिन के पास गया। उसे सारा हाल सुनाया और बनाफरों से रिश्ता न करने की तरकीब पूछी। श्यामा भगतिन सूरजमल के साथ आल्हा के लश्कर को देखने गई। उसने भस्म मारकर सारी फौज को बेहोश कर दिया।

विसहिनवाले भी रात को सुख से सोए। आल्हा और ढेवा ही ईश्वर की कृपा से जादू से बचे रहे। आल्हा ने कहा कि सनवां को महोबे से ले आओ। ढेवा तरंत चला गया। सनवां को सारी बात बताई। सनवां ने देवी का पजन-हवन किया। देवी ने अमृत दिया और कहा इसे छिड़कने से सब ठीक हो जाएँगे। ढेवा सुनवां को लेकर विसहिन जा पहुँचा। सुनवां ने जाते ही अमृत छिड़का और सारी सेना फिर खड़ी हो गई।

फिर हाथी पंचशावद सजाकर आल्हा सवार हुए। ऊदल ने लश्कर फिर तैयार किया और विसहिन पर चढ़ाई कर दी। दोनों ओर की सेनाएँ गोले दागने लगीं। जिसके भी गोला लग जाता, उसके तो टुकड़े हो जाते। बिल्कुल पास आ गए तो तलवारें चलने लगीं। एक बार फिर सूरज और ऊदल आमने-सामने भिड़ गए। ऊदल ने तो वार बचा लिये, पर सूरज हौदे से गिर गया। ऊदल ने उसे बाँध लिया। कांतामल आगे आया, पर उसे भी ऊदल ने बाँध लिया। तब राजा आगे आए।

आल्हा से भीषण युद्ध हुआ। राजा के सब वार आल्हा ने निष्फल कर दिए। श्यामा भक्तिन चिडिया बन गई, परंतु सुनवां भी कम नहीं थी। वह बाज बन गई। बाज सुनवां ने चिडिया बनी श्यामा को धरती पर पटक दिया तो ऊदल से बोली, इसे जान से मार दो। ऊदल ने कहा, मैं स्त्री को नहीं मारता, अतः उसने श्यामा का जूड़ा काट लिया।

श्यामा का जादू तुरंत असफल हो गया। फिर गजराज सिंह आल्हा से भिड़े तो राजा ने श्यामा का घोड़ा अपनी ओर कर लिया। सुनवां ने बताया, इस घोड़े की पूँछ काट लो। ऊदल ने पूँछ काट ली तो भगतिन और घोड़ा दोनों का जादू मिट गया।

राजा गजराज ने आल्हा पर वार किया, आल्हा ने ढाल अड़ा दी। तीन वार राजा ने किए। पर सब बेकार गए। राजा की तलवार टूट गई। आल्हा ने राजा को साँकल (जंजीरों) में बाँध लिया। राजा के बँधते ही ऊदल ने जीत का डंका बजवा दिया। फिर फाटक खुलवाकर ऊदल खंदक के पास पहुँचा। ऊदल ने मलखान से कहा, जल्दी बाहर आओ।

मलखान ने कहा, “मेरे शरीर में भारी घाव लगे हैं, लोहे की जंजीरों में कसा हुआ हूँ।” ऊदल ने फिर कहा, “अरे भैया! तुम पुष्य नक्षत्र में पैदा हुए हो। बृहस्पति बारहवें घर में है। सौ हाथियों का बल तुम में है। काल की शंका नहीं, उठो और बाहर आ जाओ।”

तब मलखान का आत्मविश्वास जागा। लोहे की जंजीरें तोड़ दी और उछलकर खंदक से ऊपर आ गया। राजा ने विनय की “लड़कों को खोल दो, मैं अभी भाँवर डलवा देता हूँ।” सूरजमल और कांतामल को खोल दिया गया। राजा को भी खोल दिया। भाँवर की तैयारी होने लगी। तभी माहिल फिर राजा के पास आया। वह तो बनाफरों से वैर निकालना चाहता था। स्वयं में बल था नहीं, इसलिए उनके विरुद्ध षड्यंत्र रचता रहता था। माहिल बोला, “बनाफर गोत्र क्षत्रिय नहीं है। इनसे विवाह करने पर आपकी साख नष्ट हो जाएगी।”

राजा गजराजसिंह बोले, “पर मैं क्या करूँ, उन्होंने अपने बल से हमारे सभी राजपूतों को परास्त कर दिया है।” तब माहिल ने फिर एक नया छल सुझाया, “आप क्षत्रिय वीरों को कमरों में छिपा दो। आल्हा के परिवारजनों को बिना हथियार के ही मंडप में बुलवाओ। जैसे ही पंडित ब्याह के मंत्र पढ़ने लगे, तभी क्षत्रियों को आक्रमण करने का संकेत कर दो। सारे बनाफर परिवार के सिर काट लो। बिना हथियार उनकी एक न चलेगी। साँप भी मर जाएगा और लाठी भी नहीं टूटेगी।”

कठिन परिस्थितियों में व्यक्ति की अपनी बुद्धि काम नहीं करती। वह दूसरों की गलत सलाह को भी सही मान लेता है। अपनी पुत्री से अधिक झूठी शान को महत्त्व देना उचित नहीं था, पर वह विवेक खो बैठा था। राजा गजराज सिंह ने माहिल के परामर्श का पूरी तरह पालन किया। सूरज को भेजकर वर के परिवारीजनों को बुला लिया।

सूरजमल ने भी कहा कि बिना शस्त्र ही मंडप में बैठने का रिवाज है। अत: आल्हा, ऊदल, ढेवा, लाखन, ब्रह्मानंद आदि परिवारीजन बिना शस्त्र ही मंडप में पहुँच गए। मलखान को चौकी पर बैठा दिया गया, परंतु वीर हथियार लेकर आ गए।

ज्यों ही भाँवर पड़नी शुरू हुई, सूरजमल ने तलवार से मलखान पर वार किया; आल्हा ने अपनी ढाल से रोक लिया। दूसरी भाँवर पर कांतामल ने तलवार खींच ली तो ऊदल ने ढाल अड़ा दी। तीसरी बार मानसिंह ने तेग चलाई तो ढेवा ने रोक ली। फिर तो क्षत्रिय कमरों से निकल आए, जोरदार तलवारें चलीं। मंडप में रक्त की धार बह निकली। तब ऊदल ने कहा, “आल्हा बंधु! तुरंत ही शेष चार भाँवर डलवा लो।”

आल्हा के आदेश पर भाँवर पूरी कर ली गई। सूरज और कांतामल को बाँध लिया गया। तब गजराज बोले, “महोबावाले वीर हैं। आप अब जरा ठहरें। मैं बेटी विदा करने की तैयारी करता हूँ।” राजा को सलाह देने माहिला फिर वहाँ पहुँच गया और सलाह दी कि भात खाने को बुलवा लो और भात में विष मिला दो। अपने आप मर जाएँगे।

गजराज सिंह ने आल्हा से प्रार्थना की, अब भात खाकर ही आप विदा होंगे। आल्हा ने स्वीकार कर लिया। राजा ने फिर वही शर्त रखी, केवल परिवार के लोग चलें और हथियार साथ न ले जाएँ। लोगों ने सोचा, अब तो फेरे हो चुके; ब्याह तो हो चुका, अतः बारह परिवारीजन बिना हथियार भात खाने चले गए। सब ने गंगाजल का लोटा साथ लिया और भात खाने चल दिए।

जैसे ही पत्तलों पर भात परसा गया, वैसे ही लड़ाके कमरों से हल्ला बोलते हुए निकल आए। महोबेवालों के पास तो कोई हथियार नहीं था। सबने लोटे को ही शस्त्र बना लिया। तलवारों के वार लोटे से रोके और लोटों से ही उन पर पलटवार किए। लोटों की मार से ही सब शत्रुओं को मारकर भगा दिया।

फिर ऊदल ने गजमोतिन वधू के लिए लाए हुए सब आभूषण सौंप दिए। गजमोतिन का श्रृंगार किया गया और बिना देर किए पालकी में बिठाकर विदा करवा ली। रूपना वारी को सूचना देने पहले महोबा भेज दिया गया। सूचना मिलने पर रानी मल्हना ने स्वागत की सभी तैयारी करवा लीं। सब रानियों को, सखियों को बुलाकर मंगलाचार शुरू कर दिए।

स्वागत में चौमुखा दीपक जलाया गया और वीर मलखान के साथ वधू गजमोतिन की आरती उतारी गई। दोनों वर-वधू ने रानी मल्हना, दिवला और तिलका के चरण स्पर्श किए। बरात में पधारे सभी राजाओं को उपहार देकर विदा किया। महोबावाले बराती भी विदा होकर अपने घर चले गए। इस प्रकार वीर मलखान का गजमोतिन से विवाह संपन्न हुआ।

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