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Pasina Ki Kamai पसीना की कमाई- बुन्देली लोक कथा

ऐसैं-ऐंसैं एक शिहिर में एक भौत बड़े दानी राजा रत्ते। उनके लिंगा सैं कभऊँ कोनऊ भूकौ भिखारी निरूगौ नई जा पाव। वे हर माँगबे वारे की मनसा पूरी करत रत्ते। उनके मिहिल सैं कभऊँ कोऊ निराश नई जा पाव। जो आव ओइयै ऊके मन की बसत गोआ देत ते। एक बेर एक गरीब बामन ने उनसे Pasina Ki Kamai को दान माग लओ।  

उनई के राज में एक गरीबला सौ बामुन रत्तो। ऊकी घरवारी उर दो ठौआ मौड़ी मौड़ा हते। उनके पाल पोसबे के लानै भीक माँग ल्याउत ते। उर दिन बूड़े रूखौ सूकौ बनवाकै अपने बाल बच्चन के संगै खा पीकै सुख की नींद सोऊत ते। जित्तौ मिल गओ उतेकई में गुजर बसर करत रत्तें। न ऊधौ कौ देनें उर ना माधौ सै लैनें। ऐसई ऐसैं उन्नें कैऊ बरसैं काड़ दई ती। अकेलैं हते भौत कड़ा चून उर अपनी बात के पक्के।

एक ऐसी कानात कई जात कैं ‘कै हंसा मोती चुनै, कैं लंघन मर जाँय।’ जा कहावत उन पंडित जी पै सोरा आना खरी उतरत ती। एक दिनाँ उनकी घरवारी बोली कै काय हो जे बाल बच्चा सियानें होत जात अकेली भीक माँगे सैं कैसे काम चले। अब बताव कैसे तौ इनके ब्याव काज हुइयैं उर कैसे इनके साके सोहरें हुइयै। जिदनां माँग ल्आय सो उदना खा लैय उर जिदनाँ कछू पिरान दुखान लगे उर मँगाबे नई जा पैंय सो उदनां टकासी लाँगन हो जैय।

हमने सुनी कैं अपने नाँके राजा भौत बड़े दांनी हैं। उनके नाँसै कोनऊँ मँगनारौ निराश नई जा सकत। वे सबई काऊ खौ मौ माँगौ वरदान देत रत। ईसै तुम सूदे राजा के लिंगा चले जाव। वे तुमें कछू बड़याव दै दैय, जीसैं कछू दिना कौ काम चल जैंय। अकेलैं पंडित जी हते भौतई जिद्दी। वे कन लगे कैं राजा के खजाने में तौ अरबन की सम्पत्ति भरी धरी है। अकेलैं है वा जनता के खून चूसबे वारी।

कजन हमनें ऊमें सें कछू लै लओ तौ समजौ कै सब खड़न खपरन मिल जैय। हमतौ पसीनिचोय की कमाई चाऊत हैं। सुनतनई उनकी घरवारी कौ गुस्सा सैं मौ लाल हो गओ उर कन लगी कै ऐसी कानात कई जात कैं ‘हाँत पाँव के कायली मौ में मूँछें  जाय’ अरे तुम तौ भौतई बड़े अलाल हो, इतै बैठे सोसत रैव। ईसैं तुमें कछू नई मिल पैय। अरे तुम उनके लिंगा जाकै अपनी बात रख सकत। उनके लिंगा सैं आज तक कोऊ निराश नई लौटो।

पंडित जी बोले कैं आज हम राजई के लिंगा जा रये उर उनसैं हम पसीनिचोय की कमाई में सै थोरौ भौत माँग ल्आँय। उर इत्ती कैकैं थोरक सौ कलेवा करकैं लठिया लैकै सूदे राजा के लिंगा चल दये। निंगत-निंगत कौरे दुपर नौराजा की हवेली के करकैं पौंच गये। पैरेदारन सैं पूँछत-पूँछत सूदे ड्योढ़ी नौ पौंच गये। दूर से देखतनई राजा उन बामुन देवता खौं पैंचान गये उर ठाँढ़े होकें कन लगे कै अबाई होय पंडित जी।

अपनौ कितै से आबौ भओ। पंडित जी राजा साव खौं आसीरवाद दैकै एक तखत पै विराज गये। कर्ता कामदारन ने बामुन देवता कौ खूबई स्वागत सत्कार करो। उर फिर मराज एकथार में कल्दार भरकैं ल्आये उर पंडित जी खौ देन लगें पंडित जी हते तौ भौतई गरीब,अकेले अपनी बात के पक्के हते उन्ने ऊ थार कुदाऊँ निंगई नई डारी। राजा उनके मौं कुदाऊँ देखकैं रै गये। उर कन लगे कैं मराज बताई जाय कैं अपनी का मनसा है। अपुन और का चाऊत?

बामुन देवता कन लगे। कैं राजा साव हमें तुमाये खजाने में सै एक पइसा नई चाने। सुनतनई राजा सनाकौ खाकैं रै गये उर कन लगे कै मराज अपुन और का चाऊत। हमें तौ अपनु की पसीनिचोय की कमाई में सौं जो कछू मिलै सो हमें दै दओ जाय। राजा खौं बड़ौ अचम्भा हो रओ तो पंडित जी की बाते सुन-सुन कैं वे सोसन लगे कै हमाये खजाने में तौ हमाई मैंनत कौ एकऊ पइसा नइयाँ। खजाने में तौ राज की जनता कौ धन आ जुरो धरो।

अब इन बामुन देवता खों मैंनत की कमाई अब कितै से देबैं। बड़ी देर नौ सोसत बैठे रये। आज तक हमाये इतै सैं कोऊ निराश नई जा पाव। कजन पंडित जी बिना दान लयें चले जैय तौ हम पै भौत अपराध परे। अब बताव का करो जाय। इनकी मनसा पूरी करबे के लाने रानी नौ पौंचे उर उनसैं जेई बात कई।

रानी तौ भौतई समझदार हती। वे कन लगी कैं बामुन खौं मिहलन में बैठारो उर अपुन कोनऊ गाँव में मैनत मजूरी करकै, जो कछू मिले सो बामुन देवता खौं गुआ दैबूँ। रानी की जा बात राजा के गरे उतर गई उन्ने जा कै बामुन देवता सै कई कैं मराज अपुन दिन बूड़े नौ आराम करो। हमशाम कै अपनी पसीनिचोय की कमाई ल्आ कैं चरनन में हाजर कर दैंय।

जाबात पंडित जी खौं अच्छी लगी, उर वे थोरो सौ जलपान करकै सो गये। हारे तौ हतेई उर उनें परतनई ऊँग आ गई। उर उतै राजा रानी अपनौ भेस बदल कैं देहात कुदाऊँ कड़ गये। उतै एक लुहार लोहे कौ काम कर रओ तो। दोई जनें ऊके लिंगा जाकै कन लगे कैं हम और तुमाये नाँ मजूरी करबे के काजैं आये हैं। कजन कछू हमाये लाख काम होय तौ बता दओ जाय।

उने देखतनई लुहार बोलौ कै हओं हमें धोंकनी धोंकबे उर धनधालबे खौं मजूर तौ चानें। तुम और तौ उसई ढीले ढाले से दिखात। तुमाई बसकी हमाओ काम करबौ नइयाँ। सुनतनई राजा बोले कैं भइया। जो हम सैं बनें सो हम काम करत रैय जो कछू तुमाई मनसा हुइयै सो हमें दै दिइयौ। लुहार कन लगौं कैं देखौं तुमे तौ घन घालनें आय उर जे बाई धोंकनी धोकत रैयं।

राजा घन पकर कैं घन घालन लगे। राजा के हाँतन में फोरा पर गयें पसीना के मारैं मौं सूक गओ भूके-प्यासे तौ हतेई। अकेलै लुहार के डरन के मारै दिन भर लगे रये। मिहिलन में रैबे वारी रानी कभऊँ बायरै तौ कड़ी नई हती। काम करत-करत लस्त पर गई। फूल सौ चेरा कुमलया गओं राजा सोऊघावड़े हो गये ते। तोऊ दिन बूड़े नौ लगे रये। दिन डूबे लुहार नें उन दोई जनन खौं दो पइसा गुआ दये।

राजा रानी उतै सैं हारे-थके गिरत उठत से चल दये। निंगत-निंगत सूदे मिहिल में पौंचे उतै बामुन देवता सौ बाठ हेरै बैठई हते। राजा नें उनें वे दो पइसा गोआ दये। पंडित जी लैकै सूदे अपने घरै चल दये। पंडितानी तौ बाठ हेरै बैठई हती। जातनई बोलै कैं बताव राजा नें तुमे का दओ उन्ने वे दो पइया पंडितानी के हात में गुआ दयें।

देखतनई पंडितानी आग बबूला हो गई, उर बोली कैं तुमाई तौ ऐसी किसा भई कैं ‘रातभर पीसौ उर पारे सैं उठाव’ बताव ‘बड़ो माँग नौ उर लोबी दान।’ कब सै तौबाठ हेरै उर तुमजें दो पइसा लैकैं आ गये। कन लगत कै ‘दद्दा हेरै खर्च की बाठ उर बेटा आ गये माँगत खात’। पंडितानी नें वे दो पइसा गुस्सा के मारैं तुलसी घरा पै फेंक दयें। उर अपनी गिरस्ती के काम में लग गई।

ऐसई ऐसैं कैंऊ दिना कड़ गये। ऊ तुलसी घरा के दो पईसन में सैं दो पौधा पैदा हो गये। पंडितानी खौं कछू खबर नई हती। हराँ-हराँ उन दोई पौधन में सै फूल झरझर कैं आँगन में फैलन लगें। वे तनक चमकीले से फूल हते, सो पंडितानी उनें बड़े भुन्सराँ झार-झार कैं घर के एक कोने में डार देत तीं। ऐसई ऐसें उनकौ आदौ कोठा भर गओ तौ। उनें उन पईसन की कंछू खबर नई हती।

एक दिना एक भाजी वारी भाजी लैके पंडितानी के दौरे आ गई उदनाँ उनके नाँ कछू साक सब्जी बनाबे खौं नई हती। पंडितानी ने भाजी तौ लैलई दैबे खौं नाज तौ हतो नई, उने उन फूलन की खबर आ गई। उन्नें एक गुट्टा फूलन की भाजी लै लई। चमकीले फूलने खौं देख कै काछन मौगी चाली लैकैं चली गई। पंडितानी की नजर में तौ उनकी कछू कीमत हतिअई नई वा काछन उन फूलन खौं लै जाकैं बजारै चली गई। उतै एक सुनार की नजर उन फूलन पै परी। ऊनें देखतनई जान लई कैं अरे जे तौ मोती आँये।

ऊने ऊ काछन खौं चौगुने रूपइया दैकै सबरई मोती खरीद लये उर ऊसैं पूछी कै जे तुम कितै सै मिले। काछन नें ऊ सुनार खौं पंडितानी कौ घर बता दओ। वौ सुनार पूँछत-पूँछत पंडितानी के घरैं जाकैं कन लगो कै काय जे तुमें कितै सैं मिले ते। पंडितानी बोली कैं हमाये आँगन के तुलसी घरा पै दो ठौवा पौधा लगे है। उर जे फूल उनई पौधन में सैं झरत रत। हमाये घर के कोने में बेई फूल भरे धरे हैं।

सुनतनई सुनार के होश उड़ गये। उर ऊनें जई सैं पंडित जी के कोठा में मोती कुड़रे देखे सोऊ ता करकै रै गओ। पंडित उर पंडितानी की कछू समज में नई आ रई ती कै जौ सुनार इत्तौ जादाँ हैरान काय हो रओ। पंडित जी ने पूछी कै बात का है भइया। सुनार बोलो कै जे मोती तौ कड़ोरन रूपइया के हैं। अरे तुमाव तौ भाग खुल गओ जीके घरै मोतियँन के पौदा लगे हैं।

पंडितानी बड़ी देर नौ सौसत रई कै ते पौधा आय कितै सैं। इतै पसीं निचोय की कमाई के दो पइसा ल्आय ते। लगत कै उन दोई पईसन में सैं जे दो पौधा आय पीक परे। जिनमें सैं जे मोती झरन लगे। कुकरम की कमाई के तौ कड़ोरन रूपइया पसी निचोय के माँय विला जात। कमाई हमेशई फूलत फॅलत है। हमनें पैलऊ उनदो पईसन की कछू कीमत नई समजी ती। वामनई मनपसतान लगी कै जौ होत मैनत कौ फल।

राजा पारीक्षत को राछरो

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