Homeबुन्देलखण्ड की लोक संस्कृतिबुन्देलखण्ड के लोकगीतParshuram Awasthi Ke Lokgeet परशुराम अवस्थी के लोकगीत

Parshuram Awasthi Ke Lokgeet परशुराम अवस्थी के लोकगीत

बुन्देलखण्ड की लोक परंपरा को आगे बढ़ाने वाले Parshuram Awasthi Ke Lokgeet गाँव की चौपाल के लोकगीत हैं , आम जनमानस के लोक गीत हैं । इनके गाने का अंदाज अलमस्त फकीरी वाला स्वरों की सरगम मे गाँव की मिट्टी की महक । युवा गायकों मे एकलौते पारंपरिक लोक गीत गाने वाले परशुराम अवस्थी संगीत के विद्यार्थी के साथ -साथ संगीत के शिक्षक भी हैं। 

किसी जमाने मे बुन्देलखण्ड मे फाड़ गायकी का चलन बहुत ज्यादा था । हर गाँव की चौपाल मे शाम होते ही बयारी करके लोग इकट्ठे हो जाते और देर रात तक लोकगीतों की बयार बहती रहती । मधुर परशुराम की मंडली मे भी जो भी युवा है सब के सब कांही नया कांही फड़ गायकी से प्रभावित है और वे Parshuram Awasthi Ke Lokgeet की फड़ आज भी लगाते हैं । 

केसरिया रंग डारे कन्हाईया ने (होली गीत)

ननद रानी पलना लै कै आईं  (चंगेल गीत)

ढिमारा के खुल गए भाग फंस गई जल मछरी (ढिमारयाई)

महादेव बाबा ऐसे तो मिले रे (लमटेरा)  

हंस बोलो काय खों मो मोड़ो

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Bundeli Jhalak: The Cultural Archive of Bundelkhand. Bundeli Jhalak Tries to Preserve and Promote the Folk Art and Culture of Bundelkhand and to reach out to all the masses so that the basic, Cultural and Aesthetic values and concepts related to Art and Culture can be kept alive in the public mind.
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