पं. श्री अवधेश कुमार द्विवेदी Pandit Awadhesh Kumar Dwivedi का जन्म 1 जून सन 1949 ई. को कान्यकुब्ज ब्राहाण संगीत परिवार ग्राम पलटा तहसील गौरिहार, जिला-छतरपुर (म. प्र.) में हुआ। माता श्रीमती धर्मी देवी का लालन-पालन शिशु अवधेश को संगीत के पूर्ववत् संस्कारों का स्मरण दिलाने लगा।
“ध्वनि-मृदंग-गंगलम्” “बाजत ताल परवावज बीना”
ताल लय सुर के प्रथम सांगीतिक संस्कार वंदनीय बाबा श्री रामेश्वर दास “महंत जी” से प्राप्त हुये। इन्हें पहले पिता जी द्वारा तबला वादन सिखाया गया। प्रशंसा मान सम्मान प्राप्त होते रहे, जिज्ञासा आगे बढ़ी मृदंग की गम्भीर गर्जना पर प्रभावित हो पं. कुदंऊ सिंह घराने के श्रेष्ठतम मृदंगाचार्य पं. श्यामसुन्दर “झण्डीलाल” द्विवेदी जो आपके पूज्य पिता जी एवं मृदंग गुरू है इनसे आपने परवावज वादन की सविधि शिक्षा ग्रहण कर ताल लय के गूढ़ तत्वों को समझा, पारंपरिक बंदिशों का विपुल भण्डार प्राप्त किया।
कुशल मार्ग दर्शन में निरन्तर साधना करके पं. अवधेश द्विवेदी पं. कुदऊ सिंह घराने के चौथी पीढ़ी के प्रतिनिधि परवावजी बने। गुरूमंत्रदाता श्री श्री 1008 श्री स्वामी परशुराम जी महराज आपकी मृदंग विकास यात्रा के मुख्य प्रेरणा श्रोत रहे। कई मृदंगाचार्यों का वादन सुनने को अनेक घरानेदार घुवपद गायकों के साथ संगति करने का अवसर मिलता रहा जीवन के ये सतसंगमय क्षण वरदान सिद्ध हुये।
शैक्षणिक शिक्षा के साथ-साथ संगीत प्रभाकर बी०म्यूज. (तबला परवावज गायन) प्रथम श्रेणी प्रयाग संगीत समिति इलाहाबाद, संगीत भास्कर एम०म्यूज. परवावज प्रथम श्रेणी प्राचीन कला केन्द्र चंडीगढ़ सम्प्रति आप आकाशवाणी दूरदर्शन के प्रथम श्रेणी-“ए” ग्रेड कलाकार है” आपके कार्यक्रम दूरदर्शन भोपाल वा विभिन्न आकाशवाणी केन्द्रों से समय-समय पर प्रसारित होते रहते है। उ. प्र. संगीत नाटक अकादमी लखनऊ, उस्ताद अलाउद्दीन खां संगीत नाटक अकादमी भोपाल म. प्र. तथा संस्कृति विभाग दिल्ली के माध्यम से आयोजित अनेक संगीत समरोहों में परवाज वादन प्रस्तुत करने का अवसर मिला।
आपकी वादन शैली में ओज बोल का सुन्दर निकास पढंत की स्पष्टता पारंपरिक परनों का प्रयोग ताल लय के विभिन्न रूपों को दर्शाना परवावज पर ठेका बजाते हुये कठिल लयकारी की बंदिशों की पढ़त करना दोनों हाथों से खाली भरी दिखाकर एक साथ दो तालों की ताल लगाते हुये परन पढ़त करना, छंद स्तुतियों के सार्थक शब्द अक्षर सः मृदंग पर बजाकर श्रोताओं को सुनाकर मंत्रमुग्ध कर देना आपके हस्त लाधव का जीवंत उदाहरण है।
पं.अवधेश द्विवेदी अनेक संगीत मचों से अनेक मान सम्मान पुरस्कार प्राप्त किये जिनमें संगीत शास्त्री, परवावज पंडित, मृदंग मार्तण्ड, मृदंगाचार्य उपाधियों के अलावा पं. कुदऊ सिंह पुरस्कार ओरछा टीकमगढ़, संगीत तुलसी दल पुरस्कार तुलसी पीठ चित्रकूटधाम, संगीत मंचा लंकार किशोर मंच महोबा, मृदंग वाचस्पति ललित कला परिषद फतेहपुर, संगीत गौरव मधुकर संगीत समारोह दतिया, ताल तत्वज्ञ लल्लू सिंह, संगीत समारोह आगरा, बुन्देली निधि अलंकरण वातायन उरई, के अलावा सन् 2001 ई0 में स्वर साधना समिति बंबई द्वारा “स्वर साधना रत्न” पुरस्कार से आपको पुरस्कृत किया गया।
कई संगीत संस्थाओं द्वारा आपको परीक्षक के रूप में आमंत्रित किया जाता है। अनेक संगीत गृन्थों के अलावा अंग्रेजी की बहुचर्चित पुस्तक दिल्ली प्रकाशन “एशियन अमेरिकन हूज हूं’ मैं आपका जीवन वृत्त अंकित हैं आपके द्वारा लिखे संगीत विषयक लेख रचनायें अनेक संगीत पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहते हैं।
शब्द शिल्पी पं. अवधेश द्विवेदी दुर्लभ वाद्य मृदंग-परवावज के प्रचार-प्रसार हेतु जिज्ञासु छात्रों को विद्या दान देते रहते हैं। आपके सुपुत्र सुरेश द्विवेदी, साकेत द्विवेदी संगीत साधनारत् हैं पं. अवधेश द्विवेदी बिना किसी शासकीय सेवा सहायता के जनता जनार्दन की सांगीतिक सेवा करते हुये अपना सत्संगमय जीवन बिता रहे हैं। वर्तमान में कई वर्षों से आप बांदा के निवासी है। सन् 2016 ई। को संगीत नाटक अकादमी लखनऊ द्वारा एवार्ड प्राप्त किया ।