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Niputi Raja Aur Jetha Putra निपूत राजा और जेठ पुत्र- बनाफरी लोक कथा

किस्सा सी झूठी न बात सी मीठी। घड़ी घड़ी कौ विश्राम, को जाने सीताराम। न कहय बाले  को दोष, न सुनय  बाले का दोष। दोष तो वहय जौन किस्सा बनाकर खड़ी किहिस  और दोष उसी का भी नहीं। । शक्कर को घोड़ा सकल पारे के  लगाम। छोड़ दो दरिया के बीच, चला जाय छमाछम छमाछम। इस पार घोड़ा, उस पार घास। न घास घोड़ा को खाय, न घोड़ा घास को खाय। …. जों इन बातन का झूठी जाने तो राजा को डॉड़ देय।. .. . . कहता तो ठीक पर सुनता सावधान चाहिए। . . . . .।  

अइसे-अइसे एक रहै राजा, उसके चार रानियाँ थीं, तो उनमें से किसी के लड़का नहीं होता था। एक दिन उनके घर एक बाबा आया, उसने पुँछा- बच्चा के मकान में को है? राजा ने कहा, बाबा मैं हूँ और मेरे चार रानियों हैं, परन्तु मेरे एक भी सन्तान नहीं है, जिससे मैं ज्यादा दुखी रहता हूँ। बाबा ने कहा, राजा मेरी एक बात मानोगे? राजा ने कहा, क्‍यों नही। तो बाबा बोला कि मैं एक उपाय बताता हूँ, जिससे तुम्हारी चारों रानियों के पुत्र हो सकते हैं। परन्तु उन चार पुत्रों में से जेठे पुत्र को मैं अपने साथ ले जाऊँगा, तीन को तुम अपने पास रखना।

राजा ने कहा, ठीक है। तब बाबा ने राजा से कहा कि तुम जिस आम के पेड़ में चार आमों का गुच्छा लगा हो, उसको एक हाथ से यह डंडा लेकर मारना और दूसरे हाथ से आम लपक लेना। इसके बाद प्रत्यक रानी को एक- एक आम खिला देना, जिससे तुम्हारे चार पुत्र पैदा होंगे।

अब राजा ने बाबा से डंडा लेकर वैसा ही किया, आम लाया और तीन छोटी रानियों को खिला दिया, बड़ी रानी को न दिया क्योंकि वह उससे प्रेम नहीं करता था। यह सब कुछ बड़ी रानी की दासी ने देखा तो उसने आकर बड़ी रानी से बताया कि रानी जी, राजा जी से एक बाबा आम तोड़कर खिलाने को कह गया है और जेठे पुत्र को मांग गया है लेकिन राजा जी ने आपको आम नहीं दिया, बाकी तीनों रानियों को दिए हैं।

रानी बोली, न देने दो, उनकी  मर्जी , जिसका पुत्र  देना होगा, उसको खिलायेंगे, मुझे क्‍या? लेकिन उस दासी का मन नहीं माना, वह छोटी रानी के महल में पहुँच गयी और उसी जगह पर जाकर बैठ गयी जहाँ आम के छिलके पड़े हुए थे। छोटी रानी ने दासी से पूछा कि क्‍यों, आज कैसे घूम पड़ी? दासी ने कहा, ऐसे ही, रानी जी सो गयी थी तो मैंने सोचा कि चलो छोटी रानी जी के दर्शन कर आऊँ और उसने आमों के छिलके को अपने ऑचल के छोर में बॉधकर चुरा लायी और उन्हें पीसकर बड़ीरानी को ठंढ़ाई बताकर पिला दिया।

अब छोटी रानियों के साथ बड़ी रानी के पेट में भी बच्चा आ गया और जब तीनों रानियों के लड़का हुआ तो उसके भी हुआ। तीनों रानियों के महल में हर्षोल्लास मनाया गया तो बड़ी रानी के महल में भी हर्षोल्लास मनाया गया। कुछ दिन बाद वे लड़के बड़े हुए तो बाबा आया उसने पूछा,बच्चा के मकान में कौन-कौन है? तो राजा बोला, बाबा सब कोई हैं। बाबा ने कहा, ठीक है, अपने लड़कों को बुलाओ। तो राजा उन तीन लड़कों, को सजा-संवारकर बाबा के सामने लाया।

बाबा ने उनसे पूछा, बच्चा छः महीने की डगर चलोगे या साल भर की। तो लड़कों ने कहा, बाबा छः महीने की। अब बाबा ने डंडा पीटते हुए कहा, जेठे पुत्र को लाओ। अब राजा बहुत घबराया, क्योंकि उसने बड़ी रानी को खाने के लिए आम तो दिए नहीं थे, जाय तो कैसे जाय? किसी तरह संकोच करते-करते राजा बड़ी रानी के महल में पहुँचा तो वही दासी मिल गयी। दासी ने राजा से पूँछा, आज राजा जी कैसे भूल पड़े? तो राजा ने कहा, आम तो खिलाया नहीं, अब बाबा जेठा पुत्र  मांग रहे है, दे तो कैसे दें?

दासी के मुंह से जल्दी से निकल गया, हों देंगे जेठा  पुत्र अब बड़ी रानी दासी को डांटने लगी कि तूने क्यों छिलका लाकर मुझे खिलाया था जिसको वह आम खिलाता, उसी से लेकर लड़का देता, मुझे क्‍या? इतने में उसका लड़का भी आ गया, वह बोला, माताजी, अब तुम परेशान न हो, मुझे जानें दो। राजा उसे सजा- संवारकर बाबा के सामने लाया। बाबा ने उससे पूछा, बच्चा छः महीने की डगर चलोगे कि साल भर की। लड़के ने कहा, बाबा साल भर की। बाबा ने कहा, ठीक है,मैं इसी को अपने साथ ले जाऊंगा।

अब लड़के ने बाबा से कहा, थोड़ी देर के लिए रुकिये, मैं अपनी माता से मिल लूँ। बाबा ने कहा, ठीक है। वह लड़का अपनी माँ के पास गया और बोला, माताजी अब तो मैं बाबा के साथ जा रहा हूँ, आज तुम मुझे अपने हाथ से खाना बनाकर खिला दो, पता नही फिर आऊँ कि न आऊं। बड़ी रानी ने लड़के को खाना-खिलाया और रोते- रोते बिदा किया।

जब लड़का जाने लगा तो एक आश का बिरवा’ ऑगन में लगाकर अपनी माँ से बोला कि माँ यदि यह बिरवा हरा-भरा बना रहे तो समझना मैं अच्छी तरह हूँ और अगर यह मुरझा जाये तो समझना मैं कष्ट में हूँ और अगर यह टूटकर गिर जाये तो समझना मैं मर गया हूँ। अब वह लड़का इतना कहकर बाबा के साथ चला गया।

जब वह बाबा की कुटी में पहुँचा तो बाबा उसे वहाँ पर छोड़कर नित्य- क्रिया करने चला गया। अब लड़के ने वहाँ पर ढेर सारी हडिडिया और खोपड़ी के कंकाल पड़े हुए देखे। वे हड़िडया और कंकाल लड़के को देखकर हंसने लगे तो लड़के ने पूछा, क्यों भई, क्‍यों हंस रहे हो। वे खोपड़िया बोली कि थोड़ी देर बाद तू भी हमारे साथ मिल जायेगा।

लड़के ने पूछा, कैसे, मैं कैसे मिल जाऊँगा। तो वे बोली कि अभी बाबा जब आयेगा तो कहेगा, बच्चा लीपो भटठी। तो तू ही लीपेगा और बाबा पीछे रहेगा। बाबा फिर कहेगा, बच्चा फूको भटठी। तो तू ही फूकेगा और जलायेगा, बाबा पीछे रहेगा। फिर कहेगा, बच्चा चढ़ावो कढाइया। तो तू ही चढ़ायेगा। फिर बाबा कहेगा, बच्चा लगाओ पैकरमा। तो तू ही आगे फिरेगा और बाबा पीछे रहेगा तथा तुम्हें उसी कढाई में डाल देगा और पकाकर खा जायेगा और हड़िडिया फेंक देगा।

अब लड़का बोला, तो फिर क्‍या उपाय किया जाय? हड्डिडयों ने बताया कि जब बाबा तुझे यह सब करने के लिए बोले तो तू कहना कि ‘आगे गुरू तो पीछे चेला’ इस तरह जब बाबा आगे-आगे पैकरमा करे तो तू बाबा को उठा के भटठी में डाल देना और जब बाबा पक जाय तो वही मांस हम सब हडिडियों में छिड़क देना तो हम लोग भी जीवित हो जायेंगे और इस तरह तू भी बच जायेगा। क्योंकि बाबा को रोज एक घोड़ा और एक लड़का खाने की आदत है।

अब जब बाबा नहा-धोकर आया और लड़के से बोला कि बच्चा लीपो भटठी। तो लड़का बोला कि पहले गुरू तो पीछे चेला। अब जब बाबा आगे-आगे लीप तो पीछे- पीछे लड़का भी लीपता जाय। इस तरह जब पैकरमा करने की बारी आयी तो बाबा ने कहा, बच्चा लगाओ  पैकरमा। तो लड़का बोला, बाबा, आगे गुरू तो पीछे चेला।

अब मजबूरन बाबा को आगे-आगे पैकरमा करना पड़ा। जब वह पैकरमा करने लगा, तब तक भटटी में ताव भी आ गया था। लड़के ने पीछे से बाबा को उठाकर भटठी में डाल दिया। अब बाबा उसमें फद्फदाकर पाक गया और जब ठंडा हो गया तो लड़के ने उसके मांस को उन हडिडयों पर छिड़क  दिया जिससे सभी एक से एक घोड़े और एक से एक लड़के जीवित हो गये।

अब सबने लड़के की बड़ाई की धन्यवाद दिया कि तुमने हमको बचा लिया। लड़के ने कहा कि आप लोगों ने युक्ति बताकर मुझे बचाया, इसलिए मैंने आपको बचाया। अब सब लोग अपने-अपने घर को चलने लगे। वह लड़का भी अपने घर की ओर चला तो उसे रास्ते में एक बुढ़िया मिली, जो बाबा की ही तरह खूब चालाक थी और इसी तरह छल-कपट करके, जुँआ खेल-खेल कर ढेर सारी धन-दौलत और घोड़े इकटठे कर लिए थे।

अब जब लड़का उसके पास से गुजर रहा था तो बुढ़िया बोली, कहा जा रहे हो लाला, आओ कुछ देर जुँआ खेलें। लड़का थोड़ी देर के लिए रूककर, जो भी उसके पास आठ-आना, चार-आना, पैसे थे, उनसे जुआ खेलने लगा तो सब कुछ हार गया, घोड़ा भी हार गया। अब लड़का बोला कि दाई, मेरे पास तो अब कुछ भी नहीं है, तो उसने अपने को जुँआ में लगा दिया तथा हार गया। अब उस बुढिया ने उसे भी अपने घर में बंद कर लिया।

अब जब लड़का भूख-प्यास से व्याकुल , परेशान हुआ तो उधर उसके घर में आश का बिरवा मुरझाने लगा। जिससे उसकी माँ को पता चल गया कि मेरा बेटा कष्ट में है, वह बहुत दुखी हुई। वही पर छोटी रानी का लड़का मौजूद था। उसने कहा, अम्मा तुम दुखी न हो, मैं अपने भाई को जरूर ढूंढकर लाऊँगा। अब वह छोटी रानी का लड़का उसे ढूँढने  निकला पड़ा और उसी बुढ़िया के यहाँ पहुँच गया तो बुढ़िया ने लड़के से कहा कि आ बच्चा थोड़ी देर के लिए जुआ खेल ले। तो लड़का समझ गया कि यह बुढ़िया बहुत चालाक है।

अब लड़का जुँआ खेलने बैठ गया। बुढ़िया भी अपना पांसा लेकर बैठ गयी। तो लड़का बोला कि दाई पहले मुझे थोड़ा सा पानी पिला दो, मैं बहुत प्यासा हूँ। अब जब बुढ़िया पानी लेने चली गयी तो लड़के ने अपना पांसा बुढ़िया की तरफ रख दिया और उसका जिताने वाला पांसा अपनी तरफ रख लिया। जब बुढ़िया पानी लेकर आयी और जुँआ खेलने लगी तो हारने लगी। अब वह बुढ़िया धीरे-धीरे अपने पास जमा सब धन-दौलत हार गयी। तब उसने घोड़े दांव पर लगाये तथा वो भी हार गयी।

जब लड़के ने देखा कि ये घोड़ा मेरे भाई का है तो वह समझ गया कि मेरा भाई भी यही पर होगा। अब धीरे-धीरे बुढ़िया अपना सब कुछ हार गयी तो उस लड़के का बड़ा भाई भी निकला। तब लड़के ने कहा कि दाई अब तेरे पास क्‍या है जुआ खेलने को। तो बुढ़िया बोली, का है, मै ही हूँ, मुझे ही ले लो। तो लड़के ने बुढ़िया को पकड़कर नालेमें फेंक दिया। अब लड़के ने अपने बड़े भाई को नहला-धुलाकर खिलाया-पिलाया और जितनी धन-दौलत निकली थी, उसे बांट दिया।

उधर बड़ी रानी के घर का आश का बिरवा पुनः हरा-भरा होने लगा तो रानी समझ गयी कि मेरा लड़का मिल गया है, अतः वह बहुत प्रसन्‍न हुई। इस प्रकार दोनों भाई धन-दौलत के साथ खुशी-खुशी अपने घर आ गये। किस्सा रहै सो हो गया ।

बुन्देली लोक कथा परम्पराएं 

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