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Nij Hriday Tanik Nabh Sa निज हृदय तनिक नभ सा विस्तृत तो होने दो

चन्दन सा हो जायेगा …..

निज हृदय तनिक नभ सा विस्तृत तो होने दो ,
सारा जग अपना ऑगन सा हो जायेगा ॥

रत्नों से बढ़कर मूल्यवान होते आँसू
जितने समेटकर भर लोगे उर झोली में ॥

उतने ज्यादा होकर- क्षण तुम तक
आवेंगे लेकर सुखमय उपहार उमर की डोली में ॥

पर पीड़ा से निज को परिचित तो होने दो ,
सूना जीवन यह मधुवन सा हो जायेगा ॥

चाँदनी चँद के संग प्यार के शत- शत क्षण ,
दुखियों की पलभर सेवा पर न्यौछावर॥

घावों को भरकर जो सुख को सरसा देते ,
रेशमी पटो से वस्त्र अधिक वे सुखकर हैं ॥

पर – सेवा जीवन में अँकुरित तो होने दो ,
ये साँसों का वन नन्दन सा हो जाएगा ॥

उसने इतना ही रूप गंध रस पाया है ,
जो जितने ज्यादा कांटो में पल हुआ बड़ा ॥

अविरल दुर्गमताओं में बढ़ने वाला ही ,
सौ – सौ तूफानों में भी डटकर हुआ खड़ा ॥

संघर्षो से तन सँस्पर्शित होने दो ,
कण-कण तन-तरु का चन्दन सा हो जायेगा ॥

कस्तूरी मृग से भ्रमित , गंध हित मत भागो ,
सांसों का सीमित कोष व्यर्थ खो जायेगा ।

तुम करो युगान्तर उर में नवचेतना जगा ,
वरना मन थके मुसाफिर सा सो जायेगा ॥

जग-ज्वाला में निज को पोषित तो होने दो ,
ये माटी का तन कंचन- सा हो जायेगा ॥

  सुरेन्द्र शर्मा ” शिरीष ” का जीवन परिचय

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