Homeबुन्देली व्रत कथायेंNagpanchami Vrat Katha नागपंचमी व्रत कथा

Nagpanchami Vrat Katha नागपंचमी व्रत कथा

बुन्देलखण्ड में Nagpanchami Vrat Katha को भोत महातम हैसाँवन कौ मइना आव । सबई के भइया अपनी-अपनी बैनन खौं लुआवै चले गये । कछू जनीं सावन के लगतनई अपनें मायके चली गई, उर कछू जनी अपनें – अपनें भइया भतीजन की बाठ हेरै बैठी ती। दिन बूड़ै ग्योड़े के कुँआ पै पनयारियन की भीर जुर गई । सबजनीं अपनें- अपनें मायकन चर्चा कर-कर कै भइया – भतीजे उर भौजियँन की तारीपन के पुल बाँधन लगीं। अकेलीं एक जनीं उदास उर मनमारै अपनी खैप दूर धरै बैठी तीं ।

उयै दूर बैठके देख सब जनी ऊसें पूछन लगी कै काय बैन तुम दूर उदास सी काय बैठी हों । का तुमाये भइया भौजी नइयां । सुनतनई ऊकी डबरिया भर आई उर गरों भर आव । वा रूँन्दे-रूँन्दे गरे सैं कन लगी कै मोय तौ कछू खबरई नइया। जबसै ब्याई आई सो एकई देरी की होकै रै गई । कजन हमाये मायके में भइया भौजी होते तौ कभऊँ ना कभऊँ लुआबे तौ आऊतई ।

लुगाइयँन में हीरपीर तौ भौतई होत है। सब जनी कनलाई अरी बैन ऐसो कओं होत कै तुमाये मायके मे बाप तौ हुइयई । बैन तुम अपने घरै जाकैं अपनी सासो बाई सैं पूछियो। वे सब साँसी – साँसी बता दैय। वा चुपचाप उठी उर सूदी खेप उठा कै घर कुदाउँ मन धरयात सी चलदई। खैप खौं घिनौची पै धरकै गुड़ मुड़यानी सी खटिया पै डर रई ।

तनक देर में सास बायरैं सै भीतर आई । ससुर पूजा पाठ करकै मन्दिर कुदाऊँ कड़ गये लरका गइयाँ बछियाँ लैकै हार की तरपै कड़ गये । उर बऊधन क्याँय कड़ गई। पानी भरबे में भौत देर लगा दई ऊनें । अरे खेपतौ घिनौची पै धर बऊधन खटिया पै डरी हैं । देखतनई उयै पसीना आ गओं। अरे आज बरस दिना के दिन बऊ खौं तापतौ नई चढ़ आई ।

वे जल्दी खटिया नौ ठाँढ़ी हो कन लगी कै अरी ओ प्यारी दुलइया तुम पानी भरकै परकाय आ रई । का कछू तुमाव पिरात दुखत है का । सासू खौं देखतनई वा उठकै ठाँढ़ी हो गई । उर कन लगी कै बाई हमाओ कछू नई पिरात। अकेलै जब हमें कुँआ बेर पै चार जनीं ठाँढ़ी मिलतीं सो कर्ती कै जौ सावन कौ मइना है। सबके भइया तौ अपनी बैनन खौं लुआबे आ रये अकेलै प्यारी दुलइया कौ कोऊ लिबौआ नई आव । कायेकै मायकै में भइया भौजी नइया ।

बाई जे बातें सुन-सुन के हमाओ तो करेजौ सौ फटन लगत। तुम साँसी – साँसी तौ बताव कै हमाओ मायकौ कितें हैं | हमाये भइया भौजी कितै है । बऊधन की बातें सुनकै सास की छाती में गतकौ सौं लगो । उर वा गुर भरो हसिया की नाई होकै रै गई। कै जो ना उगलत बनें उर ना गुटकत बनें । चिन्टा कैसी काटी ठाँढ़ी होकै रै गई । का बतायें वा बऊधन खौं । ऊके मायके कौ तो दिअई सौ बुज गओ तौ ।

वा अपनें मताई बाप कै अकेलिअई संतान हती। ब्याव के कछूअई दिना में बूढ़े बाप मताई सुर्ग सिधार गये ते । ब्याव के बाद ऊने मायकै कौ मोई नई देखो तो। अब बताव जीकै भइअई नइया वौ बैन खौं लुआबे कासै आबै। अपनी सास खौं मौगो चालो देखकै ऊनें फिरकऊँ पूछी कै काय बाई तुम मौगी चालौ काय हों। बोलती कायं नइया।

सासू बोली कै बेटा तुमाये मताई – बाप उर भइया – भौजी सब कोऊ हैं। अकेले माओ मायकौ इतै से हजारन कोस दूर है । उतै तक आये जाये में हजारन रूपइया खर्च होत । ऐई सैं खर्चा के डर सै बे तुमे इतै नौ लुआबे नई आ पाऊत।  कोनऊ दिना पइसा टका कौ इंतजाम करकै हम भइया के संगै तुमें मायकै पौचा दैयं । सो तुम सबखौं देख आइयौ ।

कछू दिना में तुमाई नंद आवे बारी है सोऊकै संगै कछू दिना हिल मिलकै रै लिइयौ । सास की बातें सुनकै उ तनक धीरज सौं बदो। उर उठकै सपर खोर कै घर के काम काज में लग गई। दूसरे दिना नागपंचमी हती। व दिन बूड़े फिर खेप उठाकै पानी भरबे कुँआ पै पौंच गई । औरतें तौ उतै जुरी ठाँढ़ी अई हतीं। उन्हें फिर पूछी कै काय प्यारी हमें तौ भियाने अपने मायके जाने तुम कब जा रई मायकै।

सुनतनई वा टेर दैकै रोवन लगीं। चारई तरप सैं औरतें जुरकै आ गई । उर पूछन लगी कै ऐसी का है बैन जो तुम बिसूर – बिसूर कै रो रई हो । वा तनक शांत होकै कन लगी कै बैन, हमाओ मायको तो लंका के छोड़े है। हमें उतै सैं लुआवे अब को आ पाऊत । अब तौ हम एकई देरी कै होकै रै गये। ईसैं भइया की खबर करकैं हिलहिली नई समा रई । सबजनी उर्यै धीरज धरावन लगीं।

उतै कुँआ की पाटी के लिंगा की वामी के बायरैं एक साँप बैठो – बैठो जो सब सुन-गुन रओ तो । बिटिया खौं बिसूरत देख कैं उयै दिया आ गई, उर ऊनें सोसी कै हम भियानें अपने घरै लोआ जैय। जा सोसकै वौ सूदौ नागनी नौ जाकै कन लगो देख री हमने कुँआ पै एक बिना भइया की बैन खौं बिसूरत देखौ सो मोय ऊपै दिया सी आ गई। कजन तुम कओ तौ उयै काल हम अपने घरै लोआ ल्आय ।

तुमाये लरका तौ हजार ठौवा है। उर बिटिया एकऊ नइया सो तुम उयै कछू दिना बिटिया जानकै राखै रइयौ। जीसै कछू दिना ऊकौ मन बहल जैय । पैला तौ नागनी मौगी चाली बनी रई फिर बोली कै कजन तुमाई इच्छा होय तौ लोआ ल्आव । नाग तौ जा चाऊतई हतो वौ बड़े भुसरो मान्स कौ रूप धरकै अच्छो स्वापा बाँध के ऊ बिटिया की पौर के दौरे जा बैठौ ।

ससुर के आऊतनई रामा श्यामा भई उर परिचय भओ। वो बोलो कै हम तुमाई बऊ धन प्यारी दुलइया के बड़े भइया आँय। बिलात दिना सैं इतै आ नई पाये । अबकी दारै हम उयै लुआबे खौं आये । सो अपुन उयै भुसारें पौचा दिइयौ। राखी के दूसरे दिना हम खुदई उयै पौंचा दैय । भइया के आबे की खबर सुनकै अब प्यारी दुलइया हाली फूली हो गई । भइया ने सबके चरन छिये सास ने सब स्वागत सत्कार करो ।

प्यारी दुलइया पुरा मुहल्ला भरमें कै आई कैहमाये बड़े भइया हमे लुआवे आये हैं । उर काल हमें मायके जानें है। जैसै-तैसे ऊकी रात कट पाई । बड़े भुन्सरा उठकें अच्छी तरा सैं सपर खोर कैंउर मावर मांऊदी की करकै भइया खौं कलेवा कराकै प्यारी दुलइया बिनई कछू खाँय पियै भइया के संगै मायके खौं चल दई । बामी के लिंगा पौंचकै नागराज साँप बनकैं ऊसै बोलो कै देखौ जाँ हुन हम जाँ सो हमाये पाछै तुमई घिसटत चली जइयो ।

पैलातौ वा साँप देखकै डरा गई। फिर ऊने सोसी कै अब जैसी हुइर्यै सो सब देखी जैय बिना मायकें से मरबऊ साजौ हैं। अब हम काल के मौंमें जा रये। मरने हुइयें सो मरई जैय। अब और ईके आगे का हो सकत। कन लगत कै जब उखरी में मूँढ़ दई सों अब मूसरन कौ का डर। ऐसी सोस कै करों जिऊ करकै ऊकै पाछै-पाछै सरकत चली गई। उर सूदी नागराज ‘घरै पौंचगई।

पौंचत नई नागनी उयै बड़ी आव भगत सें आदर सत्कार करो उर खूब अच्छौ ख्वाव पेआव । अच्छे-अच्छे मेवो बिंजन तैयार कर कर कैंख्आये । बढ़िया लहर पटोरे पैराये। हीरा मोतियन कै हार गरे में पैराये । प्यारी दुलइया उतै भौतई खुश हती। उयै उतै मायको कौ साँसो सुकमिल रओ तो । नाग और नागिन ने पूरी घर गिरस्ती ओइयें सौप दई ती ।

एक दिना नाग और नागिन बायरै जाती बैरा बोले के देखो हम तौ चरबे खौं बायरै जा रये लौटवे में दो चार दिना लग सकत। तुम आराम से खइयौ पिययौ, अकेले आँगन में जौ जा चुलिया ढकी धरी सो उयै तुम भूल कै हात नई लगाइयौ । उर फिर जौ जानो सो करती धरती रइयौ । इत्ती कैं-कैं वे तो दोई जनै बारै चले गये । उर प्यारी दुलइया हँसी-खुशी में खा पी कै घूमन फिरन लगी ।

अकेलो उनके मन में जा एक बात टकरान लगी कै ऐसोई चुलिया में का धरो हुइयें जियें छीवै की मांई मामा मनाई कर गये। दो दिना तौ वे ऊके लिंगा नई गयीं, फिर तीसरे दिना उने राई नई आई, उर ऊनें कर्रो जिऊ करकै वा चुलिया उगारई दई ।

चुलिया उगरतनई ऊमें सें हजारन सपेलुवा किलबिलात दिखानें। डरन के मारे चुलिया को ढक्कन ऊकै हात से छूट गओ जीसै एक सपेलुआ की पूँच कट गई। उर वौ बाँडा हो गओ । उदना सै वे ऊ चुलिया कुदाऊँ हैरईनई । उर तीसरे चौथे दिना नाग नागिन लौटे तो उनसें सूदी सांसी बात बता दई । पैला तो सुनतनई नागिनी खौं कछू गुस्सा सौ भर आओ, फिर नागराज के समजाय सें शांत हो गई।

मँईनाक राखवे के बाद उन्ने खूब पठोंनी हीरा जबारात उर सोनो उर नौलखा हार पैराकै प्यारी दुलइया की बिदा कर दई । नागराज ओई गैल हुन लौवा कै प्रेम सें घरै पौंचा आये । पठोंनी देख कै सास-ससुर उर घरवारै खौं भौतई खुशी भई । गाँ भर में खबर फैल गई कै प्यारी दुलइया कै भइया – भौजी भौत पैसा वारे है । जिन्ने पठोंनी में बैन खौं नौलखा हार पैराव है।

अब का कने गाँव भर की लुगाइयन में ऊको खूब आदर सत्कार होन लगो । उर सबकोऊ मान गओ कै प्यारी दुलइया भौत बड़े आदमी की बिटिया है । जीकौ भइया अपनी बैन को नौलखा हार पैरा सकत। ऊकी का कनें ।

उतैं जौन सपेलुआ चुलिया गिरै सै बाँड़ा हो गओ तो उयै सबने अपनी बिरादरी सै अलग कर दओ। सबरै साँप कन लगे कै हम बाँड़ा खाँ अपने संगें नई खिला सकत। बाँडा अपनी दशा देख-देख कै भौतई खुन्सया गओ तो । वों अपनी मताई नौ जाकै पूँछन लगो कै सांसी सांसी तौ बताव कै हम बांड़ा कैसें भये । नागिनी बोली के बैटा तुम पेटई सें बांड़ा भये ते। अकेले उयें विश्वास नई भओ। उर फिर जिद्द करन लगो तो।

फिर नागिनी ने सांसी-सांसी कै दई। सुनतनई बांड़ा साँप आग बबूला होकै कन लगो कै अब हम दीदी खाँ काटे बिगर नई रै सकत। मताई ने भौतई समजाव अकेलै वौ मानौ नई । वौ तौ सरकत – सरकत सूदौ प्यारी दुलइया के ना पाँचौ उर सूदौ घिनौची पैजा बैठो। ऊनें सोसी कै बैन जईसैं पानी भरवे आय । सोऊ उये हम डंस लैय।

इतेकई में गाँव के जिंमीदार के लरका कौ ब्याव आ गओ । गाँव भर में चर्चा तो हतिअई कै प्यारी दुलइया खौं मायकै सैं नौलखा हार मिलो हे । जिंमीदार ऊ हार खौं अपनी बऊ खौं चड़ान चाऊत ते । उन्ने प्यारी दुलइया कै ससुर नौ खबर पौंचाई उन्ने अपनी बऊधन सैं कै दई । सुनतनई बऊधन कन लगी कै-
जुग जुग जियै मोरौ मामा मांई, जिये मोरे भइया हजार ।
साँसी कये अपने बाँड़ा वीर कीसौ, टूटौ डरौ मोरो नौलखा हार ।

 इत्ती सुन कै जिंमीदार साव तो अपने घरै लौट गये, उर जे सब बातें बाँड़ा सांप घिनौची पै बैठ-बैठौ सुन ओ तो । सुनतनई वौ समज गओ । के हमाई बैन हमें भौत चाऊत । ऐसी अपनी प्यारी बैन खौं काट के हम का करें । वौ चुपचाप बैन के पांव छूकें मताई नौ पौंच गओ । उयै देखतनई नागिनी बोली कै काय भइया तुम अपनी बैन खौं डंस कै आ गये का।

बाँड़ा पूरी किसा सुना कै कन लगो कै बैन हमें सबसे ज्यादा चाऊत । ऐसी बैन खौं काट के हम का करें । उदनई सैं वौ अपनी बैन की हीर पीर को पूरौ – पूरौ ख्याल करन लगो । देखो तो सांपन तक खौं अपने पराये कौ ज्ञान होत।

भावार्थ

सावन का सुहाना और सुखदायक महीना आ गया। सभी के भाई अपनी-अपनी बहिनों को लिवाने के लिए चले गये। कुछ बहिनें सावन का माह लगते ही अपने-अपने मायके चली गईं और कुछ अपने भाई-भतीजों की प्रतीक्षा में बैठी हुई थीं। संध्या के समय कुँए पर पनिहारिनों की भीड़ एकत्रित हो गई। औरतों में आपस में चर्चा करने की आदत तो होती ही है।

उस समय कुँए पर चर्चा का प्रमुख विषय अपने मायके के भाई-भतीजों और भाभियों की प्रशंसा करना ही था । सब अपने-अपने मायकों की प्रशंसा के पुल बाँध रही थीं । किन्तु एक महिला बड़े ही उदास मन से अलग अपने बर्तन रखकर बैठी थी। महिलाओं की चर्चा में तो उसकी रुचि नहीं थी, वह मन ही मन बैठी हुई कुछ सोच रही थी । उसे अलग बैठा हुआ देखकर औरतों ने उससे पूछा कि बहिन तुम दूर क्यों बैठी हो ? क्या तुम्हारे मायके में भइया – भतीजे नहीं हैं?

इतना सुनते ही उसकी आँखें भर आईं और उसका गला भर गया । फिर वह अपने रूँधे हुए गले से बोली कि बहिन जी मुझे तो कोई पता ही नहीं है। जब से मेरी शादी हुई है, तब से मैं तो एक ही घर की होकर रह गई हूँ। यदि मेरे मायके में भइया-भाभी होते, तो कभी न कभी तो मुझे लिवाने के लिए आते ही। औरतों में एक दूसरे के प्रति प्रेम और सहानुभूति तो होती ही है । औरतें कहने लगीं कि बहिन कहीं न कहीं तुम्हारे माता-पिता तो होंगे ही। तुम इसके बारे में अपनी सास से जानकारी लेना, वे तुम्हें सारी बातें बता देंगी।

वह सीधी पानी भरकर उदास मन से अपने घर की ओर चल दी। पानी के बर्तन रखकर वह बड़े ही दुखी मन से खटिया पर जा लेटी । थोड़ी ही देर में उसकी सास बाहर से घर के अंदर आयीं। ससुर पूजा-पाठ करके मंदिर की ओर निकल गये । उसका पति गाय बैल लेकर खेत की ओर निकल गया। सास ने सोचा कि बहू पानी भरकर अभी तक क्यों नही आई ?

कुँए पर गये हुए उसे बहुत समय हो गया है। बाहर आँगन में देखा तो बर्तन तो घिनौंची में भरे रखे थे। फिर प्यारी दुलइया किधर निकल गई है? अंदर जाकर देखा तो बहू मुरझानी सी खटिया पर पड़ी थी। देखते ही सास घबड़ा गई। अरे! आज त्योहार के दिन बहू को बुखार तो नहीं चढ़ आया। सास ने अपनी बहू की खटिया के समीप खड़े होकर कहा कि- अरे प्यारी दुलइया ! तुम्हारी तबियत तो खराब नहीं है। तुम लेट क्यों गई हो ? सही-सही बताओ क्या कारण है?

अपनी सास को देखकर प्यारी ‘दुलइया खड़ी होकर कहने लगी कि मुझे कोई दुःख तकलीफ नहीं है । कष्ट तो मुझे इस बात का है कि पुरा – पड़ोस की औरतें मुझे ताने से मारने लगती हैं । औरतें कहती हैं कि इस सावन के महीने में सबके भइया आ-आ कर अपनी बहिनों को राखी बँधवाने के लिए घर ले जा रहे हैं। तुम्हारे भइया-भाभी नहीं है। अम्मा जी ये बात मुझे बहुत चुभ गई है।

अब आप सच-सच बताइये कि मेरा मायका कहाँ है? मैं भी अपने भइया – भाभी को देखना चाहती हूँ। औरतों की बातें सुनकर मेरी छाती फटने लगती है। अपनी पुत्रवधू की बातें सुन-सुनकर सास के मन को भारी चोट लगी । अब वह अपनी बहू को क्या बताये ? बहू के मायके के परिवार में कोई नहीं बचा था । उसके मायके का तो नाम निशान ही मिट चुका था । वह अपने माता-पिता की केवल एक ही संतान थी।

विवाह के कुछ ही दिन के बाद उसके माता-पिता स्वर्ग सिधार गये थे । विवाह के बाद उसे मायके जाने का अवसर ही नहीं मिल पाया था । अब बताइये, जिसका भाई नहीं है, अब वह उसको क्यों लिवाने आयेगा । अब उसकी सास उसे क्या बताये । सास को शांत देखकर उसने पूछा कि बाई जी आप शांत क्यों हैं? बोलती क्यों नहीं हो ?

सास ने कहा कि बेटा तुम्हारे माता-पिता, भइया – भाभी सभी कोई हैं, किन्तु तुम्हारा मायका सैकड़ों मील दूर है। वहाँ तक आने जाने में हजारों रुपये व्यय होने के डर से तुम्हें कोई लिवाने के लिए नहीं आ पा रहा है। किसी दिन किराये खर्चे की व्यवस्था करके मैं तुम्हें मायके भेज दूँगी। वहाँ जाकर तुम सबको देख आना, कुछ दिन बाद तुम्हारी ननदबाई आने वाली हैं। तुम उनके साथ कुछ दिन तक हिल-मिलकर रह लेना ।

सास की बातें सुनकर प्यारी दुलइया को कुछ धैर्य प्राप्त हुआ। वह शांत होकर स्नान करके घर-गृहस्थी के काम-काज में व्यस्त हो गई। दूसरे दिन नागपंचमी का पावन पर्व था । वह फिर शाम के समय खेप उठाकर पानी भरने के लिए कुँए पर पहुँच गई। औरतें तो वहाँ खड़ी ही थीं । उन्होंने फिर पूछा कि क्यों प्यारी बाई ! हम कल अपने मायके जा रही हैं और तुम कब मायके जा रही हो?

सुनते ही वह टेर देकर रोने लगी। उसका रोना सुनकर औरतें उसे घेरकर खड़ी हो गईं और पूछने लगीं कि बहिन तुम्हें ऐसा क्या कष्ट है? जिसके कारण तुम फूट-फूटकर रो रही हो । वह कुछ शांत होकर बोली कि बहिन हमारा मायका तो लंका के छोर पर है। हमें वहाँ से लिवाने के लिए अब कौन आ सकता है? अब तो हम एक ही घर के होकर रह गये है। सब औरतें उसे सांत्वना देने लगीं।

उधर कुँए की पाट के पास एक बामी में बैठा हुआ काला साँप ये सब सुन रहा था । लड़की को व्याकुल होता हुआ देखकर उसका हृदय द्रवित हो गया। उसके मन में दया उत्पन्न हो गई। उसने सोचा कि रक्षाबंधन के अवसर पर इसे अपने घर ले जाना चाहिए। यह सोचकर वह सीधा नागिन के पास पहुँचा और उसने कहा कि मैं कुँए की पाट पर एक बिना भाई की बहिन को व्याकुल होता हुआ देख आया हूँ ।

उसके दुःख दर्द को देखकर मेरे मन में दया उत्पन्न हो गई है। यदि तुम कहो तो कल मैं उसे अपने घर ले आता हूँ। तुम्हारे लड़के तो एक हजार हैं, पर लड़की एक भी नहीं है। उसे कुछ दिन तक अपनी लड़की मानकर रखे रहना, जिससे कुछ दिन के लिए उसका मन – बहलाव हो जायेगा । नागिन ने कहा कि यदि आपकी इच्छा है तो ले आइयेगा । नाग तो यह चाहता ही था । वह बड़े सवेरे पुरुष का रूप धारण करके साफा बाँधकर प्यारी बाई की पौर के द्वार पर जा पहुँचा।

प्यारी बाई के ससुर के आने पर उसने प्रणाम किया। एक दूसरे का परिचय हुआ । उसने कहा कि मैं आपकी पुत्रवधू प्यारी बाई का बड़ा भाई हूँ । बहुत दिन से इधर आ नहीं पाया था। अबकी बार मैं उसे लिवाने के लिए आया हूँ । आप बड़े प्रात:काल विदा कर दीजियेगा। रक्षाबंधन के दूसरे दिन मैं इसे स्वयं ही भेज जाऊँगा ।

भइया के आने का समाचार सुनकर प्यारी बाई को बहुत प्रसन्नता हुई । भइया ने सबके चरण स्पर्श किए। सास ने उनका खूब स्वागत-सत्कार किया। प्यारी बाई मुहल्ले की सारी औरतों से कह आई कि हमारे बड़े भइया लिवाने के लिए आए हैं। और कल हमको अपने मायके जाना है । जैसे-तैसे रात कट पाई । प्यारी बाई ने बड़े सवेरे उठकर स्नान किया। माहुर मेहँदी लगाकर तैयार हो गई ।

भइया को नाश्ता कराया और बिना ही कुछ खाये-पिये अपने भाई के साथ मायके को चल दी। वे तो नागराज थे । प्यारी बाई के मन में भी कुछ संदेह था । बामी के पास पहुँचते ही उसका भाई सर्प बन गया। वह उससे बोला कि तुम हमारे पीछे-पीछे घसीटती हुई चली आना । पहले तो वह सर्प को देखकर डर गई। फिर उसने सोचा कि जैसा होगा, सब देखा जायेगा। यदि मरना होगा तो मर ही जायेंगे। मायके बिना तो मरना ही अच्छा है।

अब हम मृत्यु के मुँह में जा रहे हैं । अब उखरी में सिर दे ही दिया तो फिर मूसलों से क्या डरना है? यह सोचकर वह सर्प के घर में पहुँच गई। पहुँचते ही नागिन ने उसका खूब आदर सत्कार किया। बढ़िया मेवा और व्यंजनों के भोजन कराये । अच्छे बढ़िया रेशमी वस्त्र पहिनाये। उसके गले में हीरे-मोतियों के हार पहिनाये । वहाँ जाकर प्यारी बाई को बहुत आनंद प्राप्त हुआ। उधर उसे मायके से भी ज्यादा सुख प्राप्त हो रहा था ।नाग और नागिन ने अपनी पूरी घर-गृहस्थी उसी को सौंप दी थी।

एक दिन नाग और नागिन घर से बाहर जाते समय उससे बोले कि हम दो-चार दिन के लिए बाहर विचरण करने जा रहे हैं । तुम आराम से यहाँ रहकर खाना-पीना । लेकिन जो आँगन में ये चुलिया ढँकी रखी है, उसे भूलकर भी हाथ न लगाना। इसके अलावा चाहे जो करती रहना । तुम्हें इस घर में सब तरह की छूट है । इतना कहकर वे दोनों बाहर निकल गये और प्यारी ‘दुलइया हँसी- खुशी से खा-पीकर घूमने फिरने लगी ।

लेकिन उसके मन में बात बार-बार टकराने लगी कि इस चुलिया में ऐसा क्या रखा है। जिसे छूने से मनाकर गये हैं। दो दिन तक तो वह उस चुलिया के पास नहीं गई, किन्तु तीसरे दिन उससे नहीं रहा गया और उसने कठोर मन करके उसको उघाड़ ही दिया। चुलिया के उघारते ही उसे उसमें हजारों सपेलुवा दिखाई दिए। उन्हें देखकर डर के मारे चुलिया का ढक्कन उसके हाथ से छूट गया, जिसके कारण एक सपेलुआ की पूँछ कट गई। और वह बच्चा बिना पूँछ का हो गया।

उस दिन से उसने उस चुलिया की ओर देखा भी नहीं। तीसरे दिन नाग और नागिन लौटकर आ गये । उसने उन्हें सच्ची – सच्ची बात बता दी । सुनते ही नागिन पहले तो नाराज हुई, फिर नागराज के समझाने पर शांत हो गई। उसे महीने भर प्रेमपूर्वक रखा और खूब स्वागत-सत्कार किया, फिर हीरे- रे-जवाहरात देकर और नौलखा हार पहिनाकर उन्होंने सम्मान पूर्वक प्यारी बाई को विदा कर दिया । नागराज उसे उसी मार्ग से ले जाकर उसे घर पहुँचा आये।

अनेक प्रकार के उपहार और हीरे-जवाहरात देखकर सास-ससुर और उसके पति को बहुत ही प्रसन्नता हुई। इसके भाई तो धनी आदमी हैं। उन्होंने नौलखा हार पहिनाकर अपनी बहिन की विदा की है। अब क्या था? गाँव भर की औरतें प्यारी दुलइया का खूब आदर सत्कार करने लगीं। सारा गाँव मान गया कि प्यारी दुलइया एक बहुत बड़े आदमी की लड़की है, जिसका भाई अपनी बहिन को नौलखा हार पहिना सकता है । उसके बड़प्पन का कहना ही क्या है ?

उधर जो सपेलुआ चुलिया गिरने से बांडा हो गया था, उसे सर्पों ने अपनी जाति से अलग कर दिया था। सभी सर्प उससे कहने लगे कि हम लोग इस बांडा को अपने साथ नहीं खिलाना चाहते। वह अपनी दुर्दशा को देखकर बहुत दुखी था । उसने अपनी माँ के पास जाकर पूछा कि माता जी आज सच-सच बताइये कि हमारी ये पूँछ कैसे कट गई थी?

नागिन ने कहा कि बेटा तुम ऐसे ही पेट से उत्पन्न हुए थे, किन्तु उसे अपनी माँ की बात पर विश्वास नहीं हुआ और वह भेद जानने के लिए जिद करने लगा। अंत में नागिनी ने सच – सच बता दिया । सुनते ही वह प्यारी दुलइया पर आग बबूला हो गया और बोला कि अब हम दीदी से बदला लेकर ही छोड़ेंगे। उसकी माँ ने उसे बहुत समझाया, किन्तु वह माना नहीं । वह घसीटता हुआ सीधा प्यारी दुलइया के घर पहुँच गया और सीधा जाकर घिनौंची पर जा बैठा । उसने सोचा कि जब वह पानी भरने के लिए आयेगी, तभी मैं उसे डँस लूँगा ।

इसी बीच गाँव के जमींदार के लड़के की शादी आ गई । गाँव भर के लोगों को पता था कि प्यारी दुलइया को विदाई में मायके से नौलखा हार मिला है। जमींदार साहब अपनी पुत्र-वधू को नौलखा हार पहिनाना चाहते थे । उन्होंने प्यारी दुलइया के पास संदेश भेजा कि तुम कुछ दिन के लिए मुझे अपना नौलखा हार दे दो । लड़के की शादी के बाद मैं उसे तुम्हें वापिस कर दूँगा । संदेश पाकर उसके ससुर ने अपनी वधू से कहा । सुनते ही प्यारी दुलइया ने कहा…। 
जुग-जुग जिये मेरे भइया – भाभी, जियें मेरे भतीजवा हजार ।
साँची कहो अपने बाँडा वीर कीसों, टूटो डरो मोरौ नौलखा हार ।।

ये बात सुनकर जमींदार साहब अपने घर लौट गये और ये सब बातें घिनौंची पर बैठा हुआ सर्प सुनता रहा। सुनते ही वह समझ गया कि हमारी दीदी हमें बहुत अधिक चाहती है। ऐसी प्यारी दीदी को डस कर हम क्या करेंगे? ऐसा सोचकर उसने जाकर अपनी दीदी के चरण स्पर्श किए और सीधा लौटकर अपनी माँ के पास पहुँच गया।

उसने जाकर अपनी माँ को पूरी कहानी सुनाकर कहा कि दीदी मुझे सबसे अधिक चाहती हैं। ऐसी प्यारी दीदी को हँसकर हम क्या करते ? और उसी दिन से वह अपनी दीदी की कुशलता का पूरा-पूरा ध्यान रखने लगा ।सर्पों को भी अपने पराये का ज्ञान होता है। उनमें करूणा, प्रेम और सहानुभूति जैसे सद्गुण पाये जाते हैं।

बुन्देलखण्ड के श्रम गीत 

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