Nadi Betava Ki Ladai – Kathanak में पृथवीराज चौहान जब माहिल के भडकावे मे आकर महोबा पर आक्रमण करता है दूसरे राज्य से सेनाये न आ पाये तो बेतवा नदी के घाट रोक दिए तभी लाखनराय की सेना आती है दोनो मे युद्ध होताहै इस लिये इस लडाई को नदी बेतवा की लड़ाई के नाम से जाना जाताहै ।
पृथ्वीराज ने घाट रोक दिए हैं। यह खबर ऊदल को मिली तो आल्हा से कुछ उपाय करने को कहा। लड़ाई के अतिरिक्त और क्या उपाय था। आल्हा ने कलश पर पान का जोड़ा रखवाया और वीरों को चुनौती दी। लाखन राय ने बीड़ा उठा लिया और चुनौती स्वीकार कर ली। लाखन ने अपने नौ सौ हाथियों को बेतवा नदी पार करने को आगे कर दिया।
उधर चौंडा घाट पर रक्षा के लिए तैयार खड़ा था। चौंडा ने उन्हें पार करवाकर अपने हाथियों के झुंड में मिला लिया। लाखन राने ने नौ सौ अपने और सात सौ चौंडा राय के, यानी सारे हाथी हाँक लिये। चौंडा राय अपने हाथी पर चढ़कर लाखन के सामने जा पहुँचे। चौंडा ने लाखन को समझाकर वापस जाने के लिए कहा, पर लाखन ने तो चुनौती स्वयं स्वीकार की थी।
दोनों ओर से ललकार हुई और युद्ध शुरू हो गया। धनुआ तेली और मीरा सैयद ने वीरता दिखाई। तोप से लेकर तलवार तक से भारी युद्ध हुआ। लाखन ने चौंडा राय को हाथी से गिरा दिया। फिर कहा, “मैं पैदल पर वार नहीं करता, दूसरा हाथी ले आओ, तब लड़ना।”
चौंडा राय को हताश देखकर स्वयं पृथ्वीराज सामने आए। उन्होंने भी लाखन को प्राण खतरे में डालने से बचने के लिए कहा। पृथ्वीराज ने कहा, “कन्नौज के वीर तब कहाँ थे, जब हम संयोगिता को ले आए थे।” लाखन बोला, “तब तो मैं तीन वर्ष का था, अब उसका बदला लूँगा।” युद्ध की गति तेज हो गई। दोनों ओर से अलग-अलग मोरचे पर लड़ाई होने लगी। हाथी ऐसे गिरे हुए थे, मानो बीच-बीच में पहाड़ पड़े हों। आधी बेतवा में पानी बह रहा था तो आधी नदी में रक्त की धार बह रही थी।
पृथ्वीराज ने भारी मार मचाई तो लाखन के साथी पीछे हटने लगे। मीरा सैयद और धनुआ तेली हट गए, यहाँ तक कि भुरूही हथिनी भी पीछे हटने लगी। तब लाखन ने याद दिलाया कि मेरी माँ ने तुम्हारा माथा पूजकर कहा था कि कभी पीछे न हटना। चाहे प्राण चले जाएँ, पीछे नहीं हटना है? लाखन को आस-पास कोई सहायक दिखाई नहीं पड़ रहा था। उसे लगा या तो घबराकर हट गए, या मारे गए। अब उसे जयचंद का इनकार, रानी कुसुमा की मनाही सब याद आए। एक बार तो पीलवान सुदना ने भी कन्नौज की ओर लौटने की बात कह दी। अपने मन में आई कमजोरी भी किसी और के कहने पर जिद को शक्ति देती है।
लाखन ने अपनी हथिनी को भाँग पिलाई और भुरूही के सूंड में साँकल (जंजीर) बाँध दी। स्वयं पैदल ही नंगी तलवार लेकर शत्रु दल में ऐसे घुस गया, जैसे भेड़ों में भेडिया। हथिनी ने जो जंजीर घुमाई, सबको गिराती चली गई। लाखों में एक लाखन की वीरता देख सब राजा दाँतों तले अंगुली दबा गए। पृथ्वीराज का लश्कर पीछे हटने लगा। नदी की रक्तिम धार देखकर रूपन ने माँ दिवला से कहा कि लाखन अकेला पड़ गया है। आल्हा-ऊदल डेरे में बैठे हैं। माँ आल्हा के पास आई, पर लाखन की सहायता करने की उसने जरूरत नहीं समझी।
ऊदल ने भी बिना आल्हा की इजाजत युद्ध में जाना ठीक नहीं समझा। तब आल्हा की पत्नी रानी सुनवां ने ऊदल को समझाकर तैयार किया। ऊदल आल्हा से अनुमति लेने गया, तब आल्हा भी युद्ध करने के लिए आ गया। ऊदल ने सब तरफ देखा, उसे कहीं लाखन दिखाई न पड़ा तो वह चिंतित हो गया। पृथ्वीराज ने अपना धनुष उठाया, तभी ऊदल पहुँच गया। बोला, “यहाँ तुम्हारी बराबरी का कौन है, बच्चों पर बाण चलाकर क्यों जग-हँसाई करवाना चाहते हो? आप बड़े हैं। हमारे रिश्तेदार हैं। हम आपका अदब (सम्मान) करते हैं, आपसे मुकाबला करते हुए हमें संकोच होता है।”
ऐसी बातें सुनकर पृथ्वीराज ने अपनी कमान वापस रख ली और पृथ्वीराज मोरचे से हट गया। तब रक्त से सना लाखन दिखाई पड़ा। ऊदल ने कहा, “जाओ आराम करो, अब मैं सामना करूँगा।” तब लाखन का स्वाभिमान जागा। “मैंने बीड़ा उठाया है, मैं अपना काम पूरा करूँगा।” तब ऊदल ने लाखन का खून से सना चेहरा कपड़े से पोंछा, फिर वैदुल घोड़े पर सवार हो आगे बढ़ा। तब तक आल्हा की फौज भी पहुंच गई। युद्ध तेज गति से होने लगा। धनुआँ तेली ने धाँधू को हटने पर विवश कर दिया।
मीरा सैयद ने भूरा मुगल को पीछे हटा दिया। रहमत सहमत को हीर सिंह-वीर सिंह ने हरा दिया। लाखन ने दतिया के वंशगोपाल को मार भगाया। दिल्ली के तीन लाख पैदल, दो सौ हाथी और एक लाख घुड़सवार युद्ध में मारे गए। पृथ्वीराज का पुत्र ताहर लाखन के सामने पहुँचा और तलवार मारी। लाखन ने ढाल से वार रोक लिया। फिर लाखन ने गुर्ज चला दिया। घोड़े के गुर्ज की चोट लगी तो घोड़ा रुका ही नहीं। ताहर का घोड़ा रण से भागा तो उनकी सेना भी भागने लगी।
लाखन ने जीत का डंका बजवा दिया। महोबे की फौज आगे बढ़ गई। चंदन बाग में चौहान के तंबू लगे थे। जाकर उन तंबुओं को गिरवा दिया। लाखन के हक्म से तंबओं में लट मच गई। कोई चावल, कोई घी, कोई शक्कर, तो कोई आटा लटकर ले गया। पृथ्वीराज ने बची-खुची फौज लेकर दिल्ली से कूच कर दिया। खिसियाकर माहिल भी उरई को भाग गया। वैसे उसे तो बनाफरों के आने से ही अंदाजा हो गया था कि अब महोबा को नहीं लूटा जा सकता।
इधर राजा परिमाल ने महोबा को सजवाया तथा आल्हा, ऊदल, लाखन के स्वागत में तोपों की सलामी दी गई। शोभा यात्रा के रूप में उनके साथ आए सभी राजा महोबे की शोभा देखने निकले। बाद में राजमहल में राजा ने सबको एक दावत देकर स्वागत किया। आल्हा ने राजा परिमाल पर पहले क्रोध किया, फिर उनके गलती मान लेने पर आल्हा-ऊदल महोबे में रहने के लिए मान गए। दशपुरवा का महल फिर आबाद हो गया। पूरे शहर में निर्भयता की लहर लौट गई। सबको भरोसा हो गया कि अब आल्हा-ऊदल कहीं नहीं जाएँगे।
jay bundelkhand