मोरी रजऊ सासरे जातीं, हमें लगा लो छातीं।
कै नई सकत गरौ भर देतीं, अंसुवन अखियां बातीं।
ऊसेई चित्र लिखि सी रैगईं, मां से कछु न कातीं।
हमने करी हमई जानत हैं, अब पीछू पछतातीं।
ईसुर कौन कसाइन डारी, विकल विदा की पाती।
नीको नई रजऊ मन लगवौ, एई से कठिन हटकवौ।
मन लागै लग जात जनम कौ, रोमई रोम कसकवौ।
सुनती तुमे सओ न जैहै, सब-सब रातन जगवौ।
कछु दिनन में होत कछु मन, लगत-लगत लै भगवौ।
ईसुर जे आसान नई हैं, प्रान पराये हरवौ।
नायक-नायिका प्रीति और विछोह संसारिक गतियाँ हैं। जो जीवित है उसे ये गतियाँ प्रभावित करेंगी। ईसुरी ने रजऊ को अपनी साँसों में रमा रखा है और वे हर क्षण उन्हीं में रमे रहते हैं। वे मनसा, वाचा और कर्मणा से रजऊ को चाहते हैं और उनके विरह में जल बिन मछली की तरह तड़पते है।