Mauryakal Me Jain Dharma एक प्रमुख धर्म था। जैन धर्म के अधिकांश अनुयायी व्यापारी वर्ग एवं वैश्यों में से आते थे। व्यापारी वर्ग जैन धर्म के विकास एवं प्रसार के लिए प्रचुर धनराशि दान में देता था। मौर्यकाल में लगभग 300 ईस्वी पूर्व में पाटलिपुत्र में प्रथम जैन धर्म सभा संपन्न हुई थी। जिसमें जैन धर्म के प्रधान भाग 12 अंगों का सम्पादन हुआ। यह सभा स्थूलभद्र एवं सम्भूति विजय के निरीक्षण में हुई थी।
Mauryakal Me Jain Dharma इसी जैन संगीति के बाद जैन धर्म श्वेताम्बर एवं दिगम्बर सम्प्रदायों में बंट गया था। मौर्यकाल में मौर्य सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य को जैन के छठे थेर (स्थविर) ने जैन धर्म में दीक्षित किया था। चन्द्रगुप्त ने जीवन का अंतिम समय भद्रबाहू के साथ दक्षिण भारत में श्रवणवेलगोला में व्यतीत किया था और इसी काल में दक्षिण भारत में जैन धर्म का प्रचार-प्रसार तीव्रता से हुआ। अशोक का पौत्र सम्प्रति भी जैन धर्म का अनुयायी था। उसके समय भी जैन धर्म का प्रसार-प्रचार हुआ।