मालवा अंचल मालवा के पठार का भूभाग है इसे पूर्व में मालव प्रदेश के नाम से जाना जाता था । मालवा क्षेत्र का नामकरण मालव जाति के आधार पर हुआ । इस जाति का उल्लेख सर्वप्रथम ईसा पूर्व चौथी सदी में मिलता है । मालवा क्षेत्र की राजनीतिक सीमाओं में समयानुसार परिवर्तन होता रहा है, फिर भी मालवांचल अपनी विशिष्ट लोक संस्कृति, परंपरा, भाषा एवं रीति-रिवाजों के कारण संपूर्ण देश में अपनी विशिष्ट पहचान रखता है आइए जानते हैं आज Malwa Ki Visheshtayen और उनके बारे में…।
1- मालवा की प्रसिद्ध नदियां
चंबल, शिप्रा, माही किंतु मोक्ष दायिनी शिप्रा का अपना विशिष्ट स्थान है । शिप्रा नदी के किनारे ही पवित्र तीर्थ नगरी उज्जैनी बसी हुई है ।
2- मालवा की मिट्टियां
मुख्यतः यहां काली मिट्टी पाई जाती है जो मालवा क्षेत्र को अत्यंत उपजाऊ बनाती हैं ।इसी कारण यहां पर कपास, मूंगफली,सोयाबीन,गेहूं मक्का आदि फसलें प्रमुख रूप से उपजाई जाती है ।काली मिट्टी के अतिरिक्त कहीं-कहीं लाल पीली मिट्टी भी पाई जाती है।
3- मालवा के प्रमुख नगर
उज्जैन धार मांडू विदिशा रतलाम मंदसौर बाग उदयगिरि इंदौर आगर मालवा देवास आदि किंतु मालवी बोली का प्रमुख गढ़ उज्जैन माना जाता है। मालवी बोली का स्वरूप विभिन्न स्थानों पर परिवर्तित होता रहता है।
4- मालवा का प्रमुख भोजन
मालवा के लोगों का प्रिय भोजन दाल बाटी है। बाटी को मालवी बोली में गांकरी कहा जाता है । दाल बाटी के साथ लड्डू मिल जाए तो सोने पर सुहागा हो जाता है। मिठाई में जलेबी मुख्य रूप से पसंद की जाती है साथ ही बेसन की चक्की भी खाई जाती है। ग्रामीण क्षेत्रों में मुख्यतः मक्का से बनी हुई राबड़ी का प्रचलन है साथ ही अंबाड़ी की भाजी खाई जाती है।
ज्वार की रोटी लहसुन की चटनी के साथ भी ग्रामीण क्षेत्रों में काफी पसंद की जाती है। समय-समय पर खान-पान में बदलाव हुआ है, किंतु अभी भी दाल बाटी सर्वमान्य भोजन है। चाय यहां का प्रमुख पेय पदार्थ है यदि मालवा का व्यक्ति किसी के घर जाए और उसे चाय ऑफर न की जाए तो वह बुरा मान जाता है। चाय की महिमा इतनी ज्यादा है कि चाय के कारण शादी-ब्याह जैसे रिश्ते भी तत्काल बन जाते हैं।
5- मालवा की चित्रकला
मालवा अंचल में मुख्य रूप से मांडना बनाया जाता है। पुराने समय में ग्रामीण क्षेत्रों में कच्चे मकान होते थे तथा जमीन भी गोबर आदि से लीप कर ही रखी जाती थी। उस गोबर से लीपी हुई जमीन पर गैरू और खड़िया से मांडने बनाने का चलन था। हालांकि अब धीरे-धीरे इसका स्थान रंगोली ने ले लिया है। इसके अतिरिक्त भित्ति चित्र के रूप में संझा सरवन, माता चित्र, स्वस्तिक, कलश, हाथी, बैलगाड़ी, चित्रावण आदि भी बनाए जाते हैं । वर्तमान में इनका प्रचलन भी कम हो गया है।
6- मालवा का प्रमुख लोक नाट्य
मालवा का प्रमुख लोकनाट्य माच है। उज्जैन इस का गढ़ माना जाता है। मालवा क्षेत्र में यह कला विगत लगभग 200 वर्ष से प्रचलित है। इसके अतिरिक्त कलगी तुर्रा, हीड़ गायन, भरतरी गायन आदि भी प्रचलित है।
7- मालवा का प्रमुख नृत्य
मालवा में विवाह आदि शुभ अवसर पर विभिन्न प्रकार के नृत्य किए जाते हैं जिसमें मटकी आड़ाखडा प्रमुख है इसके अतिरिक्त यहां गणगौर नृत्य की परंपरा भी है ।
8- मालवा के लोगों का पहनावा
ग्रामीण क्षेत्रों में पुरुष धोती कुर्ता और सिर पर पगड़ी पहनते हैं तथा कंधे पर गमछा रखते हैं। महिलाएं घाघरा लुगडा पहनती हैं। अब इसका रूप सीधे पल्लू की साड़ी ने ले लिया है। हालांकि वर्तमान समय में पहनावे में काफी अंतर आया है फिर भी ग्रामीण क्षेत्रों में अभी भी लोगों को इस तरह की पोशाक पहने देखा जा सकता है।
9- मालवा की भाषा
मालवा क्षेत्र की प्रमुख बोली मालवी बोली है किंतु वर्तमान में मालवी बोली को बोलने वाले लोगों की संख्या सीमित होती जा रही है और संपूर्ण मालवा क्षेत्र में हिंदी भाषा का ही प्रचलन है। कतिपय लोग मालवी बोली में काव्य रचना, आलेख आदि लिखकर मालवी में साहित्य सृजन कर रहे हैं, लेकिन ऐसे लोगों की संख्या अत्यंत कम है इस कारण वर्तमान में मालवी बोली पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं। मालवा की भोली बैन मालवी बोली को राजभाषा का दर्जा दिलाने के लिए विभिन्न मंचों के साथ जुड़कर प्रयास कर रही है।
10- मालवा के लोग
मालवा के लोग सीधे सरल आचार विचार वाले होते हैं बिना किसी लाग लपेट और आडंबर के अपनी बात दूसरों के समक्ष रखते हैं और दिखावे में विश्वास नहीं करते किंतु वर्तमान में यह प्रवृत्ति भी धीरे-धीरे परिवर्तित होती जा रही है।
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