बुन्देलखंड का Lavni aur Khyal Sahitya में माता-पुत्र का सम्बन्ध है। ‘ख्याल’ लोकभाषा का परम्परागत शब्द है। बुन्देलखंड में राई गीत की तरह ख्याल भी लोकगीत की एक शैली है, जिसका प्रयोग लोकनृत्य में होता है। वस्तुतः लावनी का उद्भव बहुत पुराना है, और लावनी में जब विचारात्मकता आई, तब उसे ‘ख्याल’ (विचार) कहने लगे। तुर्रा और कलगी, जो ब्रह्म और शक्ति के प्रतीक बने रहे, सूफियों की कव्वालियों के मुकाबिले में ‘ख्याल’ बन गए।
बुन्देलखंड का लावनी और ख्याल साहित्य
ख्यालों के फड़ लगने लगे और इस क्षेत्र की रियासतों में राजाश्रय पाकर लोक के मनोरंजन के स्रोतत बन गए। कविवर गंगाधर व्यास ने छतरपुर में ‘तुर्रा’ दल का गठन किया था, जिसमें हेमराज, दसानन्द, भैरोंसिंह, कंधई, गजाधर, लछमन और रामदास दरजी आदि थे। हेमराज व्यासजी के गुरु थे। उन्होंने और उनके शिष्यों ने अनेक ख्यालों की रचना की थी। चरखारी में रिखलाल कवि भी तुर्रा सम्प्रदाय के ख्यालों के उस्ताद थे, उनकी लावनी का पूरे क्षेत्र में प्रचार था।
उस समय चरखारी में जुझार सिंह जैसे साहित्यप्रेमी के पुत्र मलखान सिंह का राज्य था, अतएव कवि को राज्याश्रय भी प्राप्त था। मऊरानीपुर के दुर्गाप्रसाद पुरोहित ने कलगी सम्प्रदाय के ख्याल गायकों का दल बनाया था, जिसमें गणपति प्रसाद चतुर्वेदी प्रमुख रचनाकार थे।
दोनों ने अनेक ख्यालों की रचना की थी। उनकी प्रतिद्वन्द्विता छतरपुर के तुर्रा दल से होती थी। गंगाधर व्यास और दुर्गा पुरोहित तथा रिखलाल, तीनों समर्थ कवि थे, अतएव उनके ख्यालों में कल्पनात्मकता एवं भावुकता का विचार के साथ अद्भुत समन्वय है और उसी के अनुकूल शिल्प ढल गया है।
पौराणिक आख्यान, नायिका-भेद, नख-शिख, नवसत शृँगार, नवरस, बारहमासा, भक्ति, दर्शन और काव्यशास्त्रा उनके प्रिय विषय रहे हैं। प्रश्नोत्तरी शैली की प्रधानता होने से प्रश्न में बौद्धिकता की जटिलता रहती थी, लेकिन उसी की वजह से दल को विजय मिलती थी। गंगाधर व्यासजी के ऐसे ही ख्याल ने विजय दिलाई थी। ख्याल देखें…
किस दिन लिया जन्म बंसी ने कौन मुहूरत कौन घरी ?
किस नक्षत्रा में बजी बाँसुरी मनमोहन नें अधर धरी ?
बसे कौन सुर किस नक्षत्रा में कौन रागिनी ललकारी ?
कौन मोहनी डार कें मोहन मोह लईं सब नर नारी ?
कहाँ कौन तप किया बाँसुरी की जाँगाँ भई तनधारी ?
कौन जोग सें बताओ बंसी-सिरी किस्ना की भई प्यारी ?
दौड़-सोरह सहस नायिका कीके कानन भनक परी ?
किस नक्षत्रा में बजी बाँसुरी मनमोहन नें अधर धरी ?
पूरब की को हती बाँसुरी कौन जाति किनको ब्याई ?
मात पिता का नाम बताना कहो यार किसकी जाई ?
था कितना अनुमान बंसी का, कै अंगुल की ठहराई ?
कौन सराप सें भई जड़ भेद बता इसका भाई ?
दौड़-हाल बताना किस कारन सें काया इसकी हुई हरी ?
किस नक्षत्रा में बजी बाँसुरी मनमोहन नें अधर धरी ?
उक्त ख्याल का आधार कोई पौराणिक या लोकाख्यानक सूत्र ही सम्भव है, इसके उत्तर में ही व्यासजी का एक ख्याल है। आशय यह है कि जटिल कल्पना ही दूसरे कवि रचनाकार को चुप करा सकती है। फड़ का प्रतियोगी ख्याल अपनी कुछ शिल्प-सुगढ़ता रखता है, जिस हेतु, ककेहरा, तिसरफी, दुअंग, चुअंग, छठअंग, अठंग, अधर, बिनमात्रा, रुकन और जिला आदि बन्दिशें होती हैं।
ये बन्दिशें चमत्कार के द्वारा श्रोताओं को प्रभावित करने में सक्षम होती हैं। व्यंजनों के क्रमिक प्रयोग से ख्याल की हर पंक्ति निबद्ध होने पर चमत्कार को ककेहरा की बन्दिश कहा जाता है। इसका बन्धान उल्टा-सीधा, दोनों तरह का होता है। निम्न ख्याल का उदाहरण प्रस्तुत है…
रहो राम के सरन राम के रोम रोम झनके आकार।
रेशम सा दिल साफ रखो तो षट विकार का हरै बुखार।। टेक।।
रष चंचल दिल थाम रैन दिन राम भजन में तन दे गार।
रक्ष दायक नायक त्रिभुवन का रचै चाँय कर देय संघार।
राव गर्व से दूर तो ईश्वर आपई सें दै देत जनार।
राले नर से दूर रहो सदगुन सीखो होकर लह चार।
सर से डरते हैं नित सज्जन दुखियन का करते दुख छार।। टेक।।
इस ख्याल की हर पंक्ति के प्रारम्भ और अन्त के द्वितीय अक्षर में उल्टे-सीधे ककेहरा की संयोजना है। प्रारम्भ में ह, श, ष, स, व, ल, र और अन्त में सीधे क, ख, ग, घ, न, च, छ की बन्दिश है। पूरे ख्याल में इसी प्रकार वर्ण-योजना का चमत्कार उत्पन्न किया गया है।
Gangadhar vyasji ki rachnaye hai kya bhai aapke pas
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