बुन्देलखण्ड के लोक देवताओं में सर्वाधिक पूज्य Lala Hardaul हैं। यहाँ के प्रत्येक परिवार में विवाह के अवसर पर अवश्य आमंत्रित किया जाता है। हर एक गांव में उनके चबूतरे बने हुए हैं। मुगल जासूसों की साजिश के कारण बुंदेलखण्ड ओरछा के राजा जुझार सिंह को संदेह हो गया था कि उसकी रानी से उसके भाई हरदौल के साथ गलत संबंध हैं। इस लिये राजा ने रानी से हरदौल को ज़हर देने के लिये कहा। रानी के ऐसा न कर पाने पर खुद को निर्दोष साबित करने के लिए Veer Hardaul ने खुद ही जहर पी लिया था।
आषाढ़ शुक्ल एकादशी को देवशयनी एकादशी कहा जाता है। यहां उस दिन साभी देवी-देवताओं को पूजने का प्रचलन बहुत प्राचीनकाल से चला आ रहा है। उस दिन हरदौल की भी पूजा की जाती है। हरदौल औरछा नरेश वीरसिंह देव बुन्देला के पुत्र थे। इनके बड़े भाई जुझार सिंह जब ओरछा की गद्दी पर आसीन हुए तो राज्य का सारा काम उनके छोटे भाई हरदौल ही देखा करते थे। वे उस समय के अप्रतिम वीर, सच्चरित्र तथा न्यायपरायण व्यक्ति थे। बुन्देलखण्ड में राजा के छोटे भाई को दीवान कहा जाता है।
16 वीं से 17 वीं शताब्दी के बीच जब हिंदुस्तान पर शाहजहां की बादशाहत चलती थी उसी समय ओरछा राज्य के दिमान हरदौल आगरा तख्त से विद्रोह करके मुगल सल्तनत से अलग स्वतंत्र बुन्देलखण्ड की सत्ता का सपना देखा करते थे हालांकि ओरछा के राजा के रूप में हरदौल के बड़े भाई जुझार सिंह पदस्थ थे ।
दीवान हरदौल के विद्रोही तेवरों से ना केवल ओरछा के महाराज जुझार सिंह बल्कि बादशाह शाहजहां भी खासे परेशान रहते थे और इसी के चलते शाहजहां ने अपने खास सिपहसालार मेहंदी हसन से ओरछा राजघराने में षड्यंत्र करवा कर हरदोल को उनकी भाभी से जहर खिलाकर मरवा डाला था हरदोल के विषपान की अलग कहानी है।
कहा जाता है कि ओरछा के राजा वीर सिंह की मृत्यु के बाद उनके पुत्र जुझार सिंह ओरछा की गद्दी पर बैठे जिस समय वीर सिंह जूदेव की मृत्यु हुई उस समय उनके छोटे पुत्र हरदौल किशोरावस्था में थे मां और बाप की मृत्यु के बाद हरदौल के बड़े भाई जुझारसिंह भाभी चंपावती ने हरदौल को मां बाप की तरह पालकर बड़ा किया।
अपने भाई व भाभी के प्रेम से प्रभावित होकर हरदोल ने आजीवन ब्रह्मचारी रहने का संकल्प ले लिया भाई जुझार सिंह के काफी प्रयास के बाद भी हरदोल ने शादी से साफ मना कर दिया उनका यही त्याग व संकल्प मुगलों को बुंदेला राजघराने में विद्रोह फैलाने व षड्यंत्र करने के लिए वरदान साबित हो गया बताया जाता है कि ओरछा के राजा जुझार सिंह मुगलों के पिट्ठू बन कर काम कर रहे थे।
हरदौल चंपत राय के साथ मिलकर बुंदेलखंड में मुगलों के खिलाफ युद्ध करने में लगे थे स्थिति यह थे कि मुगल शासन से तिलक लगाने पर प्रतिबंध होने के बाद भी फूल बाग में बने पत्थर के कटोरे में चंदन घोलकर नगर के सैकड़ों लोगों को लगाया जाता था। हरदोल के इस व्यव्हार से निपटने को बादशाह शाहजहां ने ओरछा में अपने खास सिपहसालार मेहंदी हसन को तैनात कर रखा था।
अधिकांश समय आगरा दरबार में रहने वाले ओरछा के राजा जुझार सिंह के स्वभाव को भाप कर मेहंदी हसन ने उनके दिमाग में शक का कीड़ा डालना शुरु किया तथा उसने जुझार सिंह के कान भर दिये और उन्हें इस बात पर भड़का दिया कि जिस समय जुझार सिंह आगरा दरबार में रहते हैं उस समय उनका छोटा भाई हरदौल उनकी पत्नी चंपावती के साथ गलत संबंध रखता है। मेहंदी हसन के बहकावे में आकर जुझार सिंह ने अपनी पत्नी चंपावती से कहा की अगर वह पतिव्रता है तो हरदोल को भोजन में जहर मिला दे।
सही कहा गया है विनाशकाले विपरीत बुद्धि । जुझार सिंह अपनी रानी को कहा कि वह अपने को निर्दोष साबित करने के लिए हरदौल को अपने हाथ से ज़हर युक्त भोजन का थाली मे परोस कर दे । हरदौल तो लक्ष्मण के समान अपनी मातृ स्वरुपा भावज के रोजाना चरण वंदन करते थे । अतः उन्होंने अपनी भावज को निर्दोष प्रमाणित करने के लिए ज़हर युक्त खाना स्वीकार किया।
दीवान हरदौल की मृत्यु के पश्चात प्रेत योनि में अपनी बहन के घर पर शादी समारोह में भात उपहार ले जाने की लोक कथा आज भी प्रचलित है इसी लोककथा के आधार पर बुंदेलखंड के लोग अपनी बहनों के घर भात लेकर जाते हैं और बहने हरदोल की याद कर रोकर भाइयों को गले लगाकर उनका भात स्वीकार करती हैं।
कहा जाता है कि भाभी द्वारा दिए गए विष के द्वारा हरदौल की मृत्यु हो जाने के पश्चात उनकी छोटी बहन कुंजावती की लड़की की शादी का अवसर आया हरदौल की मौत से नाराज बहन कुंजावती अपने बड़े भाई ओरछा के राजा जुझार सिंह को निमंत्रण देने नहीं गई बल्कि अपने स्वर्गीय भाई हरदोल की समाधि पर जाकर उन्होंने हरदोल जी को निमंत्रण दिया।
हरदोल की ओर से कोई जवाब नहीं आया तो कुंजावती ने समाधि स्थल पर सिर पटक कर कहा की अगर भैया हरदौल आप नहीं बोले तो इसी समाधि पर अपने प्राण त्याग देंगे तब हरदोल ने अदृश्य रूप में कहा कि बहन कुंजा भूत प्रेत किसी के घर भात उपहार लेकर नहीं जाया करते लेकिन कुंजावती की हट के सामने हरदोल को विवश होना पड़ा और उन्होंने बहन का आमंत्रण स्वीकार किया हरदौल ने कुंजावती से कहा कि वह प्रेत योनि में ही भात लेकर आएंगे।
दतिया के पास स्थित कुंजावती के गांव खडऊआ में ओरछा से प्रेतयोनि में अदृश्य रूप में जब हरदौल भात लेकर पहुंचे तो खडऊआ के लोग दंग रह गए सामान से भरी बैलगाड़ी दिखाई दे रही थी पर चलाने वाले गाड़ीवान दिखाई नहीं दे रहे थे गाड़ियों से सामान उतारा जा रहा था पर उतारने वाले दिखाई नहीं दे रहे थे सारा कार्यक्रम संपन्न होने के बाद जब भोज हुआ तब सारे भोजन पर परसने वाले दिखाई दे रहे थे परंतु एक परोसने वाले का सिर्फ हाथ व घी से भरा लोटा दिखाई दे रहा था
यह देख कर दूल्हे ने उस अदृश्य शक्ति के हाथ को पकड़ लिया तथा जिद करते हुए कहा कि जब तक अदृश्य शक्ति दर्शन नहीं देगी वह भोजन नहीं करेंगे तब मजबूर होकर हरदोल को अपने भांजे दमाद को दर्शन देना पड़े प्रेत योनि में साकार रूप में प्रकट हुए हरदोल ने अपनी बहन कुंजावति से कहा की बहन जो वरदान चाहो तो मांग लो !!!
तब कुंजावती ने कहा था कि हरदोल भैया आपने प्रेतयोनि में रहकर भी जिस तरह मेरे निमंत्रण को स्वीकार कर मेरी बेटी के विवाह की लाज रखी इसी तरह जब भी कोई बहन आप की समाधि पर आकर आपको शादी में आमंत्रित करें आप उसके घर पहुंचकर मेरी ही तरह उसकी भी लाज रखना हरदौल ने अपनी बहन कुंजा वती को वचन दिया कि जो भी बहन उन्हें आमंत्रित करेगी वह उसके घर पहुंचकर शादी समारोह में लाज रखेंगे तथा इसके बाद वह अंतर्ध्यान हो गए।
ऐसा माना जाता है तब से आज तक जो भी बहन अपने परिवार के शादी समारोह में भैया हरदोल को आमंत्रित करती हैं उसकी लाज जरूर रखते हैं आज भी बुंदेलखंड में शादी समारोह में बहने जब भी भात की रस्म पूरी करती हैं तो गीत गाते हैं कि महासोर भयो मरे हरदौल भात देयो महासोर भयो जैसे लोक शैलीबध्य गीत गाकर उनकी आंखें बरबस ही नम हो जाती है।
बुंदेलखंड में ऐसी लोक मान्यता है हरदोल जी को शादी समारोह में आमंत्रित करने पर वैवाहिक कार्यक्रम निर्विघ्न रुप से संपन्न हो जाते हैं ऐसा कहा जाता है कि शादी के दौरान आंधी तूफान जैसी आपदाओं को हरदोल बाबा नियंत्रित कर देते हैं ना केवल आधी तूफान बल्कि हरदौल जी को शादी के भोजन वाले भंडार गृह में भी स्थापित कर देने से भोजन सामग्री में कमी नहीं आती है ऐसे एक नहीं अनेक किस्से हैं जिसमे आंधी तूफान आने या फिर भोज के दौरान भोजन सामग्री में कमी आने पर हरदोल जी का स्मरण करने पर स्थिति अपने आप संभल गई।
इस तरह के किस्से बुंदेलखंड के गांव गांव में जाकर सुने जा सकते हैं हरदोल जी की पूजा की अलग विधि है उन्हें आमंत्रित करने के लिए महिलाएं पीले चावल निमंत्रण कार्ड पान का बीड़ा और बताशा हरदोल बैठका पर जाकर चढ़ाती हैं तथा बैठका के बगीचे की मिट्टी अपने साथ लाकर उसे शादी के भोजन वाले भंडार गृह में स्थापित कर देती है।
जिससे निर्विघ्न शादी संपन्न होने के बाद घर पर लाई गई मिट्टी ओरछा वापस लाकर हरदौल बैठका में रख दी जाती है इसे हरदोल जी की विदाई माना जाता है जो लोग वहाँ नहीं जा पाते अपने गांव के हरदोल चबूतरे पर इस प्रक्रिया को संपन्न कर लेते हैं बहन भाई के मित्र प्रेम की आस्था भरी परंपरा 400 साल से चली आ रही है।
संदर्भ-
बुंदेली लोक साहित्य परंपरा और इतिहास – डॉ. नर्मदा प्रसाद गुप्त
बुंदेली लोक संस्कृति और साहित्य – डॉ. नर्मदा प्रसाद गुप्त
बुन्देलखंड की संस्कृति और साहित्य – श्री राम चरण हयारण “मित्र”
बुन्देलखंड दर्शन – मोतीलाल त्रिपाठी “अशांत”
बुंदेली लोक काव्य – डॉ. बलभद्र तिवारी
बुंदेली काव्य परंपरा – डॉ. बलभद्र तिवारी
बुन्देली का भाषाशास्त्रीय अध्ययन -रामेश्वर प्रसाद अग्रवाल
सांस्कृतिक बुन्देलखण्ड – अयोध्या प्रसाद गुप्त “कुमुद”
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