Lakeer लकीर

ईर्श्या कई  इंसानो की स्वाभाविक गुण होता है किसी मे  कम किसी मे ज़्यादा,पर इसे इतना भी अधिक हाबी होने दे कि आप  अपना और अपनों  का नुकसान कर  बैठें। यदि हमें छोटी लकीर को बड़ी लकीर से बड़ा करना है, तो बड़ी लकीर को मिटाकर उसे छोटी Lakeer से छोटा नहीं करना है, अपितु छोटी लकीर को इतना बढ़ाना चाहिए कि वह बड़ी लकीर से भी बड़ी बन जाए।

प्रतिस्पर्धा करो पर  प्रतिस्पर्धा मे किसी का अहित ठीक नही । आज विद्यालय में सम्पन्न हुई वाद-विवाद प्रतियोगिता में अंशुल ने पुनः अपनी श्रेष्ठता स्थापित कर दी। अंशुल की आज की उपलब्धि पर हमेशा की तरह रवि ईर्ष्या से कुढ़कर रह गया। उसे आज भी वाद-विवाद प्रतियोगिता में बहुत प्रयास करने के बाद भी कोई स्थान नहीं मिल सका था।

अंशुल व रवि, दोनों ग्यारहवीं कक्षा के छात्र हैं। अंशुल स्वभाव से विनम्र और कुशाग्रबुद्धि का विद्यार्थी है। उसके अन्दर खेल-भावना कूट-कूटकर भरी हुई है। इसी भावना के साथ वह प्रतियोगिताओं में भाग लेता था। अपनी लगन व मेहनत के कारण वह विद्यालय में होने वाली अधिकांश प्रतियोगिताओं में उच्च स्थान प्राप्त करता चला आ रहा है, यद्यपि रवि भी अच्छा खिलाड़ी व कुशाग्रबुद्धि का विद्यार्थी है, परन्तु उसमें खेल-भावना का पूर्णतया अभाव है। अपने ईर्ष्यालु स्वभाव के कारण अंशुल के सामने उसका आत्म-विश्वास सदैव लड़खड़ा जाता था।

फलस्वरूप वह अंशुल से हमेशा पीछे रह जाता था। विगत दिनों जब अंशुल को विद्यालय की हॉकी टीम का कैप्टन चुना गया था, रवि को उस समय भी अंशुल के कैप्टन बन जाने से बहुत ईर्ष्या हुई थी। आज सम्पन्न हुई वाद-विवाद प्रतियोगिता के पुरस्कार वितरण समारोह में रवि सम्मिलित नहीं हुआ। विचार-मग्न वह पैदल ही अपने घर की ओर चला जा रहा था। उसके मन में रह-रहकर एक ही बात उठ रही थी कि विद्यालय में परसों से प्रारम्भ होने जा रही वार्षिक खेल-कूद प्रतियोगिताओं में अंशुल को भाग लेने से कैसे रोका जाए।

तभी उसने अपने दाहिने कन्धे पर किसी के हाथ का स्पर्श महसूस किया। ‘‘हैलो, रवि?’’ अंशुल अपनी मोपेड रवि के पास रोकते हुए बोला। ‘मुझे चिढ़ाने का कितना नायाब तरीका अंशुल ने ढूंढ़ा है।’ रवि ने अपने आपसे कहा। चेहरे पर बनावटी मुस्कान लाते हुए उसने अंशुल से हाथ मिलाया और आज की सफलता पर उसे बधाई दी। ‘‘आओ…रवि, पीछे बैठो, मैं तुम्हारे ही घर चल रहा हूं। मुझे सर से भारतीय इतिहास की पुस्तक लेनी है।’’ अंशुल के आग्रह करने पर रवि मन मारकर अंशुल के पीछे सीट पर बैठ गया और पुनः परसों से विद्यालय में प्रारम्भ होने जा रही वार्षिक खेल-कूद प्रतियोगिताओं से अंशुल को दूर रखने की युक्ति सोचने लगा।

एकाएक उसके मस्तिष्क में यह विचार आया कि ‘क्यों न अंशुल की मोपेड के ब्रेक फेल कर दिए जाएं?’ अपने मस्तिष्क में पनपी कुटिल युक्ति से रवि मन ही मन मुस्करा उठा। उसने अपने पिताजी के कमरे तक अंशुल को पहुंचाने के तुरन्त बाद, बाहर आकर अंशुल की मोपेड के ब्रेक फेल कर दिए। कुछ देर बाद ही अंशुल अपने हाथ में भारतीय इतिहास की पुस्तक लिए बाहर आ गया। रवि ने अंशुल को बनावटी मुस्कान के साथ विदा किया। दूर जाती मोपेड पर बैठे अंशुल को वह कुटिल मुस्कान के साथ देखता रहा, फिर अपने कमरे में आ गया।

रवि ने अपने जूते के फीते खोले ही थे कि उसके पिताजी कमरे में प्रवेश करते हुए बोले, ‘‘रवि बेटे बधाई हो।’’ रवि अपने कमरे में पिताजी के अचानक आ जाने से बुरी तरह चौंक पड़ा। अपने आपको संयत करते हुए उसने आश्चर्य से पूछा, ‘‘बधाई? किस बात की पिताजी?’’ ‘‘अरे भाई, तुम विद्यालय की हॉकी टीम के कैप्टन जो बन गये हो।’’ ‘‘कैप्टन?’’

‘‘हां! कैप्टन…अभी अंशुल मुझे बताकर गया है।’’ ‘‘ओह! नहीं पिताजी, अंशुल ने मुझे चिढ़ाने के लिए आपसे झूठ बोला होगा। हॉकी टीम के कैप्टन के रूप में अंशुल का चयन पहले ही हो चुका है।’’ रवि रुखे स्वर में बोला। ‘‘हां, यह सच है कि हॉकी टीम के कैप्टन के रूप में अंशुल का चयन हुआ था, परन्तु उसने कैप्टनशिप से त्याग-पत्र देते हुए कोच को तुम्हारा नाम सुझाया था, जिसे प्रिंसिपल साहब ने स्वीकार कर लिया है।’’ रवि के पिता बोले, ‘‘जो स्वयं रवि के विद्यालय में इतिहास के प्रवक्ता हैं।

‘‘क्या…?’’ रवि का मुख आश्चर्य से खुल गया। ‘‘हां और वह परसों अपनी मौसी की लड़की की शादी में सम्मिलित होने देहरादून जा रहा है, फलस्वरूप अब वह परसों से विद्यालय में होने जा रही खेल-कूद प्रतियोगिताओं में भी भाग नहीं ले सकेगा।’’ रवि के पिता कमरे से बाहर जाते हुए बोले। ‘‘हे भगवान!’’ रवि अपना सिर पकड़कर बैठ गया। ‘‘मैंने अंशुल के साथ कितना बड़ा अन्याय किया है।’’ रवि ने शीघ्रता से अपने जूते के फीते कसे और बाहर सड़क पर आ गया।

खाली टू-सीटर को रोककर रवि उसमें बैठ गया और ड्राइवर से जल्दी चलने को कहा। रास्ते में रवि को अंशुल की मोपेड कहीं भी दिखाई नहीं दी। रवि का मन किसी बड़ी दुर्घटना की आशंका से भर गया। अंशुल के मकान के मुख्य द्वार पर ताला लगा देख, रवि का माथा ठनका। पूछने पर एक पड़ोसी ने उसे बताया कि कुछ देर पहले अंशुल का एक्सीडेंट हो गया है। सभी लोग मेहेर नर्सिंग-होम गए हुए हैं। जिस आशंका से रवि भयभीत था, वह सच निकली। भारी मन से वह मेहेर नर्सिंग-होम पहुंचा।

इमरजेंसी वार्ड के ऑपरेशन थियेटर के बाहर अंशुल के मम्मी-डैडी और उसकी छोटी बहन डॉली चिन्तित मुद्रा में उसे मिले। ‘‘रवि…भैया।’’ डॉली रवि के पास आकर रोने लगी। रवि ने डॉली के सिर पर हाथ रखते हुए उसे सान्त्वना में कुछ कहना चाहा, पर वह कुछ बोल न सका। अपने द्वारा किए गए कुकृत्य पर उसे स्वयं से घृणा हो रही थी। मन ही मन अपने आपको धिक्कारते हुए वह पश्चाताप की अग्नि में जलने लगा।

कुछ समय बाद ऑपरेशन थियेटर से बाहर आकर डॉक्टर ने अंशुल के डैडी से कहा, ‘‘आपके बेटे की हालत यद्यपि अंडर-कंट्रोल है, परन्तु एक्सीटेंड से काफी ब्लड बह जाने से हमें उसके लिए ‘ओ नेगेटिव ग्रुप’ के ब्लड की तुरन्त आवश्यकता है। इस समय इस ग्रुप का ब्लड हमारे ‘ब्लड बैंक’ में उपलब्ध नहीं है। समय पर ब्लड न दिए जाने से आपके बेटे की जान को खतरा भी हो सकता है।’’

‘‘डॉक्टर साहब…प्लीज मेरा ब्लड टेस्ट कर लीजिए।’’ रवि रुआंसा हो बोला। डॉक्टर द्वारा सभी लोगों के ब्लड ग्रुप की जांच कराई गयी। जांच के बाद पैथालॉजिस्ट ने अपनी रिपोर्ट में स्पष्ट किया कि अंशुल के डैडी व रवि का ब्लड ग्रुप अंशुल के ब्लड ग्रुप से मिलता है। अंशुल के डैडी के डायबिटीज का पेशेंट होने के कारण उनका ब्लड अंशुल को नहीं दिया जा सकता।

‘‘अंशुल को रवि का ब्लड दिया जाएगा।’’ यह सुनकर रवि के अन्दर प्रसन्नता की लहर दौड़ गयी। समय पर रवि के द्वारा ब्लड देने से अंशुल की जान का खतरा टल गया। डॉक्टर ने घोषणा की, ‘‘अब वह खतरे से पूरी तरह से बाहर है।’’ यह सुनकर कुछ देर पहले पश्चाताप की अग्नि में जल रहे रवि के हृदय में चंद छींटे पड़े। उसने ईश्वर से अपने कुकृत्य के लिए क्षमा मांगते हुए अंशुल के शीघ्र स्वस्थ हो जाने की हृदय से प्रार्थना की।

इस बीच मेहेर नर्सिंग होम में रवि के माता-पिता के अलावा अन्य लोग एक्सीडेंट की सूचना पाकर आ चुके थे। सभी मुक्त कंठ से रवि की प्रशंसा कर रहे थे जबकि रवि दुर्घटना के लिए स्वयं को पूरी तरह से दोषी मानते हुए अन्दर ही अन्दर आत्म-ग्लानि से घुला जा रहा था। पूरे पन्द्रह दिन बाद अंशुल नर्सिंग-होम से अपने घर वापस आ गया। इस अवधि में रवि नियमित रूप से अंशुल के पास नर्सिंग होम जाता रहा और उसकी जी-जान से सेवा-सुश्रुषा करता रहा था।

एक दिन जब रवि अंशुल को देखने उसके घर पहुंचा, तब अंशुल ने रवि का हृदय से आभार प्रकट करना चाहा। उस समय रवि से न रहा गया। उसकी आंखों में आंसू उमड़ आए। वह अंशुल के पायताने बैठ गया और भरे गले से स्वयं के द्वारा उसके प्रति किए गए दुर्भावनापूर्ण कृत्य के बारे में अंशुल को सब कुछ सच-सच बता दिया और फूट-फूटकर रो पड़ा।

अंशुल ने रवि को अपने गले से लगा लिया। रूमाल से उसके आंसू पोंछे, फिर मुस्कराते हुए उससे बोला, ‘‘रवि, कम ऑन…लीव इट। जो हुआ, उसे भूल जाओ। हां, इधर देखो, अंशुल ने टेबिल पर रखी डॉली की स्लेट, बर्तनी उठाकर, स्लेट पर बर्तनी से दो असमान लकीरें खींचते हुए आगे कहा, ‘‘हां! देखो रवि, इस पर मैंने दो लकीरें खींच दी हैं…ठीक। इसमें एक बड़ी है और दूसरी पहली से छोटी। …है…न?’’ रवि ने स्लेट की ओर देखते हुए सहमति से अपना सिर हिलाया।

अंशुल आगे बोला, ‘‘अब ध्यान से सुनो, यदि हमें छोटी लकीर को बड़ी लकीर से बड़ा करना है, तो बड़ी लकीर को मिटाकर उसे छोटी लकीर से छोटा नहीं करना है, अपितु छोटी लकीर को इतना बढ़ाना चाहिए कि वह बड़ी लकीर से भी बड़ी बन जाए। मेरा इस तरह समझाने का आशय यह है कि ठीक इसी तरह हममें से प्रत्येक को अपने जीवन में भी इसी सिद्धान्त को अपनाते हुए दूसरों से प्रतिस्पर्धा करनी चाहिए…क्यों? रवि! समझ में आया न?…मैंने ठीक कहा न?’’ रवि की समझ में आ चुका था। उसने एक बार पुनः मौन सहमति में अपना सिर हिलाया और अंशुल ने एक बार फिर उसे अपने गले से लगा लिया।

 

बुन्देली झलक (बुन्देलखण्ड की लोक कला, संस्कृति और साहित्य)

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