श्री ख्यालीराम Khyaliram लोक कवि ईसुरी तथा गंगाधर व्यास के समकालीन थे। इनका समय विक्रमी सम्वत् 1905 से 1961 तक माना जाता है। ईसुरी, गंगाधर व्यास तथा ख्याली राम इन तीनों लोक कवियों को बुदेली वृहत्रयी (महान त्रिमूर्ति ) की संज्ञा दी जाती है।
ख्याली राम ने भी ईसुरी एवं गंगाधर व्यास की तरह उच्च कोटि की फागें कही है। इनकी फागों में भी विषयों की विभिन्नता के दर्शन होते हैं किन्तु प्रमुखता श्रंगार की ही रही। इन्होंने फाग विधा की चौकड़िया शैली को ही अपना कर अपने काव्य का सृजन किया ।
ख्याली राम फाग साहित्य के क्षेत्र में लोक कवि ईसुरी से पूर्ण प्रभावित रहे है। वर्ण्य विषय की एकता साथ-साथ कहीं-कहीं भाव और भाषा तथा शब्दावली भी दोनों कवियों में एक सी नजर आती है। रंगत की फागों में ख्याली राम ने नेत्र विषयक अनेक फागों की सृष्टि की है-
ऐसी अलबेली के नैना, कवि सों कहत बनेंना ।
मधुकर मीन कंज की लाली, कटसाली के है ना।
ओसर पाय पुराने खंजन, डर सों डगर बसें ना ।
कवि ख्याली आली नेंनन सो, बनमाली उतरे ना।
ख्याली राम ने लोक साहित्य में चौकड़िया फाग के ऊपर सूत्र रूप में चूड़ामणि की भांति दोहा छंद का बंद लगाकर फाग विधा के शीर्ष भाग को अलंकृत कर एक कमी को पूरा कर दिया। जिस प्रकार ईसुरी का नाम चौकड़िया के प्रस्तुतकर्ता तथा गंगाधर व्यास का नाम खड़ी फाग एवं बुंदेली सैर के प्रस्तुतकर्ता के रूप में आदर से लिया जाता है उसी प्रकार ख्यालीराम को चौकड़िया के ऊपर दोहा छंद का बंद लगाने वाले प्रस्तुतकर्ता के रूप में कभी भुलाया नहीं जा सकता ।
ख्याली राम की फागों का अध्ययन करने से ज्ञात हो जाता है कि इनको रीतिकालीन साहित्य का अच्छा ज्ञान था। फड़बाजी की फागें भी अपने पर्याप्त मात्रा में कही हैं। ख्याली राम का भी अन्य फागकारों की तरह मुख्य रस श्रंगार रहा है। नायक-नायिकाओं का श्रंगार परक नख शिख वर्णन अत्यन्त मर्म स्पर्शी एवं सजीव बन पड़े हैं। श्रंगार के अतिरिक्त अन्य सभी रसों का समावेश भी इनकी फागों में हुआ है।
कवि ख्यालीराम की रचनाओं में कहीं-कहीं अलंकारों की छटा देखते ही बनती है। साथ ही कल्पना की मौलिकता अपना अलग चमत्कार दिखलाती हैं इनकी एक फाग दृष्टव्य है जिसमें अनुप्रास, उपमा, रूपक और उत्प्रेक्षा की छटा देखी जा सकती है-
नैंना अलबेली आली के, हंस हेरन वाली के ।
छरकत जाय छरा से छटत, छोना कर साली के ।
लेकै जाय बोर दये रंग में, कंज पत्र लाली के |
ख्याली राम परे दृग दोऊ, पीछे वनमाली के ।।
ख्याली राम ने अन्य फागकारों की भांति नायिका के मुख, केश, कपोल, तिल, गोदना आदि का वर्णन सफलता पूर्वक किया हैं।