Homeबुन्देलखण्ड के साहित्यकारKavi Lallumal Chaurasiya कवि लल्लूमल चौरसिया

Kavi Lallumal Chaurasiya कवि लल्लूमल चौरसिया

छतरपुर जिले की तहसील बिजावर में स्थित ग्राम पिपट में Kavi Lallumal Chaurasiya का जन्म 30 दिसम्बर 1943 को श्री चंदूलाल जी चौरसिया के घर हुआ। इनकी माताश्री का नाम स्व. श्रीमती मूलाबाई था। इनकी शिक्षा पिपट, बिजावर तथा छतरपुर में सम्पन्न हुई।

बुन्देली संस्कृति पहरुए कवि श्री लल्लूमल चौरसिया


कवि श्री लल्लूमल चौरसिया
चौकड़िया बहुत दिनों से लिख रहे हैं। इनकी कुछ समाचार पत्र-पत्रिकाओं में फुटकर चौकड़िया प्रकाशित हैं। संकलन के रूप में इनकी फागें अभी प्रकाशित नहीं हुई हैं। इनकी रचनाओं में बुन्देली संस्कृति के प्रति गहन लगाव देखने को मिलता है।

जिनकी कारी है घरबारी, बड़े भाग हैं भारीं।
निर्भय हाट बजारन जावै, न तनकउ लाचारी।।
हंसी मजाक करै न कोउ, न सीटी न तारी।
घर के काम एक से चलबैं का गोरी का कारी।।

इस छंद में कवि ने काले रंग की स्त्री की विशेषताएँ बताई हैं, उन व्यक्तियों के भाग्य बहुत उच्च हैं जिनकी पत्नी काले रंग की हैं, वे बिना किसी भय के बाजार जाती हैं, उनके अंदर किसी प्रकार की लाचारी नहीं रहती, उनसे कोई भद्दे मजाक नहीं कर सकता, न सींटी और न ही ताली बजाता है। आगे कवि चौरसिया जी कहते हैं कि गृहस्थी का कार्य एक से चलता है और वह चाहे गोरी हो या फिर काली, रंग महत्वपूर्ण नहीं है, कार्य महत्वपूर्ण है।

पर गओ जरुअन के संग रैबो, कां लौ सीखें सैबो।
कानी अपनौ टेँट न देखें, पर पर फुली बतैवौ।
बड़ौ सहज धजरी कौ लाला, करिया सांप बनैवौ।
कैसे सधें दोउद इक संगे, हंसबौ गाल फुलैबौ।।

कवि चौरसिया कहते हैं कि जो हमें ईर्ष्यालु लोगों के साथ रहना पड़ गया। अब कहाँ तक सहन किया जाये ? काना व्यक्ति अपनी आँख का टेंट नहीं देखता बल्कि दूसरों की फुली निहारते हैं अर्थात् अपनी बड़ी गलती को न देख दूसरों की छोटी-छोटी गलतियों को खोलते हैं। आजकल व्यक्तियों ने तो झूठ बोलने में हद कर दी है वे अपने तर्कों (कुतर्कों) के माध्यम से धज्जी को भी विषधारी साँप साबित कर देते हैं। एक साथ दो असंभव काम नहीं हो सकते हैं चाहे हँस लो या फिर गाल फुला दो, एक कर सकते हैं।

बुन्देली झलक (बुन्देलखण्ड की लोक कला, संस्कृति और साहित्य)

शोध एवं आलेख -डॉ.बहादुर सिंह परमार
महाराजा छत्रसाल बुंदेलखंड विश्वविद्यालय छतरपुर (म.प्र.)

admin
adminhttps://bundeliijhalak.com
Bundeli Jhalak: The Cultural Archive of Bundelkhand. Bundeli Jhalak Tries to Preserve and Promote the Folk Art and Culture of Bundelkhand and to reach out to all the masses so that the basic, Cultural and Aesthetic values and concepts related to Art and Culture can be kept alive in the public mind.
RELATED ARTICLES

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Most Popular

error: Content is protected !!