नारायण राव अंग्रेजी सेना के भारी दबाव के कारण परेशान था। उसने नागौद के पोलीटिकल असिस्टेन्ट को 22 अप्रैल 1858 को लिखा कि वह विद्रोही नहीं है और अपने को समर्पण करने का इच्छुक है । पोलिटिकल असिस्टेन्ट को यह पत्र नागौद में 30 अप्रैल को प्राप्त हुआ। अंग्रेजों ने पहले नारायण राव, माधव राव को मिलने के लिए बुलाया वहीं Karvi Peshwa Ka Aatmasamapan धोखा देकर करावा लिया ।
पोलीटिक असिस्टेंट ने निर्देश दिया कि वह माधवराव को साथ लेकर बांदा जायेँ । इस पर नारायण राव ने कहाकि वह नयी भर्ती के आदमियों को अलग करने के बाद दस दिन में बांदा आयेगा उसके नुसार पोलीटिकल असिस्टेन्ट ने गवर्नर जनरल को बताया। गवर्नर जनरल ने इसे आदेश दिया कि जीवनदान देने की उसकी शर्त नहीं मानी जायेगी। उन पर मुकदमा चलाया जावेगा ।
ब्रिटिश सरकार तो चाहती ही थी कि नारायण राव बगावत छोड़ दे। उसे पकड़ने के लिये सरकार अथक प्रयास कर रही थी और वह भी काफी परेशान थी उसने कहाकि नारायणराव, माधवराव के पास संदेश भेजा जाये, कि उन्हें जीवनदान मिल सकता है किन्तु उन्हें बुन्देलखण्ड के बाहर किसी अन्य स्थान पर कड़ी देखरेख में रहना पड़ेगा।
यह माजरा देखकर नारायणराव ने आत्म समर्पण की बात को टाल देना ठीक समझा दस दिन के अन्दर बांदा उपस्थित होने में अपने आश्वासन को ठुकरा दिया। वह अपने महल में रसद अस्त्र-शस्त्र गोला बारूद आदि जुटाने में लग गया। तरौंहा के किले में भी सेना की व्यवस्था करने लगा। उसका कामदार राधागोविन्द बराबर नारायणराव को ब्रिटिश सरकार के खिलाफ भड़काता रहा ।
ब्रिटिश सरकार ने देखा कि नारायण राव अपने वादे से मुकर रहा है तो ब्रिटिश अधिकारियों ने तय किया कि कर्वी तथा तरौंहा पर आक्रमण किया जाय। जनरल विटलाक सागर फील्ड फोर्स के साथ बुन्देलखण्ड लगातार के विद्रोह का दमन करने पर तुला हुआ था। उसकी सहायता के लिये कुछ ब्रिटिश फोर्स मानिकपुर भेजी गई।
बांदा पर कब्जा करने के बाद जनरल विटलाक कर्वी के लिये पहली जून को चला । नारायण राव कर्वी पर कब्जा किये हुए था। पहली जून को जनरल ने कर्वी पर कब्जा कर लिया और तरौंहा की ओर बढ़ा। उन दिनों नारायण राव के पास दस हजार की फोर्स थी। जनरल के आने की खबर से नारायण राव के सिपाही भागने लगे ।
जनरल विटलाक 6 जून को चित्रकूट आया और पयस्वनी नदी के उस पार डेरा डाल दिया । नारायण राव के पास उस समय की फौज में पन्द्रह हजार आदमियों के आलावा 200 बन्दूकें तथा 42 तोपें भी थी । 10 जून को बिग्रेडियर मेकउफ की फोर्स तथा जनरल बिटलाक की फोर्स मिली। इन दोनों ने अगले दिन तरौंहा पर आक्रमण करने की योजना बनाई ।
विटलाक ने सवार के हाथ एक पत्र नारायण राव के पास भेजा उसने स्वयं ही नारायण राव से मिलने की इच्छा बताई और लिखा कि आप दोनो भाई कल सायं दीवान जी के साथ हमारे डेरे पर आकर। मिलो । अपने साथ में कोई सिपाही व हथियार नहीं लाना । नारायण ने कल “आकर मिलूँगा” पत्र में लिखा नारायण राव अब इस चिन्ता में पड़ गया कि न जाने अब क्या होगा।
इस चिन्ता के कारण दोनों भाइयों को रात भर नींद नहीं आई । मध्य रात्रि के समय दीवान जी राधा गोविन्द नारायण राव से मिलने आया वह नारायण राव को उपदेश देने लगा कि आप लोग जनरल विटलाक के कैम्प में मत जाइये । कल अगर आप वहां न जायेँ तो बहुत अच्छा होगा । आपके जाने से एक मुटठी भर बारूद खर्च किये बगैर ही अंग्रजों का मतलब सिद्ध हो जाएगा और कदाचित आपके प्राणों पर आ बने । आपका सारी धन, दौलत लुट जायेगी। आपके पास गोला बारूद भी है लड़ने लायक सिपाही भी हैं। हम लोग युद्व करेंगे तो मन की भी निकल जायेगी, और यश भी मिलेगा । कभी न कभी तो मनुष्य को मरना ही है आपके साथ समर्पण करने के लिये मै नहीं जाऊँगा।
यहां से गोला बारूद तोपें और सिपाही लेकर जो भी मेरी समझ में आयेगा उसी पर चल दूंगा। जब तक दम है मैं नहीं झुकूँगा खर्च के लिये आप तुरन्त मुझे दो लाख रुपये दीजिये राजी से नहीं दीजियेगा तो जबरदस्ती से लूगा । राधागोविन्द अपने साथ पांच हाथी तथा नारायण राव से बहुत सारा रुपया लेकर अपनी सेना के साथ जंगल में निकल गया और दस बारह कोस की दूरी पर एक पहाड़ी पर अपना अड्डा जमाया ।
राधागोविन्द के पास कहीं पर जंगल में खजाना था जिसमें दो लाख रुपया का अनुमान था जनरल ने उसे भी खोज निकाला । उसे केवल चालीस हजार रुपये मिल सके । तथा कुछ सोने के गहने भी हाथ लगे । विटलाक ने इस धन को नागरिक शासन के सुपुर्द कर दिया । यह धन राधागोविन्द ने कर्वी से फरार होते समय ले लिया था और उसे परासिन के दुर्ग में छिपा रखा था । रुपयों स्वर्ण, चाँदी के अतिरिक्त उसके कब्जे में तोपें हथियार आदि भी थे ।
इधर नारायणराव ने ज्योतिषी को बुलाकर पूछा कि कल सायंकाल तक साहब बिटलाक से मिलने के लिए कौन सा शुभ मुहर्त रहेगा। ज्योतिषी ने बताया तड़के साढ़े पांच बजे की लग्न शुद्धि ठीक है बाँकी दिन अच्छा नहीं है। इस पर दोनों पेशवाओं ने सबेरे साढ़े पांच बजे ही जनरल के कैंप पर जाने का निश्चय किया।
रात ढलते ढलते झुरमुटे में घोड़ों की टापों की आवाज कानों में पड़ने लगी। मशालों का प्रकाश हो रहा था, करीब दो सौ अग रक्षक साथ में चल पा रहे थे । पौ फटने के पूर्व ही इन पेशावाओं की सवारी पयस्विनी नदी के पार उतर चुकी थी। जब ये लोग जनरल के तंम्बू के पास पहुंचे उस समय छः घड़ी दिन चढ़ आया था ।
जैसे ही वे जनरल से मिलने के लिये बढ़े कि अंग्रेज सिपाहियों ने उनसे कहाकि सब लोग यहीं रहेंगे केवल नारायण राव और माधव राव पैदल साहब से भेंट करने जायेंगे । अब वेवशी थी लाचार होकर दोनों पेशवा मियाने से उतरे और तम्बू की तरफ जाने लगे । पेशवाओं के छाताधारी छाता लेकर चलने वालों को भी तम्बू पर जाने से रोक दिया।
जिस समय ये लोग जनरल के तम्बू के पास पहुंचे उस समय जनरल खाना खाने बैठा ही था। इसके बाद भी चार घड़ी तक ये लोग वहीं पर खड़े रहे । किसी ने पूंछा भी नहीं, गर्मी बड़ी तीव्र थी। इनके बदन से पसीना छूट रहा था । भूख और प्यास के मारे दम घुट रहा था । दिन ढले साहब तम्बू से बाहर आया और बोला “सरकार के हुक्म से तुम कैद किये जाते हो” और साहब ने तुरन्त उगली उठाकर गोरे सिपाहियों को हक्म दिया कि इन्हें पहरे में ले लो ।
नारायण राव, माधव राव के साथ मुकुन्द राव जामदार भी था। इस तरह कैदी बनकर दोनो पेशवा गोरे सिपाहियों से घिरे हुए थे । उन्हें एक पेड़ के नीचे ले जाया गया जहाँ उन्हें गोरे सिपाहियों की निगरानी में स्नान भोजन आदि कार्य से निपटने की छूट दी गई । दूसरे दिन सबेरे चार बजे कर्वी शहर में पेशवा के महलों के सामने पांच छ: सौ गोरे सिपाही कुछ काले सिपाहियों के साथ घोड़ों पर सवार होकर आये।
उन्होंने महल के सभी नौकरों को कैद कर लिया । नारायणराव जी की पत्नी एक कमरे में अलग जा बैठी । गोरों ने महल का सामान लूटा। सामान इतना ज्यादा था कि सामान से लदी हुई बैलगाड़ियों की कतार एक कोस तक थी। इस सामान में सोने चांदी के जेवरात तथा वर्तन आदि के अलावा हीरे, मोती, मानिक के जेवरात भी थे रुपया तथा मोहरे भरी हुई अनेक बोरियां बैलगाड़ियों पर जा रही थीं ।
नारायण राव की पत्नी के सभी गहने एक नग को छोड़कर छीन लिये गये । नारायण राव को पत्नी महल छोड़कर चित्रकूट अपने एक नातेदार के यहाँ चली गई । ब्रिटिश सरकार को एक करोड़ रुपया हाथ लगा तथा 38 पीतल की तोपें एवं आठ सौ से भी अधिक बन्दूकों के राउन्ड हाथ लगे । दिन अंग्रेजों ने पेशवाओं के महल के आसपास जितने भी बड़े बड़े लोगों की हवेलियाँ थीं आठ दिन में उन्हें खाली करवा ली। वे बेचारे इधर उधर अन्य गांवों में जाकर ठहरे । नारायण राव, माधवराव की सम्पत्ति का विवरण निम्न प्रकार है जो कि नारायण राव, माधव राव के समर्मण के समय जब्त की गई।
पेशवा बन्दी बना लिए गये थे, और मुकदमा चलने लगा था तो अलेजेन्डर नामी वकील को बचाव के लिये लगाया था और सीताराम आमिल उसका मुख्तयार बना। आरोप पत्र और निर्णय नारायण राव, माधव राव, गोविन्द राव जामदार पर विद्रोह का मामला चलाया गया बांदा के मजिस्ट्रेट ने दिनांक १८-६-१८५८ को – अपना निर्णय दिया। सरकार ने निम्नलिखित अधिनियमों के अन्तर्गत इस अभियोग की कार्यवाही की गई। ।
1 – १८५७ का अधिनियम ११ (१) ब्रटिश सरकार के खिलाफ बगावत करना (२) ब्रटिश सरकार के खिलाफ षडयन्त्र करना और लड़ना।
2 – १८५७ के अधिनियम ११ एवं १६-ब्रटिश सरकार के खिलाफ ल विद्रोहियों को मदद करना।
3 – १८५१ का अधिनियम १६, डाकेजनी, लूटपाट, कत्ल, गांवों को जानबूझ कर जलाना, ऐसे ही अन्य अपराध ।
4 – १८५१ का अधिनियम २६, ब्रटिश सरकार के खिखाफ लडने की नियत से आदमियों हथयारों आदि का संकलन करना । मुकदमें की कार्यवाही चलाने के बाद पूरी मामले पर विचार कर फैसला दिया गया।