बांदा के नवाब आलीबहादुर द्वितीय भरोसेमंद मित्र Karvi Ke Peshawa बाजीराव पेशवा द्वितीय के चचेरे भाई, राधोवा पुत्र अमृतराव थे। अमृतराव के साथ अंग्रेज सरकार ने 14 अगस्त 1803 में एक संधि निस्पादित की जिसका समझौता इस प्रकार है ।
इस पर सहमति हुई कि अमृतराव उसके पुत्र विनायकराव और विनायकराव के पुत्र के जीवन काल तक सात लाख रुपया वार्षिक पेन्शन मिला करेगी, तथा इसके बराबर राजस्व की जागीर हो सकती है। अंग्रेज सरकार इसका भुगतान करने का उत्तरदायित्व लेता है । इस समय अमृतराव के अधिकार में तिरोंहा जागीर के जितने गाँव हैं और उनकी, राजस्व जो भी हो उसका समायोजन करते हुए शेष राशि का नगद भुगतान किया जावेगा।
इस प्रकार कुल राशि यानी गांवों से राजस्व एवं नगद सात लाख के बराबर होगी। अमृतराव ब्रटिश सरकार का मित्र है । इसका सुबूत दर्शाने के लिये अमृतराव को चाहिये कि वह महामहिम मेजर वेलेजली से मिला जो औरंगाबाद यात्रा पर जा रहे हैं । ऐसा करने पर वह महामहिम से निवेदन करे कि उसके दस हजार आदमियों को ब्रटिश सरकार अपने वेतन पर ले ले । अमृतराव के वकील को यह स्पष्ट कर दिया गया कि यह सात लाख की पेन्शन उसके, परिवार तथा अन्य निजी खर्च के लिये है। यदि वह नई भर्ती करता है तो ब्रटिश सरकार उनका भुगतान नहीं करेगी।
अमृतराव 1817 में बनारस से तिरौंहा आया और उसने अपने रहने के लिये तिरौंहा को पसन्द किया और वहीं से वह पेन्शन भी लेता रहा । इस सात लाख में उसकी जागीर की आय, 406 रुपये, भी शामिल थी, जो कि उसे पहले से ही ब्रटिश सरकार से मिलती रही थी। 1842 में अमृतराव अपने सभी मामले आदि अपने पुत्र विनायकराव को देकर बनारस चला गया जहां उनकी मृत्यु हो गई। विनायक राव के कोई सन्तान नहीं थी। उसने एक ब्राम्हण पुत्र नारायणराव की गोद लिया। अपने जीवन काल में उसने पश्चिमोत्तर प्रान्त की सरकार को लिखा कि जो भी सुविधायें आदि उसे प्राप्त हैं वे सभी नारायणराव को भी दी जावें।
लेकिन विनायकराव की नारायणराव से अधिक दिनों तक नहीं पटी। जनवरी 1853 में विनायक राव ने स्वयं ही कलेक्टर को बताया कि वह नारायण राव से प्रसन्न नहीं है। विनायक राव की मृत्यु 6 जुलाई 1853 को हो गई । उसकी मृत्यु के उपरान्त तिरोंहां की जागीर भी सरकार ने ले ली । राजा विनायक राव ने मृत्यु -पूर्व अपनी वसीयत द्वारा घोषित किया था कि वह अपने प्रथम गोद-पुत्र नारायण राव के व्यवहार एवं कार्यों से असंतुष्ट है जिसके कराण उसको दूसरा पुत्र गोद लेना पड़ा तथा प्रथम गोद पुत्र को अपनी सम्पत्ति के अधिकार से वंचित कर दिया ।
उसे केवल दो सौ रुपये माह वार पेंशन दे दी गई । वसीयत में आगे यह भी कहा गया था कि वह अपने द्वितीय गोद पुत्र को अपनी समस्त सम्पत्ति का उत्तराधिकारी घोषित करता है और बाबू हरिचन्द अग्रवाल, बाबू राधा गोविन्द तथा मकुन्द राव जामदार को सम्पत्ति के प्रबंध हेतु ट्रस्टी नियुक्त करता है । जब तक कि द्वितीय गोद पुत्र व्यस्क न हो जावे ।
उपरोक्त बसीयत को सूचना मरने के कुछ दिन पूर्व, विनायराव ने बुन्देलखण्ड के रेसीडेन्ट को तथा आसपास के राज-प्रमुखों के पास भेज दी थी। विनायक राव की मृत्यु के बाद उसके प्रथम गोद पुत्र नारायण राव ने कतिमय महिला -सेवादारों तथा अन्य घरेलू नौकरों की मदद से पूरी सम्पति पर कब्जा जमा लिया और द्वितीय पुत्र बालक माधव राव को भी अपने पास रख लिया । माजरा यह रहा कि वसीयत में अंकित कार्यपालक तथा ट्रस्टी भी हताश हो गये ।
विनायक राव की मृत्यु पूर्व की ३ माह ६ दिन की पेन्शन एवं पूर्व का बकाया जो साढ़े तीन करोड़ रुयया था जो अभी तक मिलना शेष था। नारायण राव ने अपने मुख्तयार को कलकत्ता भेजा कि वह वहाँ जाकर गवनर जनरल से इस रकम के भुगतान बाबत आदेश प्राप्त करे । उसे ब्रटिश अधिकारियों ने बताया कि वह बांदा के जज से प्रमाण पत्र प्रस्तुत करें जो उसे 1841 के अधिमियम 20 तथा 1851 के अधिनियम 10 के मुताबिक हासिल करना होगा । जब तक ऐसा प्रमाण पत्र प्रस्तुत नहीं किया जावेगा कोई भी भुगतान नहीं किया जा सकता चाहे पेन्शन का हो या इस्ट इण्डिया कंपनी की किसी भी प्रतिभूति से संबधि क्यों न हो ।
अमृतराव 1826 में 6 प्रतिशत ब्याज दर पर दो लाख रुपया। सरकार के पास सिक्युरिटी के रूप में जमा किये थे जिस पर सरकार ने चार प्रतिशत व्याज देना स्वीकार किया था। अमृतराव के मरने के बाद विनायक राव ने भी तीन लाख रुपये इसी प्रकार सरकार के पास जमा किये थे, इस धन के व्याज से, बनारस में स्थित इनके पूर्वजों की छतरियों तथा उद्यान के अनुरक्षण, सेना का खर्चा चलता था।
उसके मरने के बाद इन प्रतिभूतियों पर 28700 रुपया व्याज के रूप में निकालते थे परन्तु उसके मरने के तीन साल बाद इन प्रतिभुतियों पर व्याज देना भी बन्द कर दिया गया विनायक राव ने मरने के पूर्व, कलेक्टर के पास अपना प्रार्थना पत्र भेजा था कि इन प्रतिभूतियों को दूसरे दस्तक पुत्र माधव राव के पक्ष में पृष्टाकित कर दिये जावे । लेकिन सरकार ने व्याज भुगतान वन्द कर देना ही ठीक समझा।
इस विवाद को निपटाने के लिये सरकार ने बांदा के कलेक्टर को। निर्देश दिया कि जिन मामलों को पोलीटिकल विभाग द्वारा रोक दिया गया था, उनको निपटाने के लिये वह पश्चिमोत्तर प्रान्त के लेफ्टीनेन्ट गवनर के निर्देशानुसार अपने अधिकार से प्राधिकरण गठित कर सकता है।
कलेक्टर को यह भी निर्देश दिये गये कि महाराजा के मरने के बाद उसके परिवार के पास निजी उपयोग के लिए जो भूमि थी उसके वावत कलेक्टर विचार कर सकता है कि उस भूमि को लगान से मुक्त रखा जावे, उस पर परिवार के सदस्यों को मालिकाना का हक दिया जावे इसके अलावा सरकार ने कलेक्टर को बताया कि विनायकराव के सभी आवेदनों को अस्वीकार कर दिया गया है जिसके बाद विनायकराव ने माधवराव को गोद-पुत्र की मान्यता प्रदान करने हेतु अनुरोध किया था।
इस विना पर कि हिन्दू कानून में यह कहीं उल्लेख नहीं है कि कोई हिन्दू प्रथम-गोद पुत्र के जीवित रहने पर, दूसरे बालक को भी गोद ले सकता है । जबकि प्रथम गोद पुत्र ने अपने हक भी तो नहीं त्यागे हैं। वह अपने कर्तव्यों में अयोगा करार दिया गया हो, । अन्त में गर्वन जनरल ने कलेक्टर को यह सलाह दी कि दोनों गोद-पुत्री में यदि कोई विवाद है तो वह न्यायालय से ही सुलझ सकेगा। बिठूर के पेशवा को दीवानी तथा फौजदारी न्यायालयों के कार्य क्षेत्र से वाँछित उपवादों से छूट दे गई थी जो बिठूर तथा उसके आसपास के गाँवों के क्षेत्र की परिधि में आते हो ।
बाजीराव पेशवा की मृत्यु के बाद तो ये गाँव कानपुर जिला में मिला दिये गये। इसी प्रकार तरौंहा की जागीर अमृतराव के मरने के बाद बाँदा जिला में मिला दी गई । लेकिन कर्वी के पेशवा को दीवानी तथा फौजदारी के न्यायालयों से छूट दी गई थी। इसके बारे में स्पष्ट उल्लेख नहीं मिलता। अतः वह इस सुविधा से वंचित रहा । नारायण राव के सिपाहियों ने एक साथ मिलकर नारायण राव को नजरबंदी से निकालकर तरौंहा की गद्दी पर आसीन करा दिया और यह भी संकेत किया कि यदि वे चाहे तो माधवराव को भी गद्दी पर बिठा सकते हैं।
अब नारायण राव भी इनके नियन्त्रण में बंध गया कि ऐसा न हो कि उसे कभी भी अलग कर दिया जाय । वह अपने को अब तो तरौंहा का पेशवा मान ही बैठा था । नारायण राव ने, विनायक राव के मरने के बाद, जबरदस्ती से मकानों तथा सभी सम्पत्ति पर अधिकार कर लिया इस सम्पत्ति में राजापुर का मकान एक उद्यान भी शामिल था। तत्पश्चात नारायण राव ने कलेक्टर को सूचित किया कि उसने माधव राव से एवं विनायक राव की पुत्री से आपसी समझौता कर लिया है।
इस प्रकार सम्पत्ति के मामल में आपस में कोई विवाद नहीं है। विनायक राव के मरने के बाद ही अक्टूबर 1853 में पोलीटिकल असिस्टेन्ट के आदेश पर उसकी सेना के 366 सिपाहियों को अलग कर दिया गया था । लेकिन हरौंहा से जैसे ही पोलीटिकल असिस्टेन्ट लौटा कि नारायण राव ने उन सभी को पुनः नौकरी में रख लिया । यही नहीं, ब्रटिश सरकार ने नारायण राव को “पेशवा” की उपाधि से अलंकृत नहीं होने दिया। सरकार का मन्तव्य था कि केवल महरबान दोस्ताना नारायण राव साहब, का ही प्रयोग किया जाये ।
नारायण राव सरकार का विद्रोही हो गया, उसकी विद्रोहात्मक गतिविधियों को सुनकर तुरन्त ही झाँसी से मेजर इलिस 4 अक्टूबर को चलकर 8 अक्टूबर को तरौंहा पहुंचा वहाँ के थानेसर अकबर जमा खाँ ने उस को बताया कि नारायण राव की सेना ने विद्रोह कर दिया है। उस समय नारायण राव के बाड़े के प्रभारी बाबू मराठा था ।
नारायण राव के परामर्श से सभी सैनिकों को परेड पर बुलाया। नारायण राव सरदार खाँ तथा नारायण राव के अगरक्षों के समक्ष इलिस को बताया कि इन सिपाहियों की विनायक राव के समय की वेतन का भुगतान कर या जाय । इलिस ने कोरा उत्तर दे दिया और कहा कि नारायण राव केवल 25 सिपाही रख सकते हैं शेष को अलग किया जाता है। वे यदि चाहे तो पांच रुपये माहवार पर पुनः सेवा में सिपाही लिये जा सकते हैं ।
1 – गष्ट्रीय अभि ने वागार 1-पोलोटि कल लेटर्स, टू सेक्रेट्री आफ, स्टेट, संख्या 42 दिनांक 13 -5-1854, तरौंहा के मामले ।
2 -कांसलटेशन 19, दिनांक 29-7-1853 पोलीटिकल गवरनर जनरल के एजेन्ट की ओर से भारत सरकार के नाम पत्र संख्या 15 दिनांक 14-7-2853 ।
3 -कान्सलटेशन 21-22 के डस्ल, दिनांक 29-7-1853 नोट दिनांक 18-7-1853
2 – राष्ट्रीय अभिलेखागार 1-2 [3] के अनुसार 2-कान्सलटेशन 82, दिनाँक 18-11-1853, 4 – पोलीटिकल, जज कलकत्ता ओल्ड पोस्ट आफिस स्ट्रीट की ओर से भारत सरकार के नाम पन नम्बर 1853, 5 – राष्ट्रीय अभिलेखागार-कान्सलटेशन 32-35 दिनांक 5 8-1853
6 – पोलीटिकल, गवरनर जनरल के एजेन्ट की ओर से कलेक्टर, बाँदा के नाम पत्र संख्या 289 दिनांक 20-7-18531
7 – राष्ट्रीय अभिलेखागार-कान्सलटेशन 21-22 के डब्ल, दिनांक 29-7-1853, नोट दिनाँक 18-7-1853 ।
8 – राष्ट्रीय अभिलेखागार 3- के अनुसार।
9 – राष्ट्रीय अभिलेखागार कान्सलटेशन 32-35, दिनांक 5-8-1853,
10 – राष्टीय अभिलेखागार-[क] पोलीटिकल लेटर्स ट दी सेक्रेट्री आफ स्टेट नम्बर 42 दिनांक 13-5-1854
11 – कान्सल टेशन 19-22 दिनांक 25-11-1853, [ख] कान्सलटेशन 118-19 दिनांक 2-12-1853
12 -पोलीप्टिकल असिस्टेन्ट बुन्देलखण्ड की ओर से पोलीटिकल एजेन्ट ग्वालियर, रीवा के नाम पत्र । 2-डिप्टी कलेक्टर सरदार खां की ओर से कलेक्टर बांदा के नाम पत्र दिनांक 4-10-18531
13-तरौंहा के बावत मेजर इलियस का कथन
[ग] कान्सलटेशन 19-20, दिनांक 25-11-1853 पोलीटिकल, तरौंहा से सम्बन्धित मामला अहमद अली सोहनलाल चपरासो की अर्जी दिनांक २३-१२-१८५८,
14 -राष्ट्रीय अभिलेखागार-पोलीटिकल प्रोसीडिग्ज ३१-१२-१८५८, ग्यारहवाँ भाग अनुक्रमांक २१७८, पृष्ट २०७, समाचार दिनांक २७-२-१८५८,
15 – राष्ट्रीय अभिलेखागार-पोलीटिकल प्रासीडिंग्ज, दि०३१-१२-१८५८ ग्यारहवाँ भाग, अनुक्रमांक ३७३७ मिस्टर कोल्स, पोलीटिकल असिस्टेन्ट नागौद का पोलीटिक एजेन्ट, रीवा के नाम पन दिनांक ४-७-१८५८,
16 – राष्ट्रीय अभिलेखागार- १- पोलीटिकल प्रोसीडि ३१-१२-१५५६) ग्यारहवाँ भाग अनुक्रमांक २१७३, मजिस्ट्रेट, बाँदा की ओर से भारत सरकार के नाम पत्र संख्या १०१ दिनांक १६-३-१८५८ २-डिसपेच टू दी सिक्रेट कमेटी, १८५७, अनुक्रमांक, ८२, पोलीटिकल एजेन्ट रीवा का पत्र संख्या ६३३ दिनाँक २८-६-१८५७,
17 – राष्ट्रीय अभिलेखागार-रिवोल्ट इन सेन्ट्रल इण्डिया पृष्ट १७६
18 – राष्ट्रीय अभिलेखागार-१० के अनुसार
19 – राष्ट्रीय अभिलेखागार-१० के अनुसार
20 – राष्ट्रीय अभिलेखागार-पोलीटिकल प्रासीडिंग्ज, ग्यारहवाँ भाग, अनुक्रमांक २२०६, पृष्ट २५४,
21 – राष्ट्रीय अभिलेखागार-पोलीटिकल प्रासीडिंग्ज, ग्यारहवाँ भाग, अनुक्रमांक २१८१ पोलीटिकल एजेन्ट, रीवा की ओर से भारत सरकार के नाम पत्र संख्या ४७०, दिनांक १०-४-१८५८,
22 – राष्ट्रीय अभिलेखागार-पोलीटिकल प्रोसीडिंग्ज ग्यारहवां भाग, अनुक्रमांक २१८०, पोलीटिकल एजेन्ट रीवा, की ओर से भारत सरकार के नाम पत्र संख्या ३८७ दिनांक २७-३-१८५८,
23 – राष्ट्रीय अभिलेखागार-पोलीटिकल प्रोसोडिग्ज ३-६-१८५८, अनुक्रमांक १२३५, कमिश्नर, इलाहाबाद की ओर से पश्चिमोत्तर प्रान्त सरकार के नाम पत्र दिनांक १५-६-१८५८ पंजाब सिंह का धीरसिंह के लिये पत्र दिनाँक ६-२-१८५८, १८.
24 – राष्ट्रीय अभिलेखागार-पोलीटिकल प्रोसीडिंग्ज, ग्यारहवाँ भाग, अनुक्रमांक २१८५, कलेक्टर बांदा को ओर से कमिश्नर, चतुर्थ सम्भाग के नाम पत्र दिनांक १७-५-१८८५,
24 – राष्ट्रीय अभिलेखागार-सक्रेट प्रोसीडिंग्ज, ग्यारहवाँ भाग २५-६-१८५८, अनुक्रमांक २१८, पोलीटिकल असिस्टन्ट बुन्देलखण्ड की ओर से भारत सरकार के नाम तार संख्या ३३ दि० २१-३-१८५८.
25 – राष्टीय अभिलेखागार -पोलीटिकल प्रासीडिग्ज ग्यारहवां भाग, १ अनुक्रमांक २१७६, मजिस्ट्रेट, इलाहाबाद की ओर से भारत सरकार के नाम पत्र संख्या १५५. दिनांक ३०-३-१८५८,
26 – राष्ट्रीय अभिलेखागार-पोलीटिकल प्रासीडिंग्ज, दि०३१-१२-१८५८ ग्यारहवाँ भाग, अनुक्रमांक ३७३७ मिस्टर कोल्स, पोलीटिकल असिस्टेन्ट नागौद का पोलीटिक एजेन्ट, रीवा के नाम पन दिनांक४-७-१८५८,
27 – राष्ट्रीय अभिलेखागार- १- पोलीटिकल प्रोसीडिंग्ज ३१-१२-१८५८, ग्यारहवाँ भाग अनुक्रमांक २१७३, मजिस्ट्रेट, बाँदा की ओर से भारत सरकार के नाम पत्र संख्या १०१ दिनांक १६-३-१८५८ २-डिसपेच टू दी सिक्रेट कमेटी, १८५७, अनुक्रमांक, ८२, पोलीटिकल एजेन्ट रीवा का पत्र संख्या ६३३ दिनाँक २८-६-१८५७,
28 – राष्ट्रीय अभिलेखागार-रिवोल्ट इन सेन्ट्रल इण्डिया पृष्ट १७६ १२- राष्ट्रीय अभिलेखागार-१० के अनुसार १३- राष्ट्रीय अभिलेखागार-१० के अनुसार
29 – राष्ट्रीय अभिलेखागार-पोलीटिकल प्रासीडिंग्ज, ग्यारहवाँ भाग, अनुक्रमांक २२०६, पृष्ट २५४,
30 – राष्ट्रीय अभिलेखागार-पोलीटिकल प्रासीडिंग्ज, ग्यारहवाँ भाग, अनुक्रमांक २१८१ पोलीटिकल एजेन्ट, रीवा की ओर से भारत सरकार के नाम पत्र संख्या ४७०, दिनांक १०-४-१८५८,
31 – राष्ट्रीय अभिलेखागार-पोलीटिकल प्रोसीडिंग्ज ग्यारहवां भाग, अनुक्रमांक २१८०, पोलीटिकल एजेन्ट रीवा, की ओर से भारत सरकार के नाम पत्र संख्या ३८७ दिनांक २७-३-१८५८,
32 – राष्ट्रीय अभिलेखागार-पोलीटिकल प्रोसोडिग्ज ३-६-१८५८, अनुक्रमांक १२३५, कमिश्नर, इलाहाबाद की ओर से पश्चिमोत्तर प्रान्त सरकार के नाम पत्र दिनांक १५-६-१८५८ पंजाब सिंह का धीरसिंह के लिये पत्र दिनाँक ६-२-१८५८,
33 – राष्ट्रीय अभिलेखागार-पोलीटिकल प्रोसीडिंग्ज, ग्यारहवाँ भाग, अनुक्रमांक २१८५, कलेक्टर बांदा को ओर से कमिश्नर, चतुर्थ सम्भाग के नाम पत्र दिनांक १७-५-१८८५,
34 – राष्ट्रीय अभिलेखागार-सक्रेट प्रोसीडिंग्ज, ग्यारहवाँ भाग २५-६-१८५८, अनुक्रमांक २१८, पोलीटिकल असिस्टन्ट बुन्देलखण्ड की ओर से भारत सरकार के नाम तार संख्या ३३ दि० २१-३-१८५८.
35 – राष्टीय अभिलेखागार -पोलीटिकल प्रासीडिग्ज ग्यारहवां भाग, १ अनुक्रमांक २१७६, मजिस्ट्रेट, इलाहाबाद की ओर से भारत सरकार के नाम पत्र संख्या १५५. दिनांक ३०-३-१८५८,