करके प्रीत करे सौ जाने, कात की कोउ न माने।
दाबन लगे दूर से नकुआ, लासुन भरे बसाने।
काने कछू-कछू कै आवै, ना रए बुद्धि ठिकाने।
बिगरे कैउ आ दिन से ईसुर, हम वे तरे निसाने।
तुम बिन तड़प रहे हम दोऊ, आन मिलो निर्मेही।
सोने की जा बनी देईया, कंचन जुबना दोई।
जबसे बिछुरन तुमसे हो गई, नहीं नींद भर सोई।
कात ईसुरी बिना तुम्हारे, हिलक-हिलक कै रोई।
तलफन बिन बालम जौ जीरा, तनक बंधत न धीरा।
बोलन लागे सैर पपीरा, बरसन लागो नीरा।
आदी रात पलंग के ऊपर, उठत मदन की पीरा।
ईसुर कात बता दो प्यारी, कबै मिलै जे जीरा।
नायक-नायिका को जब विछोह का दर्द सहन नहीं होता है, तब पश्चाताप करने लगते हैं।महाकवि ईसुरी Mahakavi Isuri कहते हैं अब तो जो हो गई सो हो गई, किन्तु अब अगले जन्म में ऐसी भूल नहीं करेंगे।