करके नेह टोर जिन दईयो, दिन-दिन और बढ़इयो।
जैसे मिले दूध में पानी, उसई मनै मिलइयो।
हमरो और तुम्हारो जो जिउ एकई जाने रइयो।
कात ईसुरी बांह गहे की, खबर बिसर जिन जइयो
करके प्रीत मरे बहुतेरे, असल न पीछू हेरे।
फुदकत रहे परेवा बनकें, बिरह की झार झरेरे।
ऐसे नर थोरे या जग में, डारन नाईं फरेरे।
नीति तकन ईसुर की ताकन, नेही खूब तरेरे ।
महाकवि ईसुरी प्रकृति के अमिट सिद्धान्त का उल्लेख करते हुए कहते हैं कि जो मनुष्य दोहरा चरित्र जी लेता है, उसकी कदर कोई नहीं करता है । ये दोहरापन ज्यादा दिनों तक न तो चलता है और न छिपाए छिपता है। एक न एक दिन कलई खुल ही जाती है, तब नीचे को मुंह करना पड़ जाता है।