जा बुन्देलन की धरती
1
ईये कोउ कम नई जानौं, जा बुन्देलन की धरती ।
फूलई फूल लगे रत रोजऊ, डारन धारन फरती ।।
हरी-हरी दूबा की पैरैं, हरी गुल गुली सारी ।
ई की बनक और बन्नीसी, सब भारत सैं न्यारी ।।
2
भुका भुके सैं चिरई चुन गुनू चुन चुनवे खौ जा रई ।
उठ उठ भऔ भाई मुन्सरां, के रई रोज जगा रई ।।
सींगन कैं धरती फाडारैं, कड़कें ढोर बछेरू
कुजान का चुनवे के काजैं, बा रये चोंच चरेरू ।।
3
कैउ किसानन के काजैं जा, खेतन की हरियारी ।
उनैं जिया दानों सौ मिल गओ भारई लगवै प्यारी ।
भुका भुके से लौलैया नौ मैनत करवे काजै ।
पिटियां युद्ध जुटे रये रोजऊ एैन ओइ के लाजैं ।।
4
खावे नौं की खबर बिसरवै, डरे भरे खेतन में ।
डाल फूल सी भरी दिखाबै, पछरा उर चेतन में ।।
सनुवाँ मनुवाँ धुनवां हनुवाँ, मनई मनई मुरझा रये ।
मनई नई मन अपने एरैं, कुजाने का का गा रये ।।
5
चले झूढ़ के झूढ़ झलाझल, बीसन बन्नी तिरियां।
खौसें कुछ कुछ हंसिया अपनैं, कोउ कोउ लयें पिरियां ।।
लाल गुलाबी अग रई कँचई, धुतिया रंग विरगी ।
लगा कछोटौ फैटा कस के, सबई दिखा रई चगी ।।
6
हिन्ना छिरा खरा लड़ैया, लेत रवैं वमछोरें ।
तिदुआं भोर दलाकैं जैसें, जंगल खौ फाडारैं । ।
इयाँ हुई हुई करैं उड़त रये, पैंनी लालैं चौचैं ।
कौवा कौउ परेवा उड़कैं, ओइ बगल में पौचैं ।।
7
ई की तनक बना रई नौंनी, कुल्लन नदियाँ बै रई ।
अपनीउ कुल कल की धुन में, जै जै जै जै कै रई ।।
सांसी भौभाई धरती की बेई बेतवा बै रई ।
बुन्देलन के काजैं तागत, कैउ तरा की दै रई ।।
8
बड़ी दशान दिखा रई अपनौ, लम्मौ चौंरौ चोला ।
करत रवै किललोरैं नदियाँ, ऊसैं कैउ मजोला । ।
कँउ दो भई कऊ मिली एक जामनेर की धारैं ।
भाइ बड़ौ मौवा लये अपनौं, डर लगवै बसकारैं ।।
9
कोरौ नाँज पजै नई धरती, वीरन की पज कर वै
ई पानी पीतन तागत, नसन नसन में भर वै ।।
आला ऊदल औ मलखे की, छपक छपक तलवारैं ।
चलीं ऐइ के ऊपर बै गई, कैउ खून की धारैं ।।
10
चम्पतरा उर छत्र साल की, एैन सुनीं ललकारैं ।
ऐसी उमदा उमदा धरती ई के, वीर कबहुँ नई हारैं ।।
नांव सबई ने सुनलओ हुइवै बा झाँसी की रानी
टक्कर लैवे दुश्मन सामैं, बनी फिर मरदानी । ।
11
मधुकुरशा राजा की रानी, कुंवर गनेश सुहानी ।
रामचन्द्र खों ल्आई हतीबे, पुक्खन पुक्खन जानीं । ।
कछू वनों मर्दानी तिरियां उन वीरान के नामें ।
कछू सांस के कारनं अपनैं, और धरम के काँ मैं ।।
12
सुन सुन कैं हरदौल हला की, भारइ भिरम कहानी ।
विश को कौर बिना कयें खालओ, बात बड़े की मानी । ।
सुन सुन कैं भर आयं तलैयाँ ऐसे जिऊ जाँ भये ते ।
उन्नौ काम करो नई औछौ बड़े बड़े कय गये ते ।।
13
जी को अरथ लगावौ मुश्कल, केशव की कवताई ।
ऐइ भूम के ऊपर भैया रामचन्द्रिका गाई ।।
भूशण कवि ने न वखानी, वीरन की करतूतें ।
कै जने बुन्देली भाशा अपने एरैं कूतैं ।।
14
मन में ऐन गुन गुना लेबैं, पद्माकर की लैंनें ।
रत्नाकर के काजैं गड़ें, कैउ करत रयें सैंनें ।।
व्यास नरोत्तम दास कबिन के, छन्द अमर से हों रये ।
ऐसे प्यारे भाव भले से, मीठे रस में मो रये ।।
15
नौंनी लगवैं सब के कबहुं कबहुं तौ अपने काजैं, ई ईश्वर की फागें ।
कबहुँ कबहुँ तो अपने ऐरें, मन के लाडुआ पागें ।।
सुनवे ऐन मिलत रई हुइयै, तानसेन की तानेँ ।
ऐसौ उम्दा गावे वारौ, मिलें कितउ नई छानैं ।।
रचनाकार – शिवानंद मिश्र “बुंदेला”