चित्रलेखा ने केसर नटनी के साथ जादू से इंदल को तोता बना लिया और पिंजरे में डालकर Indal Haran करके वह अपने शहर बलख बुखारे लौट आई। वह दिन मे इंदल को तोता और रात मे इंसान बना देती, इधर महोबेवाले इंदल को लेकर परेशान ।
इंदल हरण- प्यार मे जादू और तिलस्म
आल्हा से एक बार ऊदल ने जेठ के दशहरे पर गंगास्नान के लिए जाने की अनुमति माँगी। आल्हा ने मना तो किया, परंतु बहुत आग्रह करने पर ढेवा को साथ भेज दिया, ताकि व्यर्थ में किसी से झगड़ा-रगड़ा न करे। ऊदल को मेले में जाते देखकर आल्हा का एकमात्र पुत्र इंदल भी साथ जाने की जिद करने लगा। अनुमति लेने गए तो आल्हा ने साफ इनकार कर दिया, परंतु नवयुवक इंदल ने एक न मानी और साथ चला गया।
बिठूर में गंगा किनारे जाकर ऊदल ने डेरा लगा दिया। कन्नौज के राजकुमार लाखन ने भी पड़ोस में ही डेरा लगा रखा था। मेले में सभी गंगा किनारे अपने तंबू गाड़कर रहते। ऊदल के डेरे में जोर से ढोल-नगाड़े बज रहे थे। लाखन ने एक नौकर भेजा कि ढोल बंद करवा दो, यहाँ बातचीत तक सुनाई नहीं दे रही है। कर्मचारी ने लाखन का संदेश सुनाया तो ऊदल ने कह दिया, “जाकर बता दो, ये ढोल बंद नहीं होंगे। हम महोबावाले हैं।” संदेशवाहक तो चला गया।
ढेवा ने समझाया, “इसी डर से तो आल्हा तुम्हें मेले में आने से रोक रहे थे। बेमतलब झगड़ा मोल लेना तुम्हारी आदत है। कन्नौज के राजा जयचंद से हमारे अच्छे संबंध हैं। आड़े समय हम उनकी और वे हमारी सहायता करते हैं। जरा सी बात पर तुम उन्हें महोबा का शत्रु बना लोगे। अच्छा यही है कि शोर बंद करो और चलकर लाखन भाई से मिलो।
बात ऊदल की समझ में आ गई। फौरन ढोल-नगाड़े बंद किए और दोनों भाई लाखन के डेरे में गए। जाकर प्रणाम किया तो लाखन खुश हो गया। दोनों गले मिले और परिवार का समाचार पूछा। लाखन ने भी कहा, “कोई बात नहीं, मेला है, खूब नगाड़े बजाओ, नाचो-गाओ। अरे, मेले में ढोल नहीं बजाएँगे तो क्या घर में बजाएँगे?”
मेले में बलख बुखारे से राजा अभिनंदन की पुत्री चित्रलेखा भी अपने भाई हंसराज के साथ आई थी। सुबह जल्दी स्नान से निवृत्त होकर वह मेला घूमने निकली। घूमते हुए वह महोबा के डेरे के पास पहुँची। केसर नाम की नटनी भी साथ थी। महोबे के डेरे को देखकर वह इंदल की तलाश करने लगी।
धाँधू की शादी में उसने इंदल को देखा था। उसने तभी सोचा था, इंदल से ब्याह करूँगी। इसीलिए वह इंदल की तलाश कर रही थी। राजकुमारी चित्रलेखा ने केसर नटनी जैसा ही रूप बनाया और इंदल की तलाश करने लगी। ढेवा ने बुखारेवाली नटनी को पहचान लिया और कुछ मोहरें देकर विदा कर दिया।
चित्रलेखा ने इंदल को देख रही। जब ऊदल, ढेवा और इंदल गंगा में स्नान करने को चले तो चित्रलेखा भी गंगा तट पर जा पहुँची। ऊदल ने केवट से नाव मँगाई और नाव को गंगा के बीच धार में ले गए। इधर चित्रलेखा भी केसर नटनी के साथ नाव में बैठकर बीच धार में जा पहुँची।
जादू की एक पुडिया चित्रलेखा ने ऊदल पर फेंकी, वह अचेत होकर गिर पड़ा। नटनी ने ढेवा पर जादू की पुडिया फेंकी। वह भी अचेत हो गया। चित्रलेखा ने अब जादू की पडिया फेंककर इंदल को तोता बना लिया और पिंजरे में डालकर अपनी नाव किनारे की ओर बढ़ा दी। इंदल का हरण करके वह अपने डेरे में लौट आई।
जब ऊदल और ढेवा की चेतना जागी तो इंदल को न पाकर चिंतित हुए। दोनों ने सारा मेला खोजा, पर इंदल नहीं मिला। गंगा में भी जाल लगवायाः कोई सुराग नहीं लगा। अब इंदल के बिना महोबा लौटना भारी हो गया। माहिल भी इनके साथ आया था, उसने तो आग लगाने का कोई मौका कभी छोड़ा ही नहीं था।
वह बोला, “मैं पहले चलकर आल्हा को समझा देता हूँ। जब तुम देखो कि शांति है, तब आकर बता देना कि हो सकता है कोई जादूगर ले गया हो। हमें पाँच महीने की मोहलत दे दो तो हम अवश्य इंदल को खोजकर ले आएँगे।”
ये दोनों आल्हा से मिलने में डर ही रहे थे। अत: माहिल को आगे जाने दिया। माहिल तो सदा बनाफरों की काट करता ही रहा था। उसने बताया, “ऊदल ने तुम्हारे पुत्र इंदल को मार दिया। जैसे ही उसने डुबकी लगाई, ऊदल ने तलवार से वार करके उसका सिर धड़ से अलग कर दिया। सिर और धड़ गंगा में ही बहा दिए।” आल्हा को पहले तो विश्वास नहीं हुआ, परंतु माहिल ने गंगाजी की सौगंध ली तो विश्वास आ गया।
जवान पुत्र की हत्या पर किसे क्रोध नहीं आता! आल्हा भी आग-बबूला हो गया। ढेवा की बात सुने बिना ही ऊदल को बुलवाकर खूब डाँटा। उसकी एक न सुनी और खंभे से बाँधकर खूब पीटा। माता की भी नहीं सुनी। अपनी पत्नी मछला, ऊदल की पत्नी फुलवा की भी गुहार बेकार गई।
सुनवां ने बहुत समझाया कि इंदल तो और पैदा हो जाएगा, परंतु ऊदल को मार दिया तो ऐसा भाई कहाँ से लाओगे? परंतु आल्हा का क्रोध आसमान पर था। उसने जल्लाद बुलवाए और आदेश दिया कि ऊदल की हत्या करके इसकी आँखें सबूत के तौर पर मुझे लाकर दो।
जल्लाद चले तो सुनवां साथ चली। उन्हें रोककर कहा, किसी हिरण का शिकार करके आँखें निकाल लाना, पर ऊदल को मत मारना। इनाम के रूप में सुनवां ने अपने गले का कीमती हार जल्लादों को दे दिया। फुलवा ने भी ऐसा ही किया। जल्लादों ने जंगल में ले जाकर ऐसा ही किया।
ऊदल से कहा, “जहाँ भी जाना, पर महोबे की ओर मत आना, अन्यथा तुम्हारा जीवन बचाते हमारा जीवन चला जाएगा।” ऊदल अब अकेला सोचने लगा कि जाऊँ तो जाऊँ कहाँ? वह सिरसा पहुँचा। दरबान से कहा, “मलखान से कहो कि ऊदल आया है।” दरबान ने लौटकर बताया कि ऊदल से मलखान नहीं मिलना चाहते और फाटक बंद कर लिया।
ऊदल हैरान था कि मुसीबत में कैसे अपने सगे भी आँखें फेर लेते हैं। उसी शाम ढेवा इधर आ निकले। ढेवा ने ऊदल से पूछा कि अब कहाँ जाने का विचार है। तब ऊदल ने कहा, “मलखे से ज्यादा और कौन घनिष्ठ होगा? जब मलखे ने मेरे लिए फाटक बंद करवा दिया तो समझ गया कि अब दुनिया में कोई भी अपना नहीं है।”
विपत्ति में ही अपने-पराए की सही पहचान हो पाती है। तब ढेवा ने कहा, “चिंता मत करो। मैं तुम्हारा साथ कभी नहीं छोडूंगा। एक बार ससुराल में मकरंदी को और आजमा लें। एक उदया ठाकुर भी साथ था। तीनों नरवरगढ़ को चल दिए।
नरवर पहुँचकर महल के पास एक कुएँ पर जा बैठे। वहाँ हिरिया मालिन आ गई और पूछने लगी, “कौन हो, कहाँ से आए हो?” तब ऊदल ने कहा, “विपत्ति में तुमने भी नहीं पहचाना। मैं ऊदल हूँ, महोबे का ऊदल, आल्हा का भाई।” हिरिया हैरान हो गई। न साथ फौज, न हथियार, न घोड़ा, न तलवार। भला ऊदल को कोई कैसे पहचाने?”.
ऊदल ने बात बनाई, दिल्ली के पृथ्वीराज ने महोबा लूट लिया। सुनवां और फुलवा को भी ले गए। हम प्राण बचाकर भागे हुए हैं। हिरिया ने रानी को सारी बात बताई। रानी ने मालिन के द्वारा ऊदल को महलों में बुलवाया। ये तीनों भी महल में पहुँचे, तभी मकरंदी भी आ पहुँचा। उसने पूछा, “तुम्हारा वैदुल घोड़ा कहाँ गया? हथियार के बिना कैसे चले आए?” जब ऊदल ने पृथ्वीराज की लूटवाली कहानी सुनाई तो मकरंदी ने लानत भेजी कि तुम्हारे जीवन को धिक्कार है।
डोला लुट गया तो तुम्हें जीवित नहीं रहना था। अब मैं फौज तैयार करता हूँ। चलकर हम दिल्ली लूट लेते हैं। तब ऊदल ने सच बात बताई कि कैसे बड़े भाई आल्हा का पुत्र किसी ने चुरा लिया और भाई ने पीटकर जल्लादों को सौंप दिया। तब रानी ने कहा कि यहाँ मठ में देवी की पूजा और यज्ञ करो। देवी इंदल का सही पता बताएगी।
रात को ऊदल ने मठ में जाकर देवी की पूजा की। आधी रात को देवी की आभा ने बताया कि इंदल को बलख की राजकुमारी चित्रलेखा चुराकर ले गई। उसने जादू से तोता बना रखा है। रात को उसे मनुष्य बना लेती है।
सभी अगले दिन ही बलख बुखारे जाने को तैयार हो गए। अगले दिन जोगियों का वेश बनाकर चारों चल पड़े। मकरंदी ने भी जोगी वेश धारण कर लिया। नीचे हथियार भी छिपा लिये, ऊपर गूदड़ी पहन ली। टोपी में हीरे-मोती छिपा लिये। भस्म रमाई और रामनंदी तिलक लगाकर चल पड़े।
बलख के राजमहल के सामने जाकर खेल शुरू किया। मकरंदी ने डमरू पकड़ा, ढेवा ने खंजरी और उदया ने मंजीरा बजाया। स्वयं ऊदल बाँसुरी बजा रहे थे। महिलाओं ने जोगियों की सूरत देखी तो मुग्ध हो गई। वहाँ सब महिलाएँ ही जादू करना जानती थीं। उन पर कइयों ने जादू चलाने का प्रयास किया। उन पर प्रभाव नहीं हुआ तो
पूछने लगी, “कहाँ से पधारे हो?” ऊदल बताया कि हम बंगाल के रहनेवाले हैं। अब हिंगलाज माता के दर्शन के लिए जा रहे हैं। रानी ने उन्हें रुकने के लिए आग्रह किया। ऊदल ने कहा कि रमता जोगी और बहता पानी किसी के लिए नहीं रुकता। तब रानी ने कहा कि जरा ठहरो, मैं अपनी बेटी को बुला लेती हूँ। बेटी आई तो पान का बीड़ा साथ लाई। रानी ने जोगियों को गाना-बजाना दिखाने को कहा।
सबने अपने साज उठा लिये। ऊदल ने पहले बाँसुरी बजाई थी, फिर नाचना शुरू किया। नाचते हुए चित्रलेखा ने उसे पान दे दिया। पान लेते ही ऊदल अचेत हो गया। रानी को संदेह हुआ कि जोगी सच्चे संयमी नहीं। तब ढेवा ने रानी को बताया कि तीन पहर से जोगी ने कुछ खाया नहीं।
पैदल घूमे और नाचते हुए थककर चक्कर आ गया। शायद पान में तंबाकू होगा। उसका नशा भी हो सकता है। चित्रलेखा ने कहा, “जोगी को मेरे कमरे में पहुँचा दो, मैं ठीक कर दूंगी।” ऊदल को चित्रलेखा अपने कमरे में ले गई। उसने इंदल को तोते से मनुष्य बनाया। चाचा-भतीजे मिले। ऊदल ने अपना हाल बताया और साथ चलने को कहा।
चित्रलेखा ने कहा, “पहले अभी पंडित बुलवाकर भाँवर डलवाओ, तब जाने दूंगी।” ऊदल ने कहा, चोरी से विवाह करना हमारी शान के खिलाफ है। हम वादा करते हैं कि बरात लेकर आएँगे और बहादुरी से ब्याह करके ले जाएँगे। राजकुमारी ने इंदल से गंगाजली उठवा ली। फिर तोता बनाकर ऊदल के हाथ में पिंजरा दे दिया। एक जादू की पुडिया दे दी। कहा, “कहीं दूर जाकर इसे आदमी बना लेना।”
ऊदल, ढेवा, उदया ठाकुर और मकरंदी इंदल को लेकर चल पड़े। ऊदल ने उसे ढेवा के हवाले कर दिया और स्वयं मकरंदी के साथ नरवरगढ़ चला गया। मलखान को ऊदल ने सारा हाल सुनाया। तब मलखान इंदल और ढेवा के साथ महोबा पहुँचे। राजा परिमाल के दरबार में इंदल को पेश किया। फिर परिमाल भी दशपुरवा आल्हा से मिलने चले। मलखान ने इंदल को आल्हा के सामने खड़ा करके कहा, “जैसे मैंने इंदल को खड़ा कर दिया, क्या आप ऊदल को खड़ा कर सकते हैं?”
आल्हा को शर्मिंदा होने के अलावा कोई उपाय नहीं था। वह स्वयं अपने प्राण देने को तैयार हो गया। तब मलखे ने कहा, “अब इंदल के ब्याह की तैयारी करो। इसे अभिनंदन की पुत्री चंद्रलेखा तोता बनाकर ले गई थी। उसने ब्याह का वादा करवाने के बाद ही इसको आने दिया है। अब चुनौती सामने है।
ऊदल के बिना बलख बुखारे की फौजों से कैसे जीत पाओगे?” माता सुनवां व फुलवा दोनों को इंदल ने ऊदल के पत्र पकड़ा दिए। दोनों ऊदल की जानकारी पाकर प्रसन्न हो गई। माता मल्हना, दिवला और तिलका ने इंदल के विवाह की तैयारी शुरू कर दी। मलखे ने महोबा और सिरसा की फौजें तैयार करके बलख बुखारे को कूच कर दिया।