Homeबुन्देली व्रत कथायेंHarchhath Vrat Katha हरछठ व्रत कथा

Harchhath Vrat Katha हरछठ व्रत कथा

 बुन्देलखण्ड की औरतें अपने लरकन की खुशहाली के लाने हरछठ माता की पूजा करतीं है Harchhath Vrat Katha हरछठ व्रत कथा कहतीं हैं । एक गाँव में एक ग्वालन बाई रत्ती । भैसें गइयाँ बैल सबई कछू हतो उनके घर में । सास- संसुर, देवरानी – जिठानी उर नन्दनं सै घर भरो रत्तो उनको । ग्वालन बाई कौ काम हतो दूद मठा बेचवौ। रोज भुन्सरा मटकिया मूँढ़पै धरकै दूद मठा बैचवे कड़ जात तीं, उर दुपर लौटे नौ घरै आपाउततीं।

ग्वालन बाई कैं पैलऊ तौ कोनऊ सन्तान नई हती । उन्ने सन्तान के लाने सबई मनोमांतरा करी उर भगवान की कृपा सै एक डरइया लग गई । भौतई खुशयाली भई नन्नइया खौ देख कै। सबरऊ घर लयें -लयें फिरततौ उयै । उर कभँऊ-कभँऊ ग्वालन बाई गबवारे खौ कइयाँ ले  कै दूद मठा खौ बैचबे कड़ जात ती। कायकै हर-हर बेरऊ उयै दूध पियावने आऊततो। उदना हरछठ कौ दिना पर गओ । भैसई कौ दूद मठा उर खोवई खाव जात ऊ दिनों ग्वालन बाई कौ तौ जेऊ धन्दो हतो।

उन्ने सोसी कै आज तौ भैसई कौ दूद मठा बिकने है । आज तौ पइसा कमाबे कौ जौ भौतई अच्छौ मौका है। ऊके लिगा जादा तौ भेस को दूद हतो नई ऊने भैंस के दूद में गइया कौ दूद खौ मिला कै एक मटकिया भर दूद तैयार कर लओं । ऊने सोसी कै कोउये का पतो । भैस कौ दूद जानकै अपनी खूबई बिक्री हुई ।

ऊनै मटकिया मूँढ पै धरी उर नन्नइयाँ खौं कइयाँ लै कै चल पड़ी। लरका के लये सैं उयै तनक परेशानी होती लरकै लेतन तौ लै आये। अब इयै गैलमें कितै छोड़े। कजन धरै लौटत तौ देर हो जैय । औरन की बिक्री हो जैय उर हमाव दूद जई कौ तई धरौ रैय। अब बताव ई लरका कौ का करो जाय। गैल में उयै एक खेत में धनी छेवलिया दिखा परी। ऊने सोसी कै जौ अच्छौ मौका मिल गऔं । आव देखौ ना ताव उर उन छेवलियन के छाँयरे में लरका खौं लिटा कैं उर पत्तन सैं ढाँक कैं दूद बैचबे खौं चल दई ।

ऊने सोसी के हम गाँव में दूद बैचकै उलायते लौट आँय इतै कोउये का पतौ कै इतै लरका लेटो है । वातौ दूद बैचने में ऐसी बिबूच गई कैं लरका की कछू खबरई नई रई उर उयै दुपर हो गये। जी खेत की छेवलियन तरै लरका परो तौ । उतै एक किसान हर हाँक रओ तौ । उयै छेवलियन के छाँयरे में लरका परो नई दिखा पाव उर उतई हुन हर कड़ गओ । हर की नास सैं लरका को पेट फट गओ । उर वौ उतई मर गऔं ।

किसान तौ अपनी धुन में मस्त हतो । जईसैं ग्वालन कौ पूरौ दूद बिक गओ सोऊवा पईसन की पुटरिया लैकें घरैं लौट परी देर तौ भौत हो गई ती । अब उयै लरका की खबर आ गई। सोसन लगी कै भूक प्यास डरो हुइयै मौड़ा बा कर्री डगे धर  कै ओई खेत नौ पौची जितै छेवलियन के छायरे में लरकै पार गई ती। लरका तो पैलऊ सें मरई गओ तो ।

मरे लरका खौ देखकै वा टेर दैकै रोउन लगी। किसान खौ तौ कछू पतोई नई हतो, वौ तौ अपने हर हाकबै में मस्त हतो । ग्वालन को रोव सुनकै किसान दौरकैं उतै पोचों। अपने हर के फार सैं लरका खौ मरो देख कै पसतान लगो। अपनी गल्ती जान ग्वालन सै माफी माँगन लगो । ग्वालन कौ रोवो सुनकै चारई तरप औरतें जुरकै पौच गई।

हालत देख कैं पसतान लगी उर ग्वालन सैं पूछन लगी कै बाई आजतौ हरछठ कौ दिन है तुमने कोनऊ गल्ती तौ नई कर डारी । औरतन की बाते सुनकै ग्वालन कन लई कै हओ बैन हम सैं गल्ती तौ भौत बड़ी हो गई । आज कै दिना भैसई कौ दूद मठा खाव जात उर हम पइसा कमाबे के लाने गइया भैस कौ मिलौनी दूद बैच आये। भौतई बड़ो पाप हो गओ बैन हमसैं। लगत कै ओई पाप कौ फलआ भोगने आ रओ हमें ।

सब जनी बोली कै देखौ बैन अबै कछू नई बिगरो । तुम जानत तौ सबई हुइयै कै तुमने कितै – कितै दूद बैचो है। जल्दी दौर कैं जाव उर कै आव कै बाई हरों वौ दूद नई खइयौं वौ गइया भैस को मिलौनी दूद है। वा घर-घर जेई कत फिरी जीनें सुनी सो जेई कई कै ओ बाई तोरौ बेटा बाढ़े तेने भौतई अच्छी खबर दे दई । ई तरा सै ऊने पूरे गाँव में ढिढोरा पीट कैं अपने लरका कै लाने ढेरन अर्शीर्बाद लओ ।

जौलौवा गाँव में केई गई तोनो किसान जरिया के काटे से छेद करकैं उर काँस सैं ऊ लरका कौ पेट जाँकौताँ सी दओ उर उये छेनलन के पत्तन सै ढाँक कैं पार दऔं । सबको अशीष तौ मिलई चुको तो तनकई देर में लरका जी परो उर जब वा लौट कै आई सो उयै अपनौ लरका कहर – कहर रोऊत मिलो।

ऊने उयै उठाकै छाती सैं चिपका कै कन लगी कै हेमोई हरछठ मइया जेसी अपुन ने हम पै कृपा करी ऐसई सबपै कृपा बनाये रइयौ। सबके गववारन खौ खुशी राखियौं पछाई हमायेई नन्नइया पै पंजा राखै रइयौ । ऐइसै जरिया काँस उर छेवलिया की पूजा करी जात । अबतौ लोग ओइयै हरछठ मानन लगें।

भावार्थ

एक गाँव में एक दूध बेचने वाली ग्वालिन निवास करती थी । उसका परिवार हर तरह से भरा-पूरा और संपन्न था। सास-ससुर, देवरानी-जेठानी और ननदों से घर भरा रहता था। ग्वालिन का मुख्य कार्य दूध, मठा बेचना ही था । वह प्रात:काल दूध-दही की मटकी सिर पर रखकर निकल जाती थी और गाँव-गाँव में घूमते-घूमते दोपहर के बाद लौट पाती थी।

लौटते समय उसके पास रुपयों-पैसों की खासी पोटली होती थी। इतना श्रम करने के बाद भी उसके मुखमंडल पर रंच मात्र भी उदासी नहीं दिखाई देती थी । वह हँसती बोलती सी ही लौटती थी।

अनेक वर्ष तक ग्वालिन की कोई संतान उत्पन्न नहीं हुई, जिसके कारण वह चिंतित सी रहती थी। संतान के लिए उसने अनेक उपाय किए। देवी-देवताओं की पूजा-अर्चना और विविध औषधियों का सेवन किया । भगवान् की कृपा से ग्वालिन के यहाँ एक पुत्र उत्पन्न हो गया, जिसके कारण सारे परिवार में आनंद की लहर दौड़ गई। ग्वालिन फूली नहीं समा रही थी।

उसे अपनी नवजात संतान के प्रति इतना अधिक लगाव था कि वह उसे गोदी में लेकर ही दूध बेचने जाया करती थी। सारे परिवार का वह एक मात्र खिलौना था । परिवार के सारे लोग उसे गोद में लेकर खिलाया करते थे। ग्वालिन अपने बेटे को एक क्षण भी नहीं छोड़ती थी। क्योंकि उसे बार- बार दूध पिलाना पड़ता था ।

इसी तरह एक दिन ‘हलषष्ठ’ (हरछठ) का व्रत आ गया । यह बुंदेलखण्ड की महिलाओं का प्रिय व्रत है। इस दिन केवल भैंस के ही दूध, मठा का सेवन किया जाता है। हल के जोते हुए अन्न का सेवन करना वर्जित होता है । उस दिन उस ग्वालिन को पर्याप्त आय होने की संभावना थी। उसके घर में भैंस तो केवल एक थी। गायों की संख्या अधिक थी ।

उसने भैंस और गाय का दूध-मठा मिलाकर दोनों मटकी सिर पर रखकर और अपने पुत्र को गोद में लेकर दूध, मठा बेचने के लिए चल दी । उस दिन वह बहुत जल्दी में थी । उसने सोचा कि मुझे दूध, मठा बेचने के लिए जगह-जगह रुकना पड़ेगा और बार-बार बच्चे को गोद से नीचे उतारना पड़ेगा। अब विलंब के डर से घर लौटना कठिन था ।

चलते-चलते उसे एक खेत में छोटे-छोटे झाड़ दिखाई दिए और बिलकुल सुनसान वातावरण था । उसने वहाँ रुककर दोनों मटकी सिर से उतारकर नीचे रख ली और फिर एक पलाश के झुरमुट के नीचे पलाश के पत्ते बिछाकर बच्चे को लिटाकर और उसे पत्तों से ढककर दोनों मटकी अपने सिर पर रखकर चल दी। उसने सोचा कि यहाँ मेरा पुत्र सुरक्षित रहेगा। घंटे-दो घंटे में दूध, मठा बेचकर शीघ्र ही लौट आऊँगी ।

उस दिन ग्रामीण महिलाओं को भैंस के दूध, मठा की ही बहुत प्रतीक्षा थी । उसे बिक्री करने के लिए जगह-जगह रुकना पड़ा। व्यस्तता के कारण उसे बच्चे का स्मरण ही न रहा और उस दिन उसे दुगुना समय लग गया। खूब पैसा मिला और उसकी पोटली दुगुनी हो गई। दोनों मटकी खाली होने के बाद उसका बोझ हल्का हुआ और अचानक बच्चे का स्मरण हो आया।

यह सच है कि लालच में आदमी अंधा हो जाता है । यही स्थिति उस ग्वालिन की हुई । लालच का भूत सिर से उतरते ही वह बच्चे की याद में व्याकुल होती हुई, जल्दी-जल्दी अपने घर की ओर लौट चली। बच्चे को खेत में लिटाते समय उसने कोई ध्यान नहीं दिया था । वह बहुत जल्दी में थी। बच्चे को लिटाकर चली गई थी। उस खेत में एक कृषक हल चला रहा था। उसे क्या पता कि पलाश के पौधों के झुरमुट में कोई लेटा हुआ है ।

वह तो अपने हल-जोतने में व्यस्त था और ग्वालिन चार घंटे बाद भी लौट नहीं पाई। कृषक के हल के फाल की नोक से बच्चे का पेट फट गया और उसकी वहीं मृत्यु हो गई । कृषक को इस दुर्घटना का कोई पता नहीं लगा। वह बेचारा तो अपने कार्य में व्यस्त था ।

ग्वालिन दूध, मठा बेचकर पैसों की पोटली कमर में लटकाकर पाँव बढ़ाती हुई लौट पड़ी। अब उसे अपने बेटे को देखने की जल्दी थी । खेत में पहुँचते ही वह सीधी पलाश के पौधों झुरमुट के समीप पहुँची । जहाँ वह अपने बेटे को लिटाकर गई थी । झुरमुट में उसका पुत्र मरा पड़ा था। मृत पुत्र को देखकर उसके सिर से लालच का भूत उतर गया और ममता जाग उठी।

पुत्र की दुर्दशा देखकर वह दहाड़ मारकर रोने लगी । कृषक तो खेत में हल चला ही रहा था। उसने बीच खेत में बैठी हुई एक स्त्री का रुदन सुना । वह अपना हल रोककर ग्वालिन के पास पहुँचा और वहाँ उसके मृत पुत्र को देखकर बहुत दुखी हुआ। वह अपनी गलती पर पछताने लगा। अनजाने में उससे घोर अपराध हो गया था । किन्तु उस बेचारे का दोष ही क्या था ।

ग्वालिन का रुदन सुनकर मार्ग चलने वाले नर-नारी वहाँ एकत्रित हो गये । कृषक बेचारा सिर नीचा किए चुपचाप बैठा-बैठा पछता रहा था। ग्वालिन को बिलखता हुआ देखकर कुछ महिलाओं ने उससे पूछा कि क्यों बहिन आज तुमसे कोई अपराध तो नहीं बन पड़ा ?

 सुनते ही वह ग्वालिन बोली कि हाँ मुझसे आज एक बड़ी गलती तो हो गई। आज हलषष्ठी का दिन है। आज व्रत और उपवास में केवल भैंस का ही दूध-मठा उपयोग किया जाता है। मैंने लालचवश गाय और भैंस का दूध-मठा मिलाकर बेच दिया है। ये सुनते ही सब महिलाओं ने कहा कि ये तो तुमसे बहुत बड़ा अपराध बन पड़ा है। इससे तो सारी महिलाओं का धर्म ही नष्ट हो जायेगा।

 किन्तु अभी गलती सुधर जायेगी। ये बात उस ग्वालिन के गले उतर गई । वह दोनों मटकी वहीं रखकर सीधी उन्हीं घरों पर पहुँची, जहाँ वह दूध – मठा बेच आई थी। उसने उन सभी औरतों के घर जा-जा कर कह दिया कि तुम उस दूध-मठा का आज उपयोग मत करना । वह शुद्ध भैंस का दूध-मठा नहीं हैं। यह सुनते ही औरतों ने उस के पुत्र को ढेर सारा आशीर्वाद देते हुए कहा कि बहिन तुम्हारा बेटा सदा सुखी रहे, तुमने हमारे धर्म को नष्ट होने से बचा लिया ।

जब तक ग्वालिन गाँव की ओर गई, तब तक कृषक ने उसके बच्चे को पलाश के पत्तों पर लिटाकर जरिया के कांटे और कांस से बच्चे के फटे हुए पेट को सिलकर लिटा दिया और उधर उसे ढेर सारा आशीर्वाद मिल ही चुका था। जब वहाँ ग्वालिन लौटकर आई सो उसे अपना बच्चा रोता हुआ मिला। ग्वालिन ने अपने पुत्र को उठाकर छाती से चिपका लिया और उसे स्तनपान कराकर बहुत प्यार किया।

ग्वालिन ने वहाँ खड़ी हुई औरतों से कहा कि बहिन ! हरछठ मइया की कृपा से हमारे कलेजे के टुकड़े को नव-जीवन प्राप्त हो गया है। हे हरछठ मइया ! जैसी आपने हमारे पुत्र पर कृपा की है, वैसी ही सबके बच्चों पर कृपा बनाये रखना। तभी से हलषष्ठी की ‘पूजा में पलाश के पत्ते, जरियाँ के काँटे और काँस का उपयोग किया जाता हैं।

आज तो गाँव- गाँव में इस त्योहार के व्रत और उपवास का प्रचलन हो गया है । घर की बड़ी-बूढ़ी माताएँ इस अवसर पर इस कथा को सुना – सुनाकर इस व्रत के प्रति आस्था और विश्वास उत्पन्न करती हैं।

करावा चौथ व्रत कथा 

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