Homeबुन्देलखण्ड का सहित्यGeet Me Basant Hai  गीत में बसंत है

Geet Me Basant Hai  गीत में बसंत है

हमारे देश में बसंत उत्सव मनाने की परम्परा आदिकाल से रही है। यह उत्सव बसंत पंचमी के नाम से भी संबोधित होता आया है। एक ओर धार्मिक अनुष्ठान, सरस्वती पूजा तो दूसरी ओर लोग प्रेम, मेल- मिलाप, नाच-गाने ,मौज ,मस्ती के रंग में डूबने को आतुर रहते हैं, और मन गुनगुनाते है Geet Me Basant Hai  वहीं प्रकृति, वृक्ष अपने नये- नये कोपलों, पुष्पों और बौर की मादक सुगंध फैलाकर मदमस्ती  का माहौल बना देते हैं।

 

“गीत में बसंत है तो छंद मेरी फाग में”

हर्ष, उल्लहास, श्रृंगार, योग, वियोग  का चित्रण, राग- रागनी, गायन, वादन व नृत्यों की मण्डलियाँ सजने-संवरने लगती हैं। बुन्देलखण्ड में बुन्देली के लोक कवि ईसुरी, गंगाधर व्यास, ख्याली राम, रामसहाय कारीगर की रची फागें और बसंत लोगों की जुबान पर आज भी रचे बसे हैं। जिन्हें पढ़ते-गाते मेरे भी लगभग पांच दशक बीत गये ,पता न चला।

फढ़बाजी के जबावी दंगल में,आकाशवाणी व दूरदर्शन के अलावा देश के कई शासकीय, अशासकीय महोत्सवों के मंचों पर इन पारम्परिक विधाओं का जादू दर्शकों, श्रोताओं के सर चढ़कर बोलता रहा। नायक-नायिकाओं के भेद, काव्यकलाओं की विशेष शैली और उनका प्रस्तुतिकरण भी रोचक व मनोरंजक होता था।समय ने करवट क्या बदली कि पाश्चात्य सभ्यता ने धीर-धीरे अपने पैर पसार कर अपना वर्चस्व बना लिया। लोगों को कुछ नया जो चाहिए था।

चूंकि इन पारम्परिक बुन्देली विधाओं के संरक्षण, संवर्द्धन में मैनें भी हिन्दी, बुन्देली बोली-भाषा व काव्य कला के माध्यम से, नये और पुरातन स्वाद सन्धि का विशेष ध्यान रखते हुए अपनी साधना युक्ति प्रयोग तो की परन्तु मौलिकता बनी रहे इसे भी मैंने ध्यान में रक्खा है। क्योंकि यही त्योहार हमारे प्रेमव्यवहार, संस्कार संस्कृति और भाईचारे के साथ नयी पीढ़ी के पथप्रदर्शक जो हैं। इन त्योहारों के प्रति लोगों का लगाव व आकर्षण बना रहे इस लालसा के साथ आज आप सुधी पाठकों के समक्ष “बुन्देली झलक” के माध्यम से बसंत व फागुन पर गीत व छन्द प्रषित हैं।

बसंत – योग/वियोग/श्रृंगार
शीतल मस्त पवन पुरवईया चलन लगी मद्धम मद्धम
यौवन  घट , धर  नाच रही ,ऋतु बासन्ती छेढ़े सरगम
बिंदिया की नव चमक, नवेली घूँघट में शरमान लगी
कानन करन फूल नथ बेंदा काजर कोर सजान लगी
हार , हमेल कसे बाजूबन्द छवि  देखे  प्यारे प्रीतम।
यौवन घट धर…………………………………
पल छिन घटन लगी रजनी, तितलीं भंवरा मडरान लगे
पान, फूल ,फल दार  आम की, डार  बौर  गदरान लगे
पगधरतन पग पग पे निकरें बोल पायलियाके छमछम
यौवन घट धर…………………………………….
प्रीतम पिवकी पाती पढ़ पढ़ कबतक धीरबंधाऊ सखी
मन मन्दिर में मदन मदन बिन मन मारे रह जाऊँसखी
आहट  होत  तनक  द्बारे पे  हेरत  नयन  उन्हें हरदम।
यौवन घट धर…………………………………..

कल-कल करतन कल बीते, कल परसों में बीते बरसों
देखत देखत नयन थके सखी छवि देखन कों मैं तरसों
विरहन मन की विरह वेदना की न बनी कोनऊं मरहम
यौवन घट धर…………………………………..

कंत बसे जब आये कंत खिल उठीं अधरकी पांखुरिया
अंत भले से बसंत मने – मन  बजी  प्रेम की  बांसुरिया
पावन मधुर मिलन का ऐसा’असर’ हुआ भूली हरग़म।
यौवन घट धर नाच रही ऋतु बासंती छेड़े सरगम
यौवन घट धर…………………………………..
छंद
खुद चली आवे गोरी खेलवे खों तोसें होरी
गोरी – गोरी  नरम  हथुलियन  गुलाल  ले
नेह  भरी  ‘नैन’  पिचकारी  हँस  मार  देवे
चटकीले  ‘रंग’  संग  प्रेम  को  उबाल  ले
नैन सें  मिलाकें  नैन भाषा तोरी जान जावे
जावे  शर्मीली  भाग, तेरो  सब  हाल  ले
ऐसो  रंग  डारे  ,तेरी  आत्मा जो रंग  देवे
प्रेम  को ‘असर’  हँस – हँस  हिये पाल  ले
“होरी” काव्यकला की
धार धरम धीरज कर लेओ पिचकारी धार
धार प्रेम रंग की दो  कंचन से तन पे डार
डार अश्लीलता की  काटो लोभ रूपी लाल
लाल हो गुलाल शीलता की करो देख भाल
भाल पे लगाओ,आओ नये भोर की जो पार
धार प्रेम रंग की………………………
पार करो बैर की, जा खाई भर जावे हाल
हाल  हो  निहाल, चंचल  न  हो  मन  चाल
चाल करो ऐसी सत्य जीते झूठ जावे हार
धार प्रेम रंग की……………………
हार  गरें  डारो  ‘सद्भभाव’  की  हो भावना
भावना  दुर्भावना की आवे  कबहूँ कामना
कामना हो पूरी ‘सतसंगत’ को झेलो बार
धार प्रेम रंग की……………………..

बार-बार  बरजोरी  द्वेष  होरी जावे  जल
जल   निर्मल   रहे   नैन   बीच   हर  पल
पल  जावे  रीत  जो  ‘असर’  मन मझधार
धार प्रेम रंग की……………………..

बुन्देली झलक (बुन्देलखण्ड की लोक कला, संस्कृति और साहित्य)

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Bundeli Jhalak: The Cultural Archive of Bundelkhand. Bundeli Jhalak Tries to Preserve and Promote the Folk Art and Culture of Bundelkhand and to reach out to all the masses so that the basic, Cultural and Aesthetic values and concepts related to Art and Culture can be kept alive in the public mind.
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