Gangesari Math Gondagaon नर्मदा के दक्षिण तट के हैं । चिचोट, छीपानेर, लछौरा, गोंदागाँव ऐसे गाँव हैं, जो नर्मदा के भरोसे जीवित हैं । जहाँ से नर्मदा का उत्सवा, जीवनदायी और निर्मला रूप देखा जा सकता है। गंगेसरी मठ – गोंदागाँव इन जगहों में से ऐसी जगह है, जहाँ नर्मदा से गंजाल और गोमती नदियाँ आकर मिलती हैं तथा त्रिवेणी संगम बनाती हैं।
गंजाल और गोमती के बीच बसा है- गोंदागाँव और गोमती तथा नर्मदा के बीच बसा है – बिरजाखेड़ी या गंगेसरी। गोंदागाँव बड़ी बस्ती है। गंगेसरी ढीमरों – कहारों का छोटा-सा गाँव है । ये ढीमर कहार नर्मदा तीरी मूल निवासी हैं। नर्मदा से मछली मारना, नाव चलाना, नर्मदा किनारे की जमीन पर खेती करना और गर्मी में नर्मदा की रेत में तरबूज – खरबूजा की फसल पैदा करना इनका मुख्य धन्धा है।
गंजाल सतपुड़ा की राजा बरारी श्रेणी से निकलती है और सीधी सरल रेखा में दक्षिण से उत्तर की ओर बहती हुई गोंदागाँव के पास नर्मदा में मिल जाती है। इसमें काजल तथा मौरन जैसी नदियाँ मिलकर इसे बड़ी नदी बनाती हैं, वरन गंजाल जहाँ से निकली है, वहाँ तो एक छोटी-सी पहाड़ी नदी है, जैसी अन्य नदियाँ अपने उद्गम पर होती हैं।
सतपुड़ा के घनघोर वनप्रांत में इसके किनारे बसे बोथी, जवारदा जैसे वनग्रामों में लोकशाला कार्यक्रम हेतु जाना हुआ। पूरी वन्य संस्कृति को यह नदी अभी भी संरक्षित किये हुए है। इसके किनारे बसे गाँवों में आदिवासी अभी भी अपनी आदिम अवस्था में है। सरपंच सरीखा आदमी ही थोड़ा चरफर है । बाकी सब जंगल के वाशिन्दे हैं । जिनका भगवान वन विभाग का अदना सा कर्मचारी हुआ करता है। इस गंजाल ने सतपुड़ा के नेह को नर्मदा जल में मिलाकर अमृत कर दिया है। गोंदागाँव में आकर यह पहाड़ी नदी नर्मदा की गोद में विश्रांति पाती है।
गोंदागाँव से बिरजाखेड़ी या गंगेसरी मठ जाने के लिए गोमती को पार करना पड़ता है। गोमती छोटी नदी है। गर्मी में सूख जाती है। सूख जो गंजाल भी जाती है, पर इसमें संगम पर नर्मदा का पानी भरा रहता है । गोंदागाँव से किनारे पर से नीचे उतरकर गोमती को पारकर नर्मदा में जा सकते हैं, विशेष बात यह है कि नर्मदा में मिलने का स्थल गंजाल और गोमती का एक ही है ।
पहले दोनों आपस में अपना हाथ एक दूसरे के गले में डालती हैं और दोनों अपने दूसरे हाथ से नर्मदा से भुजभर भेंटती हैं। बरसात में जब ये तीनों अपनी रवानी पर होती हैं तो समुद्र – सा दृश्य उपस्थित हो जाता है। गोंदागाँव में पानी घुस आता है। एक तरफ गंजाल ठेस मारती है। दूसरी तरफ गोमती । गोंदागाँव राम-राम कर पानी से लड़ता हुआ उबरता है । बिरजाखेड़ी गोंदागाँव की अपेक्षा अधिक ऊँचे टापू पर है । इसलिए मामूली बाढ़ में वह नहीं संकट से घिरता।
गंगेसरी को एक ओर नर्मदा तथा दो – ओर से गोमती घेरे हुए है। बस सकरा-सा भाग ही है, जिससे निकलकर भागा जा सकता है। बाढ़ से बचा जा सकता है। नर्मदा गंजाल और गोमती के संगम पर बना है एक मठ । जिसे गंगेसरी मठ कहा जाता है । यह मठ लगभग 500 वर्ष पुराना है। इसका संबंध प्राचीन काल में उज्जैन के किसी अखाड़े (साधुओं के पंथ) से भी था। मठ के पास बनी है धर्मशाला ।
धर्मशाला अब टूटी-फूटी हालत में है। केवल अगला हिस्सा ही साबुत बचा है। धर्मशाला के एक बरामदे में सुधीर चौहान नाम के शिक्षाकर्मी (शिक्षक) ने बिरजाखेड़ी के बालक-बालिकाओं को इकट्ठा कर रोज पढ़ाने का दायित्व संभाल रखा है। उन्होंने मठ के बारे में बताया। यह भी कहा कि इस धर्मशाला से लगी हुई गौशाला थी । जिसमें सैकड़ों गायें पाली जाती थीं । उनके पालन-पोषण का काम मठ के द्वारा होता था। 1973 की भयानक बाढ़ में वह गौशाला बह गयी। कई गायें बह गयीं । तब से गौशाला बन्द है ।
मठ, विशाल दरवाज़ों से युक्त बना भवन है । इसमें लकड़ी पर की गयी कारीगरी दर्शनीय है । मठ पूर्व मुखी है । मठ के सामने दस छतरियाँ बनी हैं। ये छतरियाँ मठ के महंतों की हैं। एक जगह गणेश की सुन्दर प्रतिमा है। एक शिव मंदिर है। नंदी है। सामने ही विशाल वटवृक्ष है । वट वृक्ष से ही नर्मदा का किनारा शुरू हो जाता है । मठ, छतरियों तथा वट वृक्ष के पास से सामने पूर्व की ओर से बहती आती नर्मदा का विराट सौन्दर्य फैला है। नदियों का संगम, नर्मदा की महिमा और मठ का वैभव इस स्थल को रमणीयता देते हैं।
मठ से नीचे नर्मदा तक जाने का सुगम मार्ग है। छोटा-सा 5-7 सीढ़ियों का 10-12 फुट लम्बा घाट भी बना है । यहाँ नर्मदा का पानी बरसात में ही रहता है। शेष दिनों में नर्मदा इससे दूर बहती है । हम सर्दी और गर्मी दोनों मौसम में गये थे । गर्मी में नर्मदा की रेत निकल आती है। गंजाल- गोमती में से निकलकर रेत में चलते हुए दूर तक जाना होता है । तब नर्मदा का पानी आता है। गर्मी में ‘तर पड़’ जाता है । कम पानी होने की वजह से जब पानी में रेत का बड़ा भाग निकल आता है, उसे ‘तर पड़ना’ कहते हैं ।
तटवासी लोगों ने इस भाग में तरबूज-खरबूज लगा रखे हैं। वहाँ तक घुटने- घुटने पानी में से पैदल निर्भय जाया जा सकता है। गंगेसरी मठ वाले घाट पर नर्मदा का ग्रीष्मकालीन रूप बड़ा लुभावना और शांत है। इस घाट पर अमावस्या को सैकड़ों लोग स्नान करने आसपास के क्षेत्रों से आते हैं। तटवासी तो रोज ही सपड़ते हैं । बच्चे जल में किलोल करते हैं। आस्थावान सपड़कर सूर्य को अर्घ्य चढ़ाता है । पंडित मंत्र बोलता है ।
किसी मंत्र नहीं आता तो बचपन में डर से मुक्ति पाने के लिए रटी गयी हनुमान चालीसा शुरू कर देता है । कोई मानस की दो-चार चौपाई से काम चला लेता है । किसी को कुछ नहीं आता तो केवल हाथ-जोड़कर घर की राह लेता है। माँ भोले को ज्यादा संभालती है । सहज के भीतर सहज प्रवेश कर जाती है। गंगेसरी मठ अपनी रमणीयता में अपने ढंग का एक ही स्थल है। यहाँ नर्मदा की छटा कुछ और ही है । नर्मदा सौन्दर्य की नदी भी तो है।
शोध एवं आलेख -डॉ. श्रीराम परिहार