Homeबुन्देली व्रत कथायेंGanesh Chauth Vrat गणेश चौथ व्रत कथा

Ganesh Chauth Vrat गणेश चौथ व्रत कथा

बुंदेलखंड की महिलाएं विघ्न हरता  गणेश जू की पूजा गणेश चौथ को अवश्य करती हैं। Ganesh Chauth Vrat कौ महातम पूरे संसार में है । जा की तक कथा है कि एक गाँव में एक बामुन की बिटिया रत्ती । ऊर्कै बाप गाँव के अच्छे पंडित हते। गाँव भरकी पंडताई करकैं मन मुक्तौ पइसा कमाँऊते । घर में नाज पानी उर पईसा टका की कोनऊ कमी नई हती।

गाँव भर के ब्याव काज उर तित त्योहारन पै पंडित जीखौ मन मुक्ती आमदानी होत रत्ती। बिटिया की मताई बारा मईना कै गनेश बाबा कौ ब्रत कर पूजा पाठ करत रत्ती। बिटिया हलकई सें मताई कै व्रत खौं देखा देखी गनेश बाबा कौ ब्रत करन लगी। हरौँ-हराँ वा बिटिया स्यानी हो कैं  ब्याव लाक हो गई । अकेलै ऊने ऊ व्रत के करबे में कभऊँ चूक नई करी । कछू दिना में ऊकौ ब्याव हो गओं।

अच्छी भरी पूरी ससुरार मिल गई । ऊ घर में सोऊ पंडिताई होतती । कोऊ ने ऊके ब्रत में टोका नई मारौ उतै सोऊ वा गनेश बाबा कौ ब्रत करबौ नई भूली । उतै औरई जादा मन लगा कै ब्रत करत रई । कछू दिना में ऊकौ एक लरका हो परो । तौऊ ऊकौ उपास बंद नई भओ । नाय ऊकौ ब्रत चलत रओ, उर घर में लरका स्यानो होत रओ । हरां-हरां लरका ब्याव लाक  हो गओं।

उर फिर कछू दिना में अच्छे साकै कौ ब्याव भओ भइया कौ। अब का कनें वा बिटिया अब लरका बऊ बारी हो गई। तोऊ ब्रत करबौ नई छोड़ौ । ब्रत करत-करत क्योऊ सालै कड़ गई । उर बा बिटिया अब झन्क डुकरिया हो गईं। घर में सुख साधनन की कमी हती नई। कन लगत कै होती कीनौ धोती उर ना होती की फटी लगोंटी । डुक्को इत्ती बूढ़ी हो गई ती उने चल फिरबे तक मैं तकलीफ होन लगी ती । आँखन की जोत कमजोर हो गई ती। हाँतन गोड़न में निठुअई तागतनई रई ती ।

जीवन भर गनेश जूकौ ब्रत करत रई । गनेश जू की उनपै पूरी कृपा हतिअई। एक दिना वे कोनऊ काम सैं लठिया टेकत मन्दिर कुदाऊँ जा रईती। इतेकई में आकाशबानी भई कै ओ डुक्कौ तुम जीवन भर हमाओ ब्रत करत रई उर अब तुमाओ बुढ़ापौ आ गओ। हम तुमसै पूरी तरा से खुश हैं। माँगलो अब तुमें जो मागने होय । आज कौमागौं पाव ।

डुक्क सुनतनई चकवानी सी ठाँढ़ी होकै रैं गई। सोसन लगी कै कोऊ दिखात तौ है नइया, कुजाने कोआ बोल रओ। उनें मौगौ चालौ देख कैं फिरकऊ आकाशबानी भई कै डुक्को तुम अब सोसती का हों। माँगौ-माँगौ जल्दी माँगलो । अब डुक्को सन्न होकै रै गई उर सोसन लगी कै अब हम का माँगबे।

पैला तौ बे अपने डुकरानौ जाकैं पूछन लगी कै आज कोंनऊ देवता हमसे खुश होके हमें मनचाऔ वरदान दैवो खौं तैयार है । अब बताव हम का मांगे उनसैं । बब्बा बोले के हमाये तो दाँतई गिर गये हम सै तो कछु मुरतई नइया कजन तुमें कछु मँगवाने होय सो तुम उनसे दूद घी मांग लेव।

तनक देर में वे अपने लरका के लिंगा जाकें कन लगी । कै भइया कोनऊ देवता हमें वरदान देन चाऊत। बताव हम उनसे का वरदान माँग लेवे । लरका बोलो कै बाई अपने इतै भौतई गरीबी है । मांगने होय तो तुम उनसे धन माया माग ल्याव फिर उन्ने अपनी बऊधन नौ जाकै जेई बात दै पूछी। बऊधन बोली कै हमाई गोदी खाली है। तुम अपने लाने नाती माँग ल्याव ।

सवरन की अलग- अलग बातें सुनकें वे ओंरई झन्झट में पर गयीं कै अब बताव का मांगे उनसें ऐसी सोसत वे लठिया टेकत फिरकऊँ मंदिर कुदाऊँ जान लगी। गनेश बब्बा एक बूढ़े बामुन को रूप घरकै उने गैलंई में ठाँढ़े मिल गये, उर उने गैल में रोक कै कन लगे कै बाई मांगती काय नइया ।

एकई दार में मांग लो जो तुमें मांगने होय सो अब डुक्को को दिमाक भौतई टीक ठाक हतो वे सोसत-सोसत कै उठी सबसे पैल तौ हमें आँखई चानें ती बुढ़ापे में आंखन खौं भौतई बड़ो सहारो होत । आंखन बिना आदमी की जिंदगी बेकारई है । बब्बा ने उने फिरंकऊँ कैकै तुम ठांढ़ी-ठांढ़ी का कर रई । मांग काय नई रई। डुक्को बोली कै कजन तुम हमें कछू वरदान देन चाऊत होव तो हम सोने की नसेंनी पै चढ़ कै सोने कै कचुल्ला में अपने नाती खाँ दूद भात खात देखन चाऊत ।

डुक्को की होशयारी तो देखो। उन्ने एकई संगे चारई चीजें मांगलई । अपने काजैं आँखें, बब्बा खौं घी, दूद – लरका खौं धन-माया, उर बऊधन खौं लरका सब एकई संगे मांग लओ उर उन गनेश बाबा नें चारई चीजे एकई वरदान में दें दइं। ई तरा बामुन बऊ कौ गनेश बाबा कौ व्रत हरतरा सै फलीभूत भओ । जो साँसे मन सें गनेश बाबा कों व्रत करत वे ऊकी मनोकामना खुदई पूरी करत ।

भावार्थ

एक गाँव में एक अच्छे ज्ञानी – ध्यानी पंडित जी निवास करते थे । उन्हीं के अनुरूप अत्यंत चतुर और गुणवती पंडित जी की एक पुत्री थी । पंडित जी की पत्नी भी अत्यंत धार्मिक और गुणवती महिला थी। पंडित जी की पूरे गाँव में पंडिताई थी, जिसके द्वारा वे पर्याप्त अर्थोपार्जन करते थे।

उनके घर में अन्न-धन और सुख-साधनों की कोई कमी नहीं थी। गाँव भर के विवाहकाज, पुराणकथा और याज्ञिक कार्यों से उन्हें पर्याप्त धन प्राप्त होता रहता था। उनकी पत्नी तो बहुत धार्मिक थी। वह बारह महीने की गणेश चतुर्थी को गणेश जी का व्रत करके खूब पूजा- पाठ करती थी। उनकी पुत्री अपनी माँ को देखकर बचपन से ही गणेश जी का व्रत करने लगी थीं।

धीरे-धीरे उनकी पुत्री विवाह के योग्य हो गई। फिर भी वह लगातार व्रत करती रही। उसके संयम नियम में रंचमात्र भी शिथिलता उत्पन्न नहीं हुई । कुछ दिन बाद उसकी शादी हो गई। फिर भी उसने व्रत करना नहीं छोड़ा। उसके सास-ससुर, पति और परिवारजनों ने उसके व्रत में कोई बाधा उत्पन्न नहीं की। संयोगवश उसकी ससुराल में भी पंडिताई होती थी। इस कारण से वह अपनी ससुराल में और भी अधिक मन लगाकर गणेश जी की पूजा करने लगी।

कुछ दिन बाद गणेश जी की कृपा से उसको एक पुत्र उत्पन्न हो गया । फिर भी उसने उपवास करना बंद नहीं किया। इधर उसका व्रत लगातार संचालित रहा और घर में उसका पुत्र बड़ा होता गया । धीरे-धीरे उसका पुत्र शादी के योग्य हो गया ।

फिर कुछ दिन बाद उसके पुत्र का बड़े ही धूम-धाम से विवाह हो गया। अब क्या कहना ? वह उपवास करने वाली पंडित जी की पुत्री लड़का और बहू वाली हो गई। फिर भी उसने गणेश जी का व्रत और उपवास नहीं छोड़ा। अब वह लड़की बूढ़ी हो गई । घर हर तरह से भरा – पूरा था । सुख-साधनों की कोई कमी थी नहीं ।

वे इतनी ज्यादा वृद्ध हो गईं कि उन्हें चलने-फिरने में भी कष्ट होने लगा । आँखों की ज्योति मंद पड़ गई। आँखों के सामने अंधेरा सा लगा रहता था । उनके हाथों पाँवों में जरा भी शक्ति नहीं रही। वे जीवन भर गणेश जी का व्रत करती रहीं । गणेश जी की तो उन पर पूरी कृपा थी ही ।

एक दिन किसी कार्य हेतु लाठी टेकती हुई मंदिर की ओर जा रही थीं। इसी बीच में अचानक आकाशवाणी हुई कि – हे बूढ़ी अम्मा ! आप जीवन भर हमारा व्रत करती रही हो । व्रत करते-करते अब तुम्हारा बुढ़ापा आ गया है। अब तुम चलने फिरने में असमर्थ हो गई हो। मैं अब तुमसे पूर्ण प्रसन्न हूँ। तुम मुझसे मनचाहा वरदान माँग लो, जो कुछ माँगोगी वह मैं तुम्हें देने को तैयार हूँ ।

आकाशवाणी सुनकर अम्मा चकित खड़ी होकर रह गईं, सोचने लगी कि दिखाई तो कोई देता नहीं और न जाने कौन बोल रहा है। उन्हें चकित और शांत खड़ा हुआ देखकर फिर से आकाशवाणी हुई कि माताजी आप सोच क्यों रही हो । अरे ! जो माँगना हो जल्दी माँग लो। बुढ़ी अम्मा शांत होकर रह गई और सोचने लगी कि अब मैं इनसे क्या माँगूँ ?

पहले वे अपने पति के पास जाकर उनसे बोलीं कि न जाने कौन देवता मुझसे प्रसन्न होकर आकाश मण्डल से बोल रहे हैं कि वरदान माँग लो । बताइये अब मैं क्या वरदान माँगूँ? बब्बा बोले कि मेरे तो पूरे दाँत ही टूट चुके हैं। मुझसे तो कुछ चबता ही नहीं है । यदि माँगना उनसे दूध और घी मांग लो। थोड़ी देर में अम्मा ने अपने लड़के के समीप जाकर यही प्रश्न किया। पुत्र ने कहा कि मैं तो बहुत ही गरीब हूँ । यदि तुम्हें उस देवता से कुछ माँगना हो तो तुम धन माया मांग लो।

उसने अपनी पुत्रवधू के समीप जाकर यही प्रश्न किया । पुत्रवधू ने कहा कि मेरी तो गोदी खाली है। यदि माँगना ही हो तो तुम उनसे नाती माँग लो। परिवार के लोगों की अलग-अलग बातें सुनकर अम्मा ज्यादा झंझट में पड़ गईं। वे सोचने लगीं कि अब मैं उस देवता से क्या माँगू? ऐसा सोचती हुई वे लाठी टेकती हुई मंदिर की ओर जाने लगी ।

गणेश बाबा बूढ़े ब्राह्मण का रूप धारण करके उस वृद्धा के सामने खड़े होकर बोले कि माता जी आप माँग क्यों नहीं रही हो? जो कुछ तुम्हें माँगना हो सो एक ही साथ माँग लीजिये । मैं, जो माँगो देने को तैयार हूँ। उन्होंने मन में सब कुछ सोच लिया था, वह सोचने लगीं कि पहले तो हमें आँखों की जरूरत है, जिनके बिना बुढ़ापे में जीवन बेकार हो जाता है । बूढ़े ब्राह्मण ने फिर से कहा कि तुम खड़ी खड़ी क्या कर रही हो? माँगती क्यों नहीं हो ?

सोच समझकर बूढ़ी अम्मा ने कहा कि यदि तुम मुझे देना ही चाहते हो तो ‘हम सोने की नसेनी पर चढ़कर सोने की कटोरी में अपने नाती को दूध-भात खाता हुआ देखना चाहते हैं।’ अम्मा ने बड़ी ही चतुराई से काम लिया, उन्होंने एक ही वरदान में चार इच्छाओं को एक ही साथ माँग लिया। उन्होंने अपने लिए आँखें, बब्बा के लिए घी-दूध, लड़के के लिए धन-माया और पुत्रवधू के लिए पुत्र । उन्होंने ये वस्तुएँ एक साथ दे दीं।

इस प्रकार ब्राह्मण की पुत्री का व्रत पूरी तरह से फलीभूत हुआ, जो सच्चे मन से भगवान गणेश की पूजा-अर्चना व्रत और उपवास करते हैं, भगवान गणेश उनकी मनोकामना पूर्ण करते हैं ।

बराबरसात वट सावित्री व्रत 

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